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बच्चों के लिए स्वर्णप्राशन है बेहद जरूरी, पुष्य-नक्षत्र में होता है स्वर्णप्राशन: डॉ. भावना द्विवेदी

क्षेत्रीय आयुर्वेद एवं यूनानी अधिकारी डॉ. भावना द्विवेदी का कहना है कि आयुर्वेद का स्वर्णप्राशन बच्चों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. यह बच्चों को न केवल बलवान बल्कि बुद्धिमान भी बनाता है. बच्चों की इम्यूनिटी बढ़ाने के साथ-साथ उनकी बौद्धिक क्षमता को बढ़ाने के लिए स्वर्णप्राशन जरूर कराना चाहिए.

बच्चों के लिए स्वर्णप्राशन है बेहद जरूरी
बच्चों के लिए स्वर्णप्राशन है बेहद जरूरी
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Published : Dec 16, 2021, 1:55 PM IST

वाराणसी: आयुर्वेद का स्वर्णप्राशन बच्चों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. यह बच्चों को न केवल बलवान बल्कि बुद्धिमान भी बनाता है. आयुर्वेद महाविद्यालय में बच्चों का स्वर्णप्राशन निःशुल्क कराया जाता है. बच्चों की इम्यूनिटी बढ़ाने के साथ-साथ उनकी बौद्धिक क्षमता को बढ़ाने के लिए स्वर्णप्राशन जरूर कराना चाहिए. यह कहना है क्षेत्रीय आयुर्वेद एवं यूनानी अधिकारी डॉ. भावना द्विवेदी का.

क्या है स्वर्णप्राशन ?

डॉ. भावना बताती हैं कि आयुर्वेद से जुड़े हमारे ऋषि मुनियों ने हजारों वर्ष पूर्व वायरस और बैक्टीरिया जनित बीमारियों से लड़ने के लिए एक ऐसा रसायन तैयार किया था. जिसे स्वर्णप्राशन कहा जाता है. इसे शुद्ध स्वर्णभस्म के निश्चित अनुपात में गाय के घी व शहद के साथ ड्रॉप के रूप में तैयार किया जाता है. यह बच्चों की मेधा शक्ति बढ़ाने वाला भी होता है.

कश्यप व सुश्रुत संहिता में है उल्लेख-

डॉ. भावना द्विवेदी बताती हैं कि स्वर्णप्राशन संस्कार का उल्लेख कश्यप संहिता और सुश्रुत संहिता में भी है. इसका प्रयोग प्राचीन समय से होता आ रहा है. कर्नाटक विश्वविद्यालय में वर्ष 2012 में हुए शोध से यह साफ हो चुका है कि चिकित्सक की देखरेख में किया गया स्वर्णप्राशन बच्चों के लिए पूरी तरह सुरक्षित है. गोरखपुर में भी देखने को आया कि जिन बच्चों ने स्वर्णप्राशन कराया था उनको इंसेफेलाइटिस का खतरा नहीं था. लिहाजा वाराणसी समेत प्रदेश के 8 आयुर्वेद महाविद्यालयों में एक बार फिर इसका प्रयोग शुरू किया गया है, जिसके सार्थक परिणाम भी आ रहे हैं. वह बताती हैं कि स्वर्ण भस्म शरीर के प्रत्येक कोशिका में प्रवेश कर वहां के असंतुलन या विकृति को सही करता है. यह बच्चों में होने वाली मौसमी बीमरियों से तो रक्षा करता ही है साथ ही उनको बेहतर स्वास्थ्य प्रदान करने में भी अच्छी भूमिका निभाता है.

पुष्य-नक्षत्र में होता है स्वर्णप्राशन

आयुर्वेद महाविद्यालय के बाल रोग विभाग की वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. रुचि तिवारी बताती हैं कि स्वर्णप्राशन पुष्य-नक्षत्र में करने से चमत्कारी लाभ होते हैं. क्योंकि इस दिन ग्रहों की शक्तियां ज्यादा होती हैं. पुष्य नक्षत्र हर महीने में एक बार आता है. इसलिए प्रत्येक माह उस रोज महाविद्यालय में 16 वर्ष तक के बच्चों को यह सुविधा निःशुल्क प्रदान की जाती है. वह बताती हैं कि वर्ष 2019 से महाविद्यालय में प्रत्येक माह कैम्प लगाया जाता है और अब तक यहां 3 हजार से अधिक बच्चों का स्वर्णप्राशन किया जा चुका है. कोरोना काल में स्वर्णप्राशन की प्रक्रिया थम गई थी, लेकिन अब यह पुनः शुरू कर दी गई है.

स्वर्णप्राशन के लाभ

-स्वर्णप्राशन बीमार या विकृत कोशिकाओं को फिर से सक्रिय कर देता है.

- रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.

- शरीर से अनेक प्रकार के विषैले पदार्थों को दूर करता है.

- याददाश्त और एकाग्रता को बढ़ाता है, जो अध्ययनरत बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.

-शरीर में ब्लड़ सर्कुलेशन को बढ़ाता है और हृदय को शक्ति देता है.

इसे भी पढे़ं- लखनऊ: राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय के शिक्षक और छात्र बताएंगे कैसे रहें स्वस्थ

वाराणसी: आयुर्वेद का स्वर्णप्राशन बच्चों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. यह बच्चों को न केवल बलवान बल्कि बुद्धिमान भी बनाता है. आयुर्वेद महाविद्यालय में बच्चों का स्वर्णप्राशन निःशुल्क कराया जाता है. बच्चों की इम्यूनिटी बढ़ाने के साथ-साथ उनकी बौद्धिक क्षमता को बढ़ाने के लिए स्वर्णप्राशन जरूर कराना चाहिए. यह कहना है क्षेत्रीय आयुर्वेद एवं यूनानी अधिकारी डॉ. भावना द्विवेदी का.

क्या है स्वर्णप्राशन ?

डॉ. भावना बताती हैं कि आयुर्वेद से जुड़े हमारे ऋषि मुनियों ने हजारों वर्ष पूर्व वायरस और बैक्टीरिया जनित बीमारियों से लड़ने के लिए एक ऐसा रसायन तैयार किया था. जिसे स्वर्णप्राशन कहा जाता है. इसे शुद्ध स्वर्णभस्म के निश्चित अनुपात में गाय के घी व शहद के साथ ड्रॉप के रूप में तैयार किया जाता है. यह बच्चों की मेधा शक्ति बढ़ाने वाला भी होता है.

कश्यप व सुश्रुत संहिता में है उल्लेख-

डॉ. भावना द्विवेदी बताती हैं कि स्वर्णप्राशन संस्कार का उल्लेख कश्यप संहिता और सुश्रुत संहिता में भी है. इसका प्रयोग प्राचीन समय से होता आ रहा है. कर्नाटक विश्वविद्यालय में वर्ष 2012 में हुए शोध से यह साफ हो चुका है कि चिकित्सक की देखरेख में किया गया स्वर्णप्राशन बच्चों के लिए पूरी तरह सुरक्षित है. गोरखपुर में भी देखने को आया कि जिन बच्चों ने स्वर्णप्राशन कराया था उनको इंसेफेलाइटिस का खतरा नहीं था. लिहाजा वाराणसी समेत प्रदेश के 8 आयुर्वेद महाविद्यालयों में एक बार फिर इसका प्रयोग शुरू किया गया है, जिसके सार्थक परिणाम भी आ रहे हैं. वह बताती हैं कि स्वर्ण भस्म शरीर के प्रत्येक कोशिका में प्रवेश कर वहां के असंतुलन या विकृति को सही करता है. यह बच्चों में होने वाली मौसमी बीमरियों से तो रक्षा करता ही है साथ ही उनको बेहतर स्वास्थ्य प्रदान करने में भी अच्छी भूमिका निभाता है.

पुष्य-नक्षत्र में होता है स्वर्णप्राशन

आयुर्वेद महाविद्यालय के बाल रोग विभाग की वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. रुचि तिवारी बताती हैं कि स्वर्णप्राशन पुष्य-नक्षत्र में करने से चमत्कारी लाभ होते हैं. क्योंकि इस दिन ग्रहों की शक्तियां ज्यादा होती हैं. पुष्य नक्षत्र हर महीने में एक बार आता है. इसलिए प्रत्येक माह उस रोज महाविद्यालय में 16 वर्ष तक के बच्चों को यह सुविधा निःशुल्क प्रदान की जाती है. वह बताती हैं कि वर्ष 2019 से महाविद्यालय में प्रत्येक माह कैम्प लगाया जाता है और अब तक यहां 3 हजार से अधिक बच्चों का स्वर्णप्राशन किया जा चुका है. कोरोना काल में स्वर्णप्राशन की प्रक्रिया थम गई थी, लेकिन अब यह पुनः शुरू कर दी गई है.

स्वर्णप्राशन के लाभ

-स्वर्णप्राशन बीमार या विकृत कोशिकाओं को फिर से सक्रिय कर देता है.

- रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.

- शरीर से अनेक प्रकार के विषैले पदार्थों को दूर करता है.

- याददाश्त और एकाग्रता को बढ़ाता है, जो अध्ययनरत बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.

-शरीर में ब्लड़ सर्कुलेशन को बढ़ाता है और हृदय को शक्ति देता है.

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