रामनगर: वैसे तो रामनगर में कई प्राचीन मंदिर हैं जो विश्व विख्यात हैं. मगर रामनगर शहर से 1 किलोमीटर दूरी पर एक ऐसा मंदिर है जो पहाड़ी पर स्थित है. इस मंदिर का नाम है गूलर सिद्ध मंदिर. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में जाकर जिसने को जो मनोकामना की, वो जरूर पूरी हुई.
गूलर सिद्ध मंदिर की है महिमा: गूलर सिद्ध मंदिर में हर साल शिवरात्रि के मौके पर हजारों की तादात में कांवड़ियों के साथ ही श्रद्धालु जल चढ़ाने आते हैं. इस दौरान अपनी-अपनी मनोकामना भी भगवान भोलेनाथ से पूरी करने की प्रार्थना करते हैं. शिवरात्रि से एक दिन पूर्व सैकड़ों कांवड़िए गूलर सिद्ध मंदिर में रुकते हैं.
रास्ते में पड़ता है बाल सुंदरी माता मंदिर: गूलर सिद्ध मंदिर की चढ़ाई चढ़ने से पहले बाल सुंदरी का मंदिर भी पड़ता है. कहा जाता है कि एक ऐसी मान्यता है कि सपनों में किसी को मां ने दर्शन दिए, जिसके बाद उसी स्थान पर जाकर पिंडी के रूप में मां ने दर्शन दिये, जो आज बाल सुंदरी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है.
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कैसे पड़ा गूलर सिद्ध नाम: बुजुर्ग बताते हैं कि कभी इस क्षेत्र में गूलर के वृक्षों का जंगल हुआ करता था. उस समय यह क्षेत्र हिंसक जानवरों से भरा था. लेकिन जिस चोटी पर मंदिर है उसमें एक सिद्ध बाबा अपनी कुटिया बनाकर रहते थे. गूलर के जंगल एवं सिद्ध बाबा के वहां रहने से इसका नाम गूलर सिद्ध मंदिर पड़ा. उनके द्वारा ही मंदिर में शिव मंदिर की स्थापना की गई थी.
मंदिर के पीछे है कुआं: मंदिर के पिछले हिस्से में एक छोटा सा कुआं बावड़ी भी है. इस बारे में अलग-अलग मान्यता है. कुछ लोगों का कहना है कि सिद्ध बाबा इस बावड़ी में हवन किया करते थे. कुछ लोगों का कहना है कि इस मंदिर में जल चढ़ाने के बाद वह व्यर्थ न जाए, इसलिए उसे बावड़ी में डाला जाता था. साथ ही उस समय बरसात का पानी इसमें एकत्र कर उसे पीने के उपयोग में लिया जाता था.
सेवादार क्या कहते हैं: सेवादारों का कहना है कि इस मंदिर में हमेशा जल भरा रहता था. जल खुद ही प्रकट होता था, लेकिन किसी स्त्री के इसमें नहाने के बाद यह कुआं सूख गया. साथ ही पुनः इसमें पानी लाने को हवन भी कराया गया, लेकिन उसके बाद भी पानी नहीं आया जिसके बाद से इसमें लगातार त्योहारों पर हवन किया जाता है.
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इतिहासकारों का है ये मत: वहीं इस विषय में डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर इतिहासकार डॉक्टर जीसी पंत कहते हैं कि वर्तमान रामनगर शहर से कोसी नदी के पार का भाबर एवं पर्वत का इलाका अंग्रेजों के शासन काल में कोटा भाबर या परगनाकोटा नाम से जाना जाता था. इसके दो हिस्से थे. पहाड़ कोटा एवं भाबर कोटा. पहाड़ कोटा क्षेत्र में सीताबनी और बामेश्वर नाम से महादेव के प्राचीन मंदिर हैं. सीतेश्वर महादेव के नाम पर ही सीताबनी नाम पड़ा है.
गूलर सिद्ध शिव का स्थल है. संभव है यह मंदिर पहाड़ कोटा के बामेश्वर एवं सीतेश्वर मंदिर जितना ही प्राचीन हो अथवा किसी सिद्ध महात्मा ने इस ढलवां पहाड़ी पर शिवलिंग को स्थापित किया हो, बावली (कुआं) बनवाई हो. शिवलिंग पर चढ़ाया गया पानी अपवित्र ना हो पाए अथवा बरसात का पानी बावड़ी में इकट्ठा हो सके यह उद्देश्य रहा होगा इतनी ऊंचाई पर बावड़ी बनाने का. वन प्रदेश की रमणीयता तथा गूलर के विशालकाय वृक्षों की सघनता के कारण इस स्थल का नाम कालांतर में गूलर सिद्ध जन प्रसिद्ध हो गया होगा.
कोसी नदी के दूसरे किनारे की बस्ती ढिकुली कुमाऊं की प्राचीनतम बस्ती है. उसी के पूर्वोत्तर किनारे का क्षेत्र पहाड़ कोटा भाबर, कोटा कोटादून कहा जाता है. कोटा दून की बसावट चंद शासनकाल की मानी जाती है. संभव है गूलर सिद्ध में शिवलिंग की स्थापना कत्यूरिया अथवा चंद शासनकाल में हुई हो. क्योंकि सीताबनी पाटकोट एवं वर्तमान कोटाबाग क्षेत्र में पुरातत्व संबंधी बहुत सारी सामग्री आज भी बिखरी पड़ी है जो शोध का विषय है.
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गूलर सिद्ध मंदिर को लेकर जानकार गणेश रावत कहते हैं कि ढिकुली का प्रसिद्ध विराटेश्वर मंदिर है जिसके शिवलिंग को पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है. वहीं अभी गूलर सिद्ध को लेकर खास अध्ययन नहीं हुआ है. गणेश रावत कहते हैं कि यह रामनगर का एक अकेला मंदिर है जहां पर शिवरात्रि के मौके पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. साथ ही भव्य मेले का आयोजन होता है. वहीं आपको बता दें कि इस मंदिर में श्रद्धालुओं की सेवा भाव के लिए सभी धर्मों के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. मंदिर में कांवड़ियों के लिए पानी और अन्य व्यवस्था देखने के लिए खुद रामनगर के चेयरमैन मोहम्मद हाजी अकरम भी हर वर्ष पहुंचते हैं.