देहरादून: नारायण दत्त तिवारी का जन्म 1925 में नैनीताल जिले के बलूती गांव में हुआ था. तब उत्तर प्रदेश का गठन नहीं हुआ था, और ये हिस्सा 1937 के बाद से भारत के यूनाइटेड प्रोविंस के तौर पर जाना जाता था. स्वतंत्रता के बाद संविधान लागू होने पर इसे उत्तर प्रदेश का नाम मिला. तिवारी के पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में अधिकारी थे. इस कारण उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी थी. महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के आह्वान पर पूर्णानंद ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. नारायण दत्त तिवारी की शुरुआती शिक्षा हल्द्वानी, बरेली और नैनीताल से हुई. अपने पिता के तबादले की वजह से उन्हें एक से दूसरे शहर में रहते हुए अपनी पढ़ाई पूरी करनी पड़ी.
एनडी ने लड़ी आजादी की लड़ाई: अपने पिता की तरह ही नारायण दत्त तिवारी भी स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल हुए. 1942 में वह ब्रिटिश सरकार की साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ नारे वाले पोस्टर और पंपलेट छापने और उसमें सहयोग के आरोप में पकड़े गए. उन्हें गिरफ्तार कर नैनीताल जेल में डाल दिया गया. इस जेल में उनके पिता पूर्णानंद तिवारी पहले से ही बंद थे. 15 महीने की जेल काटने के बाद वह 1944 में तिवारी रिहा हुए.
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1947 में बने इलाहाबाद विवि छात्रसंघ अध्यक्ष: इसके बाद तिवारी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र में एमए किया. नारायण दत्त तिवारी एमए की परीक्षा में विश्वविद्यालय में प्रथम आये. इसके बाद उन्होंने इसी विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री भी हासिल की. 1947 में आजादी के साल ही वह इस विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन के अध्यक्ष चुने गए. यह उनके राजनैतिक जीवन की पहली सीढ़ी थी.
26 साल की उम्र में बने विधायक: आजादी के बाद 1950 में उत्तर प्रदेश के गठन और 1951-52 में प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव में तिवारी ने नैनीताल (उत्तर) सीट से प्रजा समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर हिस्सा लिया. कांग्रेस की हवा के बावजूद वे चुनाव जीत गए और पहली विधानसभा के सदस्य के तौर पर सदन में पहुंचे. तब एनडी तिवारी की उम्र महज 26 साल थी. यह बेहद दिलचस्प है कि बाद के दिनों में कांग्रेस की सियासत करने वाले तिवारी की शुरुआत सोशलिस्ट पार्टी से हुई. 431 सदस्यीय विधानसभा में तब सोशलिस्ट पार्टी के 20 लोग चुनकर आए थे.
1963 में कांग्रेस में शामिल हुए: कांग्रेस के साथ तिवारी का रिश्ता 1963 से शुरू हुआ. 1965 में वह कांग्रेस के टिकट से काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और पहली बार मंत्रिपरिषद में उन्हें जगह मिली. कांग्रेस के साथ उनकी पारी कई साल चली. 1968 में जवाहरलाल नेहरू युवा केंद्र की स्थापना के पीछे उनका बड़ा योगदान था. 1969 से 1971 तक वे कांग्रेस के युवा संगठन के अध्यक्ष रहे. 1 जनवरी 1976 को वह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. यह कार्यकाल बेहद संक्षिप्त रहा. 1977 के जयप्रकाश आंदोलन की वजह से 30 अप्रैल को उनकी सरकार को इस्तीफा देना पड़ा.
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तीन बार रहे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री: तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. वह अकेले राजनेता हैं जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उत्तर प्रदेश के विभाजन के बाद वे उत्तरांचल (अब उत्तराखंड) के भी मुख्यमंत्री बने. केंद्रीय मंत्री के रूप में भी उन्हें याद किया जाता है. 1990 में एक वक्त ऐसा भी था जब राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी दावेदारी की चर्चा भी हुई.
नैनीताल से हारे और पीएम की दौड़ से बाहर हुए: राजीव गांधी की मौत के बाद 1991 के चुनावों में कांग्रेस बिनी किसी बड़े चेहरे के मैदान में थी. उस समय ये माना जा रहा था कि अगर कांग्रेस ने सरकार बनाई तो प्रधानमंत्री नारायण दत्त तिवारी होंगे. लेकिन ऐसा हो नहीं सका. इस बात का मलाल नारायण दत्त तिवारी को आखिरी समय तक रहा. 1991 के लोकसभा चुनावों में वह नैनीताल से चुनाव लड़ रहे थे. उनके प्रचार के लिए तब ट्रेजिडी किंग दिलीप कुमार भी आए थे. लेकिन नारायण दत्त तिवारी वह चुनाव हार गए. उधर पीवी नरसिम्हा राव आंध्र प्रदेश में चुनाव जीत गए और बाजी उनके हाथ लगी. नारायण दत्त तिवारी बीजेपी प्रत्याशी बलराज पासी से हारे थे. उनकी हार के बाद कांग्रेस ने पीएम चेहरे के रूप में नरसिम्हा राव का नाम तय किया था.
पांच दशक लंबा रहा राजनीतिक जीवन: एनडी तिवारी का राजनीतिक कार्यकाल करीब पांच दशक लंबा रहा. तिवारी के नाम एक ऐसी उपलब्धि है, जिसकी मिसाल भारतीय राजनीति में शायद ही मिले. वो दो अलग-अलग राज्यों के मुख्यमंत्री रहे. तिवारी 1976-77, 1984-84 और 1988-89 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. साल 2002 से 2007 तक उत्तराखण्ड के तीसरे मुख्यमंत्री रहे.
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सीडी कांड से खत्म हुआ राजनीतिक करियर: साल 2007-09 के दौरान वो आंध्र प्रदेश के गवर्नर भी रहे. राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल बेहद विवादास्पद रहा. महिलाओं के साथ उनके संबंधों को लेकर तिवारी की काफी किरकिरी हुई. इस दौरान एक तेलुगू चैनल ने राजभवन के बिस्तर पर तीन महिलाओं के साथ उनका वीडियो दिखाया. इसकी वजह से तिवारी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके साथ ही उनका राजनीतिक जीवन लगभग खत्म हो गया.
शेखर ने किया पिता होने का दावा: ऐसा कहा जाता था कि सुंदर महिलाओं के लिए उनके दिल में हमेशा एक सॉफ्ट-कॉर्नर रहता था. इसका उदाहरण साल 2008 में फिर सामने आया. रोहित शेखर ने एक अदालत में ये दावा करते हुए पैटरनिटी सूट दायर किया कि नारायण दत्त तिवारी उनके पिता हैं.
89 की उम्र में की दूसरी शादी: डीएनए जांच के बाद अदालत ने पाया कि नारायण दत्त तिवारी रोहित शेखर के बॉयलॉजिकल पिता हैं. कोर्ट-कचहरी के कई चक्करों के बाद आखिर 89 साल की उम्र में नारायण दत्त तिवारी को दूसरी शादी करनी पड़ी. वर्ष 2014 में नारायण दत्त तिवारी ने रोहित शेखर की मां उज्ज्वला तिवारी से शादी कर ली. उस समय तिवारी की आयु 89 वर्ष थी.
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ओल्ड स्कूल के राजनेता थे एनडी तिवारी: नारायण दत्त तिवारी को 'ओल्ड स्कूल' का राजनेता कहा जाता था. ऐसा इसलिए कि पुराने राजनेता हर तरह से अपडेट रहते थे. वो अपने आसपास के लोगों और मिलने-जुलने वालों की न केवल पूरी खबर रखते थे बल्कि उनका इतिहास-भूगोल तक ज्ञात रखते थे. नारायण दत्त तिवारी के बारे में भी ये मशहूर था. वो अपने दफ्तर में काम करने वाले कर्मचारियों को नाम से जानते थे. जानकार तो यहां तक कहते थे कि उनके पास कर्मचारियों के पूरे परिवार की कुंडली रहती थी.
16 से 18 घंटे काम करते थे, खुद निपटाते थे फाइल: नारायण दत्त तिवारी जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो कोई अफसर उनको झांसा नहीं दे सकता था. कहा जाता है कि वो सरकारी फाइलों का एक-एक शब्द पढ़ते थे. एनडी फाइल में खुद ही रेड मार्क करते थे. ऐसे में अफसर बहुत सतर्क होकर उनके पास फाइलें ले जाते थे. उन्हें याद रहता था कि कब उन्होंने कौन सी फाइल मंगवाई थी और उसमें क्या रिमार्क दिया था.
शांतचित्त रहते थे तिवारी: नारायण दत्त तिवारी ठंडे दिमाग वाले राजनेता थे. कोई उन पर कितने ही कठोर शब्दों का प्रहार करे नारायण दत्त तिवारी हंसकर ही सटीक जवाब दिया करते थे. जब 2002 से 2007 तक नारायण दत्त तिवारी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे तो हरीश रावत ने उनकी कुर्सी पलटने की काफी कोशिश की, लेकिन हरदा सफल नहीं हो सके. या यों कहें कि राजनीतिक के मंझे खिलाड़ी नारायण दत्त तिवारी के सामने हरीश रावत नौसिखिए साबित हुए.
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उत्तराखंड के CM के रूप में विवादित रहा कार्यकाल: नारायण दत्त तिवारी जब 2002 से 2007 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे तो वो कार्यकाल मैदानी इलाकों में उद्योगों के लिहाज से याद किया जाता है, लेकिन विवादित भी खूब रहा. लोगों में मुख्यमंत्री आवास के कारनामों से इतनी नाराजगी थी कि जाने-माने लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने तो गाना ही बना दिया था- नौ छमी नारैणा. ये गाना इतना पॉपुलर हुआ कि बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ गया. हमेशा शांतचित्त रहने वाले एनडी तिवारी को उनके अफसरों ने सलाह दी कि गाने का वीडियो बैन कर दिया जाए. इससे जनता की नाराजगी और बढ़ गई. गाने का नतीजा से रहा कि 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हार गई और बीजेपी पहली बार उत्तराखंड में चुनाव जीती.