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बैंकों के विलय से क्या होंगे फायदे और क्या होंगे नुकसान, पढ़िए खास खबर - बैंक कर्मचारी

बैंकों के विलय को लेकर देशभर में केंद्र सरकार के फैसले पर फायदे और नुकसान को लेकर आकलन किया जा रहा है. बैंक कर्मी इसे केंद्र सरकार की गलती मान रहे हैं तो अर्थव्यवस्था और बैंकों को मजबूत करने की दिशा में इसे बेहतर कदम भी बताया जा रहा है.

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Published : Aug 31, 2019, 7:46 PM IST

Updated : Aug 31, 2019, 8:54 PM IST

देहरादूनः बैंकों के विलय के बाद अब देशभर में 12 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक रह गए हैं. इससे पहले भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को मजबूत करने के इस तरह के निर्णय लिए जा चुके हैं. हालांकि, केंद्र के इस निर्णय के बाद बैंक कर्मियों में काफी रोष है. बैंक कर्मी इसे केंद्र सरकार की खामी मान रहे हैं. जबकि, अर्थव्यवस्था और बैंकों को मजबूत करने की दिशा में इसे बेहतर कदम माना जा रहा है.

बैंकों के विलय के बाद इसके फायदे और नुकसान.

केंद्र सरकार ने देश के 10 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय करते हुए 4 बैंकों को मजबूत करने की कोशिश की है. केंद्र के इस निर्णय को आर्थिक क्षेत्र में चल रही सुस्ती को दूर करने और बैंकों की स्थिति को और भी मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है. हालांकि, केंद्र के इस निर्णय के बाद बैंक यूनियनों ने इस पर विरोध दर्ज कराया है. बैंक कर्मी काली पट्टी बांधकर बैंकों में काम कर रहे हैं.

ये भी पढ़ेंः दरोगा भर्ती प्रकरणः CBI कोर्ट में DGP रतूड़ी के दर्ज हुए बयान, मामले में 7 दरोगा हो चुके बर्खास्त

बैंकों के मामले को लेकर बैंक कर्मियों पर क्या पड़ेगा असर-
केंद्र सरकार ने 10 बैंकों का विलय कर चार बैंक बनाकर भले ही कारोबार के लिहाज से बैंकों को मजबूत करने की कोशिश की हो, लेकिन कर्मचारियों के लिहाज से केंद्र के इस फैसले का काफी ज्यादा असर दिखाई देगा.

  • केंद्र के इस निर्णय के बाद जहां देश में बैंकों की कई ब्रांच बंद होने की कगार पर आ जाएगी.
  • कर्मचारियों के तबादले भी बड़ी संख्या में किया जाएगा.
  • ऐसी स्थिति में समय से पहले ही स्वैच्छिक रिटायरमेंट जैसी स्थितियां भी सरकारी बैंकों में दिखाई देगी.
  • कर्मचारियों की एक चिंता ये भी है, कि बैंकों के मर्ज के बाद इन कर्मियों के प्रमोशन में भी खासी दिक्कतें पेश आएंगी.
  • कर्मचारियों के साथ ही बैंकिंग सेक्टर में सरकारी बैंकों को रोजगार के रूप में चुनने की तमन्ना रखने वाले युवाओं के लिए भी मौके कम हो जाएंगे.
  • बैंकों की मर्ज के होने के बाद ब्रांच बंद होने के चलते कर्मचारियों की संख्या बैंकों के पास एक्सेस हो सकती है. जिससे नए कर्मियों की भर्तियां काफी हद तक कम हो जाएंगी.

ये भी पढ़ेंः सावधान! ये सब्जियां कर सकती है आपको बीमार, आखिर कौन कर रहा है सेहत से खिलवाड़ ?

खाताधारकों को भी शुरुआत में होगीं दिक्कतें-

  • बैंकों के महाविलय की स्थिति के बाद खाताधारकों में भी बैंक बंद होने जैसी भ्रांतियां पैदा हो सकती हैं.
  • एक बैंक में ही खाताधारकों की संख्या बढ़ने से बैंकों में होने वाले कामों को लेकर भी दिक्कतें आ सकती हैं.
  • पासबुक बदलने, लॉकर शिफ्ट करने जैसी चीजों पर भी खाताधारकों की भागदौड़ बढ़ सकती है.

बैंकों की महाविलय होने के बाद अब कर्मचारियों ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए फिलहाल काली पट्टी बांधकर अपना विरोध दर्ज करना शुरू कर दिया है. साथ ही जल्द ही कर्मचारी यूनियन आगे की रणनीति भी तैयार करने जा रहा है.

