देहरादून: अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई है. जिसके बाद एक बार फिर से ये सवाल खड़ा हो गया है कि क्या संतों का मन संपत्ति में लग गया है? अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि ने सुसाइड नोट में भी जिस विवाद का जिक्र किया है वो भी संपत्ति से जुड़ा ही बताया जा रहा है. ईटीवी भारत आपको बता रहा है कि यह कोई पहला मामला नहीं है जब किसी संत ने खुद को यूं समाप्त कर लिया हो, इससे पहले भी कई संत संपत्ति विवाद को लेकर जान दे चुके हैं.
दुनिया को मोह माया से दूर रहने का उपदेश देने वाले संत खुद मोह माया के फेर में फंस गए हैं, जिसका जीता जागता प्रमाण देवभूमि उत्तराखंड है. यहां मोह माया के चक्कर में दो दशकों में अबतक दो दर्जन से ज्यादा संतों की हत्या हो चुकी है. इनमें कुछ ऐसे भी हैं, जिनका आजतक कोई पता नहीं चल पाया है. इतना ही नहीं, उत्तराखंड की विभिन्न अदालतों में जमीन-जायदाद पर दावों को लेकर हजार से ज्यादा मुकदमे चल रहे हैं, जो इस बात के गवाह हैं कि दूसरों को मोह-माया त्यागने का संदेश देने वाले संत खुद ही इसके फेर में फंसे हैं.
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद रियल स्टेट के कारोबार में एक बड़ा क्षेत्र बनकर उभरा है. यहां क्या नेता और क्या माफिया सब प्रॉपर्टी डीलर बन गये हैं, जिसका असर अकूत जमीन-जायदाद रखने वाले साधु-संतों और यहां के अखाड़ों पर भी पड़ा. संत भी इस कारोबार में अपने हाथ आजमाने से नहीं चूके. यही कारण रहा कि कभी भद्र लोगों के लिए बने आश्रमों में माफियाओं और प्रॉपर्टी डीलरों की आवाजाही शुरू हो गई.
इसका परिणाम कुछ यूं हुआ कि दो दर्जन से ज्यादा संतों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. इस दौरान तमाम आश्रमों के अलावा मठों और मंदिरों की जमीनें न केवल बेची गईं. बल्कि उन पर कई मंजिला अपॉर्टमेंट भी बन गए, जिससे होने वाले फायदे के फेर में संत एक दूसरे के खून के प्यासे हो गये.
लगातार हो रही संतों की हत्या के क्रम में योग गुरू बाबा रामदेव के आश्रम के पास अकूत संपदा के मालिक महंत सुधीर गिरि की हत्या के बाद से एक बार फिर देवभूमि में संतों के माफिया से मजबूत होते जा रहे गठबंधन पर सवाल उठने लगे थे. 14 अप्रैल 2012 निर्वाणी अखाड़े के सर्वोच पद पर आसीन इस संत की हत्या के बाद पुलिस ने एक साल बाद हरिद्वार के ही दो बड़े प्रॉपर्टी डीलरों की गिरफ्तार किया था. इस हत्या में भी एक बड़े संत का हाथ बताया जा रहा था. लेकिन बाद में उस संत ने अपने रसूख और सरकार की नजदीकियों का फायदा उठाते हुए खुद को इससे बाहर निकाला. वैसे भी संतों की हत्याओं के अधिकांश मामलों को पुलिस ठंडे बस्ते में ही डाल देती है.
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एक अरसे से इस सब पर निगाह रखे बुद्धिजीवी कौशल सिखोला भी मानते हैं कि सुधीर गिरि ही नहीं बल्कि उनके जैसे दर्जनों संत संपत्ति के लालच और हरिद्वार में लगातार बढ़ती जा रही फ्लैट संस्कृति के चलते अपनी जान गंवा चुके हैं. वरिष्ठ पत्रकार सुनील पांडे मानते हैं कि उत्तराखंड बनने के बाद जिस तरह से धर्मनगरी हरिद्वार में संतों और अखाड़ों में फ्लैट संस्कृति का चलन बढ़ा है. उसी की वजह से लगातार संतों की हत्याएं हो रही हैं.
