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कोरोना से त्रस्त उत्तराखंड, क्यों नहीं मिल सका स्वतंत्र स्वास्थ्य मंत्री?

राज्य में स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने अपने पास ही रखी है. उनसे पहले ही पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी यही किया था. कोरोना संक्रमण के दौरान स्वास्थ्य विभाग सरकार की सबसे ज्यादा प्राथमिकता में रहा है. इस दौरान एक स्थायी और स्वतंत्र स्वास्थ्य मंत्री की सबसे ज्यादा जरूरत महसूस हुई है. एक तरफ मुख्यमंत्री के पास स्वास्थ्य विभाग होने से इसके कई फायदे बताए गये हैं तो कई राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के लिहाज से नुकसान भी हैं.

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CM तीरथ
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Published : Apr 25, 2021, 2:46 PM IST

Updated : Apr 26, 2021, 1:20 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में निर्वाचित सरकार बनने के बाद ऐसा पहली बार है जब स्वास्थ्य विभाग मुख्यमंत्री के ही पास हो. 2017 में सत्ता में आई बीजेपी सरकार के पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने स्वास्थ्य अपने पास ही रखा था और उनकी जगह अब सीएम बने तीरथ सिंह रावत ने भी इस महत्वपूर्ण विभाग को किसी भी मंत्री को नहीं सौंपा.

कोरोना संक्रमण के दौरान सिर्फ प्रदेश ही नहीं देश में हर राज्य का स्वास्थ्य विभाग सबसे ज्यादा प्राथमिकता में है. इस दौरान स्वास्थ्य मंत्री की अहमियत और उनके कामों पर सबकी नजर है लेकिन उत्तराखंड में एक स्वतंत्र स्वास्थ्य मंत्री की काफी जरूरत महसूस हो रही है.

फायदे से ज्यादा नुकसान

इसको लेकर कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट बताते हैं कि भाजपा सरकार के मुख्यमंत्रियों का बड़े विभागों को अपने पास रखने का यह फैसला प्रदेश के लिए नुकसानदायक रहा है. इससे प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था पहले से भी ज्यादा चरमरा गई हैं. कोरोना काल में स्वास्थ्य मंत्री अलग से नहीं बनाए जाने के कारण लोगों को कई असुविधाओं का सामना करना पड़ा है.

अबतक कौन-कौन रहे स्वास्थ्य मंत्री

  1. राज्य में पहली निर्वाचित सरकार के दौरान कांग्रेस की नारायण दत्त तिवारी सरकार में तब के कद्दावर नेता तिलक राज बेहड़ को स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी दी गई थी.
  2. इसके बाद बीसी खंडूड़ी सरकार में डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया.
  3. इसी सरकार में नेतृत्व परिवर्तन के बाद जब डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री बने तब स्वास्थ्य मंत्री की जिम्मेदारी बलवंत सिंह भौर्याल को दी गई.
  4. तीसरी निर्वाचित सरकार में कांग्रेस ने फिर सरकार बनाई और इसमें विजय बहुगुणा सरकार के दौरान कोटद्वार शहर आने वाले सुरेंद्र सिंह नेगी को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया.
  5. अब 2017 में चौथे निर्वाचित सरकार के दौरान त्रिवेंद्र सरकार में स्वास्थ्य मंत्री की जिम्मेदारी अपने पास रखी.
  6. वहीं, सीएम तीरथ सिंह रावत ने भी इस महत्वपूर्ण विभाग को अपने पास ही रखा है.

पढ़ें: कोरोना के हालात पर CM ने की समीक्षा बैठक, दिये ये दिशा-निर्देश

मुख्यमंत्री के पास स्वास्थ्य विभाग होने से हुए नुकसान

  • स्वास्थ्य विभाग किसी भी राज्य में एक बड़े और सबसे महत्वपूर्ण विभागों में शुमार माना जाता है. आम जनता से सीधे सरोकार रखने वाले इस विभाग को लेकर सरकार की जिम्मेदारी भी बेहद ज्यादा होती है और ऐसे में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर आम लोगों की पहुंच मुख्यमंत्री तक नहीं हो पाती.
  • मुख्यमंत्री के पास दूसरी कई जिम्मेदारियां होती हैं. लिहाजा स्वास्थ्य विभाग के लिए ज्यादा समय दे पाना किसी भी मुख्यमंत्री के लिए मुमकिन नहीं है.
  • राज्य में विभिन्न योजनाओं के लिए अधिकारियों से स्वास्थ्य विभाग पर बार-बार फोकस होकर बात करना भी मुख्यमंत्री के लिए मुमकिन नहीं है.
  • कई विभागों के होने के कारण मुख्यमंत्री किसी एक विभाग पर पूरा ध्यान नहीं दे पाते और ऐसे में स्वास्थ्य विभाग में कई योजनाओं पर इसका सीधा असर पड़ सकता है.
  • विभाग के कर्मचारियों से जुड़ी विभिन्न समस्याएं और बातों को भी मुख्यमंत्री तक पहुंचाना मुश्किल होता है.
  • मुख्यमंत्री के पास विभाग होने से कई बार ऐसे विभागों में अधिकारियों की लापरवाही और मनमाना रवैया भी संभावित रहता है.
  • योजनाओं को लेकर मुख्यमंत्री का समय न मिलने के कारण किसी भी काम में लंबा वक्त लग सकता है.

