टनकपुर: उत्तर भारत का सुप्रसिद्ध मेला माता पूर्णागिरि का मेला आज से शुरू हो गया है. प्रदेश के विधायी एवं संसदीय कार्य मंत्री बंशीधर भगत ने प्रवेश द्वार ठुलीगाड़ में पूजा-अर्चना कर मेले का शुभारंभ किया.यहां बंशीधर भगत ने कहा कि अगर कोरोना नियंत्रण में रहा और मां की कृपा रही तो मेले को एक माह से आगे भी बढ़ाया जा सकता है.
बंशीधर भगत ने कहा कि उनका सौभाग्य है कि वह लगातार दूसरी बार पूर्णागिरि मेले के उद्घाटन पर टनकपुर पहुंचे हैं. कोरोना संक्रमण की वजह से पिछली बार जहां मेला नहीं चल पाया था. वहीं, अभी भी कोरोना संक्रमण खत्म नही हुआ है. इसलिए एक माह का ही मेला आयोजित किया गया है. भगत ने श्रद्धालुओं से कोरोना नियमों का पालन किये जाने की अपील की.
साथ ही मंत्री बंशीधर भगत ने मंदिर समिति व पुजारियों की ट्रस्ट के विरोध व ट्रस्ट ना बनाये जाने की मांग पर कहा कि पुजारियों का सरकार द्वारा बिल्कुल भी अहित नहीं होने दिया जाएगा. ट्रस्ट का मामला कोर्ट में है. अगर कोर्ट जाने पड़ा तो सरकार कोर्ट जाएगी. अगर सरकार के स्तर से होगा तो सरकार के स्तर से किया जाएगा लेकिन पुजारी के हितों का सरकार हर सूरत पर ध्यान रखेगी.
इस साल 30 दिन चलेगा मेला
बता दें, मां पूर्णागिरि धाम में हर साल होली के अगले दिन से तीन माह का ऐतिहासिक मेला लगता है, लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए प्रशासन ने मेला अवधि 30 दिन तय की है. 30 मार्च से शुरू हो रहा मेला 30 अप्रैल तक चलेगा. मेला मजिस्ट्रेट एसडीएम हिमांशु कफल्टिया ने बताया कि मेले की सभी व्यवस्थाए पूरी कर ली गईं हैं. ककरालीगेट से मुख्य मंदिर तक पथ प्रकाश, अस्थायी शौचालय, यात्रि विश्राम शेड आदि व्यवस्था की गई है.
मेला मजिस्ट्रेट ने कहा है कि मेले में कोरोना से बचाव के लिए श्रद्धालुओं को सरकार की गाइडलाइन का पालन करना होगा. कई जगह श्रद्धालुओं की थर्मल स्क्रीनिंग से जांच की व्यवस्था की गई है. सुरक्षा नोडल अधिकारी सीओ अविनाश वर्मा ने बताया कि कुंभ मेले के कारण फिलहाल जिले का ही फोर्स मेले की सुरक्षा व्यवस्था संभालेगा. कुंभ मेला ड्यूटी में गया फोर्स वापस मंगाया गया है.
धर्मशाला, दुकानों के कर्मचारियों का किया सत्यापन एसपी लोकेश्वर सिंह के निर्देश पर पुलिस ने मां पूर्णागिरि धाम क्षेत्र की धर्मशालाओं और दुकानों में कार्यरत कर्मचारियों के सत्यापन की कार्रवाई की. मेले की सरकारी अवधि में हर साल अस्थायी निर्माण में लाखों रुपये खर्च हो रहे हैं. पिछले एक दशक में मेला क्षेत्र में होने वाले अस्थायी निर्माण में ही 2.23 करोड़ रुपये निकल चुके हैं. यह नौबत आरक्षित वन भूमि की वजह से है. अगर वन भूमि आड़े न आती, तो इतनी राशि में पक्का निर्माण हो जाता.
मां पूर्णागिरि देवी के दर्शन के लिए बरसात को छोड़ नियमित रूप से श्रद्धालु पहुंचते हैं. इसीलिए पिछले साल कोरोना के चलते आवाजाही नहीं हो सकी. सामान्य समय में तीन माह तक चलने वाले सरकारी मेले में 25 लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन करते हैं.
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मेले को नहीं मिल रहा सरकारी अनुदान
उत्तराखंड के बाहर पहचान देने वाला मां पूर्णागिरि धाम के मेले का आयोजन सरकारी तौर पर जरूर होता है, लेकिन मेले को सरकारी अनुदान नहीं मिल रहा है. जिला पंचायत संचालित इस मेले के आयोजन में आयोजक संस्था को हर साल नुकसान उठाना पड़ रहा है. तीन सालों में ही 27 लाख रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है. मां पूर्णागिरि धाम मेले में 2008 तक प्रदेश शासन से मेला अनुदान मिलता रहा है. तब आखिरी बार 15 लाख रुपये शासन से प्राप्त हुए. इसके बाद से कभी भी कोई अनुदान नहीं मिला. जिला पंचायत का कहना है कि अनुदान के लिए हर बार पत्र भेजा जाता है, लेकिन अनुदान नहीं मिलता. अनुदान न मिलने से पंचायत को मेले के संचालन में घाटा सहना पड़ता है.
ऐतिहासिक है मां पूर्णागिरी मंदिर
मां पूर्णागिरी मंदिर का इतिहास पूर्णागिरि मंदिर उत्तराखंड राज्य के चम्पावत नगर में काली नदी के दांये किनारे पर स्थित है. चीन, नेपाल और तिब्बत की सीमाओं से घिरे सामरिक दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण चम्पावत जिले के प्रवेशद्वार टनकपुर से 19 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ मां भगवती की 108 सिद्धपीठों में से एक है. चम्पावत के टनकपुर के पर्वतीय अंचल में स्थित अन्नपूर्णा चोटी के शिखर में लगभग 3000 फीट की उंचाई पर यह शक्तिपीठ स्थापित है अर्थात 'पूर्णागिरी मंदिर'
पूर्णागिरी मंदिर की यह मान्यता है कि जब भगवान शिवजी तांडव करते हुए यज्ञ कुंड से सती के शरीर को लेकर आकाश गंगा मार्ग से जा रहे थे. तब भगवान विष्णु ने तांडव नृत्य को देखकर सती के शरीर के अंग के टुकड़े कर दिए, जो आकाश मार्ग से पृथ्वी के विभिन्न स्थानों में जा गिरी.