देहरादून (उत्तराखंड): पूरे देश में इस समय उत्तराखंड का उत्तरकाशी चर्चाओं में है. गंगा जमुनी तहजीब के लिए जाने जाना वाला उत्तरकाशी जिला इन दिनों देशभर में हिंदू मुसलमान, लव जिहाद जैसे मामलों को लेकर सुर्खियों में हैं. अपने सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामरिक महत्व के लिए जाने जाना वाले इस शहर को उत्तर का काशी कहा जाता है. इस जिले को शिव की तपस्थली के रूप में जाना जाता है. इसके अलावा उत्तराखंड का उत्तरकाशी वह जिला है जहां से गंगा का उद्गम होता है. उत्तरकाशी जिले से ही यमुना भी निकलती हैं. ये दोनों ही नदियां देश के करोंड़ों लोगों की प्यास बुझाने का काम करती हैं.
उत्तरकाशी उत्तराखंड का एक जिला है. उत्तरकाशी जिले की सीमाएं टिहरी, देहरादून, रुद्रप्रयाग के साथ ही पड़ोसी राज्य हिमाचल से भी लगती हैं. इन दिनों उत्तरकाशी हिंदू मुस्लिम के तनाव से गुजर रहा है, लेकिन इस शहर की यह पहचान कभी नहीं रही. इस शहर की पहचान यहां की घाटियां, सभ्यता, काशी विश्वनाथ का मंदिर, गंगोत्री और यमुनोत्री है. उत्तरकाशी जिला उत्तराखंड में क्षेत्रफल के लिहाज से बड़े जिलों में है. जनसंख्या के हिसाब से अगर देखा जाए तो यह जिला उत्तराखंड में चौथा सबसे कम जनसंख्या वाला जनपद है. कहा जाता है कि उत्तरकाशी में क्षेत्रफल अधिक होने की वजह से 1 किलोमीटर के दायरे में 41 लोग रहते हैं. उत्तरकाशी ने कभी इस तरह के विवाद नहीं देखे. यह वही उत्तरकाशी है जहां से तिब्बत जैसे देश और हिमाचल जैसे प्रदेश व्यापार करते थे. यह बात अलग है कि समय के साथ वह सभी दर्रे बंद कर दिए गए जहां से व्यापार होता था.
उत्तरकाशी का धार्मिक महत्त्व: धार्मिक दृष्टि से अगर इस जिले के बारे में इतिहास के पन्नों को खंगाला जाये तो कई ऐतिहासिक तथ्य सामने आते हैं. इससे जुड़ी एक पौराणिक कहानी है. जिसमें राजा सगर के 60,000 पुत्र थे. एक शाप की वजह से वो भस्म हो गए थे. अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए भागीरथ ने कठिन तपस्या की थी. जिससे भागीरथ उनकी मुक्ति का एकमात्र साधन गंगा को पृथ्वी पर ला सके. उत्तरकाशी ही वह जिला है जहां पर पहली बार गंगा धरती पर अवतरित हुई. इस स्थान को गोमुख कहते हैं. उत्तरकाशी में गंगोत्री और यमुनोत्री धाम भी हैं. जहां सालाना सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचते हैं. बहुत कम लोग जानते होंगे कि उत्तरकाशी में स्थित बाबा काशी विश्वनाथ के दर्शन करने से उतना ही पुण्य प्राप्त होता है जितना उत्तर प्रदेश में बनारस में स्थित काशी के दर्शन से होता है. भारत में तीन काशी हैं. उत्तराखंड के उत्तरकाशी को उत्तर का काशी कहा जाता है. इसके साथ ही रुद्रप्रयाग के गुप्तकाशी का भी ऐसा ही महत्व है.
