वाराणसी: काशी और बनारस जैसे नामों के बीच 24 मई 1956 को शहर का नाम वाराणसी स्वीकार किया गया. उस दिन भारतीय पंचांग में दर्ज तिथि के अनुसार वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा और चंद्र ग्रहण का योग था. ऐसा माना जाता है कि वाराणसी का नामकरण सबसे बड़े पवित्र काल में स्वीकार किया गया था. वाराणसी बेहद ही पुराना नाम है. इतना पुराना कि इसका वर्णन मत्स्य पुराण में भी किया गया है.
दसवें पृष्ठ पर प्रकाशित
वाराणसी गजेटियर 1965 में प्रकाशित किया गया था. उसके 10वें पृष्ठ पर जिले का प्रशासनिक नाम वाराणसी किए जाने की तिथि अंकित है. इसके साथ ही गजेटियर उसका वैभव और गतिविधियों को भी सम्मिलित किया गया है.
दो नदियों का नाम मिलाकर रखा गया वाराणसी
वहीं अगर हम अन्य मतों की मानें तो इसके अनुसार अथर्ववेद में वारणवति नदी का जिक्र आया था, जोकि आधुनिक काल में वरुणा का पर्याय माना जाता है. वहीं अस्सी नदी को पुराणों में असिसंभेद कहा गया है. अग्नि पुराण में अस्सीनदी तीर्थ कहा गया है. पद्म पुराण में दक्षिण उत्तर में वरुणा और अस्सी नदी का जिक्र है. सन 1965 में इलाहाबाद के सरकारी प्रशासनिक अधिकारी ईसा जोशी के संपादकीय नेतृत्व में दस्तावेजों का प्रकाशन किया गया था. वहीं 2015 में डिजिटलाइज करने के लिए ऑनलाइन किया गया था.
जब इस बारे में बीएचयू प्रोफेसर क्षेमेन्द्र त्रिपाठी ने बताया कि वाराणसी का इतिहास शायद इतिहास के पन्नों से भी आना है. विश्व की प्राचीन नगरी काशी पुराणों के अनुसार 11वीं पीढ़ी के राजा काश के नाम पर बसी. इसका वर्णन अथर्ववेद में भी है. काशी समग्र भारत के रूप में मौजूद है. यह समस्त दुखों को समाप्त करने वाली मोक्ष नगरी है. काशी अलग-अलग कालों में अलग-अलग रूप में विकसित हुई है.