देहरादून: केदारनाथ धाम में बन रहे आदि गुरु शंकराचार्य के समाधि स्थल का कार्य पूरा हो चुका है. अब आदि गुरु शंकराचार्य की मूर्ति की स्थापना की जानी है. जिसका कार्य 27 सितंबर से शुरू कर दिया जाएगा. ऐसे में मूर्ति स्थापना का कार्य 20 अक्टूबर तक पूरा होने की उम्मीद जताई जा रही है. मूर्ति स्थापना के बाद केदारनाथ धाम आने वाले श्रद्धालु आदि गुरु शंकराचार्य की समाधि स्थल के भी दर्शन कर सकेंगे.
केदारनाथ मंदिर के पीछे बन रहे आदि गुरु शंकराचार्य के समाधि स्थल का काम लगभग पूरा हो गया है. इस कार्य के लिए 31 दिसंबर 2020 तक का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, लेकिन कोरोना महामारी के कारण इसमें देरी हुई. कोरोना महामारी के कारण न सिर्फ केदारनाथ के पुनर्निर्माण कार्य प्रभावित हुए, बल्कि विकास के कार्यों पर भी फर्क पड़ा है. यही वजह है कि समाधि स्थल का काम उतनी तेजी से नहीं हो पाया है.
पढ़ें- CCTV: घर के आंगन से पालतू कुत्ता मुंह में दबाकर ले गया तेंदुआ
वर्तमान समय में आदि गुरु शंकराचार्य के समाधि स्थल का कार्य लगभग पूरा कर लिया गया है. यही नहीं, 25 जून को आदि गुरु शंकराचार्य की प्रतिमा भी मैसूर से उत्तराखंड पहुंच गयी थी. जिसे 20 अक्टूबर तक समाधि स्थल में स्थापित कर दिया जाएगा.
पढ़ें- केजरीवाल के नौकरी-भत्ता वाले दावों में कितना दम ? दिल्ली में साढ़े 6 साल में 406 को नौकरी दी !
पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर ने बताया आदि गुरु शंकराचार्य के समाधि स्थल का कार्य लगभग पूरा हो गया है. मैसूर से आदि गुरु शंकराचार्य की प्रतिमा भी कुछ महीने पहले उत्तराखंड आ चुकी है. जिसके पार्ट चिनूक के माध्यम से केदारनाथ धाम पहुंच चुके हैं. जिसकी स्थापना का कार्य 27 सितंबर से शुरू कर दिया जाएगा. ऐसे में उम्मीद है कि 20 अक्टूबर तक यह कार्य पूरा कर लिया जाएगा.
कौन थे आदि गुरु शंकराचार्य: हिंदू कैलेंडर के अनुसार 788 ई में वैशाख माह के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को भगवान शंकराचार्य का जन्म हुआ था. आदि गुरु शंकराचार्य ने कम उम्र में ही वेदों का ज्ञान ले लिया था. इसके बाद 820 ई में इन्होंने हिमालय में समाधि ले ली.
8 साल की उम्र में वेदों का ज्ञान: माना जाता है कि भगवान शिव की कृपा से ही आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म हुआ था. जब ये तीन साल के थे तब इनके पिता की मृत्यु हो गई थी. इसके बाद गुरु के आश्रम में इन्हें 8 साल की उम्र में वेदों का ज्ञान हो गया. फिर ये भारत यात्रा पर निकले. इन्होंने देश के 4 हिस्सों में 4 पीठों की स्थापना की. ये भी कहा जाता है इन्होंने 3 बार पूरे भारत की यात्रा की थी.
केरल के नंबूदरी ब्राह्मण कुल में हुआ जन्म: आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म केरल के कालड़ी गांव में हुआ था. उनका जन्म दक्षिण भारत के नंबूदरी ब्राह्मण कुल में हुआ था. आज इसी कुल के ब्राह्मण बदरीनाथ मंदिर के रावल होते हैं. ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य की गद्दी पर नंबूदरी ब्राह्मण ही बैठते हैं.
4 वेदों से जुड़े 4 पीठ: जिस तरह ब्रह्मा के चार मुख हैं और उनके हर मुख से एक वेद की उत्पत्ति हुई है. यानी पूर्व के मुख से ऋग्वेद, दक्षिण से यजुर्वेद, पश्चिम से सामवेद और उत्तर वाले मुख से अथर्ववेद की उत्पत्ति हुई है. इसी आधार पर शंकराचार्य ने 4 वेदों और उनसे निकले अन्य शास्त्रों को सुरक्षित रखने के लिए 4 मठ यानी पीठों की स्थापना की.
पीठ और वेदों का संबंध: ये चारों पीठ एक-एक वेद से जुड़े हैं. ऋग्वेद से गोवर्धन पुरी मठ यानी जगन्नाथ पुरी, यजुर्वेद से श्रंगेरी जो कि रामेश्वरम् के नाम से जाना जाता है. सामवेद से शारदा मठ, जो कि द्वारिका में है और अथर्ववेद से ज्योतिर्मठ जुड़ा है. ये बदरीनाथ में है. माना जाता है कि ये आखिरी मठ है. इसकी स्थापना के बाद ही आदि गुरु शंकराचार्य ने समाधि ले ली थी.
केदारनाथ मंदिर से आदि गुरु शंकराचार्य का संबंध: केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है. केदारनाथ धाम असंख्य भक्तों की आस्था का प्रतीक माना जाता है. पुराणों के अनुसार भगवान शिव धरती के कल्याण हेतु 12 स्थानों पर प्रकट हुए थे. इन्हें ही 12 ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है. भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ भी है. साथ ही यह उत्तराखंड के पवित्र 4 धामों में से एक है. हर साल भक्त भगवान शिव के दर्शन के लिए इस पवित्र स्थल की यात्रा के लिए जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव की कृपा इस मंदिर और यहां दर्शन के लिए आने वाले भक्तों पर बनी रहती है. मान्यता है कि ये पवित्र मंदिर महाभारत के पांडवों द्वारा बनाया गया था. बाद में 8वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा इसका पुनः निर्माण करवाया गया.