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गंगा स्वच्छता के लिए होती है कछुओं की रिहाई, जानिए बनारस में कैसे पाले जा रहे खास नस्ल के कछुए

काशी में गंगा स्वच्छता के लिए हर साल बड़े पैमाने पर कछुओं की रिहाई होती है. इसके लिए वाराणसी में एक सेंटर बनाया गया है, चलिए जानते हैं इस बारे में.

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Published : Jun 23, 2023, 7:24 PM IST

वाराणसी: वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात छोड़कर वाराणसी पहुंचे तो प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्होंने गंगा की स्वच्छता के लिए वाराणसी से बड़ा बयान जारी किया. मां गंगा ने बुलाया है और मां गंगा के निर्मलीकरण और स्वच्छता के लिए प्रयास शुरू होंगे. शायद यही वजह है कि सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा को लेकर कई प्लान तैयार किए और गंगा की स्वच्छता पहले से कहीं बेहतर भी हो चली है, लेकिन गंगा निर्मलीकरण अभियान और गंगा की स्वच्छता को धार देने के लिए सिर्फ अकेले प्रधानमंत्री मोदी नहीं बल्कि छोटे-छोटे कुछ ऐसे जीव भी हैं जो गंगा को स्वच्छ निर्मल और अविरल बनाने में जुटे हुए हैं. यह जीव दिखने में भले ही छोटे बड़े या अन्य कई आकार के हो लेकिन इनके प्रयासों से गंगा में फेंकी जा रही अधजली लाशें, सड़े हुए मांस और फूल माला के साथ पानी की वजह से इकट्ठा होने वाली काई साफ हो रही है. यह जीव कोई और नहीं बल्कि वह कछुए हैं. इनको वाराणसी के सारनाथ स्थित कछुआ पुनर्वास और हैचिंग केंद्र में पाला जाता है, या यूं कहें इनके अंडों से निकलने का इंतजार यहां पर होता है. इसके बाद इन्हें बड़ा होने के साथ ही गंगा में छोड़कर गंगा की स्वच्छता में एक मजबूती प्रदान करने का काम होता है.

काशी में गंगा स्वच्छता के लिए पाले जा रहे कछुए.
दरअसल गंगा की अविरलता, निर्मलता को बनाए रखने के साथ ही पर्यावरण संतुलन को बनाए रखना बेहद महत्वपूर्ण है. यही वजह है कि गंगा में किसी तरह के केमिकल का इस्तेमाल ना करते हुए गंगा के पानी को स्वच्छ बनाए रखने का प्रयास लगातार वैज्ञानिक अपने स्तर पर कर रहे हैं और इसके लिए वाराणसी में समय-समय पर कई बड़ी योजनाएं केंद्र सरकार लेकर भी आती रहती हैं और इसी योजना के तहत वाराणसी में गंगा स्वच्छता अभियान को धार देने के लिए 1987 में सारनाथ क्षेत्र में कछुआ पुनर्वास केंद्र की शुरुआत की गई थी.
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मांसाहारी और शाकाहारी दोनों तरह के कछुओं को पाला जाता है.
इस पुनर्वास केंद्र की स्थापना का उद्देश्य ही गंगा में अधजली लाशों, सड़े हुए मांस, मरी हुई मछलियों और जीव जंतु समेत फूल माला निर्माल्य समेत काई की सफाई के लिए इन कछुओं को तैयार करना था. वन्यजीव प्रभाग की टीम इटावा और आगरा में चंबल के तटीय इलाकों से शाकाहारी और मांसाहारी कछुओं के अंडों को लाकर यहां पर है. हेचरिंग के माध्यम से कछुओं की नई पीढ़ी तैयार करती है. अंडों से निकलने के बाद लगभग 2 साल तक की निगरानी में यह कछुए वाराणसी के इसी पुनर्वास केंद्र में बड़े होते हैं और इसके बाद इन्हें गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के लिए छोड़ दिया जाता है. इस पुनर्वास केंद्र से लगभग 10 सालों के अंदर 4600 से ज्यादा सिर्फ मांसाहारी कछुओं को ही गंगा में छोड़ा गया है, जबकि लगभग 3000 से ज्यादा शाकाहारी कछुओं की प्रजातियों को भी गंगा नदी में छोड़कर गंगा की स्वच्छता में बड़ा रोल अदा करने की कोशिश इन कछुओं के जरिए की जा रही है.इस पुनर्वास केंद्र में कछुओं को देखरेख वन विभाग संग भारतीय वन्यजीव संस्थान उत्तराखंड की एक्सपर्ट टीम करती है. एक्सपर्ट टीम में शामिल प्रोजेक्ट असिस्टेंट और भारतीय वन्यजीव संस्थान के बायोलॉजिस्ट और कछुआ पर रिसर्च करने वाले देवदुलाल जाना कहते हैं कि विश्व में कछुओं की लगभग 230 प्रजातियां पाई जाती है, लेकिन भारत में ऐसी 33 प्रजातियां हैं. इनमें से 13 प्रजाति के कछुए अकेले उत्तर प्रदेश में ही मिलते हैं जिनमें से 7 को मांसाहारी प्रजाति के तौर पर चिन्हित किया गया है और उनके अंडों को केंद्र पर हैचिंग के लिए विशेष तौर पर लाया जाता है.

