देहरादून: वैसे तो दीपावली रौशनी का त्यौहार माना जाता है. पुराणों के अनुसार भगवान राम जब रावण का वध करके और 14 साल बाद का वनवास खत्म करने के बाद आयोध्या वापस लौटे थे तो अयोध्यावासियों ने पूरी अयोध्या नगरी को दीपों से सजाकर खुशियां मनाई थी. लेकिन आज के आधुनिक दौर में दीपों के साथ साथ इस त्यौहार पर आतिशबाजी भी की जाती है. देशभर में आतिशबाजी के चलते पर्यावरण को भी बड़ा नुकसान होता है.
दीपावली की रात को हवा में जो जहर घुलता है उससे लोगों की सेहत को काफी नुकसान होता है. उत्तराखंड की बात करें तो यहां एयर क्वालिटी इंडेक्स में राज्य को कोई भी खतरा नहीं है. पूरे राज्य में अभी AQI लेवल सेटिस्फैक्टरी केटेगरी पर है. हालांकि इस केटेगरी में बुजुर्गों के साथ साथ जिन लोगों को सांस लेने में दिक्क्त होती है उनके लिए परेशानी बढ़ सकती हैं.
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दीपावली पर जलने वाले पटाखों की वजह से हर साल पूरे उत्तराखंड में केवल दीपावली की रात को हवा में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है. हालांकि हवा में फैला ये जहर केवल 2 घंटे के बाद साफ भी हो जाता है. पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के पर्यावरण अभियंता अंकुर कंसल का कहना है कि दीपावली को ध्यान में रखते हुए 17 अक्टूबर से ही विशेष अभियान चलाया जा रहा है. इसमें रोजाना एयर क़्वालिटी को चेक किया जा रहा है, जिससे अंदाजा हो सके कि रोजाना हवा में प्रदूषण का स्तर किस तरह से मूवमेंट कर रहा है.
पटाखों से न सिर्फ वायु और ध्वनि प्रदूषण होता है, बल्कि मनुष्य का स्वास्थ्य भी कई तरह से प्रभावित होता है. मनुष्य के लिए सामान्य डेसिबल स्तर 60 डीबी है, लेकिन पटाखों से 80 डीबी से ज्यादा शोर उत्पन्न होता है. यह लेवल अस्थायी बहरापन पैदा कर सकता है. पटाखों की विस्फोटक गूंज का बच्चों, गर्भवती महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है.
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वायु प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए पटाखों से दूरी बनाना ही बेहतर होगा. आप दूसरों को भी पटाखें ना खरीदने को लेकर जागरूक कर सकते हैं. पटाखों का जहरीला धुंआ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है और आसमान में भी धुंध सी छा जाती है. इसलिए इस दिवाली को सुरक्षित रूप से अपनों के साथ खुशी से मनाएं.