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सीएम के विधानसभा क्षेत्र के इस गांव से प्रधान ही कर गया पलायन, बुजुर्ग 'आंखें' कर रहीं रखवाली - आ अब लौटें

अपर तलाई गांव की बदकिस्मती ही कहेंगे कि ग्रामीणों ने गांव के विकास के लिए जिस शख्स पर भरोसा किया वो ही उनकी उम्मीदों पर पानी फेर गया. जी हां,  हम बात कर रहे हैं अपर तलाई गांव के प्रधान की, जो पिछले 10 सालों से गांव के प्रधान हैं और इन दिनों देहरादून में रहते हैं.

पराये हुए प्रधान
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Published : Jul 8, 2019, 6:01 PM IST

Updated : Jul 8, 2019, 6:09 PM IST

देहरादून: पलायन को लेकर शुरू की गई ईटीवी भारत की मुहिम लगातार खाली होते गांवों तक पहुंच रही है. जिससे ईटीवी भारत खाली होते गांवों की स्याह हकीकत को पाठकों के सामने रख रहा है. पिछले भाग में हमने आपको अपर तलाई गांव की सच्चाई से रू-ब-रू करवाया था. वहीं, अब हम आपको इस गांव के दूसरे पहलू के बारे में बताने जा रहे हैं. जहां गांव के विकास के लिए चुना गया जनप्रतिनिधि ही सुविधाओं और सहूलियत के लिए गांव को अलविदा कर गया.

talai village pradhan migrat from village
पलायन कर गये प्रधान की बुजुर्ग की मां.


अब इसे अपर तलाई गांव की बदकिस्मती ही कहेंगे कि ग्रामीणों ने गांव के विकास के लिए जिस शख्स पर भरोसा किया वो ही उनकी उम्मीदों पर पानी फेर गया. जी हां, हम बात कर रहे हैं अपर तलाई गांव के प्रधान की, जो पिछले 10 सालों से गांव के प्रधान हैं और इन दिनों देहरादून में रहते हैं. तलाई गांव में उनके आने की उम्मीदों और यादों के साथ उनकी बुजुर्ग मां अकेले रहती हैं. जो कि हर पल बेटे के आने की राह देखती रहती है.

पराये हुए प्रधान

पलायन का दंश झेल रहे तलाई गांव के ग्रामीणों के लिए सीएम और प्रधान दोनों एक से हो गये हैं. जो कि रहते तो देहरादून में हैं लेकिन उनके लिए तलाई गांव कोसों दूर है. यहां के लोग दोनों से ही गांव के विकास की बेजा उम्मीद कर सकते हैं, पलायन को रोकने की आस लगा सकते हैं पर कह कुछ नहीं सकते.. किसी गांव का प्रधान ही जब वहां से पलायन कर जाये तो और लोगों का भी वहां से जाना लाजिमी है.

talai village pradhan migrat from village
तलाई गांव की गलियां.


ऐसे में बड़ा सवाल सरकार और नीति नियंताओं पर उठता है...क्या सरकारों को गांव में होने वाले चुनाव के लिए ऐसा कोई नियम नहीं बनाना चाहिए कि चुनाव जीतने वाला गांव में रहकर, गांव के विकास के लिए काम करे.हाल में सरकार ने पंचायती एक्ट में संसोधन कर शैक्षिक योग्यता को लेकर कदम उठाया है. ऐसे में सरकारों को चाहिए कि पलायन को रोकने के लिए पंचायती एक्ट में कुछ प्रावधान करें कि गांवों की खुशहाली फिर लौट आए.

देहरादून: पलायन को लेकर शुरू की गई ईटीवी भारत की मुहिम लगातार खाली होते गांवों तक पहुंच रही है. जिससे ईटीवी भारत खाली होते गांवों की स्याह हकीकत को पाठकों के सामने रख रहा है. पिछले भाग में हमने आपको अपर तलाई गांव की सच्चाई से रू-ब-रू करवाया था. वहीं, अब हम आपको इस गांव के दूसरे पहलू के बारे में बताने जा रहे हैं. जहां गांव के विकास के लिए चुना गया जनप्रतिनिधि ही सुविधाओं और सहूलियत के लिए गांव को अलविदा कर गया.

talai village pradhan migrat from village
पलायन कर गये प्रधान की बुजुर्ग की मां.


अब इसे अपर तलाई गांव की बदकिस्मती ही कहेंगे कि ग्रामीणों ने गांव के विकास के लिए जिस शख्स पर भरोसा किया वो ही उनकी उम्मीदों पर पानी फेर गया. जी हां, हम बात कर रहे हैं अपर तलाई गांव के प्रधान की, जो पिछले 10 सालों से गांव के प्रधान हैं और इन दिनों देहरादून में रहते हैं. तलाई गांव में उनके आने की उम्मीदों और यादों के साथ उनकी बुजुर्ग मां अकेले रहती हैं. जो कि हर पल बेटे के आने की राह देखती रहती है.

पराये हुए प्रधान

पलायन का दंश झेल रहे तलाई गांव के ग्रामीणों के लिए सीएम और प्रधान दोनों एक से हो गये हैं. जो कि रहते तो देहरादून में हैं लेकिन उनके लिए तलाई गांव कोसों दूर है. यहां के लोग दोनों से ही गांव के विकास की बेजा उम्मीद कर सकते हैं, पलायन को रोकने की आस लगा सकते हैं पर कह कुछ नहीं सकते.. किसी गांव का प्रधान ही जब वहां से पलायन कर जाये तो और लोगों का भी वहां से जाना लाजिमी है.

talai village pradhan migrat from village
तलाई गांव की गलियां.


ऐसे में बड़ा सवाल सरकार और नीति नियंताओं पर उठता है...क्या सरकारों को गांव में होने वाले चुनाव के लिए ऐसा कोई नियम नहीं बनाना चाहिए कि चुनाव जीतने वाला गांव में रहकर, गांव के विकास के लिए काम करे.हाल में सरकार ने पंचायती एक्ट में संसोधन कर शैक्षिक योग्यता को लेकर कदम उठाया है. ऐसे में सरकारों को चाहिए कि पलायन को रोकने के लिए पंचायती एक्ट में कुछ प्रावधान करें कि गांवों की खुशहाली फिर लौट आए.

Intro:summary_ गढ़वाल मंडल विकास निगम के होटलों को प्राइवेट कंपनियों के हाथों में देने का फैसला, जीएमवीएन बोर्ड बैठक में लिया गया निर्णय, घाटे के चलते हॉट लोको पीपीपी मोड पर देने के कवायद...

त्रिवेंद्र सरकार में अब गढ़वाल मंडल भी हुई पराई

देहरादून: उत्तराखंड सरकार के अधीन आने वाले गढ़वाल मंडल विकास निगम के होटलों को आखिरकार प्राइवेट कंपनियों के हाथों देने का फैसला ले लिया गया है, बुधवार देहरादून स्थित जीएमवीएन मुख्यालय में नई कार्यकारिणी बोर्ड की पहली सयुक्त निदेशक मंडल बैठक में 23 बिंदुओं पर चर्चा की गई जिसमें मुख्यतः जीएमवीएन सबसे अधिक घाटे पर चलने वाले 7 होटलों होटलों को उभारने के लिए पीपीपी मोड पर देने सहित अन्य कई महत्वपूर्ण विषयों में निर्णय लिया गया। हालांकि आने वाले दिनों में वित्तीय घाटे से गुजरने वाले होटल और अतिथि गृह को भी निजी कंपनी की हाथों में दिया जा सकता हैं।




Body:शुरुआती तौर पर सबसे अधिक घाटे वाले 7 होटलों को पीपीपी मोड देने का फ़ैसला-

गढ़वाल मंडल के अंतर्गत जीएमजीएम के अधीन आने वाले 92 होटल व गेस्ट हाउस जैसे व्यवसायिक भवन आते हैं..ऐसे में लंबे समय से जीएमवीएन की लचर कार्यशैली के चलते वर्षो से गढ़वाल मंडल के ज्यादातर होटल व गेस्टहाउस घाटे पर चल रहे हैं। लगातार हो रहे राजस्व घाटे पर विराम लगाने के दृष्टिगत आखिरकार जीएमवीएन के वर्तमान अध्यक्ष महावीर सिंह रांगड़ की अध्यक्षता में बुद्धवार हुई 123 वीं निदेशक मंडल बैठक शुरुआती तौर पर 7 सबसे ज्यादा घाटे वाले होटलों को निजी कंपनी के संचालन करने का निर्णय लिया गया।

