आगरा: डकैत और दस्युओं की पनाहगाह चंबल नदी में अब मगरमच्छ, घड़ियाल और डॉल्फिन का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है. कहें तो चंबल अब संकटग्रस्त जलीय (सरीसृप) जीवों के लिए जीवनदायनी बन गई है. बीते दस साल में चंबल सैंक्चुरी में मगरमच्छ की संख्या बढ़कर दोगुनी से अधिक हुई है. चंबल में घड़ियाल और डॉल्फिन की संख्या में भी इजाफा हो रहा है. ईटीवी भारत की स्पेशल स्टोरी में संकटग्रस्त जलीय जीवों के लिए जीवनदायिनी बनती चंबल की पूरी कहानी.
महाभारत काल की ‘चर्मवती’ ने चंबल बन दी डकैतों को पनाह : राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में बहने वाली चंबल नदी उत्तर भारत की प्राचीन नदियों में से एक नदी है. जो प्राचीनकाल की ‘चर्मवती’ नदी है. वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि चंबल नदी के खादर, बीहड के साथ ही तीन राज्य से जुड़ी सीमा की वजह से ये 60 और 70 के दशक में डकैतों की पनाहगाह बनी. धीरे-धीरे चंबल में डकैत सक्रिय हुए, जो समाज के सताए या रंजिश के चलते चंबल घाटी में पहुंचे. जिन्होंने चंबल में पहुंचते ही अपना बदला पूरा किया और अपराध के रास्ते पर चल निकले. ये खुद को डकैत की जगह बागी कहलाना पसंद करते थे. चंबल की बात करें तो यहां पर कई ऐसे डाकू हुए, जो आज भी लोगों के जेहन में जिंदा हैं.
इन डाकुओं की पनाहगाह रही चंबल नदी
- डाकू मान सिंह
- डाकू लाखन
- डाकू रूपा
- डाकू पान सिंह तोमर
- डाकू मलखान सिंह
- डाकू मौहर सिंह
- डाकू लालाराम
- डाकू निर्भर गुर्जर
- डाकू जगजीवन परिवार
- डाकू फक्कड़ बाबा
ये रहीं दस्यु सुंदरी
- दस्यु सुंदरी फूलन देवी
- दस्यु सुंदरी सीमा परिहार
- दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन
- दस्यु सुंदरी नीलम गुप्ता
- दस्यु सुंदरी सरला
राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य की शुरुआत: केंद्र सरकार ने 1979 में राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य की स्थापना की, जो मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में बनाया गया. राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य की लंबाई करीब 435 किलोमीटर है. ये क्षेत्र मध्य प्रदेश के मुरैना, राजस्थान के धौलपुर और उत्तर प्रदेश के आगरा और इटावा से औरैया जिले की सीमा तक है. राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य एक महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है. राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य को लेकर तीनों राज्यों ने विशेष तैयारी की. जिससे इस क्षेत्र में संकटग्रस्त जलीय जीव और संकटग्रस्त पक्षियों का संरक्षण करने पर काम शुरू करने की योजना बनी. सन 1981 में घड़ियाल संरक्षण परियोजना बनी. इसके बाद चंबल में घड़ियाल संरक्षण पर काम शुरू किया गया. जिससे चंबल में घड़ियाल, मगरमच्छ, बटागुर कछुआ और डाॅल्फिन का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है.
घड़ियाल, मगरमच्छ और संकटग्रस्त जीवों के संरक्षण : चंबल सैंक्चुरी प्रोजेक्ट की डीएफओ चांदनी सिंह ने बताया कि चंबल में संकटग्रस्त जलीय जीव के संरक्षण को लेकर सरकार की योजना है. सरकार की इंटीग्रेटिड डब्लपमेंट आफ वाइल्डलाइफ हेविटाट योजना में हम बहुत कार्य करते हैं. जिससे चंबल में घड़ियाल, मगरमच्छ, बटागुर कछुआ और डाॅल्फिन का संरक्षण किया जा रहा है. मार्च और अप्रैल में घड़ियाल, मगरमच्छ और बटागुर कछुआ के प्रजनन का समय आता है तो इनके अंडे की देखरेख कर्मचारी करते हैं. इसकी कन्टयूनियश मॉनीटरिंग होती है. एनजीओ के साथ मिलकर रेस्क्यू,रिहेबिलेटशन, हेचिंग और बच्चों को यमुना में रिलीज किया जाता है. इस तरह से संरक्षण किया जा रहा है.
