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लॉकडाउन में फीकी पड़ी रमजान की रौनक, मस्जिदों की सीढ़ियों पर खामोशियों का पहरा

लॉकडाउन के कारण इस बार रमजान का महीना भी सूना-सूना लग रहा है. रोजेदार घरों में कैद रहकर सादगी से सहरी और इफ्तारी कर रहे हैं. बाजारों में सन्नाटा पसरा हुआ है. दुकानदारों के चेहरे पर मायूसी है.

Dehradun Ramadan
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Published : May 17, 2020, 5:14 PM IST

Updated : May 19, 2020, 5:02 PM IST

देहरादून: "कोरोना का डर और लॉकडाउन का सन्नाटा"... कोविड-19 की इस दोहरी मार ने रमजान मुबारक महीने की रौनक को फीका कर दिया है. किस तरह से चल रहा है रमजान और क्या है बाजार का हाल.. देखिये ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट में...

लॉकडाउन में फीकी पड़ी रमजान की रौनक.

इस दफा मुस्लिम समुदाय के सबसे बड़े त्योहार रमजान पर भी कोरोना का गहरा असर पड़ा है. रोजेदारों को इफ्तार के वक्त लज्जत देने वाले खाने-पीने के बाजार लॉकडाउन के कारण वीरान हैं. इस बार रोजेदार लॉकडाउन की वजह से अपने घरों में कैद हैं और दुकानों पर सन्नाटा है. धर्म गुरुओं की अपील के बाद लोग तरावीह की नमाज भी घर में ही पढ़ रहे हैं. यह सच है कि रमजान में खाने-पीने की दुकानें नहीं खुलने की वजह से बाजारों में वह रौनक नहीं है.

इस बार मुस्लिम भाइयों का रमजान कैसा गुजर रहा है ? यह जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने लोगों से बात की. हर बार रमजान के महीने नए कपड़े सिलने वाले मोहम्मद अकबर ने बताया कि उन्होंने इस बार कपड़ों की दुकान बंद करके एक छोटी परचून की दुकान खोली है, क्योंकि न तो लोग कपड़ों का ऑर्डर करने आ रहे हैं और न ही लोगों के पास पैसा है. मोहम्मद अकबर बताते हैं कि इस बार की ईद बेहद फीकी होने जा रही है.

पढ़ें- कालाढूंगी: मुख्य वन संरक्षक ने बरहानी रेंज का किया निरीक्षण, दिए कई निर्देश

रमजान में जमकर होती थी मांस की बिक्री

रमजान का महीना मुस्लिम समुदाय के लिए एक मुबारक महीना होता है और इस महीने खान-पान से लेकर हर एक चीज की बिक्री बाजार में बढ़ जाती थी. लेकिन इस बार मीट की दुकानों पर भी सन्नाटा पसरा है. मीट की दुकान लगाने वाले बबलू का कहना है कि इस बार का रमजान बेहद सूखा-सूखा जाने वाला है. क्योंकि इस रमजान उतनी भी बिक्री नहीं हुई, जितनी आम दिनों में शनिवार और रविवार हो जाती थी.

₹60 रुपये की सेवइयां इस बार हो गयी ₹140 की

रमजान के महीने में बाजारों में फल, सब्जी, सेवइयां और तरह-तरह के खान-पान के समान से बाजार पटा रहता था, लेकिन इस बार बाजारों में ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है. खासतौर से सेवइयों और मिठाई की दुकानों पर काफी भीड़ देखने को मिलती थी, जो इस बार लगभग गायब है और जो भी सामान मिल रहा है वह बेहद ही महंगा है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि पहले यह सारा सामान देहरादून के सहारनपुर से आता था लेकिन लॉकडाउन के यह गतिविधि पूरी तरह से बंद है.

पढ़ें- धरने पर बैठे यशवंत सिन्हा- ईटीवी भारत से बोले, मजदूरों को कुछ नहीं मिला

उत्साह नहीं केवल फिक्र है, ताकि यह दौर निकल जाए- स्थानीय व्यापारी

स्थानीय व्यापारी आफताब का कहना है कि इस रमजान में कोई उत्साह नहीं है केवल फिक्र है और फिक्र इस बात की ताकि यह दौर निकल जाए. अफताब कहते हैं कि लोग रमजान के महीने में बहुत कम अपने घरों से निकल रहे हैं. नमाज अपने ही घरों में अदा कर रहे हैं. लोग शौकिया भी खरीदारी नहीं कर रहे हैं, केवल जो जरूरत का सामान है वही खरीद रहे हैं.

इफ्तारी हुई खत्म, लेकिन भूखा ना सोए कोई ऐसी है कोशिश

रमजान का महीना खासतौर से राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण होता है. हर शाम इफ्तार पार्टी में कई राजनीतिक चेहरे नजर आते थे, लेकिन इस बार मंजर बिल्कुल अलग है. बीजेपी नेता शादाब शम्स का कहना है कि इफ्तारी पूरी तरह से बंद है, लेकिन सभी मुस्लिम समुदाय की कोशिश है कि उनके आसपास कोई भी गरीब असहाय मुस्लिम भाई भूखा न सोए.

छोटे तबके पर बड़ी मार

रिक्शा चलाने वाले जहीर अहमद का कहना है कि हर रमजान पर एक नई खुशी का संचार होता था, घरों में खुशी रहती थी लेकिन इस बार लॉकडाउन की मार ने उनकी रोजी-रोटी पर ही बुरा असर डाला है. घर में खाने के ही लाले पड़े हैं. बाल काटने का काम करने वाले बारबर अब्दुल सलमानी की भी यही पीड़ा है. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के बाद उनका काम पूरी तरह से बंद है. उनके सामने रोजी रोटी का संकट गहरा गया है.

