सुशांत सिंह राजपूत के जीवन को देखने का एक तरीका यह भी हो सकता है कि यह मौत की भविष्यवाणी का एक हिस्सा था. ट्विटर पर सुशांत सिंह द्वारा विन्सेंट वान गोग के 1889 में बनाए 'दी स्टैरी नाइट' (The Starry Night) चित्र को अपने डिस्प्ले फोटो के तौर पर रखे जाने पर गौर किया जाए, जो महान चित्रकार ने मानसिक रूप से टूटने के एक साल बाद बनाया था. या फिर जून तीन की तारीख को इंस्टाग्राम पर अपनी अंतिम पोस्ट में अपनी प्यारी मां की तस्वीर पोस्ट करना, जिनकी मृत्यु 2002 में हुई थी. इस तस्वीर के साथ लिखा था- आंसुओं के वाष्प से धुंधला अतीत/ अंतहीन सपने मुस्कान की रेखा बनाते/ और एक फिसलती जिंदगी/ इन दो के बीच चल रही बहस.
हर 34 साल के व्यक्ति के पास सपनों की कोई फेहरिश्त नहीं होती लेकिन पिछले सप्ताह आत्महत्या करने वाले सुशांत के पास थी. इतना ही नहीं 2013 की उनकी पहली सफल फिल्म 'काइपो छे' के बाद बनी ग्यारह में से पांच फिल्मों में उनकी मृत्यु को परदे पर दिखाया गया था. अपनी पहली फिल्म के यादगार दृश्य में सुशांत को, जिसने ईशान की करिश्माई भूमिका निभाई थी, एक परछाई की तरह सूर्यास्त की तरफ बढ़ते दिखाया गया है, मानो वह अपने शिष्य अली हाशमी की भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया मैच में की गई सलामी बल्लेबाजी से बहुत खुश हैं.
निर्देशक अभिषेक कपूर ने फिल्म में ईशान की मृत्यु को सोच समझकर दिखाया था, जो चेतन भगत की पुस्तक 'दी थ्री मिस्टेक्स ऑफ माय लाइफ' (The 3 Mistakes of My Life) जिसपर यह फिल्म आधारित थी, से हट कर था. कपूर का प्रयास था फिल्म के सबसे चहेते चरित्र की मृत्यु दिखा कर गोधरा ट्रेन हत्याकांड और उसके बाद हुए गुजरात दंगों के दर्द और पाशविकता को एक दृश्य में पिरोना.
दिनेश विजन निर्देशित पुनर्जन्म पर आधारित फिल्म राबता (2017) में जहां उसके एक अवतार की मौत होती है, वहीं दूसरे शिव कक्कर को लड़की डूबने से बचा लेती है. फिल्म केदारनाथ (2018) में, जो उत्तराखंड में 2013 की बाढ़ की पृष्ठभूमि पर बनी है, वह एक मुसलमान गाइड की भूमिका में है, जो मंदिर के पुजारी की बेटी से प्यार करता है. अंतिम दृश्य में वह अपने चहेते कलाकार शाह रुख खान की तरह अपनी बाहें फैलाता है, मुड़ जाता है और जमीन द्वारा निगल लिया जाता है. वास्तविक जीवन में उसकी हुई मृत्यु के बाद अब यह दृश्य देख पाना कष्टदायक होगा.
अभिषेक चौबे की फिल्म सोनचिड़िया (2019) में वह लखना की भूमिका में है, जो जान बूझकर एक पेड़ की आड़ से बाहर आकर दुश्मन की भूमिका में आशुतोष राणा के हाथों एक वीर की मौत मारा जाता है. उनकी मृत्यु के बाद दिए एक साक्षात्कार में चौबे ने कहा कि फिल्म का वह क्षण जब लखना एक नए जीवन के बारे में सपना देख रहा होता है आज मेरे मन में एक अलग ही परिप्रेक्ष्य में नजर आता है. उसने अपना ही एक जीवन ले लिया है.
आखिरी फिल्म 'छिछोरे' में उसका फिल्मी बेटा मौत से बाल-बाल बच जाता है. इस फिल्म में सुशांत के एक संवाद का वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो गया है. पिता की भूमिका में सुशांत अपने बेटे से कह रहा है, 'हमारा रिजल्ट नहीं डिसाइड करता कि तुम लूजर हो कि नहीं, तुम्हारी कोशिश तय करती है. याद रखने लायक संवाद है यह.
जो उनकी आखिरी फिल्म को सुखान्तक देखना चाहते हैं उन्हें दोबारा निराश होना पड़ेगा. फिल्म 'दिल बेचारा', जो दी फॉल्ट इन आवर स्टार्स (The Fault in Our Stars) की रीमेक है और जिसे इंटरनेट पर स्ट्रीम किया जाना है, उसका अंत भी सुनिश्चित है. हालांकि लड़का और लड़की दोनों ही कैंसर से पीड़ित हैं, अचानक लड़के की मौत हो जाती है, जबकि फिल्म में लड़की की हालत ज्यादा गंभीर दिखती है.
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सिनेमाई मौतें ऑडियंस के साथ संबंध बनाने का एक शक्तिशाली तरीका है. शाहरुख खान और अमिताभ बच्चन दोनों के करियर इसके सबूत हैं. एक अनुमान के अनुसार, शाहरुख खान की 17 फिल्मों में ऑनस्क्रीन मृत्यु हो चुकी है, जबकि बच्चन की फिल्म में 27 बार मृत्यु दिखाई गई है. दोनों को ही दर्शकों ने उनकी मृत्यु के दृश्यों के लिए पसंद किया है. दीवार (1975) में अमिताभ बच्चन का अपनी मां की गोद में अंतिम सांस लेना, देवदास (2002) में शाह रुख की नाटकीय डिजाइनर मृत्यु, जब आंचल लहराती ऐश्वर्या राय पारो हवेली की तरफ भागती चली आती है.
सुशांत सिंह राजपूत एक प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, जो खगोलविदों से लेकर स्वामी विवेकानंद को आसानी से उद्धृत कर सकते थे. उन्होंने श्यामक डावर की मंडली में बैक-अप डांसर के रूप में शुरुआत करने के साथ-साथ दुख और संघर्ष के बारे में जाना. जैसा कि उन्होंने अक्टूबर 2019 में ट्वीट किया था, 'पश्चिम कहता है, हम बुराई पर विजय प्राप्त करके इसे कम कर देते हैं. भारत कहता है, हम दुःख भुगत कर उसे तबाह कर देते हैं, दुःख सकारात्मक आनंद के अलावा कुछ नहीं है. लक्ष्य एक ही है, हालांकि ये विपरीत दिखते हैं. हम जिंदगी की घुमावदार घाटी में टहलते हुए एक दूसरे को खुदाहाफिज बोलते जाएं.'
वह जानता था कि जीवन और शोहरत क्षणजीवी होते हैं. रूमी को उधृत करते हुए उन्होंने दिसम्बर 2018 में ट्वीट किया कि एक परछाई की तरह मैं हूं भी और नहीं भी. उसे शायद इस बात का पूर्वाभास होगा कि वह चकाचौंध से दूर, अधूरी फिल्मों, तोड़े गए वादों और खोई संंभावनाओं को पीछे छोड़ कर अपने आपको खोज लेगा.
- कावेरी बामजाई