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तिरंगा लहराकर संजय गुरुंग ने दी थी शहादत, पहाड़ों पर आज भी गूंजते हैं वीरता के किस्से

कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों की वीर गाथा को 20 बरस पूरे हो चुके हैं. हम पाकिस्तान से ये युद्ध तो जीत गये लेकिन भारत ने अपने 527 जवानों को खोया. देवभूमि के 75 जवानों ने शहादत दी थी. ऐसे ही एक वीर जवान थे संजय गुरुंग. शहीद संजय गुरुंग 16 साल की उम्र में ही भारतीय सेना का हिस्सा बन चुके थे. साल 1999 में जिस वक्त कारगिल युद्ध शुरू हुआ उस दौरान उनकी शादी को महज 3 साल हुए थे.

कारगिल विजय दिवस.
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Published : Jul 26, 2019, 9:01 AM IST

Updated : Jul 26, 2019, 1:25 PM IST

देहरादून: कारगिल विजय दिवस को 20 साल पूरे हो चुके हैं. कारगिल भारत-पाक के बीच छिड़ा वह युद्ध था जिसकी शुरुआत कश्मीर में पाक सेना की घुसपैठ से हुई थी. इस दौरान भारतीय सेना ने पाकिस्तान से निपटने के लिए 'ऑपरेशन विजय' का प्लान तैयार किया. जिसके बाद भारतीय जवानों ने साहस और शौर्य का परिचय देते हुए टाइगर हिल पर तिरंगा लहराया था. 2 महीनों तक चले कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते हुए भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए थे तो वहीं 1300 से ज्यादा जवान गंभीर रूप से घायल हुए थे.

तिरंगा लहराकर संजय गुरुंग ने दी थी शहादत.

कारगिल विजय दिवस के मौके पर ईटीवी भारत ने देहरादून के हरीपुर नवादा क्षेत्र में रहने वाले शहीद संजय गुरुंग के परिवार से खास बातचीत की. इस दौरान शहीद संजय गुरुंग की बुजुर्ग मां और उनकी पत्नी हेमा गुरुंग ने ईटीवी भारत के साथ शहीद संजय गुरुंग से जुड़ी कई यादें साझा की. शहीद संजय गुरुंग अपने पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर के थे. जिसके कारण शहीद संजय गुरुंग की शादी काफी कम उम्र में कर दी गई थी.

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संजय 16 साल की उम्र में ही भारतीय सेना का हिस्सा बन चुके थे. बता दें कि साल 1999 में जिस वक्त कारगिल युद्ध शुरू हुआ उस दौरान उनकी शादी को महज 3 साल हुए थे. ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान शहीद संजय गुरुंग की पत्नी और उनकी 73 वर्षीय बुजुर्ग मां उन्हें याद कर रो पड़ीं. शहीद संजय गुरुंग की पत्नी हेमा ने बताया कि जिस वक्त संजय कारगिल की लड़ाई लड़ रहे थे उस समय परिवार में किसी को भी इस बात का पता नहीं था. लेकिन जैसे ही कुछ दिनों बाद उनकी शहादत की खबर मिली तो सबके पैरों तले जमीन खिसक गई थी.

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शहीद संजय गुरुंग को याद करते हुए हेमा गुरुंग ने बताया की संजय के शहीद होने के बाद जब उनका पार्थिव शरीर उनके आवास पर लाया गया तो इस दौरान उनके द्वारा लिखी गई एक चिट्ठी भी उन्हें दी गई. इस चिट्ठी में उन्होंने घर आने की बात लिखी थी लेकिन किसी को क्या पता था कि संजय तिरंगे में लिपटकर वापस घर लौटेंगे.

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हेमा बताती हैं कि यह दिन उनकी जिंदगी का एक ऐसा दिन था जिसने उनकी पूरी जिंदगी को बदल कर रख दी. आज देश कारगिल विजय दिवस के मौके पर कारगिल के शहीदों को याद कर रहा है. ऐसे में शहीदों के परिजनों के जहन में आज भी उस वक्त की यादें ताजा हैं.

देहरादून: कारगिल विजय दिवस को 20 साल पूरे हो चुके हैं. कारगिल भारत-पाक के बीच छिड़ा वह युद्ध था जिसकी शुरुआत कश्मीर में पाक सेना की घुसपैठ से हुई थी. इस दौरान भारतीय सेना ने पाकिस्तान से निपटने के लिए 'ऑपरेशन विजय' का प्लान तैयार किया. जिसके बाद भारतीय जवानों ने साहस और शौर्य का परिचय देते हुए टाइगर हिल पर तिरंगा लहराया था. 2 महीनों तक चले कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते हुए भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए थे तो वहीं 1300 से ज्यादा जवान गंभीर रूप से घायल हुए थे.

तिरंगा लहराकर संजय गुरुंग ने दी थी शहादत.

कारगिल विजय दिवस के मौके पर ईटीवी भारत ने देहरादून के हरीपुर नवादा क्षेत्र में रहने वाले शहीद संजय गुरुंग के परिवार से खास बातचीत की. इस दौरान शहीद संजय गुरुंग की बुजुर्ग मां और उनकी पत्नी हेमा गुरुंग ने ईटीवी भारत के साथ शहीद संजय गुरुंग से जुड़ी कई यादें साझा की. शहीद संजय गुरुंग अपने पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर के थे. जिसके कारण शहीद संजय गुरुंग की शादी काफी कम उम्र में कर दी गई थी.