देहरादून: "कोरोना का डर और लॉकडाउन का सन्नाटा"... कोविड-19 की इस दोहरी मार ने रमजान मुबारक महीने की रौनक को फीका कर दिया है. किस तरह से चल रहा है रमजान और क्या है बाजार का हाल.. देखिये ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट में...

लॉकडाउन में फीकी पड़ी रमजान की रौनक.

इस दफा मुस्लिम समुदाय के सबसे बड़े त्योहार रमजान पर भी कोरोना का गहरा असर पड़ा है. रोजेदारों को इफ्तार के वक्त लज्जत देने वाले खाने-पीने के बाजार लॉकडाउन के कारण वीरान हैं. इस बार रोजेदार लॉकडाउन की वजह से अपने घरों में कैद हैं और दुकानों पर सन्नाटा है. धर्म गुरुओं की अपील के बाद लोग तरावीह की नमाज भी घर में ही पढ़ रहे हैं. यह सच है कि रमजान में खाने-पीने की दुकानें नहीं खुलने की वजह से बाजारों में वह रौनक नहीं है.

इस बार मुस्लिम भाइयों का रमजान कैसा गुजर रहा है ? यह जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने लोगों से बात की. हर बार रमजान के महीने नए कपड़े सिलने वाले मोहम्मद अकबर ने बताया कि उन्होंने इस बार कपड़ों की दुकान बंद करके एक छोटी परचून की दुकान खोली है, क्योंकि न तो लोग कपड़ों का ऑर्डर करने आ रहे हैं और न ही लोगों के पास पैसा है. मोहम्मद अकबर बताते हैं कि इस बार की ईद बेहद फीकी होने जा रही है.

पढ़ें- कालाढूंगी: मुख्य वन संरक्षक ने बरहानी रेंज का किया निरीक्षण, दिए कई निर्देश

रमजान में जमकर होती थी मांस की बिक्री

रमजान का महीना मुस्लिम समुदाय के लिए एक मुबारक महीना होता है और इस महीने खान-पान से लेकर हर एक चीज की बिक्री बाजार में बढ़ जाती थी. लेकिन इस बार मीट की दुकानों पर भी सन्नाटा पसरा है. मीट की दुकान लगाने वाले बबलू का कहना है कि इस बार का रमजान बेहद सूखा-सूखा जाने वाला है. क्योंकि इस रमजान उतनी भी बिक्री नहीं हुई, जितनी आम दिनों में शनिवार और रविवार हो जाती थी.

₹60 रुपये की सेवइयां इस बार हो गयी ₹140 की

रमजान के महीने में बाजारों में फल, सब्जी, सेवइयां और तरह-तरह के खान-पान के समान से बाजार पटा रहता था, लेकिन इस बार बाजारों में ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है. खासतौर से सेवइयों और मिठाई की दुकानों पर काफी भीड़ देखने को मिलती थी, जो इस बार लगभग गायब है और जो भी सामान मिल रहा है वह बेहद ही महंगा है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि पहले यह सारा सामान देहरादून के सहारनपुर से आता था लेकिन लॉकडाउन के यह गतिविधि पूरी तरह से बंद है.

पढ़ें- धरने पर बैठे यशवंत सिन्हा- ईटीवी भारत से बोले, मजदूरों को कुछ नहीं मिला

उत्साह नहीं केवल फिक्र है, ताकि यह दौर निकल जाए- स्थानीय व्यापारी

स्थानीय व्यापारी आफताब का कहना है कि इस रमजान में कोई उत्साह नहीं है केवल फिक्र है और फिक्र इस बात की ताकि यह दौर निकल जाए. अफताब कहते हैं कि लोग रमजान के महीने में बहुत कम अपने घरों से निकल रहे हैं. नमाज अपने ही घरों में अदा कर रहे हैं. लोग शौकिया भी खरीदारी नहीं कर रहे हैं, केवल जो जरूरत का सामान है वही खरीद रहे हैं.

इफ्तारी हुई खत्म, लेकिन भूखा ना सोए कोई ऐसी है कोशिश

रमजान का महीना खासतौर से राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण होता है. हर शाम इफ्तार पार्टी में कई राजनीतिक चेहरे नजर आते थे, लेकिन इस बार मंजर बिल्कुल अलग है. बीजेपी नेता शादाब शम्स का कहना है कि इफ्तारी पूरी तरह से बंद है, लेकिन सभी मुस्लिम समुदाय की कोशिश है कि उनके आसपास कोई भी गरीब असहाय मुस्लिम भाई भूखा न सोए.

छोटे तबके पर बड़ी मार

रिक्शा चलाने वाले जहीर अहमद का कहना है कि हर रमजान पर एक नई खुशी का संचार होता था, घरों में खुशी रहती थी लेकिन इस बार लॉकडाउन की मार ने उनकी रोजी-रोटी पर ही बुरा असर डाला है. घर में खाने के ही लाले पड़े हैं. बाल काटने का काम करने वाले बारबर अब्दुल सलमानी की भी यही पीड़ा है. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के बाद उनका काम पूरी तरह से बंद है. उनके सामने रोजी रोटी का संकट गहरा गया है.

Last Updated : May 19, 2020, 5:02 PM IST
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