नई दिल्ली : मेडिकल जर्नल द लांसेट में 2016-20 के एक अध्ययन के अनुसार पता चला है कि भारत में उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) के 75% से अधिक रोगियों में यह खतरनाक स्थिति में है, क्योंकि इन 75 प्रतिशत मरीजों में हाई ब्लड प्रेशर नियंत्रण में नहीं रहता है.
इस अध्ययन से पता चल रहा है कि मृत्यु दर में वृद्धि में अनियंत्रित बीपी या ब्लड प्रेशर एक महत्वपूर्ण कारण है. यह बात भारत सरकार के 2019-20 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey-5) में भी सही पायी गयी है, जिसमें पुरुषों में 24% और महिलाओं में 21% उच्च रक्तचाप देखा गया है. जबकि यह 2015-16 के सर्वेक्षण में क्रमशः 19% और 17% के आंकड़े पर था.
डॉक्टर्स के अनुसार ब्लड प्रेशर उच्चतम रेंज को सिस्टोलिक (Systolic) कहते हैं, जबकि निम्नतम ब्लड प्रेशर रेंज को डायस्टोलिक (Diastolic) कहा जाता है. जब मरीज का ब्लड प्रेशर रेंज 140 mmHg और 90 mmHg के बीच रहता है तो इसे नियंत्रित व सही माना जाता है. अगर रेंज इससे अधिक हुयी तो उच्च रक्तचाप अर्थात ब्लड प्रेशर और कम हुयी तो निम्न रक्तचाप अर्थात लो ब्लड प्रेशर कहा जाता है. हालांकि पहले यह 120 mmHg और 80 mmHg के बीच सही माना जाता था. लेकिन अब इसकी रेंज बढ़ा दी गयी है.
उच्च रक्तचाप के लक्षण (Symptoms of Hypertension)
- गंभीर सरदर्द
- थकान या भ्रम
- घबराहट
- छाती में दर्द
- मूत्र में रक्त
- धुंधली दृष्टि
- सांस लेने में तकलीफ
ब्लड प्रेशर के हिसाब से उपचार (Types of Hypertension)
यह 4 तरीके के समझा जा सकता है....
सामान्य ब्लड प्रेशर : जब आपका सिस्टोलिक 120 एमएम एचजी से नीचे होता है और डायस्टोलिक 80 एमएम एचजी से नीचे होता है, तो इस ब्लड प्रेशर सीमा को सामान्य माना जाता है. ऐसे में दवाओं की कोई आवश्यकता नहीं होती है, जबकि आपको हमेशा अपने ब्लड प्रेशर की निगरानी करने की सलाह दी जाती है.
प्री-हाइपरटेंशन : यदि आपका सिस्टोलिक 120 और 139 एमएम एचजी के बीच है और डायस्टोलिक 80 और 89 एमएम एचजी के बीच है, तो आप उच्च रक्तचाप की सीमा में हैं. इस स्थिति के लिए किसी दवा की जरूरत नहीं बतायी जाती है, लेकिन परहेज व जीवनशैली में थोड़ा सा सावधान रहने के लिए कहा जाता है.
स्टेज -1: जब आपका सिस्टोलिक 140-159 एमएम एचजी और डायस्टोलिक 90-99 एमएम एचजी के बीच होता है, तो आप उच्च रक्तचाप के सीमा जोखिम में कहे जाते हैं. इसके लिए आपको एंटी-हाइपरटेंशन दवाओं के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है. साथ-साथ जीवनशैली में बदलाव के लिए कहा जाता है.
स्टेज -2: यदि आपका सिस्टोलिक 160 एमएम एचजी से आगे निकल जाता है और डायस्टोलिक 100 एमएम एचजी से पार हो जाता है, तो इसे बहुत गंभीर माना जाने लगता है. डॉक्टर दवाओं के साथ साथ आपके उपर खानपान के प्रतिबंध बताता है. साथ ही हार्ट अटैक व अन्य बीमारियों से आगाह करता है.
देश के नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार महिला और पुरुष में उम्र के अनुसार इस तरह के रुझान मिले हैं....
वहीं अगर धर्म के आधार पर देखा जाय तो सिख धर्म के लोगों में यह सर्वाधिक बताया जा रहा है....
लैंसेट रीजनल हेल्थ-साउथईस्ट एशिया के अध्ययन में अबकी बार केरल के शोधकर्ता भी शामिल थे. यह अध्ययन भारत में 2001 और 2022 के बीच बीपी नियंत्रण दरों को लेकर किए गए विविध विश्लेषण पर आधारित है. सरकारी प्रयासों, जागरूकता और स्वास्थ्य सुविधाओं तक बेहतर पहुंच के बावजूद देश में उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में सक्षम रोगियों की संख्या पिछले 21 वर्षों में केवल 6% से बढ़कर 23% हो गई है.
इसे भी देखें.. वैज्ञानिकों ने की हानिकारक ओरल बैक्टीरिया की पहचान, अन्य बीमारियों का बनते हैं कारण
लांसेट अध्ययन के संबंधित लेखक शफी फजलुद्दीन कोया (Shaffi Fazaludeen Koya) ने कहा कि हालांकि भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी उच्च रक्तचाप नियंत्रण दरों में सुधार किया है, लेकिन अभी भी अनियंत्रित और अनियंत्रित बीपी की एक बड़ी समस्या बनी हुयी है. कोया ने कहा कि उच्च रक्तचाप नियंत्रण दरों में सुधार के लिए टिकाऊ, समुदाय आधारित रणनीतियों और स्वास्थ्य आधारित कार्यक्रमों को विकसित करने के साथ साथ मूल्यांकन करने की आवश्यकता है.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप