देहरादूनः बैंकों के विलय के बाद अब देशभर में 12 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक रह गए हैं. इससे पहले भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को मजबूत करने के इस तरह के निर्णय लिए जा चुके हैं. हालांकि, केंद्र के इस निर्णय के बाद बैंक कर्मियों में काफी रोष है. बैंक कर्मी इसे केंद्र सरकार की खामी मान रहे हैं. जबकि, अर्थव्यवस्था और बैंकों को मजबूत करने की दिशा में इसे बेहतर कदम माना जा रहा है.
केंद्र सरकार ने देश के 10 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय करते हुए 4 बैंकों को मजबूत करने की कोशिश की है. केंद्र के इस निर्णय को आर्थिक क्षेत्र में चल रही सुस्ती को दूर करने और बैंकों की स्थिति को और भी मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है. हालांकि, केंद्र के इस निर्णय के बाद बैंक यूनियनों ने इस पर विरोध दर्ज कराया है. बैंक कर्मी काली पट्टी बांधकर बैंकों में काम कर रहे हैं.
ये भी पढ़ेंः दरोगा भर्ती प्रकरणः CBI कोर्ट में DGP रतूड़ी के दर्ज हुए बयान, मामले में 7 दरोगा हो चुके बर्खास्त
बैंकों के मामले को लेकर बैंक कर्मियों पर क्या पड़ेगा असर-
केंद्र सरकार ने 10 बैंकों का विलय कर चार बैंक बनाकर भले ही कारोबार के लिहाज से बैंकों को मजबूत करने की कोशिश की हो, लेकिन कर्मचारियों के लिहाज से केंद्र के इस फैसले का काफी ज्यादा असर दिखाई देगा.
- केंद्र के इस निर्णय के बाद जहां देश में बैंकों की कई ब्रांच बंद होने की कगार पर आ जाएगी.
- कर्मचारियों के तबादले भी बड़ी संख्या में किया जाएगा.
- ऐसी स्थिति में समय से पहले ही स्वैच्छिक रिटायरमेंट जैसी स्थितियां भी सरकारी बैंकों में दिखाई देगी.
- कर्मचारियों की एक चिंता ये भी है, कि बैंकों के मर्ज के बाद इन कर्मियों के प्रमोशन में भी खासी दिक्कतें पेश आएंगी.
- कर्मचारियों के साथ ही बैंकिंग सेक्टर में सरकारी बैंकों को रोजगार के रूप में चुनने की तमन्ना रखने वाले युवाओं के लिए भी मौके कम हो जाएंगे.
- बैंकों की मर्ज के होने के बाद ब्रांच बंद होने के चलते कर्मचारियों की संख्या बैंकों के पास एक्सेस हो सकती है. जिससे नए कर्मियों की भर्तियां काफी हद तक कम हो जाएंगी.
ये भी पढ़ेंः सावधान! ये सब्जियां कर सकती है आपको बीमार, आखिर कौन कर रहा है सेहत से खिलवाड़ ?
खाताधारकों को भी शुरुआत में होगीं दिक्कतें-
- बैंकों के महाविलय की स्थिति के बाद खाताधारकों में भी बैंक बंद होने जैसी भ्रांतियां पैदा हो सकती हैं.
- एक बैंक में ही खाताधारकों की संख्या बढ़ने से बैंकों में होने वाले कामों को लेकर भी दिक्कतें आ सकती हैं.
- पासबुक बदलने, लॉकर शिफ्ट करने जैसी चीजों पर भी खाताधारकों की भागदौड़ बढ़ सकती है.
बैंकों की महाविलय होने के बाद अब कर्मचारियों ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए फिलहाल काली पट्टी बांधकर अपना विरोध दर्ज करना शुरू कर दिया है. साथ ही जल्द ही कर्मचारी यूनियन आगे की रणनीति भी तैयार करने जा रहा है.
बैंकों के विलय के बाद ये हो सकते हैं फायदे-
- बैंकों के विलय के बाद फायदे के रूप में देखा जाए तो देश के बैंक कारोबार के क्षेत्र में एक बड़े बैंक के रूप में दिखाई देंगे.
- इसके बाद बड़े उद्योगपतियों को भी किसी भी बैंक द्वारा बड़े लोन दिए जाने में कोई परेशानी नहीं होगी.
- इसके अलावा देश के बैंक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बड़े बैंकों में शुमार हो पाएंगे. जिससे बैंकों का कद बड़ा हो जाएगा.
ये भी पढ़ेंः CM हेल्पलाइन का अधिकारियों को दिया गया प्रशिक्षण, एक सप्ताह में होगा समस्याओं का निस्तारण
इससे पहले देश में करीब 28 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक थे. जिनमें स्टेट बैंक ऑफ इंदौर को मनमोहन सरकार में विलय कर दिया गया था. इसके बाद साल 2018 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में पांच बैंकों को विलय किया गया. जिसमें स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ त्रावनकर, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ जयपुर, और स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद शामिल हैं.
इसके बाद मोदी सरकार ने ही अप्रैल में साल 2019 में विजया बैंक और देना बैंक को बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय करने का निर्णय लिया था. जबकि, अब मोदी सरकार ने ही अपने दूसरे कार्यकाल में 10 बैंकों को मर्ज कर चार बैंक बनाए हैं. इस विलय के बाद अब देश में सार्वजनिक क्षेत्र के कुल 12 बैंक ही रह गए हैं.