वाराणसीः बनारस को मिनी बंगाल कहा जाता है क्योंकि दुर्गा पूजा पर होने वाले दुर्गोत्सव में वाराणसी की दुर्गा माता की प्रतिमाएं बंगाल की तरह ही दिव्य और भव्य होती हैं. नवरात्र शुरू होने पर पूरा बनारस दुर्गोत्सव के लिए तैयार है. मगर इस बार मूर्तिकारों को तकलीफ है वो तकलीफ बढ़ी हुई महंगाई की है. जिसमें दुर्गा प्रतिमा बनाने में मूर्तिकारों को इस बार तीन गुना लागत अधिक खर्च करना पड़ है.
नवरात्र की धूम में मूर्तिकारों के चेहरे पर मुस्कुराहट जरूर है लेकिन उनके चेहरे पर पुरानी रौनक गायब है. वे खुश हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार महंगाई ने इन मूर्तिकारों की कमर तोड़ दी है. जहां प्रतिमाओं को बनाने के लिए मैटेरियल लेना महंगा पड़ रहा है. वहीं बाजार में इसका दाम तय करने में भी समस्या आने वाली है. हालांकि मूर्तियों के दाम पर ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला है.
तीस फीसदी तक बढ़ गई है लागत
इसबार प्रतिमाओं के निर्माण की लागत बीते तीन साल में तीस फीसदी तक बढ़ गई है. यही नहीं, पिछले साल प्रतिमा निर्माण में एक व्यक्ति को 500 रुपये रोज मजदूरी दी जा रही थी. इस बार 800 रुपये रोजाना देने पड़ रहे हैं. बांस की कीमत 150 से 250 रुपये हो गया है. पुआल पहले एक कुंतल 500 रुपये का था. अब 1000 का हो गया है. सुतली की कीमत 80 रुपये से 140 रुपये हो गयी है.
औसतन 40 हजार रुपये आ रहा खर्च
आपको बता दें कि दुर्गा प्रतिमा बनाने में प्रयोग होने वाले उत्पादों के दाम बढ़ गए हैं. ऐसे में अलग-अलग शैली की प्रतिमाएं बनाने में अधिक खर्च आ रहा है. शिल्पकारों-मूर्तिकारों के मुताबिक मध्यम आकार की अजंता अथवा ओरियंटल शैली की एक प्रतिमा बनाने में औसतन खर्च 40 हजार रुपये तक आ रहा है. उनका यह भी कहना है कि रंग-पेंट और ब्रश की कीमतें भी लगातार बढ़ती जा रही हैं. इनका खर्च भी अधिक आता है.
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कोरोना के बाद से अब अच्छा है बाजार
मूर्तिकारों का कहना है कि पिछले दो साल किसी भी तरह से बाजार अच्छा नहीं था. एक साल तो दुर्गा प्रतिमा बनी ही नहीं. दूसरे साल छोटी मूर्तियों को ही बनाया गया. जिससे छोटी मूर्तियों की ही बिक्री हुई थी. लेकिन इस बार बड़ी मूर्तियां बनाई जा रही हैं. हालांकि इनका यह भी कहना है कि पिछली बार की अपेक्षा इस बार मैटेरियल के दामों ने मूर्तिकारों को काफी परेशान किया है.
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