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काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास: उत्तराखंड में स्थित काशी विश्वनाथ की स्थापना वैदिक काल में की गई थी. कहा जाता है कि बनारस के काशी को श्राप मिला था कि वह कलियुग में संताप से अपवित्र हो जाएगा. इस श्राप से परेशान होकर देवी देवताओं ने भगवान शिव से पूछा कि ऐसे में आपका दूसरा स्थान कहां और कौन सा होगा. तब उन्होंने देवी-देवताओं को बताया था कि उनका दूसरा स्थान हिमालय पर वरुणा पर्वत पर भागीरथी संगम के आस पास होगा. तब यहां पर भगवान शिव का स्वरूप स्थापित किया गया. तभी इस शहर को भी उत्तरकाशी के रूप में बसाया गया. उत्तरकाशी में वह सभी घाट और मंदिर हैं जो बनारस के काशी में स्थित हैं. उत्तरकाशी में विश्वनाथ मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, भैरव मंदिर, मणिकर्णिका घाट, केदार घाट हैं. उत्तरकाशी को भी विश्वनाथ की नगरी कहा जाता है. अभिलेखों में मिलता है कि अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार महारानी सुदर्शन शाह की पत्नी कांति ने करवाया था. इसके आज भी प्रमाण मौजूद हैं.
पुरोला भी उत्तरकाशी का महत्वपूर्ण हिस्सा: उत्तरकशी का पुरोला हरकीदून ट्रेक से लेकर देवदार के पेड़, बर्फ़बारी और यहां के खूबसूरत नजारों के लिए जाना जाता है. पुरोला पर्यटन के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण जगह है. पुरोला हरे भरे पहाड़ों और गोविंद वन्यजीव अभयारण्य से घिरा हुआ है. पुरोला में ट्रेक, देवदार और ओक के पेड़, नदी का बहाव, घुमावदार सड़कें सभी को रोमांचित करती हैं. सुरम्य दृश्य और शांत वातावरण पुरोला को एक परफैक्ट टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाता है. पुरोला में दुनिया भर के पर्यटक और दृष्टि साधक आते हैं. उत्तरकाशी के पुरोला में गढ़वाल के पर्यटन स्थल का एक हिस्सा है. यहां बोली जाने वाली स्थानीय भाषाएं हिंदी और गढ़वाली हैं. मगर यहां बीते दिनों हुई एक छोटी सी घटना ने सांप्रदायिक रूप ले लिया. जिसके बाद से यहां प्रदर्शनों और पलायन का दौर जारी है.
उत्तरकाशी में तनावपूर्ण स्थिति और बवाल है. इस पर वरिष्ठ पत्रकार और उत्तराखंड को बेहद करीब से जानने वाले जय सिंह रावत चिंता जताते हैं. वे बताते हैं आज तक उन्होंने न ऐसा देखा और न ऐसा पढ़ा है. उन्होंने कहा उत्तराखंड में जिस तरह के हालात बन रहे हैं वो चिंताजनक हैं. जय सिंह रावत बताते हैं उत्तरकाशी से लगता हुआ हिमाचल का एक हिस्सा है जहां पर ईसाई मिशनरी पहले से काम करते आये हैं. इसको लेकर कई मुकदमे और कई शिकायत भी दर्ज हुई हैं. मगर ऐसा पहली बार है कि जब मुस्लिम संगठनों के विरोध में इतना बड़ा प्रदर्शन हो रहा है.
जय सिंह रावत कहते हैं हिंदू और मुस्लिम उत्तराखंड में एक ही साथ बसे हुए हैं. आज भी टिहरी में मस्जिद मोहल्ला और मुसलमानों के गांव हैं. इसी तरह से उत्तरकाशी में भी वरुणावत पर्वत के आसपास कई मुस्लिमों के आशियाने हैं. उत्तरकाशी और टिहरी ही नहीं बल्कि चमोली, पिथौरागढ़ और तमाम जनपदों में मुस्लिमों की आबादी रहती है. उत्तरकाशी और टिहरी के बारे में हमें यह समझना होगा कि मुस्लिम परिवारों को तब के राजाओं ने इसलिए बसाया क्योंकि यह लोग कमाल की कारीगरी करते थे. तब राजाओं ने इन्हें यहां बुलाकर बसाया. संख्या कम होने की वजह से कभी भी इतना विवाद नहीं हुआ. यह लोग मिलजुल कर रहते हैं. मगर अचानक इतना सब कुछ हो गया कि लोगों को घर, दुकानें छोड़नी पड़ रही हैं.
जय सिंह रावत ने कहा इस तरह की घटनाओं से ना केवल राज्य की बल्कि सरकार की भी छवि खराब होती है. जय सिंह रावत कहते हैं ना केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहले अंकिता हत्याकांड और अब उत्तरकाशी का यह पूरा कांड सुर्खियां बटोर रहा है. ऐसे में सरकार को इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि हालात खराब नहीं होने चाहिए.
जय सिंह रावत ने कहा सभी मिलजुल कर रहें ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए. उत्तरकाशी का इतिहास बेहद पुराना है. यहां के लोगों का रहन-सहन बड़ा समृद्ध है. इसलिए यहां संवेदनशीलता से इस तरह के मामले से निपटने की जरुरत है.
मुस्लिम बोलते हैं गढ़वाली: टिहरी के रहने वाले 70 वर्षीय सूरज सिंह रावत ने उत्तरकाशी में लगभग 40 साल पत्रकारिता की है. वे कहते हैं सभी को एक नजर से देखना सही नहीं है. उन्होंने कहा उत्तरकाशी में सालों पुराने गांव मुस्लिम समुदाय के बसे हुए हैं. खास बात यह है कि यह लोग हिंदी से ज्यादा अब गढ़वाली ही बोलते हैं. उत्तराखंड में उत्तरकाशी के आसपास ऐसे कई गांव हैं, जहां पर सिर्फ गढ़वाली ही बोली जाती है. इनमें मुस्लिम समुदाय के लोग भी इसी भाषा का प्रयोग करते हैं. उन्होंने कहा जो लोग विरोध कर रहे हैं उन्हें सभी के साथ एक जैसा बर्ताव नहीं करना चाहिए. सूरज सिंह रावत ने कहा 70 साल में वे ऐसा होता पहली बार देख रहे हैं. सूरत सिंह रावत कहते हैं यह सब कुछ बंद होना चाहिए. यहां पर हिंदू और मुस्लिम हमेशा से मिल कर रहे हैं. राजाओं ने इसे बसाया है. अब गढ़वालियों और इनमें आप फर्क नहीं कर सकते. सरकारों ने उनके लिए मज्जिद और कब्रिस्तान बनायें है. ये सब इसलिये किया गया ताकि सब मिलकर रहें.
अचानक कैसे बढ़ी संख्या किसी को नहीं मालूम: उत्तरकाशी के ही रहने वाले सुनील थपलियाल का कुछ और ही कहना है. सुनील थपलियाल समाज सेवा का काम करते हैं. वे पत्रकारिता भी करते हैं. सुनील थपलियाल का जन्म बड़कोट में हुआ. इसलिए वे अच्छे से उत्तरकाशी को देखते समझते आये हैं. सुनील थपलियाल कहते हैं जब वे स्कूल पढ़ा करते थे तब यहां दो-चार या 10 मुस्लिम परिवार हुआ करते थे. आज इनकी संख्या 4000 से 5000 में हो गई है. खास बात यह है कि जिन दुकानों को स्थानीय व्यापारी 2000 से ₹3000 महीने पर किराए पर लेते थे, इन्होंने यहां पर व्यापार को इस तरह से खराब किया कि उसी दुकान को यह ₹10,000 महीने किराए पर लेने लगे. अब स्वभाविक है कि जिससे मकान मालिक को ₹10,000 की दुकान किराए पर मिल रही है, वह स्थानीय निवासी को दुकान किराये पर क्यों देगा? सुनील थपलियाल बताते हैं चिन्यालीसौड़, मोरी, बड़कोट खरादी जैसे इलाकों में इनके छोटे छोटे से गांव हैं. इनकी संख्या अभी 10 से 15 साल में बढ़ी है. उन्होंने कहा हम या विरोध करने वाले हिंदू संगठन यहां रह रहे पुराने लोगों को कोई परेशानी न हो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहते हैं.
उत्तरकाशी में 2011 की जनगणना और जनसंख्या डेटा 2023 के अनुसार, हिंदू बहुसंख्यक हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तरकाशी जिले की जनसंख्या 330,086 है. हिंदुओं की जनसंख्या का 98.42% है.