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PM मोदी के पहनने के बाद चर्चित हो गई उत्तराखंडी ब्रह्मकमल टोपी, चुनाव में भी रही धूम

उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तराखंड की पहाड़ी टोपी ने अपनी अलग पहचान बनाई है. चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी और सीएम धामी समेत कई नेताओं ने ये टोपी पहनकर चुनाव प्रचार किया है. आपको बताते हैं कि आखिर ये टोपी क्यों है इतनी खास...?

brahmamal cap
उत्तराखंडी टोपी
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Published : Feb 15, 2022, 2:41 PM IST

Updated : Feb 17, 2022, 3:26 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में इस बार नेताओं के सिर पर 'उत्तराखंड की पहाड़ी टोपी' खूब जमी है. 73वें गणतंत्र दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड की पहाड़ी टोपी पहनी, जो आकर्षण का केंद्र बनी रही. उसके बाद उत्तराखंड में मुख्यमंत्री से लेकर तमाम नेताओं और निर्दलीय प्रत्याशियों ने इस टोपी को पहनकर पहाड़ी मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की. यहां तक कि सीएम धामी ने बॉलीवुड स्टार अक्षय कुमार को यह टोपी पहनाकर ही उनका स्वागत किया था. हालांकि, अब इस टोपी पर सियासत शुरू हो गई है.

टोपी पर सियासत: भाजपा का कहना है कि पीएम मोदी ने इस टोपी को पहनकर उत्तराखंडियत को आगे बढ़ाने का काम किया है. वहीं, कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी का कहना है कि कांग्रेस ने 26 जनवरी से पहले उत्तराखंड के 'चार धाम चार काम' की लॉन्चिंग के दौरान छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने टोपी पहनी थी और लोगों को बांटी भी थी. लेकिन भाजपा मात्र ब्रांडिंग के नाम पर काम कर रही है.

PM मोदी के पहनने के बाद चर्चित हो गई उत्तराखंडी ब्रह्मकमल टोपी.

गणतंत्र दिवस पर पीएम मोदी ने पहनी टोपी: 73वें गणतंत्र दिवस के मौके पर पीएम मोदी की वेश-भूषा और परिधान ने खूब सुर्खियां बटोरीं. राजपथ पर आयोजित समारोह में पीएम मोदी न साफा में पहुंचे, न पगड़ी में, बल्कि इस बार वे अलग ही अंदाज में नजर आए. दरअसल, मोदी के सिर पर ब्रह्मकमल लगी पहाड़ी टोपी खासा आकर्षण का केंद्र रही. इस टोपी ने सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां बटोरीं.

पढ़ें- हरीश रावत को 48 सीटें जीतने की उम्मीद, बोले- कांग्रेस बनाएगी सरकार

प्रत्याशियों ने टोपी पहनकर वोटर्स को रिझाया: पहाड़ी टोपी पहनकर सभी प्रत्याशियों ने राजनीतिक दलों को कितना रिझाया यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही सामने आएगा लेकिन यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि पीएम मोदी के पहनने के बाद पहाड़ी टोपी के फैशन को नया आयाम मिला है. उत्तराखंड के जानकारों का कहना है कि उत्तराखंड में पहाड़ी टोपी हमेशा नुकीली रही है लेकिन इस टोपी की डिजाइन के बाद लोगों में खासी उत्सुकता देखने को मिली है.

विधानसभा चुनाव में मिली नई पहचान: पहले अधिकतर साधारण पहाड़ी टोपियां बुजुर्गों के सिर पर ही दिखती थीं. इसमें अधिकतर गढ़वाल-कुमाऊं में काली और सफेद रंग की टोपियां ही प्रचलित थीं. इस टोपी को पीएम मोदी के पहनने के बाद नई पहचान मिल गई है. अब हर उत्तराखंडी इस टोपी को पहनना चाहता है. हालांकि, जानकार कहते हैं कि गढ़वाल और कुमाऊं के सेना बैंडो में इस पहाड़ी टोपी का प्रचलन पुराना है.

पढ़ें- होली से पहले 10 मार्च को उत्तराखंड में कौन उड़ाएगा अबीर-गुलाल ? जानिए पूरा गणित

मसूरी में बनी पहली टोपी: धारी लगी पट्टी और ब्रह्मकमल के साथ पहाड़ी टोपी का कॉन्सेप्ट मसूरी निवासी समीर शुक्ला और उनकी पत्नी कविता शुक्ला ने शुरू किया. उन्होंने इसे तैयार करने के लिए उत्तरकाशी के अनघा माउंटेन एसोसिएशन की मदद भी ली. हालांकि, उत्तरकाशी के अनघा माउंटेन एसोसिएशन ने भी लाल रंग की पहाड़ी टोपी का ब्रह्मकमल के साथ ट्रेंड शुरू किया. लेकिन मसूरी से शुरू यह डिजाइनर पहाड़ी टोपी अब अधिक लोकप्रियता हासिल कर चुकी है. इसका क्रेज अब अपना एक नए मुकाम की और चल पड़ा है. हालांकि, भाजपा और कांग्रेस इस पर भी राजनीति कर रही हैं.

टोपी में क्या है खास? इस पहाड़ी टोपी में ब्रह्मकमल का फूल लगा हुआ है, जो उत्तराखंड का राज्य फूल है. इसके अलावा इसमें चार रंग की एक पट्टी बनी हुई है. जो जीव, प्रकृति, धरती, आसमान के सामंजस्‍य का संदेश देती है. वैसे तो इस टोपी में भूटिया रिवर्स का कपड़ा इस्तेमाल किया जाता है लेकिन अगर वो नहीं मिलता है, तो वूलन के लिए ट्वीड का कपड़ा इस्तेमाल होता है और गर्मी के लिए खादी के कपड़े का इस्तेमाल किया जाता है.

स्टॉक खत्म: पहाड़ी टोपी को बनाने वाले मसूरी निवासी समीर शुक्ला ने बताया कि संसाधन कम होने के कारण पहले कम ही टोपियां बनाई थी. उसके बाद कोविड काल में स्थानीय दर्जियों और महिलाओं के साथ जो टोपियां बनाई थी, उसका स्टॉक हमारे पास मौजूद था. पीएम मोदी के ब्रह्मकमल टोपी पहने के बाद मात्र 15 दिनों के अंदर ही स्टॉक खत्म हो गया. ऐसे में अब हमारा प्रयास है कि स्थानीय दर्जियों और महिलाओं की मदद से और टोपियां बनाई जाएं.

कॉपी से क्वालिटी हो रही खराब: समीर शुक्ला ने बताया कि पीएम मोदी के ब्रह्मकमल टोपी पहने के बाद मार्केट में कई लोग इसकी कॉपी कर रहे हैं. जिसको लेकर वह चिंतित हैं. क्योंकि कॉपी करने वाले लोग खराब क्वालिटी दे रहे हैं. जिससे इसकी मार्केटिंग और उत्पादन दोनों पर असर पड़ रहा है.

ब्रह्मकमल का महत्‍व: मान्‍यता है कि रामायण में लक्ष्मण के बेहोश से ठीक होने के बाद देवताओं ने स्वर्ग से जो फूल बरसाए, वे ब्रह्मकमल ही थे. इसका इस्तेमाल कई देशी नुस्खों में किया जाता है और यहां पूजा में इसका इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही सर्दी के कपड़ों में भी इस फूल को रखा जाता है. माना जाता है कि इससे सर्दी के कपड़े खराब नहीं होते हैं.

दुर्लभ है ब्रह्मकमल: ब्रह्मकमल फूल अगस्त के महीने में उगता है और नंदा अष्टमी को लेकर इस फूल का खास महत्व है. पीएम मोदी की टोपी पर न सिर्फ ब्रह्मकमल का निशान बना था, बल्कि इसमें चार रंगों की एक पट्टी भी बनी नजर आई, जो धरती, आकाश, जीवन और प्रकृत‍ि के सामंजस्‍य का संदेश देती है.

देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में इस बार नेताओं के सिर पर 'उत्तराखंड की पहाड़ी टोपी' खूब जमी है. 73वें गणतंत्र दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड की पहाड़ी टोपी पहनी, जो आकर्षण का केंद्र बनी रही. उसके बाद उत्तराखंड में मुख्यमंत्री से लेकर तमाम नेताओं और निर्दलीय प्रत्याशियों ने इस टोपी को पहनकर पहाड़ी मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की. यहां तक कि सीएम धामी ने बॉलीवुड स्टार अक्षय कुमार को यह टोपी पहनाकर ही उनका स्वागत किया था. हालांकि, अब इस टोपी पर सियासत शुरू हो गई है.

टोपी पर सियासत: भाजपा का कहना है कि पीएम मोदी ने इस टोपी को पहनकर उत्तराखंडियत को आगे बढ़ाने का काम किया है. वहीं, कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी का कहना है कि कांग्रेस ने 26 जनवरी से पहले उत्तराखंड के 'चार धाम चार काम' की लॉन्चिंग के दौरान छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने टोपी पहनी थी और लोगों को बांटी भी थी. लेकिन भाजपा मात्र ब्रांडिंग के नाम पर काम कर रही है.

PM मोदी के पहनने के बाद चर्चित हो गई उत्तराखंडी ब्रह्मकमल टोपी.

गणतंत्र दिवस पर पीएम मोदी ने पहनी टोपी: 73वें गणतंत्र दिवस के मौके पर पीएम मोदी की वेश-भूषा और परिधान ने खूब सुर्खियां बटोरीं. राजपथ पर आयोजित समारोह में पीएम मोदी न साफा में पहुंचे, न पगड़ी में, बल्कि इस बार वे अलग ही अंदाज में नजर आए. दरअसल, मोदी के सिर पर ब्रह्मकमल लगी पहाड़ी टोपी खासा आकर्षण का केंद्र रही. इस टोपी ने सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां बटोरीं.

पढ़ें- हरीश रावत को 48 सीटें जीतने की उम्मीद, बोले- कांग्रेस बनाएगी सरकार

प्रत्याशियों ने टोपी पहनकर वोटर्स को रिझाया: पहाड़ी टोपी पहनकर सभी प्रत्याशियों ने राजनीतिक दलों को कितना रिझाया यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही सामने आएगा लेकिन यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि पीएम मोदी के पहनने के बाद पहाड़ी टोपी के फैशन को नया आयाम मिला है. उत्तराखंड के जानकारों का कहना है कि उत्तराखंड में पहाड़ी टोपी हमेशा नुकीली रही है लेकिन इस टोपी की डिजाइन के बाद लोगों में खासी उत्सुकता देखने को मिली है.

विधानसभा चुनाव में मिली नई पहचान: पहले अधिकतर साधारण पहाड़ी टोपियां बुजुर्गों के सिर पर ही दिखती थीं. इसमें अधिकतर गढ़वाल-कुमाऊं में काली और सफेद रंग की टोपियां ही प्रचलित थीं. इस टोपी को पीएम मोदी के पहनने के बाद नई पहचान मिल गई है. अब हर उत्तराखंडी इस टोपी को पहनना चाहता है. हालांकि, जानकार कहते हैं कि गढ़वाल और कुमाऊं के सेना बैंडो में इस पहाड़ी टोपी का प्रचलन पुराना है.

