Meerut में विकसित हुई आलू की खास किस्म 'कुफरी नीलकंठ', इस बीमारी के लिए फायदेमंद - आलू की खास किस्म
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मेरठ : जिले के केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान ने 'कुफरी नीलकंठ' नामक आलू की किस्म को विकसित किया है. अनुसंधान संस्थान का दावा है कि यह आलू बेहद खास है जोकि काफी गुणकारी भी है. कैंसर जैसी बीमारी के साथ ही यह किसान के लिए भी उपयोगी है, उनकी आय बढ़ाने में सक्षम है. आइए जानते हैं इस आलू के बारे में.
वेस्टर्न यूपी के मेरठ के मोदीपुरम में स्थित केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (CPRI) के द्वारा आलू की खास किस्म तैयार की गई है. इस आलू का रंग सामान्य आलू से भिन्न है, लेकिन स्वाद के मामले में इसका कोई तोड़ नहीं है. इतना ही नहीं इस पर रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों का दावा है कि इस कुफरी नीलकंठ नामक आलू में वो है जो अन्य किसी में नहीं. केंद्रीय आलू अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक ओमपाल सिंह ने ईटीवी भारत से बातचीत की. उन्होंने बताया कि 'करीब दस वर्ष तक शोध के बाद बेहद ही गुणकारी और उपयोगी आलू की खास किस्म 'कुफरी नीलकंठ' को विकसित किया गया. यह आलू देखने में बाहर से नीला, जबकि अंदर से पीले रंग का होता है. इसमें न्यूट्रिएंट्स ज्यादा होते हैं. यह सौ दिन की फसल होती है, हालांकि इसे भी ऐसे ही उगाया जाता है जैसे कि अन्य आलू की फसल को, लेकिन बाकी आलू की तुलना में इस आलू में हार्मोन्स अलग हैं.
वह बताते हैं कि आलू की यह नई किस्म कैंसर को दूर भगाने में बेहद ही मददगार साबित होगी. वह बताते हैं कि कुफरी नीलकंठ आलू में एंटी ऑक्सीडेंट बहुत ज्यादा है और इसमें कैरोटिन एंथोसाइनिन नामक तत्व भी पाए जाते हैं. यह तत्व कैंसर से लड़ने के लिए बेहद ही उपयोगी होता है. कैंसर को कम करने का गुण इसमें पाया जाता है. शोधकर्ताओं के पास इसके गुण गिनाने को एक लंबी फेहरिस्त है. वह बताते हैं कि चिकित्सक भी मानते हैं कि कलरफुल सब्जियां इंसान के लिए अत्यधिक लाभकारी होती हैं. इस आलू का स्वरूप भी बाकी से भिन्न है क्योंकि इसका रंग भी बैंगनी है.
केंद्रीय आलू अनुसंधान केंद्र मोदीपुरम के चीफ टेक्निकल ऑफिसर एवं वैज्ञानिक ओपी सिंह ने बताया कि 'इस प्रजाति के आलू में कैंसर से लड़ने की क्षमता रखना वाले जींस पाए गए हैं. किसानों को भी बीज उपलब्ध कराया जा रहा है. उन्होंने बताया कि 2021 में इसे इजाद किया गया था. वह बताते हैं कि इसका व्यापक स्तर पर प्रचार प्रसार हो सके इसके लिए कई जगह मेलों में, हाॅट में, कृषि मेलों आदि में स्टॉल लगाकर प्रचार प्रसार जारी है. किसानों को बीज केंद्रों पर भी अब इसका बीज दे रहे हैं.'
केंद्रीय आलू अनुसंधान केंद्र मोदीपुरम के चीफ टेक्निकल ऑफिसर ओपी सिंह बताते हैं कि 'फरवरी के आखिर में किसानों से एक पत्र लेते हैं, जिसके बाद उन्हें दो क्विंटल प्रति किसान के हिसाब से भेज दिया जाता है. अगर किसी किसान को अधिक लेना हो तो निदेशक की संस्तुति के बाद दिया जाता है. वह बताते हैं कि दूसरी आलू की प्रजातियों के यह महंगा है, क्योंकि इसमें जड़ें कम निकलती हैं. उत्पादन क्षमता बाकी के मुकाबले कम है, हालांकि यह आलू सामान्य की तुलना में उससे दोगुने समय तक बिना कोल्ड स्टोरेंज के सुरक्षित है. सामान्य आलू एक महीने तक सुरक्षित रह सकता है, जबकि कुफरी नीलकंठ आलू दो माह तक भी सुरक्षित रहता है. इसकी पैदावार की अगर बात करें तो साढ़े तीन सौ से 4 सौ कुंतल प्रति हेक्टेयर है, हालांकि जून माह में इस आलू को भी कोल्डस्टोर में रखना पड़ेगा.'
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