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पौड़ी के च्वींचा गांव में गैंडी वध का शानदार मंचन, जमकर झूमे लोग - GANDI VADH LOKUTSAV PAURI

पौड़ी के च्वींचा गांव में गैंडी वध का लोगों ने जमकर लुत्फ उठाया. पर्व में बड़ी संख्या में लोग जुटे.

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पौड़ी के च्वींचा गांव में गैंडी वध मंचन (SOURCE: ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 3, 2025, 7:37 AM IST

पौड़ी: उत्तराखंड की लोक संस्कृति और विरासत आज भी लोग संजोए हुए हैं. जहां एक ओर बीते दिन पूरे प्रदेश में बसंत पंचमी की धूम रही, वहीं दूसरी ओर गढ़वाल मंडल के पौड़ी जिले के च्वींचा गांव में गैंडी वध का आयोजन किया गया. जिसका संबंध महाभारत काल की घटनाओं से जोड़ा जाता है. जिसमें बड़ी तादाद में लोगों ने शिरकत की और गैंडी वध के मंचन का लुप्त उठाया.

एक सदी से भी ज्यादा समय से मनाया जाने वाला यह त्यौहार च्वींचा गांव की एक अनोखी लोक विरासत है, जो आज भी उत्साहित होकर बड़े धूमधाम से एक मेले के रूप में मनाई जाती है. इस दिन गांव की विवाहित (ध्याणी) को पूजा अनुष्ठान और मेले में आमंत्रित किया जाता है जो अतिथि परंपरा की एक पहचान है. मेले में जो गैंडी वध का मंचन व प्रदर्शन किया जाता है. दरअसल वह महाभारत की कथा का एक छोटा सा अंश है.

गैंडी वध का शानदार मंचन (SOURCE: ETV BHARAT)

गैंडी वध से जुड़ी कहानी: संस्कृति कर्मी व ग्रामीण मनोज रावत अंजुल ने बताया कि कथा का सार इस प्रकार है कि पांच पांडवों के पिता पांडू की मृत्यु के बाद उनके कुल पुरोहित द्वारा सुझाई गई एक युक्ति का यह प्रसंग है. पांडू के श्राद्ध के लिए पुरोहित द्वारा पांडवों को यह सुझाव दिया गया कि, वैधानिक परिस्थितियों के अनुरूप श्राद्ध कर्म के लिए गैंडी (मादा गैंडा) की खकोटी की आवश्यकता होगी. लेकिन यह काम जितना उत्तम है, उतना कठिन भी है. गैंडों के समूह में एक विलक्षण गैंडी है, जो हिमालय की कंदराओं में किसी चरवाहे के पास है, उस चरवाहे का नाम नागमल व उसके साथ उनकी देखभाल करने वाली उसकी बहन नागमली है, गैंडी का नाम "सीता रामा" गैंडी है. यह काम कठिन इसलिए है कि नागमल एक बहुत ही बलवान योद्धा है और "सीता रामा "को पांडवों को सौंपने में वह अवश्य ही आनाकानी करेगा, सीतारामा वैसे भी बहुत प्रिय है.

महाभारत काल से जुड़ा पर्व: पांडव जब पुरोहित की यह बात सुनते हैं तो वह इस गैंडी को साम दाम दंड भेद किसी भी तरह हासिल करने का संकल्प लेते हैं. पांडव भी बलशाली थे तो वह हर चुनौती से लड़ने के लिए तत्पर हो गए और निकल पड़े हिमालय की कंदराओं में घर से निकलकर कई दिन गुजर जाने के बाद भी उन्हें सीताराम का मूल स्थान ढूंढने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा. आखिरकार उन्हें दूर बीहड़ में गैंडों का एक समूह दिखाई पड़ा. वह बिना देर के वहां पहुंचे. गैंडों के समूह के बीच नागमल और नागमली खड़े थे.

जब पांडवों ने यहां आने का कारण बताया तो नागमल गुस्से से लाल पीला हो गया. उसने कह दिया कि किसी भी कीमत पर तुम्हें सीता रामा देना मेरे बस में नहीं है. पांडव भी अपनी जिद पर अड़े थे. बहुत जद्दोजहद के बाद भी जब बात नहीं बनी तो नागमल ने एक प्रस्ताव रखा अगर तुम पांचों पांडव मुझसे युद्ध में जीत गए तो सीतारामा तुम्हारी हो जाएगी. पांडवों ने चुनौती स्वीकार कर ली. मान्यता के अनुसार कई दिनों तक युद्ध चला आखिरकार जीत पांडवों की हुई और सीता रामा गैंडी का वध कर वे वापस लौटे. तत्पश्चात पांडू का श्राद्ध संपन्न हुआ. जिसके बाद इस कहानी का मंचन हम सदियों से करते आ रहे हैं, जो अपने आप में बहुत आकर्षक और अनूठी है.

