UP Budget 2023 : बजट में आवंटन भले बढ़ रहा हो पर विजन नदारद होता जा रहा
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लखनऊ : प्रदेश सरकार में वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने 2022-23 के लिए छह लाख 90 हजार करोड़ रुपये का बजट विधानसभा में पेश किया. सरकार ने इस बजट के माध्यम से सभी क्षेत्रों को कुछ न कुछ देने की कोशिश की है. बावजूद इसके कुछ क्षेत्रों में बजट ने निराश भी किया है. हमने बजट पर चर्चा के लिए अर्थशास्त्री प्रोफेसर एपी तिवारी और डॉ. मनीष हिंदवी से विशेष चर्चा की. देखिए प्रमुख अंश.
प्रोफेसर एपी तिवारी कहते हैं 'इस बजट में एक ओर जहां वित्तीय अनुशासन को ध्यान में रखा गया है, वहीं दूसरी ओर प्रदेश की अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को आगे बढ़ाने की कोशिश की गई है. हम यह कह सकते हैं कि जो पिछले बजट रहे हैं योगी सरकार के उसी की निरंतरता के तौर पर इस बजट को देखा जाना चाहिए. एक ओर जहां खेती में प्राकृतिक खेती और मोटे अनाज की खेती को ध्यान में रखकर किसानों को प्रोत्साहित करने की व्यवस्था की गई है. दूसरी ओर स्टार्टअप और एग्रीटेक स्टार्टअप की भी बात की गई है और उसके लिए प्रावधान किए गए हैं बजट में. योगी सरकार की शुरू से धारणा रही है कि किसान तभी मजबूत होगा, जब उसी अन्य सहायक तत्वों जैसे डेरी या मत्स्य पालन आदि से जोड़कर आय बढ़ाई जा सके.'
वहीं डॉ. मनीष हिंदवी कहते हैं 'यदि हम ध्यान से देखें तो बजट में हर सेक्टर को छूने की कोशिश की गई है. कहीं पर ज्यादा ध्यान दिया गया है, तो कहीं कम. हालांकि जो एक चीज बढ़ रही है, वह है टोकेनिज्म की व्यवस्था. कहीं पचास करोड़, कहीं अस्सी करोड़ खर्च कर बहुत सारी चीजों को कवर करने की कोशिश हो रही है. इसे एक उदाहरण से समझें. जैसे लखनऊ मेट्रो है, इसे बजट में इस बार कुछ भी नहीं मिला है. एक सीधी लाइन बनाकर छोड़ दी गई है. दूसरी लाइन बन ही नहीं पा रही है. पांच साल होने को हैं, लेकिन दूसरी लाइन पर आज तक काम शुरू नहीं हो सका है. फिर सरकार ने कहीं दो किलोमीटर, कहीं चार किलोमीटर मेट्रो बना दी. इससे क्या होगा? जैसे लखनऊ में मेट्रो घाटे में चल रही है, वैसे ही अन्य शहरों में भी घाटे में चलती रहेगी. बजट में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पैसे का ज्यादा से ज्यादा सदुपयोग हम कैसे कर पाएं. हम कहां निवेश करें या पैसा लगाएं कि हमको उसका फायदा मिले. यदि किसानों की ही बात करें, तो तमाम योजनाएं चलाए जाने के बाद भी क्या सरकार किसानों की आय दोगुनी कर सकी? आकड़ों के अनुसार यदि हम आय दोगुनी नहीं कर पा रहे हैं, तो कहां कुछ कमी रह जा रही है? मुझे लगता है, बजटों में विजन का हिस्सा गायब होता जा रहा है, आवंटन भले ही बढ़ रहा हो.
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