वाराणसी: काशी विश्वनाथ मंदिर के विकास के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने मंगलवार को जो बजट पेश किया है, उसमें 200 करोड़ रुपये विश्वनाथ मंदिर के लिए दिए गए हैं. ऐसे में वाराणसी के संतों में एक बार फिर बजट को लेकर रोष सामने आया है. संत संविधान और सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए कह रहे हैं कि सरकार धार्मिक कार्य में पैसा खर्च नहीं कर सकती.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने मंदिर के बजट पर खड़े किए सवाल
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मंदिर के लिए 200 करोड़ रुपए बजट दिए जाने पर सवाल खड़े किए. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा जिस मंदिर में दर्शन के लिए टिकट लगता हो, जिस मंदिर के प्रसाद को काउंटर लगाकर बेचा जाता हो, जिस मंदिर में दूसरे मंदिरों को तोड़कर फेंक दिया जा रहा हो, जिस मंदिर में तरह-तरह की समस्याएं पहले से ही व्याप्त है, वहां 200 करोड़ सरकारी बजट देने का क्या मतलब है.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि सवाल यह है सरकार किस कारण से इसमें पैसा लगा रही है. उन्होंने कहा कि मंदिरों में सरकारी पैसा जो लग रहा है वह बिल्कुल गलत है. उन्होंने बताया कि संविधान की धारा 27 के अनुसार सरकार धार्मिक काम में पैसा नहीं लगा सकती है, अगर सरकार धार्मिक कार्यों में पैसा लगा रही है, तो यह बिल्कुल गलत है और संविधान के विरुद्ध है.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि राम जी के मंदिर में सरकार का जो एक रुपया आया है, वह हमें स्वीकार नहीं है, हम उस रुपये को अस्वीकार कर रहे हैं क्योंकि सरकारी पैसा जिस खजाने में रखा जाता है, उसी खजाने में मांस की बिक्री का पैसा होता है, उसी खजाने में शराब की बिक्री का पैसा होता है, उसी खजाने में लोगों को सताकर लिए गए टैक्स का पैसा और न्यायालयों द्वारा दिए गए अर्थदंड का पैसा भी होता है. यह सारा पैसा उत्तम कार्य के लिए वर्जित माना गया है. भगवान की सेवा उत्तम कार्य है, इसमें इस तरह का कोई पैसा नहीं लग सकता है. जो लोग यह पैसा लगा रहे हैं, वह धर्म के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं.