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लाजवाब है पहाड़ी गहथ की दाल, स्वादिष्ट होने के साथ ही औषधीय गुणों से है भरपूर

गहथ की दाल का वनस्पति नाम मेक्रोटाइलोमा यूनिफ्लोरम है. खरीफ की फसल में पैदा होने वाली गहथ दाल काले और भूरे रंग की होती है. गहथ की दाल उत्तर भारत के उत्तराखंड, हिमाचल के अलावा उत्तर पूर्व और दक्षिण भारत में भी खूब खाई जाती है.

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लाजवाब है पहाड़ी गहथ की दाल.
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Published : Feb 16, 2020, 7:27 PM IST

Updated : Feb 16, 2020, 10:32 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड की संस्कृति, परंपराओं और खान-पान में विविधता का समावेश है. जिसके कारण यहां की अपनी एक अलग ही पहचान है. बात अगर देवभूमि के खान पान की करें तो ये पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर है. जिसके कारण आज भी लोगों के जहन में यहां के खाने का स्वाद मौजूद है. उत्तराखंड के पौष्टिक तत्वों से भरपूर खान-पान में मोटी दालों को विशेष स्थान दिया जाता है. यहां होने वाली दालें राजमा, गहथ (कुलथ), उड़द, तोर, लोबिया, काले भट, नौरंगी (रयांस), सफेद छेमी आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं. जिन्हें मौसम के हिसाब से उपयोग में लाया जाता है.

लाजवाब है पहाड़ी गहथ की दाल.

पहाड़ी खाने में शरीर की जरूरत के साथ-साथ ऊर्जा और पोषण का विशेष ध्यान रखा जाता है. इसके अलावा मौसम के हिसाब से भी खान पान तय किया जाता है. ठंड के मौसम के लिए जिस किस्म के भोजन को विकसित किया जाता है, उसमें पर्याप्त कैलोरी और पौष्टिकता देने वाले व्यंजन शामिल होते हैं. ऐसे ही ठंड के समय पहाड़ों में गहथ की दाल बहुतायत में इस्तेमाल की जाती है. गहथ की दाल में भरपूर पौष्टिक तत्त्वों की भरमार होती है. जिसके कारण ये पहाड़ियों की पहली पंसद है.

पढ़ें- बढ़ती महंगाई के खिलाफ फूटा कांग्रेस का गुस्सा, मोदी सरकार का फूंका पुतला

गहथ की दाल का वनस्पति नाम मेक्रोटाइलोमा यूनिफ्लोरम है. खरीफ की फसल में पैदा होने वाली गहथ दाल काले और भूरे रंग की होती है. गहथ की दाल उत्तर भारत के उत्तराखंड, हिमाचल के अलावा उत्तर पूर्व और दक्षिण भारत में भी खूब खाई जाती है. आयुर्वेद के हिसाब से गहथ में भरपूर पौष्टिक तत्त्वों की भरमार होती है. गहथ की दाल में उच्च गुणवत्ता के पौष्टिक तत्व जैसे कि प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर और कई तरह के विटामिन पाए जाते हैं. गहथ की दाल में दवाओं के गुण भी शामिल होते हैं. जिसके कारण ये कई बीमारियों का रामबाण इलाज है. यह दाल एंटी हाईपर ग्लायसेमिक गुणों से भरपूर है. इस दाल में गुर्दे की पथरी को गलाने की अद्भुत क्षमता होती है.

पढ़ें- मसूरी: प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र का शुभारंभ, लोगों को सस्ती दरों पर मिलेगी दवाइयां

अलग-अलग प्रदेशों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है. इतना ही नहीं इससे तैयार होने वाले व्यंजन भी भिन्न-भिन्न होते हैं. उत्तराखंड में गहथ की दाल से रस, खिचड़ी, चटनी, रसम, सांभर, सूप और भरवा पराठें बनाए जाते हैं.

पढ़ें- बढ़ती महंगाई के खिलाफ फूटा कांग्रेस का गुस्सा, मोदी सरकार का फूंका पुतला

पर्यावरणविद और हैस्को के संस्थापक डॉ. अनिल जोशी ने गहथ की दाल के बारे में बताया कि गहथ दाल ऐसे स्थानों पर होती है जहां पानी का संकट होता है. उन्होंने कहा ये दाल अपने आप ऐसी व्यवस्था बना लेती है कि ये हिमालयी क्षेत्र में आसानी से उग जाती है.

उन्होंने बताया इस दाल में कैल्शियम बहुत अधिक मात्रा में होता है. जिसके कारण ये महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है. इसके अलावा इसे बेबी फूड के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है. उन्होंने बताया कि हैस्को ने 35 गांवों में इस दाल का प्रचार प्रसार किया है. वे प्रयास कर रहे हैं कि इस दाल के फायदे और गुणों के बारे में अधिक से अधिक लोगों को जागरुक कर सकें. जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इसका इस्तेमाल करें.

देहरादून: उत्तराखंड की संस्कृति, परंपराओं और खान-पान में विविधता का समावेश है. जिसके कारण यहां की अपनी एक अलग ही पहचान है. बात अगर देवभूमि के खान पान की करें तो ये पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर है. जिसके कारण आज भी लोगों के जहन में यहां के खाने का स्वाद मौजूद है. उत्तराखंड के पौष्टिक तत्वों से भरपूर खान-पान में मोटी दालों को विशेष स्थान दिया जाता है. यहां होने वाली दालें राजमा, गहथ (कुलथ), उड़द, तोर, लोबिया, काले भट, नौरंगी (रयांस), सफेद छेमी आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं. जिन्हें मौसम के हिसाब से उपयोग में लाया जाता है.

लाजवाब है पहाड़ी गहथ की दाल.

पहाड़ी खाने में शरीर की जरूरत के साथ-साथ ऊर्जा और पोषण का विशेष ध्यान रखा जाता है. इसके अलावा मौसम के हिसाब से भी खान पान तय किया जाता है. ठंड के मौसम के लिए जिस किस्म के भोजन को विकसित किया जाता है, उसमें पर्याप्त कैलोरी और पौष्टिकता देने वाले व्यंजन शामिल होते हैं. ऐसे ही ठंड के समय पहाड़ों में गहथ की दाल बहुतायत में इस्तेमाल की जाती है. गहथ की दाल में भरपूर पौष्टिक तत्त्वों की भरमार होती है. जिसके कारण ये पहाड़ियों की पहली पंसद है.

पढ़ें- बढ़ती महंगाई के खिलाफ फूटा कांग्रेस का गुस्सा, मोदी सरकार का फूंका पुतला

गहथ की दाल का वनस्पति नाम मेक्रोटाइलोमा यूनिफ्लोरम है. खरीफ की फसल में पैदा होने वाली गहथ दाल काले और भूरे रंग की होती है. गहथ की दाल उत्तर भारत के उत्तराखंड, हिमाचल के अलावा उत्तर पूर्व और दक्षिण भारत में भी खूब खाई जाती है. आयुर्वेद के हिसाब से गहथ में भरपूर पौष्टिक तत्त्वों की भरमार होती है. गहथ की दाल में उच्च गुणवत्ता के पौष्टिक तत्व जैसे कि प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर और कई तरह के विटामिन पाए जाते हैं. गहथ की दाल में दवाओं के गुण भी शामिल होते हैं. जिसके कारण ये कई बीमारियों का रामबाण इलाज है. यह दाल एंटी हाईपर ग्लायसेमिक गुणों से भरपूर है. इस दाल में गुर्दे की पथरी को गलाने की अद्भुत क्षमता होती है.

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अलग-अलग प्रदेशों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है. इतना ही नहीं इससे तैयार होने वाले व्यंजन भी भिन्न-भिन्न होते हैं. उत्तराखंड में गहथ की दाल से रस, खिचड़ी, चटनी, रसम, सांभर, सूप और भरवा पराठें बनाए जाते हैं.

पढ़ें- बढ़ती महंगाई के खिलाफ फूटा कांग्रेस का गुस्सा, मोदी सरकार का फूंका पुतला

पर्यावरणविद और हैस्को के संस्थापक डॉ. अनिल जोशी ने गहथ की दाल के बारे में बताया कि गहथ दाल ऐसे स्थानों पर होती है जहां पानी का संकट होता है. उन्होंने कहा ये दाल अपने आप ऐसी व्यवस्था बना लेती है कि ये हिमालयी क्षेत्र में आसानी से उग जाती है.

उन्होंने बताया इस दाल में कैल्शियम बहुत अधिक मात्रा में होता है. जिसके कारण ये महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है. इसके अलावा इसे बेबी फूड के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है. उन्होंने बताया कि हैस्को ने 35 गांवों में इस दाल का प्रचार प्रसार किया है. वे प्रयास कर रहे हैं कि इस दाल के फायदे और गुणों के बारे में अधिक से अधिक लोगों को जागरुक कर सकें. जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इसका इस्तेमाल करें.

Last Updated : Feb 16, 2020, 10:32 PM IST
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