मुख्यमंत्री के पास विभाग होने से होता है फायदा

  • कोई भी विभाग मुख्यमंत्री के पास होता है उसमें लिया गया फैसला अंतिम होता है और विभाग में योजनाओं को लेकर रोड़ा अटकने की कम संभावना होती है.
  • विभिन्न योजनाओं में वित्तीय समस्याओं का निराकरण मुख्यमंत्री के स्तर पर आसानी से किया जा सकता है.
  • विभाग में बड़े फैसले लेने में आसानी रहती है.

देहरादून: उत्तराखंड में निर्वाचित सरकार बनने के बाद ऐसा पहली बार है जब स्वास्थ्य विभाग मुख्यमंत्री के ही पास हो. 2017 में सत्ता में आई बीजेपी सरकार के पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने स्वास्थ्य अपने पास ही रखा था और उनकी जगह अब सीएम बने तीरथ सिंह रावत ने भी इस महत्वपूर्ण विभाग को किसी भी मंत्री को नहीं सौंपा.

कोरोना संक्रमण के दौरान सिर्फ प्रदेश ही नहीं देश में हर राज्य का स्वास्थ्य विभाग सबसे ज्यादा प्राथमिकता में है. इस दौरान स्वास्थ्य मंत्री की अहमियत और उनके कामों पर सबकी नजर है लेकिन उत्तराखंड में एक स्वतंत्र स्वास्थ्य मंत्री की काफी जरूरत महसूस हो रही है.

फायदे से ज्यादा नुकसान

इसको लेकर कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट बताते हैं कि भाजपा सरकार के मुख्यमंत्रियों का बड़े विभागों को अपने पास रखने का यह फैसला प्रदेश के लिए नुकसानदायक रहा है. इससे प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था पहले से भी ज्यादा चरमरा गई हैं. कोरोना काल में स्वास्थ्य मंत्री अलग से नहीं बनाए जाने के कारण लोगों को कई असुविधाओं का सामना करना पड़ा है.

अबतक कौन-कौन रहे स्वास्थ्य मंत्री

  1. राज्य में पहली निर्वाचित सरकार के दौरान कांग्रेस की नारायण दत्त तिवारी सरकार में तब के कद्दावर नेता तिलक राज बेहड़ को स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी दी गई थी.
  2. इसके बाद बीसी खंडूड़ी सरकार में डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया.
  3. इसी सरकार में नेतृत्व परिवर्तन के बाद जब डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री बने तब स्वास्थ्य मंत्री की जिम्मेदारी बलवंत सिंह भौर्याल को दी गई.
  4. तीसरी निर्वाचित सरकार में कांग्रेस ने फिर सरकार बनाई और इसमें विजय बहुगुणा सरकार के दौरान कोटद्वार शहर आने वाले सुरेंद्र सिंह नेगी को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया.
  5. अब 2017 में चौथे निर्वाचित सरकार के दौरान त्रिवेंद्र सरकार में स्वास्थ्य मंत्री की जिम्मेदारी अपने पास रखी.
  6. वहीं, सीएम तीरथ सिंह रावत ने भी इस महत्वपूर्ण विभाग को अपने पास ही रखा है.

पढ़ें: कोरोना के हालात पर CM ने की समीक्षा बैठक, दिये ये दिशा-निर्देश

मुख्यमंत्री के पास स्वास्थ्य विभाग होने से हुए नुकसान

  • स्वास्थ्य विभाग किसी भी राज्य में एक बड़े और सबसे महत्वपूर्ण विभागों में शुमार माना जाता है. आम जनता से सीधे सरोकार रखने वाले इस विभाग को लेकर सरकार की जिम्मेदारी भी बेहद ज्यादा होती है और ऐसे में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर आम लोगों की पहुंच मुख्यमंत्री तक नहीं हो पाती.
  • मुख्यमंत्री के पास दूसरी कई जिम्मेदारियां होती हैं. लिहाजा स्वास्थ्य विभाग के लिए ज्यादा समय दे पाना किसी भी मुख्यमंत्री के लिए मुमकिन नहीं है.
  • राज्य में विभिन्न योजनाओं के लिए अधिकारियों से स्वास्थ्य विभाग पर बार-बार फोकस होकर बात करना भी मुख्यमंत्री के लिए मुमकिन नहीं है.
  • कई विभागों के होने के कारण मुख्यमंत्री किसी एक विभाग पर पूरा ध्यान नहीं दे पाते और ऐसे में स्वास्थ्य विभाग में कई योजनाओं पर इसका सीधा असर पड़ सकता है.
  • विभाग के कर्मचारियों से जुड़ी विभिन्न समस्याएं और बातों को भी मुख्यमंत्री तक पहुंचाना मुश्किल होता है.
  • मुख्यमंत्री के पास विभाग होने से कई बार ऐसे विभागों में अधिकारियों की लापरवाही और मनमाना रवैया भी संभावित रहता है.
  • योजनाओं को लेकर मुख्यमंत्री का समय न मिलने के कारण किसी भी काम में लंबा वक्त लग सकता है.

मुख्यमंत्री के पास विभाग होने से होता है फायदा

  • कोई भी विभाग मुख्यमंत्री के पास होता है उसमें लिया गया फैसला अंतिम होता है और विभाग में योजनाओं को लेकर रोड़ा अटकने की कम संभावना होती है.
  • विभिन्न योजनाओं में वित्तीय समस्याओं का निराकरण मुख्यमंत्री के स्तर पर आसानी से किया जा सकता है.
  • विभाग में बड़े फैसले लेने में आसानी रहती है.
Last Updated : Apr 26, 2021, 1:20 PM IST
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