बैंकों के विलय के बाद ये हो सकते हैं फायदे-

  • बैंकों के विलय के बाद फायदे के रूप में देखा जाए तो देश के बैंक कारोबार के क्षेत्र में एक बड़े बैंक के रूप में दिखाई देंगे.
  • इसके बाद बड़े उद्योगपतियों को भी किसी भी बैंक द्वारा बड़े लोन दिए जाने में कोई परेशानी नहीं होगी.
  • इसके अलावा देश के बैंक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बड़े बैंकों में शुमार हो पाएंगे. जिससे बैंकों का कद बड़ा हो जाएगा.

ये भी पढ़ेंः CM हेल्पलाइन का अधिकारियों को दिया गया प्रशिक्षण, एक सप्ताह में होगा समस्याओं का निस्तारण

इससे पहले देश में करीब 28 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक थे. जिनमें स्टेट बैंक ऑफ इंदौर को मनमोहन सरकार में विलय कर दिया गया था. इसके बाद साल 2018 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में पांच बैंकों को विलय किया गया. जिसमें स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ त्रावनकर, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ जयपुर, और स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद शामिल हैं.

इसके बाद मोदी सरकार ने ही अप्रैल में साल 2019 में विजया बैंक और देना बैंक को बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय करने का निर्णय लिया था. जबकि, अब मोदी सरकार ने ही अपने दूसरे कार्यकाल में 10 बैंकों को मर्ज कर चार बैंक बनाए हैं. इस विलय के बाद अब देश में सार्वजनिक क्षेत्र के कुल 12 बैंक ही रह गए हैं.

देहरादूनः बैंकों के विलय के बाद अब देशभर में 12 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक रह गए हैं. इससे पहले भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को मजबूत करने के इस तरह के निर्णय लिए जा चुके हैं. हालांकि, केंद्र के इस निर्णय के बाद बैंक कर्मियों में काफी रोष है. बैंक कर्मी इसे केंद्र सरकार की खामी मान रहे हैं. जबकि, अर्थव्यवस्था और बैंकों को मजबूत करने की दिशा में इसे बेहतर कदम माना जा रहा है.

बैंकों के विलय के बाद इसके फायदे और नुकसान.

केंद्र सरकार ने देश के 10 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय करते हुए 4 बैंकों को मजबूत करने की कोशिश की है. केंद्र के इस निर्णय को आर्थिक क्षेत्र में चल रही सुस्ती को दूर करने और बैंकों की स्थिति को और भी मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है. हालांकि, केंद्र के इस निर्णय के बाद बैंक यूनियनों ने इस पर विरोध दर्ज कराया है. बैंक कर्मी काली पट्टी बांधकर बैंकों में काम कर रहे हैं.

ये भी पढ़ेंः दरोगा भर्ती प्रकरणः CBI कोर्ट में DGP रतूड़ी के दर्ज हुए बयान, मामले में 7 दरोगा हो चुके बर्खास्त

बैंकों के मामले को लेकर बैंक कर्मियों पर क्या पड़ेगा असर-
केंद्र सरकार ने 10 बैंकों का विलय कर चार बैंक बनाकर भले ही कारोबार के लिहाज से बैंकों को मजबूत करने की कोशिश की हो, लेकिन कर्मचारियों के लिहाज से केंद्र के इस फैसले का काफी ज्यादा असर दिखाई देगा.

  • केंद्र के इस निर्णय के बाद जहां देश में बैंकों की कई ब्रांच बंद होने की कगार पर आ जाएगी.
  • कर्मचारियों के तबादले भी बड़ी संख्या में किया जाएगा.
  • ऐसी स्थिति में समय से पहले ही स्वैच्छिक रिटायरमेंट जैसी स्थितियां भी सरकारी बैंकों में दिखाई देगी.
  • कर्मचारियों की एक चिंता ये भी है, कि बैंकों के मर्ज के बाद इन कर्मियों के प्रमोशन में भी खासी दिक्कतें पेश आएंगी.
  • कर्मचारियों के साथ ही बैंकिंग सेक्टर में सरकारी बैंकों को रोजगार के रूप में चुनने की तमन्ना रखने वाले युवाओं के लिए भी मौके कम हो जाएंगे.
  • बैंकों की मर्ज के होने के बाद ब्रांच बंद होने के चलते कर्मचारियों की संख्या बैंकों के पास एक्सेस हो सकती है. जिससे नए कर्मियों की भर्तियां काफी हद तक कम हो जाएंगी.

