मुंबई: व्यक्तिगत कर्जदार यदि समय पर अपने कर्ज की किस्त नहीं चुका पा रहे हैं तो उसकी सबसे बड़ी वजह वेतन मिलने में होनी वाली देरी है. इसके अलावा कारोबार में संकट की वजह से भी वे कर्ज नहीं चुका पा रहे हैं. एक सर्वे में यह निष्कर्ष सामने आया है.
यह सर्वेक्षण ऐसे समय आया है जबकि कुछ माह पहले जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार देश में बेरोजगारी की दर चार दशक के उच्चस्तर पर पहुंच गई है. कॉरपोरेट ऋण की मांग कम होने की वजह से बैंक अपने बही खाते को आगे बढ़ाने के लिए काफी हद तक खुदरा कर्ज पर निर्भर हैं.
पेटीएम के समर्थन वाली वित्तीय प्रौद्योगिकी कंपनी क्रेडिटमेट की सोमवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा सुस्ती की वजह से देशभर में ऋण वसूली प्रभावित हो रही है. यह रिपोर्ट पिछले छह माह के दौरान 30 राज्यों में गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) सहित 40 बैंकों के दो लाख से अधिक ऋणों के विश्लेषण पर आधारित है.
कर्ज के भुगतान में देरी की सबसे प्रमुख वजह वेतन मिलने में होने वाली देरी को माना गया है. 36 प्रतिशत मामलों में कर्ज भुगतान में देरी की वजह वेतन में विलंब है. वहीं 29 प्रतिशत मामलों में कर्ज चुकाने में देरी की वजह कारोबार में आई सुस्ती को बताया गया है.
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कुल कर्ज चुकाने में असफल रहने के मामलों में 12 प्रतिशत में रोजगार नुकसान वजह है. वहीं इलाज की जरूरतों के चलते 13 प्रतिशत मामलों में कर्ज चूक हुई है. 10 प्रतिशत मामलों में संबंधित कर्जदार के दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होना रहा है.
सर्वे में एक रोचक तथ्य सामने आया है. महिलाओं की तुलना में कर्ज नहीं चुकाने के मामले पुरुषों के अधिक हैं. 82 प्रतिशत कर्ज चूक के मामले पुरुषों से जुड़े हैं. कर्ज भुगतान करने में तो महिलाएं आगे हैं हीं. बकाया का भुगतान करने में भी महिलाएं आगे हैं. पुरुषों की तुलना में महिलाएं 11 प्रतिशत अधिक तेजी से बकाया का भुगतान करती हैं. शहरों की बात की जाए तो मुंबई, अहमदाबाद और सूरत में कर्ज भुगतान की दर सबसे बेहतर है.
इस मामले में दिल्ली, बेंगलुरु और पुणे की स्थिति काफी खराब है. राज्यों में ऋण प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में ओड़िशा, छत्तीसगढ़, बिहार और गुजरात का प्रदर्शन सबसे अच्छा है. वहीं मध्य प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली-एनसीआर और तमिलनाडु का प्रदर्शन सबसे खराब है.