वही इस संबंध में वर्तमान गढ़वाल मंडल विकास निगम के अध्यक्ष महावीर सिंह रामगढ़ ने जानकारी देते हुए बताया कि लंबे समय से घाटे पर चल रहे गेस्ट हाउस और होटलों में से सबसे अधिक घाटे पर चलने वाले होटल गेस्ट हाउस को चिन्हित कर पीपीपी मोड पर देने का फैसला बोर्ड मीटिंग में हो चुका है इसके साथ ही अन्य होटल अतिथि गृहों को वित्तीय राजस्व के घाटे से उभारने के लिए क्या क्या उपाय किए जाएं इसके लिए लगातार चिंतन मनन कर कार्यवाही प्रचलित है।

बाइट -महावीर सिंह रांगड़ ,अध्यक्ष,गढ़वाल मंडल विकास निगम


Conclusion:घाटे से उबरने के लिए होटलों को पीपीपी मोड पर देना मजबूरी

गढ़वाल मंडल विकास निगम के वर्षों से घाटे में चल रहे होटल और गेस्ट हाउसों को निजी कंपनी के हाथों पर देने की कवायद लंबे समय से चल रही थी जिसे आखिरकार पूरा कर लिया गया है.. जीएमवीएन की लचर कार्यशैली के चलते यह व्यवसायिक भवन घाटे के दौर से गुजर रहे हैं जिसके चलते यहां कार्यरत कर्मचारियों के वेतन भुगतान भी वर्षों से बाधित होता आया है।
वही गढ़वाल मंडल के होटल गेस्ट हाउस कोको घाटे से उबारने के फैसले के दृष्टिगत जीएमवीएम अध्यक्ष ने माना कि वर्तमान में गढ़वाल मंडल विकास निगम में 900 कर्मचारी कार्यरत हैं जो धीरे धीरे रिटायरमेंट की कगार पर पहुंच रहे हैं, वित्तीय घाटे के चलते उनको सभी तरह के भुगतान देना मुश्किल भरा कार्य है, ऐसे में लगातार घाटे से उबरने के लिए व्यवसायिक भवनों को निजी हाथों में देना मजबूरी हो गई है। जीएमवीएन अध्यक्ष महावीर सिंह रांगड़ ने माना कि व्यवसायिक भवनों को पीपीपी मोड पर देने से जहां एक तरफ राजस्व के घाटे से उड़ा जा सकेगा वही निजी कंपनियों द्वारा संचालित होने वाले व्यवसायिक भवनों में स्थानीय लोगों के लिए भी रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। इसके अलावा पीपीपी मोड पर देने की प्राथमिकता पहले स्थानीय लोगों को दी जाएगी।

बाइट -महावीर सिंह रांगड़ ,अध्यक्ष,गढ़वाल मंडल विकास निगम

बहराल त्रिवेंद्र सरकार में अब गढ़वाल मंडल विकास निगम भी निजी कंपनियों के हाथों में सौंपने के चलते पराई होने के कगार पर नजर आ रही है जबकि पिछले कुछ वर्षो से उत्तराखंड में चारधाम यात्रा और पर्यटक सीजन के चरम पर पहुंचने के चलते गढ़वाल मंडल विकास निगम कुछ हद तक घाटे से उबरने में सफल रहा है.


pls note_input_महोदय, यह किरण कांत शर्मा का मोजो मोबाइल हैं,जिसे मैं (परमजीत सिंह )इसे इस्तेमाल कर रहा हूं। मेरा मोजो मोबाइल खराब हो गया हैं, ऐसे मेरी स्टोरी इस मोजो से भेजी जा रही हैं.. ID 7200628


Last Updated : Jul 8, 2019, 6:09 PM IST
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