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संजय 16 साल की उम्र में ही भारतीय सेना का हिस्सा बन चुके थे. बता दें कि साल 1999 में जिस वक्त कारगिल युद्ध शुरू हुआ उस दौरान उनकी शादी को महज 3 साल हुए थे. ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान शहीद संजय गुरुंग की पत्नी और उनकी 73 वर्षीय बुजुर्ग मां उन्हें याद कर रो पड़ीं. शहीद संजय गुरुंग की पत्नी हेमा ने बताया कि जिस वक्त संजय कारगिल की लड़ाई लड़ रहे थे उस समय परिवार में किसी को भी इस बात का पता नहीं था. लेकिन जैसे ही कुछ दिनों बाद उनकी शहादत की खबर मिली तो सबके पैरों तले जमीन खिसक गई थी.

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शहीद संजय गुरुंग को याद करते हुए हेमा गुरुंग ने बताया की संजय के शहीद होने के बाद जब उनका पार्थिव शरीर उनके आवास पर लाया गया तो इस दौरान उनके द्वारा लिखी गई एक चिट्ठी भी उन्हें दी गई. इस चिट्ठी में उन्होंने घर आने की बात लिखी थी लेकिन किसी को क्या पता था कि संजय तिरंगे में लिपटकर वापस घर लौटेंगे.

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हेमा बताती हैं कि यह दिन उनकी जिंदगी का एक ऐसा दिन था जिसने उनकी पूरी जिंदगी को बदल कर रख दी. आज देश कारगिल विजय दिवस के मौके पर कारगिल के शहीदों को याद कर रहा है. ऐसे में शहीदों के परिजनों के जहन में आज भी उस वक्त की यादें ताजा हैं.

Intro:Special pkg story- Kargil Diwas Feed send from LivU ingest Folder Name- Kargil Shaheed देहरादून- साल 1999 में भारत पाक के बीच हुए कारगिल युद्ध को 20 साल पूरे हो चुके हैं । भारत-पाक के बीच छिड़ा यह वह युद्ध था जिसकी शुरुआत कश्मीर के कारगिल में पाक सेना के घुसपैठ के जवाब में हुई थी । इस दौरान भारतीय सेना ने 'ओपरेशन विजय' का प्लान तैयार कर पाकिस्तानी घुसपैठियों को को धूल चटाकर टाइगर हिल पर तिरंगा लहराया था । बता दें कि 2 महीनों तक चले कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते हुए भारतीय सेना के 527 जवान शाहिद हो गए थे । वहीं 1300 से ज्यादा जवान गभीर रूप से घायल हुए थे । कारगिल विजय दिवस के मौके पर ईटीवी भारत ने देहरादून के हरीपुर नवादा क्षेत्र में रहने वाले शहीद संजय गुरु के परिवार से खास मुलाकात की । इस दौरान शाहिद संजय गुरुग की बुजुर्ग मां और तब उनकी पत्नी रही हेमा गुरुंग ने हमारे साथ शाहिद संजय गुरुंग से जुड़ी कई यादें साझा की । बता दे की शहीद संजय गुरुंग अपने पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर के थे । ऐसे में शहीद संजय गुरुंग की शादी काफी कम उम्र में कर दी गई थी। वहीं संजय 16 साल की उम्र में ही भारतीय सेना का हिस्सा बन चुके थे। बता दें कि साल 1999 में जिस वक्त कारगिल युद्ध शुरू हुआ उस दौरान हेमा के साथ उनकी शादी को महज 3 साल ही हुए थे । लेकिन इस दौरान किसी को क्या पता था कि संजय सीमा पर अपनी सेवाएं देते हो तिरंगे में लिपटे हुए घर लौटेंगे । ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान शहीद संजय गुरुंग की पूर्व पत्नी और उनकी 73 वर्षीय बुजुर्ग मां उन्हें याद कर अपने आंसुओं को बहने से रोक नही सकी । ईटीवी भारत से खास बातचीत में संजय कुरुंग की पूर्व पत्नी हेमा ने बताया कि जिस वक्त संजय कारगिल युद्ध में शामिल हुए थे। इस दौरान परिवार वालों को इस बात की कोई को भनक नहीं थी कि संजय कारगिल युद्ध में शामिल है । लेकिन कुछ दिनों बाद अचानक ही एक फोन आया । जिसमें उन्हें उनकी शहादत की खबर मिली।


Body:शहीद संजय गुरुंग को याद कर भावुक होते हुए उनकी पूर्व पत्नी हेमा गुरुंग ने हमें बताया की संजय के शहीद होने के बाद जब उनका पार्थिव शरीर उनके आवास पर लाया गया तो इस दौरान उनके द्वारा लिखी गई एक चिट्ठी भी उन्हें दी गई। इस चिट्ठी में उन्होंने छुट्टी पर घर आने की बात लिखी थी । लेकिन दुर्भाग्यवश वह छुट्टी पर घर तो नहीं आ सके लेकिन तिरंगे में लिपटा हुआ उनका पार्थिव शरीर घर जरूर पहुँच गया । हेमा बताती है कि यह दिन उनकी जिंदगी का एक ऐसा दिन था जिसने उनकी पूरी ज़िंदगी को बदल कर रख दिया । परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि शहीद संजय गुरुंग के शहीद होने के बाद उन्हें संजय के छोटे भाई सुनील गुरुंग से शादी करनी पड़ी ।


Conclusion:गौरतलब है कि कारगिल युद्ध को 20 साल जरूर पूरे हो चुके हैं लेकिन शहीदों के परिवार जनों के जहन में आज भी अपने परिवार के एक सदस्य को युद्ध में हमेशा हमेशा के लिए खो देने का दर्द ताज़ा ही है ।
Last Updated : Jul 26, 2019, 1:25 PM IST
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