देहरादूनः उत्तराखंड में कैग की रिपोर्ट हमेशा से ही सरकारों के लिए मुसीबत खड़ी करती रही है. इस बार भी विधानसभा सत्र के दूसरे दिन भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक यानी कैग की रिपोर्ट सदन में रखी गई. जिसमें 31 मार्च 2022 तक के राज्य के वित्त पर लेखा परीक्षा प्रतिवेदन दिया गया. कैग की रिपोर्ट में उपयोगिता प्रमाण पत्र का प्रस्तुतीकरण देते हुए 321 उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा न करने की बात भी रखी गई. इसके तहत 1,390.008 करोड़ की धनराशि के प्रमाण पत्र 2022 तक नहीं दिए गए. साल 2021-22 में 274 उपयोगिता प्रमाण पत्र विभागों ने नहीं दिए. जिसमें 984.40 करोड़ की धनराशि का हिसाब नहीं आ पाया.
कैग की रिपोर्ट में पेज नंबर 128 पर आहरण एवं वितरण अधिकारी की ओर से अपने ही बैंक खाते में धन हस्तांतरित करने की भी जानकारी दी गई. इसमें कहा गया कि 10,717.43 करोड़ की धनराशि DDO या आहरण एवं वितरण अधिकारियों के बैंक खातों और कार्यदायी संस्थाओं के खातों में थी. रिपोर्ट में लिखा गया इतनी बड़ी राशि के अंतिम उपयोग के आश्वासन के अभाव में खर्च की गई राशि को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. आहरण और वितरण अधिकारियों ने खुद के खाते में 2,464.59 करोड़ रुपए, जबकि कार्यदायी संस्थाओं को 82,252.84 करोड़ रुपए हस्तांतरित किए. इस तरह रिपोर्ट में अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर संदेह जाहिर किया गया है.
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वित्त से जुड़ा एक और गंभीर मामला विभिन्न सरकारों की ओर से बिना विधानसभा की मंजूरी के बजट खर्च करने से जुड़ा है. इसमें कहा गया कि 47,758 करोड़ रुपए की धनराशि सरकारों ने विधानसभा में पास किए बिना ही खर्च कर दी. हालांकि, इसके लिए भी नियमों में प्रावधान है, लेकिन बाद में ऐसे बजट को विधानसभा से अनुमोदित करवाया जाता है, लेकिन इन मामलों में सरकारों की ओर से बाद में भी अनुमोदन नहीं लिया गया. कैग की रिपोर्ट के अनुसार साल 2005-06 से लेकर 2021-22 तक एक बड़े बजट को व्यय करने के बावजूद उसके लिए मंजूरी नहीं ली गई.
सरकार ने दिया ये जवाबः वहीं, सरकार की तरफ से अब विधानसभा में बिना अनुमोदन के 47,758 करोड़ रुपए खर्च किए जाने का जवाब दिया गया है. जिसमें 47,758.16 करोड़ रुपए व्ययाधिक्य, खाद्य पूंजीगत मद में 18,803.23 करोड़ की धनराशि दर्शायी गई है, जो कुल धनराशि का करीब 39.37 फीसदी है. यह भी 'एकाउंटिंग कन्वेंशन' से संबंधित है. सरकार का कहना है कि महालेखाकार की ओर से सकल आधार पर गणना की गई है. जबकि, राज्य सरकार की ओर से निवल आधार पर बजट प्रावधान किया जाता रहा है, जो अब महालेखाकार के परामर्श के अनुरूप किया जाने लगा है.
वहीं, 47,758.16 करोड़ रुपए के व्ययाधिक्य में कृषि एवं उद्यान की पूंजीगत मद में 185.26 करोड़ की धनराशि अंकित है, जो कुल धनराशि का करीब 0.38 फीसदी है. इस पर भी सरकार ने यही हवाला दिया गया है. वहीं, 47,758.16 करोड़ रुपए के व्ययाधिक्य में अन्य विभागों से संबंधित 955.96 करोड़ की धनराशि अंकित है, जो कुल धनराशि का करीब 2.00 फीसदी है. इस पर सरकार का कहना है कि यह लेखों के मिलान से संबंधित है. लेखा मिलान विभाग और महालेखाकार कार्यालय के बीच होता है.
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सरकार की मानें तो शिक्षा, चिकित्सा एवं पुलिस विभाग में महालेखाकार की ओर से कुछ सालों में व्यय भारित मदों में प्रदर्शित किया गया है. जबकि, संबंधित विभाग की ओर से इस आधार पर खंडन किया जाता रहा है कि उनके विभाग में भारित मद के सापेक्ष व्यय नहीं हुआ है. इस संबंध में विभागों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि महालेखाकार के आंकड़ों से मिलान करते रहें. ताकि, इस तरह की विसंगतियां पैदा न हों.
कांग्रेस का आरोप 'भ्रष्टाचार में डूबी सरकार': उधर, कैग रिपोर्ट पर कांग्रेस ने सरकार को घेरा है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि बीजेपी की सरकार भ्रष्टाचार में डूबी हुई है. कैग की रिपोर्ट से यह साबित भी हो जाता है. करन माहरा कहते हैं कि इस रिपोर्ट के आने के बाद सभी को यह समझ जाना चाहिए कि इनकी ही सरकार के मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी ने जिस लोकायुक्त को लाया, उसे 100 दिन में लागू करने के खुद के वादे को ही सरकार ने क्यों पूरा नहीं किया? यह सरकार क्यों लोकायुक्त नहीं ला रही है.
बीजेपी ने दी सफाईः कैग में वित्त से जुड़े विभिन्न मामलों के सामने आने के बाद सरकार जहां इन प्रकरणों को लेकर बैकफुट पर दिखाई दे रही है तो वहीं बीजेपी ने भी सरकार के बचाव में आगे आकर ऐसे मामलों का संज्ञान लिए जाने की बात कही है. बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता वीरेंद्र बिष्ट कहते हैं कि कैग ने जो रिपोर्ट तैयार की है, उसे सरकार गंभीरता से ले रही है. इस मामले में जो गलतियां की गई है, उसमें सुधार किया जाएगा. साथ ही जो अधिकारी इसमें गलत पाए जाते हैं, उन पर कार्रवाई भी की जाएगी.
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