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राह भटक गये संत: सिर्फ अपने प्रवचनों मात्र से ही किसी भी राह भटक चुके व्यक्ति को रास्ते पर ले आने वाले संत खुद रास्ता भटक गए हैं. दरअसल, बदलते समय के साथ जंगल की कुटिया छोड़कर फाइव स्टार आश्रमों में आ बैठे संत मोह माया के जाल में कुछ यूं फंस गए हैं कि इस मकड़जाल से बाहर निकलने की जगह इस भंवर में फंसते ही जा रहे हैं. दान में मिली जमीन जायदाद को बेचकर आलिशान आश्रम बनाने के चक्कर में संत समाज का एक तबका ऐसा फंसा कि पूरे संत समाज की जान पर बन आई है.
देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में अबतक 24 से ज्यादा संत साजिशों का शिकार हो चुके हैं. अधिकांश मामलो में ये साजिश माफियाओं के साथ मिलकर की गई है. एक-दो मामलों को छोड़कर किसी भी मामले का पुलिस खुलासा नहीं कर पाई है. कुछ मामले तो ऐसे भी रहे जिनमें कुछ पुलिस अधिकारी भी शक के दायरे में आए.
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कुछ समय पहले तक तो माफिया की पहचान आसानी से की जा सकती थी, मगर बदलते हालात में माफियाओं ने अपने काम करने का तरीका भी बदल दिया है. अब अकसर विवादित आश्रमों और अखाड़ों में माफिया सोची समझी रणनीति के तहत अपने कुछ गुर्गों को भगवा वस्त्र की आड़ में प्रवेश करवा देता है, जिनकी शिनाख्त कर पाना पुलिस के लिए भी मुश्किल है. इसी बात का फायदा उठाकर अक्सर माफिया अपने मंसूबों में कामयाब हो जाते हैं. हालात अब इस कदर खराब हो चले हैं कि संत तो संत पुलिस तक हालात को संभाल पाने में असमर्थ है.
ऐसे शुरू हुआ हत्याओं का सिलसिला
- सनसनीखेज हत्याकांड की कड़ी 1991 से शुरू होती है. 25 अक्टूबर 1991 को रामायण सत्संग भवन के संत राघवाचार्य आश्रम से निकलकर टहल रहे थे. स्कूटर सवार लोगों ने उन्हें घेर लिया. पहले गोली मारी फिर चाकूओं से गोद दिया. 9 दिसंबर 1993 को रामायण सत्संग भवन के ही संत राघवाचार्य आश्रम के साथी रंगाचार्य की ज्वालापुर में हत्या कर दी गई. अब सत्संग भवन में सरकारी पहरा है. उस पर रिसीवर तैनात है.
- सुखी नदी स्थित मोक्षधाम की करोड़ों की संपत्ति: 1 फरवरी 2000 को ट्रस्ट के सदस्य गिरीश चंद अपने साथी रमेश के साथ अदालत जा रहे थे. तभी पीछे से एक जीप ने टक्कर मारी, जिसमें रमेश मारे गये. पुलिस ने स्वामी नागेन्द्र ब्रह्मचारी को सूत्रधार मानते हुए जेल भेज दिया.
- बेशकीमती कमलदास की कुटिया पर भी लोगों की दृष्टि रही. वहां झगड़े हुए लेकिन कोई हत्या नहीं हुई. लेकिन पुलिस का पहरा बरकरार है. चेतनदास कुटिया में तो अमेरिकी साध्वी प्रेमानंद की दिसंबर 2000 में लूटपाट के बाद हत्या कर दी गई. कुछ स्थानीय लोग पकड़े गये मामला चल रहा है. 5 अप्रैल 2001 को बाबा सुतेंद्र बंगाली की हत्या की गई.
- 6 जून 2001 को हरकी पैड़ी के सामने टापू में बाबा विष्णुगिरि समेत चार साधुओं की हत्या. 26 जून 2001 को ही एक अन्य बाबा ब्रह्मानंद की हत्या. इसी वर्ष पानप देव कुटिया के बाबा ब्रह्मदास को दिनदहाड़े गोली से उड़ा दिया गया. 17 अगस्त 2002 बाबा हरियानंद एवं उनके चेले की हत्या. एक अन्य संत नरेंद्र दास की हत्या की गई.