संरक्षण की दिशा में आने वाली चुनौतियां: चंबल सैंक्चुरी प्रोजेक्ट की डीएफओ चांदनी सिंह ने बताया कि चंबल नदी में संकटग्रस्त जलीय जीवों की गणना की गई. जिसमें घड़ियाल, मगरमच्छ, बटागुर कछुआ की संख्या भी बढ़ी है. हालांकि 2023 के मुकाबले डाल्फिन की संख्या 216 से घटकर 167 हो गई है. इस पर सैंक्चुरी के अधिकारी मंथन कर रहे हैं.
चंबल सैंक्चुरी क्षेत्र में वन्यजीव और मानव के बीच संघर्ष नहीं हो, इसके लिए समय चंबल के तटीय गांव में जनता के साथ गोष्ठी की जाती है. जिसमें लोगों को ये बताते हैं कि वन्यजीव का संरक्षण जरूरी है. जब बाढ़ आती है तो जनता से ये अपील की जाती है कि यदि कोई वन्यजीव गांव में आ जाए तो तत्काल विभाग को सूचना दें. जिससे उसे रेस्क्यू करके उसे प्राकृतिक वास में छोड़ा जाए. बाढ़ में जलीय जीवों के संरक्षण में अधिक चुनौती सामने आती है.
चंबल नदी में यूं हो रही संख्या में वृद्धि
सन | घड़ियाल | मगरमच्छ | डाॅल्फिन |
2023 | 1622 | 543 | 216 |
2024 | 1880 | 742 | 167 |
पिनाहट और नदगवां पर पूरा फोकस: चंबल सैंक्चुरी प्रोजेक्ट की डीएफओ चांदनी सिंह ने बताया कि आगरा में एक फेमस कोट आगरा वियोंड ताज चल रहा है. उसमें सूर सरोवर पक्षी बिहार आता है. आगरा से महज 80 किमी की दूरी पर चंबल मिल जाती है. ऐसे ही इटावा से महज 40 किलोमीटर की दूरी पर चंबल मिल जाती है. बस और टैक्सी से पर्यटक पहुंच सकते हैं. यूपी सरकार का ईको टूरिज्म पर जोर हैं. जिसमें हमारा पूरा सहयोग है. आगरा की बात करें तो बोटिंग की व्यवस्था है. यहां पर आने वाले पर्यटक चंबल में संकटग्रस्त जलीय जीव में जैसे घड़ियाल, मगरमच्छ, बटागुर कछुआ और डाॅल्फिन के साथ ही बेहद ही खूबसूरत रंग बिरंगे पक्षी देख सकते हैं. जिनमें कई पक्षी प्रवासी हैं. जो इस मौसम में चंबल में आए हैं. हम चंबल के मैनेंजमेंट प्लान में पिनाहट और नंदगवा चयनित हैं. जहां पर हम काम कर रहे हैं. जहां पर आसानी से पहुंचा जा सकता है.
ये भी खास इंतजाम: चंबल सैंक्चुरी के रेंजर उदय प्रताप सिंह बताते हैं कि सेंक्चुरी तक पहुंचने के लिए पर्यटकों को किसी प्रकार की समस्या न हो. इसके लिए वन विभाग ने सुरक्षा के लिए इंतजाम किए गए हैं. चंबल नदी की बात करें तो आज चंबल में घड़ियाल, मगरमच्छ, डाल्फिन समेत प्रवासी पक्षी भी डेरा डाले हुए हैं. इसके साथ ही चंबल सैंक्चुरी में लकड़बग्घा, तेंदुआ, काला हिरण, सांभर भी मौजूद हैं.
संकटग्रस्त पक्षियों की जीवनीदायनी बनी चंबल नदी: आगरा के पर्यावरणविद और पक्षी विशेषज्ञ डॉ. केपी सिंह बताते हैं कि देश की एक मात्र ऐसी नदी चंबल है, जिसमें इंडस्ट्रियल प्रदूषण नहीं है. सबसे शुद्ध और निर्मल चंबल बहती है. जिसकी वजह से चंबल का जैविक महत्व अधिक हो गया है. यहां पर जल प्रदूषण नहीं है. इसलिए, यहां पर संकटग्रस्त जलीय जीवों के साथ ही संकटग्रस्त पक्षियों के लिए का आशियाना भी चंबल बन रही है. जिसकी वजह से ही चंबल नदी का पारिस्थितिकी तंत्र समय के साथ विकसित हो रहा है. पक्षी विशेषज्ञ डॉ. केपी सिंह बताते हैं कि चंबल नदी का पानी प्रदूषित नहीं है. इसलिए, हर साल चंबल में देश और दुनियां से पक्षी पहुंचते हैं. इसमें इंडियन स्कीमर पक्षी शामिल है. जो संकटग्रस्त पक्षी हैं, जो बेहद सुंदर है. इंडियन स्कीमर इस मौसम में आता ही नहीं बल्कि यहां पर ब्रीड भी करता है. इसके साथ ही प्रवासी पक्षी यहां पर खूब कलरव करते हैं. कहें तो संकटगस्त जलीय जीव ही नहीं, संकटग्रस्त पक्षियों की जीवनदायनी भी चंबल नदी बन रही है.
चंबल सेंचुरी में कहां और क्या देखें
- यूपी के जालौन, इटावा और औरैया जिले की सीमा पर सिंडौस के पास एक क्षेत्र पचनदा है, जो मध्य प्रदेश राज्य के भिंड जिले की सीमा के पास भी है. जहां पर पर्यटक पांच नदियां चबंल, कुंवारी, पहुज, यमुना और सिंध का संगम होता है. ये क्षेत्र डॉल्फ़िन के लिए एक समृद्ध निवास स्थान है.
- चंबल सैंक्चुरी की बात करें तो आगरा, इटावा, औरैया में सैकड़ों प्रजातियों की देशी-विदेशी चिडियों का कलरव रहता है.
- चंबल में दुनिया के 80 फीसद घड़ियालों का बसेरा है. चंबल में उदी, इटावा चंबल तट पर बेहद ही रोमांचकारी नजारा देखने को मिलता है.
- आठ किस्म के कछुए चंबल में देखने को मिलते हैं. जो दुर्लभ प्रजाति के हैं.
- डाल्फिन और मगरमच्छ आगरा के पिनाहट व नदगंवा में भी दिखते हैं. इसके साथ ही मप्र के मुरैना में डाल्फिन प्वॉइंट भी है.
- मुरैना (मध्यप्रदेश) के देवरी में घडिय़ाल, मगरमच्छ और कछुए की हेचरी भी होती है.
- ब्लैक बेलिएड टर्नस, सारस, क्रेन, स्टार्क पक्षी इन नदी में कलरव करते हैं. इंडियन स्कीमर पक्षी तो सिर्फ चंबल में ही पाया जाता है.
चंबल सेंचुरी कैसे पहुंचें
- आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे से चंबल सैंक्चुरी की दूरी लगभग 60 किलोमीटर की है.
- आगरा-बाह मार्ग से 60 किलोमीटर की दूरी है. यहां पर कार व बसों से जा सकते हैं.
- आगरा−झांसी रेलमार्ग पर धाैलपुर स्टेशन पर उतरकर भी यहां से चंबल सेंक्चुरी तक पहुंचा जा सकता है. हालांकि, यहां सीमित ही होटल्स हैं. इसलिए, आगरा में आकर होटल में ठहरें. इसके टैक्सी से धाैलपुर या पिनाहट जाकर जाएं. सड़क मार्ग से आगरा से धौलपुर और पिनाहट की दूरी 60 किलोमीटर है.
ताज महोत्सव की फोटोग्राफी प्रतियोगिता होगी चंबल में : चंबल सैंक्चुरी प्रोजेक्ट की डीएफओ चांदनी सिंह ने बताया कि इस बार ताज महोत्सव की दो एक्टिविटी चंबल नदी में होगी. जिसमें एक फोटोग्राफी और बोटिंग एक्टिविटी शामिल हैं. इसकी पूरी प्लानिंग की गई है. जिससे आगरा के नए पर्यटक स्थल का प्रचार प्रसार करने के साथ ही ईको टूरिज्म को बढावाया जा सके.