ये भी पढ़ें- नैनीताल में बसंत पंचमी पर यज्ञोपवीत संस्कार के लिए लगा जमावड़ा, 100 से ज्यादा बच्चों ने धारण किया जनेऊ

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पौड़ी: उत्तराखंड की लोक संस्कृति और विरासत आज भी लोग संजोए हुए हैं. जहां एक ओर बीते दिन पूरे प्रदेश में बसंत पंचमी की धूम रही, वहीं दूसरी ओर गढ़वाल मंडल के पौड़ी जिले के च्वींचा गांव में गैंडी वध का आयोजन किया गया. जिसका संबंध महाभारत काल की घटनाओं से जोड़ा जाता है. जिसमें बड़ी तादाद में लोगों ने शिरकत की और गैंडी वध के मंचन का लुप्त उठाया.

एक सदी से भी ज्यादा समय से मनाया जाने वाला यह त्यौहार च्वींचा गांव की एक अनोखी लोक विरासत है, जो आज भी उत्साहित होकर बड़े धूमधाम से एक मेले के रूप में मनाई जाती है. इस दिन गांव की विवाहित (ध्याणी) को पूजा अनुष्ठान और मेले में आमंत्रित किया जाता है जो अतिथि परंपरा की एक पहचान है. मेले में जो गैंडी वध का मंचन व प्रदर्शन किया जाता है. दरअसल वह महाभारत की कथा का एक छोटा सा अंश है.

गैंडी वध का शानदार मंचन (SOURCE: ETV BHARAT)

गैंडी वध से जुड़ी कहानी: संस्कृति कर्मी व ग्रामीण मनोज रावत अंजुल ने बताया कि कथा का सार इस प्रकार है कि पांच पांडवों के पिता पांडू की मृत्यु के बाद उनके कुल पुरोहित द्वारा सुझाई गई एक युक्ति का यह प्रसंग है. पांडू के श्राद्ध के लिए पुरोहित द्वारा पांडवों को यह सुझाव दिया गया कि, वैधानिक परिस्थितियों के अनुरूप श्राद्ध कर्म के लिए गैंडी (मादा गैंडा) की खकोटी की आवश्यकता होगी. लेकिन यह काम जितना उत्तम है, उतना कठिन भी है. गैंडों के समूह में एक विलक्षण गैंडी है, जो हिमालय की कंदराओं में किसी चरवाहे के पास है, उस चरवाहे का नाम नागमल व उसके साथ उनकी देखभाल करने वाली उसकी बहन नागमली है, गैंडी का नाम "सीता रामा" गैंडी है. यह काम कठिन इसलिए है कि नागमल एक बहुत ही बलवान योद्धा है और "सीता रामा "को पांडवों को सौंपने में वह अवश्य ही आनाकानी करेगा, सीतारामा वैसे भी बहुत प्रिय है.

महाभारत काल से जुड़ा पर्व: पांडव जब पुरोहित की यह बात सुनते हैं तो वह इस गैंडी को साम दाम दंड भेद किसी भी तरह हासिल करने का संकल्प लेते हैं. पांडव भी बलशाली थे तो वह हर चुनौती से लड़ने के लिए तत्पर हो गए और निकल पड़े हिमालय की कंदराओं में घर से निकलकर कई दिन गुजर जाने के बाद भी उन्हें सीताराम का मूल स्थान ढूंढने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा. आखिरकार उन्हें दूर बीहड़ में गैंडों का एक समूह दिखाई पड़ा. वह बिना देर के वहां पहुंचे. गैंडों के समूह के बीच नागमल और नागमली खड़े थे.

जब पांडवों ने यहां आने का कारण बताया तो नागमल गुस्से से लाल पीला हो गया. उसने कह दिया कि किसी भी कीमत पर तुम्हें सीता रामा देना मेरे बस में नहीं है. पांडव भी अपनी जिद पर अड़े थे. बहुत जद्दोजहद के बाद भी जब बात नहीं बनी तो नागमल ने एक प्रस्ताव रखा अगर तुम पांचों पांडव मुझसे युद्ध में जीत गए तो सीतारामा तुम्हारी हो जाएगी. पांडवों ने चुनौती स्वीकार कर ली. मान्यता के अनुसार कई दिनों तक युद्ध चला आखिरकार जीत पांडवों की हुई और सीता रामा गैंडी का वध कर वे वापस लौटे. तत्पश्चात पांडू का श्राद्ध संपन्न हुआ. जिसके बाद इस कहानी का मंचन हम सदियों से करते आ रहे हैं, जो अपने आप में बहुत आकर्षक और अनूठी है.

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