यमुना, चंबल नदी के तटीय इलाके से कछुओं के अंडों को बड़े ही सावधानी से संकलित करके पुनर्वास केंद्र में लाकर एक ऐसे कमरे में रखा जाता है जो पूरी तरह से इन कछुओं के बाहर निकलने के अनुकूल है. वन्य जीव प्रभाग की टीम करीब 70 दिनों तक इन अंडों की निगरानी करती है जमीन में पानी भरकर उसके ऊपर ईट रखकर लकड़ी के बक्सों में रेत के अंदर अंडों को दबाकर रखा जाता है. 27 से 30 डिग्री तापमान पर हेचरिंग का काम पूरा किया जाता है. एक बॉक्स में 30 अंडों को ही रखा जाता है, जून से जुलाई के बीच इन अंडों से बच्चे बाहर आते हैं और फिर उसके बाद इन्हें कृत्रिम तालाब में रखकर इनकी निगरानी की जाती है और 2 वर्ष तक इंतजार करने के बाद इनके बड़ा होने के पश्चात इन्हें गंगा नदी में छोड़ा जाता है.

कछुआ पुनर्वास केंद्र के प्रभारी निशिकांत सोनकर का कहना है कि हर साल आगरा और इटावा से 2,000 कछुए के अंडे यहां लाए जाते हैं और इनका पालन पोषण करने के बाद इनको गंगा नदी में सफाई के लिए छोड़ दिया जाता है. बीते लगभग 10 सालों में इस पुनर्वास केंद्र से 4636 कछुओं को गंगा में छोड़ा गया है और इस वर्ष भी लगभग 300 से ज्यादा कछुए के बच्चे अंडों से निकल चुके हैं जिनका पालन पोषण शुरू हो गया है.

आंकड़ों में कछुए

वर्ष
अंडे गंगा में छोड़े गए
2012-13 2000 831
2013-14
2000 1066
2014-15
2000 815
2015-16
350 215
2016-17
2000 458
2017-18 132 52
2018-19
1860 494
2019-20
2000 615
2022-23 2000 300 (अब तक)


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वाराणसी: वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात छोड़कर वाराणसी पहुंचे तो प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्होंने गंगा की स्वच्छता के लिए वाराणसी से बड़ा बयान जारी किया. मां गंगा ने बुलाया है और मां गंगा के निर्मलीकरण और स्वच्छता के लिए प्रयास शुरू होंगे. शायद यही वजह है कि सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा को लेकर कई प्लान तैयार किए और गंगा की स्वच्छता पहले से कहीं बेहतर भी हो चली है, लेकिन गंगा निर्मलीकरण अभियान और गंगा की स्वच्छता को धार देने के लिए सिर्फ अकेले प्रधानमंत्री मोदी नहीं बल्कि छोटे-छोटे कुछ ऐसे जीव भी हैं जो गंगा को स्वच्छ निर्मल और अविरल बनाने में जुटे हुए हैं. यह जीव दिखने में भले ही छोटे बड़े या अन्य कई आकार के हो लेकिन इनके प्रयासों से गंगा में फेंकी जा रही अधजली लाशें, सड़े हुए मांस और फूल माला के साथ पानी की वजह से इकट्ठा होने वाली काई साफ हो रही है. यह जीव कोई और नहीं बल्कि वह कछुए हैं. इनको वाराणसी के सारनाथ स्थित कछुआ पुनर्वास और हैचिंग केंद्र में पाला जाता है, या यूं कहें इनके अंडों से निकलने का इंतजार यहां पर होता है. इसके बाद इन्हें बड़ा होने के साथ ही गंगा में छोड़कर गंगा की स्वच्छता में एक मजबूती प्रदान करने का काम होता है.

काशी में गंगा स्वच्छता के लिए पाले जा रहे कछुए.
दरअसल गंगा की अविरलता, निर्मलता को बनाए रखने के साथ ही पर्यावरण संतुलन को बनाए रखना बेहद महत्वपूर्ण है. यही वजह है कि गंगा में किसी तरह के केमिकल का इस्तेमाल ना करते हुए गंगा के पानी को स्वच्छ बनाए रखने का प्रयास लगातार वैज्ञानिक अपने स्तर पर कर रहे हैं और इसके लिए वाराणसी में समय-समय पर कई बड़ी योजनाएं केंद्र सरकार लेकर भी आती रहती हैं और इसी योजना के तहत वाराणसी में गंगा स्वच्छता अभियान को धार देने के लिए 1987 में सारनाथ क्षेत्र में कछुआ पुनर्वास केंद्र की शुरुआत की गई थी.
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मांसाहारी और शाकाहारी दोनों तरह के कछुओं को पाला जाता है.
इस पुनर्वास केंद्र की स्थापना का उद्देश्य ही गंगा में अधजली लाशों, सड़े हुए मांस, मरी हुई मछलियों और जीव जंतु समेत फूल माला निर्माल्य समेत काई की सफाई के लिए इन कछुओं को तैयार करना था. वन्यजीव प्रभाग की टीम इटावा और आगरा में चंबल के तटीय इलाकों से शाकाहारी और मांसाहारी कछुओं के अंडों को लाकर यहां पर है. हेचरिंग के माध्यम से कछुओं की नई पीढ़ी तैयार करती है. अंडों से निकलने के बाद लगभग 2 साल तक की निगरानी में यह कछुए वाराणसी के इसी पुनर्वास केंद्र में बड़े होते हैं और इसके बाद इन्हें गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के लिए छोड़ दिया जाता है. इस पुनर्वास केंद्र से लगभग 10 सालों के अंदर 4600 से ज्यादा सिर्फ मांसाहारी कछुओं को ही गंगा में छोड़ा गया है, जबकि लगभग 3000 से ज्यादा शाकाहारी कछुओं की प्रजातियों को भी गंगा नदी में छोड़कर गंगा की स्वच्छता में बड़ा रोल अदा करने की कोशिश इन कछुओं के जरिए की जा रही है.इस पुनर्वास केंद्र में कछुओं को देखरेख वन विभाग संग भारतीय वन्यजीव संस्थान उत्तराखंड की एक्सपर्ट टीम करती है. एक्सपर्ट टीम में शामिल प्रोजेक्ट असिस्टेंट और भारतीय वन्यजीव संस्थान के बायोलॉजिस्ट और कछुआ पर रिसर्च करने वाले देवदुलाल जाना कहते हैं कि विश्व में कछुओं की लगभग 230 प्रजातियां पाई जाती है, लेकिन भारत में ऐसी 33 प्रजातियां हैं. इनमें से 13 प्रजाति के कछुए अकेले उत्तर प्रदेश में ही मिलते हैं जिनमें से 7 को मांसाहारी प्रजाति के तौर पर चिन्हित किया गया है और उनके अंडों को केंद्र पर हैचिंग के लिए विशेष तौर पर लाया जाता है.

यमुना, चंबल नदी के तटीय इलाके से कछुओं के अंडों को बड़े ही सावधानी से संकलित करके पुनर्वास केंद्र में लाकर एक ऐसे कमरे में रखा जाता है जो पूरी तरह से इन कछुओं के बाहर निकलने के अनुकूल है. वन्य जीव प्रभाग की टीम करीब 70 दिनों तक इन अंडों की निगरानी करती है जमीन में पानी भरकर उसके ऊपर ईट रखकर लकड़ी के बक्सों में रेत के अंदर अंडों को दबाकर रखा जाता है. 27 से 30 डिग्री तापमान पर हेचरिंग का काम पूरा किया जाता है. एक बॉक्स में 30 अंडों को ही रखा जाता है, जून से जुलाई के बीच इन अंडों से बच्चे बाहर आते हैं और फिर उसके बाद इन्हें कृत्रिम तालाब में रखकर इनकी निगरानी की जाती है और 2 वर्ष तक इंतजार करने के बाद इनके बड़ा होने के पश्चात इन्हें गंगा नदी में छोड़ा जाता है.

कछुआ पुनर्वास केंद्र के प्रभारी निशिकांत सोनकर का कहना है कि हर साल आगरा और इटावा से 2,000 कछुए के अंडे यहां लाए जाते हैं और इनका पालन पोषण करने के बाद इनको गंगा नदी में सफाई के लिए छोड़ दिया जाता है. बीते लगभग 10 सालों में इस पुनर्वास केंद्र से 4636 कछुओं को गंगा में छोड़ा गया है और इस वर्ष भी लगभग 300 से ज्यादा कछुए के बच्चे अंडों से निकल चुके हैं जिनका पालन पोषण शुरू हो गया है.

आंकड़ों में कछुए

वर्ष
अंडे गंगा में छोड़े गए
2012-13 2000 831
2013-14
2000 1066
2014-15
2000 815
2015-16
350 215
2016-17
2000 458
2017-18 132 52
2018-19
1860 494
2019-20
2000 615
2022-23 2000 300 (अब तक)


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