आगरा में चंबल नदी के किनारे 60 वन समितियां: चंबल नदी में मगरमच्छ, घड़ियाल और डाॅल्फिन का कुनबा बढ़ने के साथ ही बीहड़ में वन्यजीवों का कुनबा बढ़े, इस दिशा में भी काम किया जा रहा है. जिससे वन्यजीव और मानव का संघर्ष कम हो. इसलिए आगरा जिले में चंबल नदी के किनारे वाली 49 ग्राम पंचायतों के चरवाहों पर हमले बढ़ने पर 60 वन समितियां बनाई गईं. इससे वन्यजीव और मानव का टकराव भी कम हुआ है.
मुरैना से पचनदा तक संकटग्रस्त जलीय जीवों की अठखेलियां: चंबल नदी 435 किलोमीटर लंबी है. चंबल सैंक्चुरी प्रोजेक्ट में मुरैना से पचनदा तक 248 किलोमीटर का एरिया ही जलीय जीवों के लिए सबसे महफूज जगह है. विशेषज्ञों के मुताबिक, श्योपुर से मुरैना तक चम्बल में 200 किलो मीटर तक का एरिया उथला है, जिसमें घड़ियाल तथा मगरमच्छ अच्छी तरह से अठखेलियां नहीं कर सकते हैं. जबकि, मप्र के मुरैना से उप्र के औरैया स्थित पचनदा तक चंबल की गहराई अधिक है. इसलिए यहां जलीय जीव खूब अठखेलियां करते हैं.
विकास से मिलेगा रोजगार: पिनाहट निवासी हिमाशु गुप्ता कहते हैं कि पहले चंबल के नाम से घबराते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं है. चंबल में अब कोई दशहत नहीं हैं. चंबल की वादियां बदल गईं हैं. अब चंबल में घड़ियाल, मगरमच्छ, बटागुर कछुआ और डाॅल्फिन के साथ ही रंग-बिरेंगे प्रवासी पक्षी हैं. सरकार यहां विकास कार्य कराएं. यहां पर परिवहन की व्यवस्था बेहतर की जाए तो यहां पर पर्यटक आने लगेंगे, जो यहां पर रोजगार का बडा जरिया हो सकता है. पिनाहट निवासी कल्ला राम वर्मा ने बताया कि अभी यूपी और मप्र को जोड़ने के लिए चंबल पर पुल बनाने काम चल रहा है. जब ये पुल बन जाएगा तो यहां पर यातायात की बेहतर व्यवस्था होगी. चंबल नदी में जब लोग घड़ियाल, मगरमच्छ, बटागुर कछुआ और डाॅल्फिन देखने आएंगे तो यहां पर रोजगार के अवसर मिलेंगे. जिससे युवा और लोग नौकरी की तलाश में गुजरात, मुम्बई और दिल्ली नहीं जाएंगे.
पर्यटक बोले-सुविधाएं बढ़ें : दिल्ली निवासी पर्यटक निशु ने बताया कि परिवार के साथ चंबल नदी में घड़ियाल, मगरमच्छ, बटागुर कछुआ और डाॅल्फिन देखने आईं हूं. यहां बहुत अच्छा लग रहा है. स्टीमर से चंबल नदी में गए तो इसका अलग ही रोमांच रहा. बच्चों ने पास से घड़ियाल, मगरमच्छ, बटागुर कछुआ और डाॅल्फिन देखीं हैं. यहां पर सुविधांए बढें. पर्यटक पल्लवी ने कहा कि मैं अपने दोस्तों को चंबल में देखे घड़ियाल, मगरमच्छ, बटागुर कछुआ और डाॅल्फिन के बारे में बताउंगी. पहली बार मैंने घड़ियाल, मगरमच्छ, बटागुर कछुआ और डाॅल्फिन देखी है.
चंबल पर किया जाए बड़े आयोजन: पर्यटक राजू तोमर ने बताया कि चंबल नदी अब बदल रही है. चंबल में आज घड़ियाल, मगरमच्छ, बटागुर कछुआ और डाॅल्फिन की संख्या हर साल बढ़ने से पर्यटकों के लिए नया पर्यटक स्थल मिल रहा है. सरकार यहां पर परिवहन की बेहतर व्यवस्था करे. इसके साथ ही पूर्व में जिला प्रशासन और चंबल सैंक्चुरी प्रशासन की ओर से यहां पर वर्ड फेस्टिवल किया गया था, जो एक साल ही हुआ. जबकि, चंबल नदी और आगरा में टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए यहां पर हर साल बड़े आयोजन किए जाएं. जिससे ईको टूरिज्म का प्रचार प्रसार किया जाए. पर्यटक योगेश दुबे ने बताया कि यहां पर घड़ियाल, मगरमच्छ, बटागुर कछुआ और डाॅल्फिन की संख्या खूब है. जिन्हें देखना एक अलग ही रोमांच है. सरकार को यहां पर सुविधा बढ़ाने पर जोर देना चाहिए.
सरकार करें चंबल सफारी का प्रचार प्रसार : चंबल वाइल्ड लाइफ सफारी के डायरेक्टर मुनेंद्र पाल सिंह ने बताया कि सरकार की ओर से चंबल और ईको टूरिज्म को लेकर प्रचार प्रसार पर जोर देना चाहिए. इसके साथ ही चंबल क्षेत्र में सड़के बेहतर की जाएं. बाह से आगरा तक साइन बोर्ड लगाए जाएं. इसके साथ फेस्टिवल किए जाएं. इसके साथ ही नो प्लास्टिक जोन बनाया जाए. जिससे उन्हें पर्यटन का माहौल बने. बताया कि हम चार दिन का टूर पैकेज दे रहे हैं. जिसमें 85 प्रतिशत तक विदेशी पर्यटक होते हैं. चार दिन के टूर पैकेज में चंबल में बोटिंग, चंबल में नेचरल ट्रैक पर वॉक, बटेश्वर स्थित महादेव मंदिर श्रंखला, गांव होली पुरा में हेरिटेज वॉक में हवेलियां की सैर, जीप सफारी, हॉर्स सफारी कराई जाती है. इसके साथ ही सारस क्रेन कंजरवेशन के लिए समान पक्षी बिहार और लाइन सफारी घुमाते हैं. चंबल सफारी का प्रचार-प्रसार करे तो चंबल में टूरिज्म बढेगा, विदेशी पर्यटक आएंगे.
दस साल में ढाई गुना बढ़े घड़ियाल: चंबल नंदी में घड़ियाल संरक्षण परियोजना की शुरुआत 1981 में शुरू की गई थी. जिसमें राजस्थान, मप्र और उप्र के राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य के अधिकारियों ने घड़ियाल संरक्षण परियोजना पर काम किया. जिसकी वजह से ही चंबल नदी में लगातार घड़ियालों का परिवार बढ़ रहा है तो मगरमच्छ का कुनबा भी हर साल बढ़ रहा है. यदि हम बीते दस साल के आंकड़ों की बात करें तो राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के संयुक्त सर्वे में करीब ढाई गुना घड़ियाल बढ़े हैं.
आंकड़े पर एक नजर
सन | घड़ियाल |
2012 | 905 |
2013 | 948 |
2014 | 1088 |
2015 | 1151 |
2016 | 1162 |
2017 | 1255 |
2018 | 1681 |
2019 | 1876 |
2020 | 1859 |
2021 | 2176 |
एक नई चंबल की दिशा: अब चंबल का भविष्य उज्जवल है, क्योंकि चंबल अब डकैत की पनाहगाह नहीं, बल्कि संकटग्रस्त जलीय जीव और संकटग्रस्त पक्षियों की जीवनदायनी बन गई है. चंबल नदी में इनका संरक्षण भी अच्छी तरह से किया जा रहा है, जिसकी वजह से चंबल नदी में घडियाल, मगरमच्छ, बटागुर कछुआ और अन्य का कुनबा बढा रहा है. ये सकारात्मक परिणाम है. सरकार की ओर से चंबल में संकटग्रस्त जलीय जीवों के संरक्षण के लिए आगे एक स्थायी और प्राकृतिक पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित करना चाहिए. इसमें सरकार का ईको टूरिज्म का कॉन्सेप्ट उम्मीद की किरण है. जिससे आगरा में नया पर्यटक स्थल बनेगा. इसके साथ ही रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे.