चमोली: ब्रह्म मुहूर्त में सुबह 4 बजकर 15 मिनट पर विधि-विधान और विशेष पूजा-अर्चना के बाद भगवान बदरीनाथ के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए. शंकराचार्य जी की पावन गद्दी और मुख्य पुजारी रावल गुरुवार शाम को बदरीनाथ धाम पहुंच गए थे. मंदिर को सुगंधित फूलों से श्रृंगारित किया गया. कपाट खुलने के दौरान भारी संख्या में स्थानीय लोगों के साथ बाहर से आने वाले श्रद्धालु भी मौजूद रहे. इस दौरान उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य, पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और बदरीनाथ विधायक महेंद्र भट्ट भी मौजूद रहे.
कपाट खुलने के बाद करीब 10 हजार श्रद्धालुओं ने मंदिर के अंदर अखंड ज्योति के दर्शन किए. वहीं 12 हजार से ज्यादा भक्त दर्शन को लिए लाइनों में लगे हुए थे. पहले दिन श्रद्धालुओं को घृत कंबल यानि ऊन की चोल का प्रसाद दिया गया. यह घृत कंबल शीतकाल में भगवान बद्रीनाथ की मूर्तिं ओढ़े रहती है. इसे माणा गांव की कन्याएं बुनकर तैयार करती हैं, जिस पर घी का लेपन किया जाता है.
बसंत पंचमी पर निकलता है मुहूर्त
बात दें कि हर साल सर्दियों में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद कर दिए जाते है और प्रत्येक वर्ष बसंत पंचमी के दिन राजपुरोहितों द्वारा कपाट खोलने का मुहूर्त निकाला जाता है. इसके बाद उसी तय तिथि पर बदरीनाथ धाम के कपाट खोले जाते है, जो अक्टूबर-नवंबर में बंद होते है.
दो पर्वत श्रृखंलाओं के बीच स्थित है बदरीनाथ धाम
बदरीनाथ धाम नर और नारायण नाम की दो पर्वत श्रृखंलाओं के बीच स्थित है. मंदिर में भगवान विष्णु के रूप में बदरीनारायण की पूजा होती है. यहां भगवान की मूर्ति शालिग्राम से निर्मित है. मान्यता के अनुसार भगवान की इस मूर्ति को 8वीं शताब्दी के आसपास शंकराचार्य जी ने नारायण कुंड से निकालकर यहां स्थापित किया था. इस मूर्ति को श्री हरी की स्वत: प्रकट हुई 8 प्रतिमाओं में से एक माना गया है. बता दें कि 7 मई को गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खोले गए थे. वहीं एक दिन पहले 9 मई को केदारनाथ धाम के कपाट खुले थे.