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खाताधारकों को भी शुरुआत में होगीं दिक्कतें-

  • बैंकों के महाविलय की स्थिति के बाद खाताधारकों में भी बैंक बंद होने जैसी भ्रांतियां पैदा हो सकती हैं.
  • एक बैंक में ही खाताधारकों की संख्या बढ़ने से बैंकों में होने वाले कामों को लेकर भी दिक्कतें आ सकती हैं.
  • पासबुक बदलने, लॉकर शिफ्ट करने जैसी चीजों पर भी खाताधारकों की भागदौड़ बढ़ सकती है.

बैंकों की महाविलय होने के बाद अब कर्मचारियों ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए फिलहाल काली पट्टी बांधकर अपना विरोध दर्ज करना शुरू कर दिया है. साथ ही जल्द ही कर्मचारी यूनियन आगे की रणनीति भी तैयार करने जा रहा है.

बैंकों के विलय के बाद ये हो सकते हैं फायदे-

  • बैंकों के विलय के बाद फायदे के रूप में देखा जाए तो देश के बैंक कारोबार के क्षेत्र में एक बड़े बैंक के रूप में दिखाई देंगे.
  • इसके बाद बड़े उद्योगपतियों को भी किसी भी बैंक द्वारा बड़े लोन दिए जाने में कोई परेशानी नहीं होगी.
  • इसके अलावा देश के बैंक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बड़े बैंकों में शुमार हो पाएंगे. जिससे बैंकों का कद बड़ा हो जाएगा.

ये भी पढ़ेंः CM हेल्पलाइन का अधिकारियों को दिया गया प्रशिक्षण, एक सप्ताह में होगा समस्याओं का निस्तारण

इससे पहले देश में करीब 28 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक थे. जिनमें स्टेट बैंक ऑफ इंदौर को मनमोहन सरकार में विलय कर दिया गया था. इसके बाद साल 2018 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में पांच बैंकों को विलय किया गया. जिसमें स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ त्रावनकर, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ जयपुर, और स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद शामिल हैं.

इसके बाद मोदी सरकार ने ही अप्रैल में साल 2019 में विजया बैंक और देना बैंक को बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय करने का निर्णय लिया था. जबकि, अब मोदी सरकार ने ही अपने दूसरे कार्यकाल में 10 बैंकों को मर्ज कर चार बैंक बनाए हैं. इस विलय के बाद अब देश में सार्वजनिक क्षेत्र के कुल 12 बैंक ही रह गए हैं.

Intro:summary- बैंकों के महाविलय को लेकर देशभर में केंद्र सरकार के फैसले पर नफा नुकसान को लेकर आकलन किया जा रहा है... बैंक कर्मी इसे केंद्र सरकार की गलती मान रहे हैं तो अर्थव्यवस्था की सुस्ती दूर करने और बैंकों को मजबूत करने की दिशा में इसे बेहतर कदम भी बताया जा रहा है......

बैंकों के विलय के बाद अब देशभर में महज 12 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक रह गए हैं... यह पहला मौका नहीं है जब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय किया गया हो इससे पहले भी बैंकों को मजबूत करने के लिए यह निर्णय लिए जा चुके हैं। हालांकि केंद्र के इस निर्णय के बाद बैंक कर्मियों में आक्रोश बेहद ज्यादा है।



Body:केंद्र सरकार ने देश के 10 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय करते हुए 4 बैंकों को मजबूत करने की कोशिश की है... केंद्र के इस निर्णय को आर्थिक क्षेत्र में चल रही सुस्ती को दूर करने और बैंकों की स्थिति को और भी मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। लेकिन केंद्र सरकार के इस निर्णय के बाद विभिन्न स्तरों पर इसका क्या असर होगा यह जानना भी बेहद जरूरी है। हालांकि केंद्र के इस निर्णय के फौरन बाद बैंक यूनियनों ने इस पर विरोध दर्ज कराया है और आज काली पट्टी बांधकर बैंक कर्मी बैंकों में काम कर रहे हैं। केंद्र सरकार के बैंकों का विलय करने के कई तरह से मतलब समझे जा सकते हैं एक पहलू कर्मचारियों से जुड़ा है तो दूसरा खाताधारकों और देश की बैंकिंग व्यवस्था से ताल्लुक रखता है।