- 6 अगस्त 2003 को संगमपुरी आश्रम के प्रख्यात संत प्रेमानंद उर्फ भोले बाबा गायब. 7 सितंबर 2003 को हत्या का खुलासा. आरोपी गोपाल शर्मा पकड़ा गया. अब आश्रम सील है.
- 28 दिसम्बर 2004 को संत योगानंद की हत्या. हत्यारों का आज तक पता नहीं चला.
- 15 मई 2006 को पीली कोठी के स्वामी अमृतानंद की हत्या. जिसके बाद सरकार ने संपत्ति पर कब्जा कर लिया है.
- 25 नवंबर 2006 को सुबह इंडिया टैंपल के बाल स्वामी की गोली मारकर हत्या. तीन हत्यारे गिरफ्तार और साजिश के तार अयोध्या से जुड़े.
- 8 फरवरी 2008 को निरंजनी अखाड़े के 7 साधुओं को दिया गया जहर. सभी बच गए, लेकिन कोई भी आरोपी पकड़ा नहीं गया.
- 14 अप्रैल 2012 निर्वाणी अखाड़े के सर्वोच पद पर असिन महंत सुधीर गिरि की हत्या हुई.
- 26 जून 2012 तिहरे हत्याकांड से पूरे हरिद्वार सहित उत्तराखंड प्रशासन को हिलाकर रख दिया. हरिद्वार के लक्सर में हनुमान मंदिर में देर रात तीन संतों के ऊपर हमला हुआ, जिसमें तीनों की मौत हो गयी. पुलिस इस मामले को भी सम्पति विवाद बता रही है.
छोटी बड़ी वारदातों में 22 से ज्यादा संत मारे गए हैं. हरिद्वार के संतों का कहना है कि जिस तरह से साधु-संतों में भी विलासिता का समावेश हो रहा है, वो खतरनाक है. पुलिस भी साधु-संन्यासियों की हत्या के पीछे माया को वजह मानती है. साथ ही वह सभी मामलों को सुलझाने का दावा भी करती है. लेकिन अब तक पुलिस किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है.
हत्या पर हत्या: हरिद्वार में सालों से संतों की हत्या जमीनों को लेकर होती आई है. ऐसा पहली बार हुआ है जब दो महीने में ही माफियाओं ने चार संतों को मौत के घाट उतार दिया था. सन् 2014 में महानिर्वाणी अखाड़े के सर्वोच्च पद पर आसीन महंत सुधीर गिरि की हत्या के पीछे भूमाफियाओं के हाथ होने की आशंका जताई जा रही थी. महंत सुधीर गिरि के गुरू विनोद गिरि ने भी आंशका जताई थी कि हत्या में किसी खास नजदीकी व्यक्ति का हाथ है.
हत्यारे तब से 15 अप्रैल की रात तक महंत का पीछा कर रहे थे. जैसे ही वो अपने आश्रम के नजदीक पहुंचे वैसे ही उनको गोलियों से भून दिया गया. पुलिस अधिकारी भी हत्या के पीछे संपत्ति विवाद को वजह मानकर जांच कर रहे हैं. पुलिस अधिकारी का कहना है कि अभी तक जो जानकारी सामने आई है, उसके अनुसार महंत सुधीर गिरि अखाड़े की सारी संपत्ति देखरेख किया करते थे. अखाड़े की संपति की पैरवी आदि भी वही किया करते थे.
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अभी सुधीर गिरि हत्याकांड का खुलासा हुआ भी नहीं था कि हरिद्वार के ही लक्सर से तीन संतों की हत्या की खबर ने उत्तराखंड सरकार को हिलाकर रख दिया. रुड़की के डोसनी के हनुमान मंदिर में 27 जून की देर रात तीन साधुओं पर अज्ञात बदमाशों ने धारदार हथियारों से ताबड़तोड़ हमले किये, जिसके चलते तीनों साधुओं ने दम तोड़ दिया. हनुमान मंदिर में हुए संतों के तिहरे हत्याकांड में भी सपंत्ति विवाद सामने आया.