पढ़ें- होली से पहले 10 मार्च को उत्तराखंड में कौन उड़ाएगा अबीर-गुलाल ? जानिए पूरा गणित

मसूरी में बनी पहली टोपी: धारी लगी पट्टी और ब्रह्मकमल के साथ पहाड़ी टोपी का कॉन्सेप्ट मसूरी निवासी समीर शुक्ला और उनकी पत्नी कविता शुक्ला ने शुरू किया. उन्होंने इसे तैयार करने के लिए उत्तरकाशी के अनघा माउंटेन एसोसिएशन की मदद भी ली. हालांकि, उत्तरकाशी के अनघा माउंटेन एसोसिएशन ने भी लाल रंग की पहाड़ी टोपी का ब्रह्मकमल के साथ ट्रेंड शुरू किया. लेकिन मसूरी से शुरू यह डिजाइनर पहाड़ी टोपी अब अधिक लोकप्रियता हासिल कर चुकी है. इसका क्रेज अब अपना एक नए मुकाम की और चल पड़ा है. हालांकि, भाजपा और कांग्रेस इस पर भी राजनीति कर रही हैं.

टोपी में क्या है खास? इस पहाड़ी टोपी में ब्रह्मकमल का फूल लगा हुआ है, जो उत्तराखंड का राज्य फूल है. इसके अलावा इसमें चार रंग की एक पट्टी बनी हुई है. जो जीव, प्रकृति, धरती, आसमान के सामंजस्‍य का संदेश देती है. वैसे तो इस टोपी में भूटिया रिवर्स का कपड़ा इस्तेमाल किया जाता है लेकिन अगर वो नहीं मिलता है, तो वूलन के लिए ट्वीड का कपड़ा इस्तेमाल होता है और गर्मी के लिए खादी के कपड़े का इस्तेमाल किया जाता है.

स्टॉक खत्म: पहाड़ी टोपी को बनाने वाले मसूरी निवासी समीर शुक्ला ने बताया कि संसाधन कम होने के कारण पहले कम ही टोपियां बनाई थी. उसके बाद कोविड काल में स्थानीय दर्जियों और महिलाओं के साथ जो टोपियां बनाई थी, उसका स्टॉक हमारे पास मौजूद था. पीएम मोदी के ब्रह्मकमल टोपी पहने के बाद मात्र 15 दिनों के अंदर ही स्टॉक खत्म हो गया. ऐसे में अब हमारा प्रयास है कि स्थानीय दर्जियों और महिलाओं की मदद से और टोपियां बनाई जाएं.

कॉपी से क्वालिटी हो रही खराब: समीर शुक्ला ने बताया कि पीएम मोदी के ब्रह्मकमल टोपी पहने के बाद मार्केट में कई लोग इसकी कॉपी कर रहे हैं. जिसको लेकर वह चिंतित हैं. क्योंकि कॉपी करने वाले लोग खराब क्वालिटी दे रहे हैं. जिससे इसकी मार्केटिंग और उत्पादन दोनों पर असर पड़ रहा है.

ब्रह्मकमल का महत्‍व: मान्‍यता है कि रामायण में लक्ष्मण के बेहोश से ठीक होने के बाद देवताओं ने स्वर्ग से जो फूल बरसाए, वे ब्रह्मकमल ही थे. इसका इस्तेमाल कई देशी नुस्खों में किया जाता है और यहां पूजा में इसका इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही सर्दी के कपड़ों में भी इस फूल को रखा जाता है. माना जाता है कि इससे सर्दी के कपड़े खराब नहीं होते हैं.

दुर्लभ है ब्रह्मकमल: ब्रह्मकमल फूल अगस्त के महीने में उगता है और नंदा अष्टमी को लेकर इस फूल का खास महत्व है. पीएम मोदी की टोपी पर न सिर्फ ब्रह्मकमल का निशान बना था, बल्कि इसमें चार रंगों की एक पट्टी भी बनी नजर आई, जो धरती, आकाश, जीवन और प्रकृत‍ि के सामंजस्‍य का संदेश देती है.

Last Updated : Feb 17, 2022, 3:26 PM IST
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