बैंकों के मामले को लेकर बैंक कर्मियों पर क्या पड़ेगा असर

मोदी सरकार ने 10 बैंकों को विलय के जरिए चार बैंक बनाकर भले ही कारोबार के लिहाज से बैंकों को मजबूत करने की कोशिश की हो लेकिन कर्मचारियों के लिहाज से केंद्र के इस फैसले का बेहद ज्यादा असर दिखाई देगा। केंद्र के इस निर्णय के बाद जहां देश में बैंकों की कई ब्रांच बंद होने की कगार पर आ जाएगी तो वही कर्मचारियों के तबादलों को भी बड़ी संख्या में किया जाएगा.... ऐसी स्थिति में समय से पहले स्वैच्छिक रिटायरमेंट जैसी स्थितियां भी सरकारी बैंकों में दिखाई देगी। कर्मचारियों की एक चिंता यह भी है कि बैंकों के मर्जर के बाद इन कर्मियों के प्रमोशन में भी खासी दिक्कतें पेश आएंगी।

कर्मचारियों के साथ ही बैंक सेक्टर में सरकारी बैंकों को रोजगार के रूप में चुनने की तमन्ना रखने वाले युवाओं के लिए भी इससे मौके कम हो जाएंगे। बैंकों की मर्जर के बाद ब्रांच एस बंद होने के चलते कर्मचारियों की संख्या बैंकों के पास एक्सेस हो सकती है जिससे नए कर्मियों की भर्तियां काफी हद तक कम हो जाएंगी।।

बाइट जगमोहन मेंदीरत्ता पूर्व बैंक अधिकारी


खाताधारकों को भी शुरुआत में होगी खासी दिक्कतें

बैंकों के महाविलय की स्थिति के बाद खाताधारकों में भी बैंक बंद होने जैसी भ्रांतियां पैदा हो सकती हैं... इसके अलावा एक बैंक में ही खाताधारकों की संख्या बढ़ने से बैंकों में होने वाले कामों को लेकर भी दिक्कतें आ सकती हैं। जबकि पासबुक बदलने लॉकर शिफ्ट करने जैसी चीजों पर भी खाताधारकों की भागदौड़ बढ़ सकती है।
बैंकों की महा विलय होने के बाद अब कर्मचारियों ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए फिलहाल काली पट्टी बांधकर अपना विरोध दर्ज करना शुरू कर दिया है लेकिन जल्द ही कर्मचारी यूनियनों द्वारा आगे की रणनीति भी तैयार की जानी है

बाइट जगमोहन मेंदीरत्ता पूर्व बैंक अधिकारी

बैंकों के विलय के बाद फायदे के रूप में देखा जाए तो देश के बैंक कारोबार के क्षेत्र में एक बड़े बैंक के रूप में दिखाई देंगे और इसके बाद बड़े उद्योगपतियों को भी किसी भी बैंक द्वारा बड़ा लोन दिए जाने में कोई परेशानी नहीं होगी।।। इसके अलावा देश के बैंक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बड़े बैंकों में शुमार हो पाएंगे जिससे बैंकों का कद बड़ा हो जाएगा।।। जानकारी के अनुसार देश में करीब 28 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक थे जिनमें स्टेट बैंक ऑफ इंदौर को मनमोहन सरकार में विलय कर दिया गया था। इसके बाद साल 2018 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया मैं पांच बैंकों को विनय किया गया जिसमें स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ त्रावनकर, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ जयपुर, और स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद शामिल है। इसके बाद मोदी सरकार ने ही अप्रैल में साल 2019 में विजया बैंक और देना बैंक को बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय करने का निर्णय लिया था। जबकि अब मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में 10 बैंकों को मर्ज कर चार बैंक बनाए है।।।। इस विलय के बाद आप देश में सार्वजनिक क्षेत्र के कुल 12 बैंक ही रह गए हैं।।।

बाइट जगमोहन मेंदीरत्ता पूर्व बैंक अधिकारी




Conclusion:कर्मचारियों के लिहाज से बैंकों के विलय हमेशा ही उनके हितों को प्रभावित करने वाले होते हैं लेकिन एक मजबूत बैंक के रूप में बैंकों को स्थापित करने के लिए कई बार सरकारों को विलय करने का कदम उठाना पड़ता है। मोदी सरकार ने अपने दो कार्यकाल के दौरान ताबड़तोड़ बैंकों के विलय किए हैं।।।
Last Updated : Aug 31, 2019, 8:54 PM IST
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