फ़ैज़ पर फ़साद

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नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर छिड़े बगावत के सुर में जब आईआईटी कानपुर के छात्रों ने आवाज बुलंद की तो बखेड़ा खड़ा हो गया. विरोध में गायी गई एक नज्म को साम्प्रदायिकता के कटघरे में खड़ा कर दिया गया. ये नज्म आज 41 साल बाद फिर चर्चा में है. जी हां 'हम देखेंगे' पाकिस्तान मूल के शायर फैज अहमद फैज ने ये नज्म 1979 में लिखी थी. वो भी उस वक्त के पाकिस्तान के तानाशाह जनरल ज़िया-उल-हक़ के ख़िलाफ़, मगर आज ये नज्म मजहबी सवालों के घेरे में है.

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