देहरादून: कारगिल विजय दिवस को 20 साल पूरे हो चुके हैं. कारगिल भारत-पाक के बीच छिड़ा वह युद्ध था जिसकी शुरुआत कश्मीर में पाक सेना की घुसपैठ से हुई थी. इस दौरान भारतीय सेना ने पाकिस्तान से निपटने के लिए 'ऑपरेशन विजय' का प्लान तैयार किया. जिसके बाद भारतीय जवानों ने साहस और शौर्य का परिचय देते हुए टाइगर हिल पर तिरंगा लहराया था. 2 महीनों तक चले कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते हुए भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए थे तो वहीं 1300 से ज्यादा जवान गंभीर रूप से घायल हुए थे.
कारगिल विजय दिवस के मौके पर ईटीवी भारत ने देहरादून के हरीपुर नवादा क्षेत्र में रहने वाले शहीद संजय गुरुंग के परिवार से खास बातचीत की. इस दौरान शहीद संजय गुरुंग की बुजुर्ग मां और उनकी पत्नी हेमा गुरुंग ने ईटीवी भारत के साथ शहीद संजय गुरुंग से जुड़ी कई यादें साझा की. शहीद संजय गुरुंग अपने पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर के थे. जिसके कारण शहीद संजय गुरुंग की शादी काफी कम उम्र में कर दी गई थी.
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संजय 16 साल की उम्र में ही भारतीय सेना का हिस्सा बन चुके थे. बता दें कि साल 1999 में जिस वक्त कारगिल युद्ध शुरू हुआ उस दौरान उनकी शादी को महज 3 साल हुए थे. ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान शहीद संजय गुरुंग की पत्नी और उनकी 73 वर्षीय बुजुर्ग मां उन्हें याद कर रो पड़ीं. शहीद संजय गुरुंग की पत्नी हेमा ने बताया कि जिस वक्त संजय कारगिल की लड़ाई लड़ रहे थे उस समय परिवार में किसी को भी इस बात का पता नहीं था. लेकिन जैसे ही कुछ दिनों बाद उनकी शहादत की खबर मिली तो सबके पैरों तले जमीन खिसक गई थी.
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शहीद संजय गुरुंग को याद करते हुए हेमा गुरुंग ने बताया की संजय के शहीद होने के बाद जब उनका पार्थिव शरीर उनके आवास पर लाया गया तो इस दौरान उनके द्वारा लिखी गई एक चिट्ठी भी उन्हें दी गई. इस चिट्ठी में उन्होंने घर आने की बात लिखी थी लेकिन किसी को क्या पता था कि संजय तिरंगे में लिपटकर वापस घर लौटेंगे.
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हेमा बताती हैं कि यह दिन उनकी जिंदगी का एक ऐसा दिन था जिसने उनकी पूरी जिंदगी को बदल कर रख दी. आज देश कारगिल विजय दिवस के मौके पर कारगिल के शहीदों को याद कर रहा है. ऐसे में शहीदों के परिजनों के जहन में आज भी उस वक्त की यादें ताजा हैं.