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गंगा सप्तमी विशेष: समय के साथ बदल रहा मां गंगा का स्वरूप

पूरे देश में आज गंगा सप्तमी का पर्व मनाया जा रहा है. इसी दिन मान्यता है कि मां गंगा भागीरथ के बुलावे पर धरती पर आई थीं. तब से लेकर अबतक मां गंगा के रूप में काफी बदलाव आ चुका है. जलवायु में हो रहे परिवर्तन और बढ़ रही गर्मी ने मां गंगा को काफी समेट दिया है. धर्मनगरी वाराणसी में तो गंगा का वह स्वरूप देखने को मिलने लगा है, जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की थी.

गंगा सप्तमी विशेष
गंगा सप्तमी विशेष
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Published : May 18, 2021, 1:19 PM IST

वाराणसी: वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि वह शुभ दिन जब भागीरथ ने अपने पूर्वजों को तारने के लिए कठिन तपस्या के बाद मां गंगा को धरती पर बुलाया. यही वह दिन है जब मां गंगा ने धरती पर आकर हर किसी को तृप्त कर दिया और भागीरथ की तपस्या को भी सार्थक किया. हजारों सालों से मां गंगा न सिर्फ लोगों के पापों को धो रही हैं, बल्कि बहुत से लोगों की जीविका का साधन भी बनी हुई हैं, लेकिन समय के साथ ही गंगा का स्वरूप भी बदलता जा रहा है. एक वक्त था जब गंगा विकराल रूप के साथ बहा करती थीं, लेकिन अब जलवायु में हो रहे परिवर्तन और बढ़ रही गर्मी ने मां गंगा को काफी समेट दिया है. धर्मनगरी वाराणसी में तो मां गंगा का वह स्वरूप देखने को मिलने लगा है, जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की थी.

जानकारी देते नदी वैज्ञानिक बीडी त्रिपाठी

कई फीट घाटों से हुईं दूर

अप्रैल की शुरुआत और मई के आते-आते तक मां गंगा में कई जगहों पर रेत के टीले दिखाई दे रहे हैं, जबकि घाट से होकर बहने वाली गंगा कई घाटों को छोड़कर आगे बढ़ चुकी हैं. वैज्ञानिकों की मानें तो गंगा ने लगभग हर घाट को 40 से 50 फीट तक छोड़ दिया है, जिसकी वजह से घाटों के नीचे की सतह भी खोखली होती जा रही है. हर साल गंगा में पानी कम हो रहा है और मां गंगा जो दूसरों के कष्ट और पाप हरती थीं वह खुद तकलीफ में हैं.

सूख रहीं मोक्षदायिनी मां गंगा

गर्मी के मौसम में गंगा में पानी कम होना कोई नई बात नहीं है. हर साल गंगा का जलस्तर तेजी से कम हो जाता है और इस बार भी हालात कुछ ऐसे ही हैं. मई के महीने में गंगा के जल स्तर में भारी कमी देखी जा रही है. गंगा के 84 घाटों की लंबी श्रंखला के किनारे नाव से घूमने पर आपको गंगा का कम पानी साफ तौर पर दिखाई दे जाएगा. घाटों के नीचे से बहने वाली गंगा अब सीढ़ियों को छोड़कर दूर होती चली जा रही हैं. घाटों को छोड़कर गंगा और दूर हो गई हैं, जिसकी वजह से घाटों से गंगा की दूरी साफ तौर पर दिखाई भी दे रही है. हालात बिगड़ते जा रहे हैं.

गंगा के सूखने की वजह

इस बारे में यूपीए सरकार में गंगा निर्मलीकरण के लिए बनाई गई गंगा बेसिन अथॉरिटी के सदस्य रह चुके काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और नदी वैज्ञानिक बीडी त्रिपाठी का कहना है कि चार कारणों से गंगा का जलस्तर तेजी से घट रहा है.

हरिद्वार में नदियों को बांध में बांध कर रखना. 98 प्रतिशत जल वहीं पर रोक देने की वजह से गंगा में पानी रह नहीं गया है. जो पानी बचकर आगे आ भी रहा है, उसका इस्तेमाल दूसरे राज्यों की पानी की किल्लत को दूर करने के लिए किया जा रहा है. इसके अलावा सिंचाई के लिए भी कई राज्यों में गंगा के पानी का खूब दोहन हो रहा है. इसके अलावा चौथा और महत्वपूर्ण कारण है ग्राउंड वाटर लेवल के कम होने के बाद गंगा के पानी के बल पर इस को ऊपर उठाने की कोशिश किया जाना. यानी इन वजहों से गंगा का जलस्तर लगातार कम हो रहा है, जो निश्चित तौर पर चिंता का विषय है. यही वजह है कि पहले कानपुर, इलाहाबाद और वाराणसी में लगातार गंगा घाटों से दूर हो रही हैं. गंगा में रेत के टीले निकल आ रहे हैं जो आने वाले वक्त में गंगा के अस्तित्व को लेकर ही गंभीर परिणाम दिखा सकते हैं.

दुर्दशा के लिए कौन जिम्मेदार

फिलहाल गंगा सप्तमी के इस पावन पर्व पर मां गंगा की अधिवेशन निश्चित तौर पर चौंकाने वाली है. वह भी उस शहर काशी में जहां से खुद सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री ने भी वाराणसी से चुनाव लड़ने के दौरान मां गंगा के बुलावे पर ही काशी आने की बात कही थी, लेकिन अब बांधों में कैद में कब मुक्त होंगी और गंगा में कम हो रहा जलस्तर कब सामान में होगा. यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन यह तो निश्चित है कि आज जब मां गंगा का अवतरण दिवस पूरा देश मना रहा है तब मां गंगा की यह दुर्दशा हर किसी को विचलित जरूर कर रही है.

वाराणसी: वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि वह शुभ दिन जब भागीरथ ने अपने पूर्वजों को तारने के लिए कठिन तपस्या के बाद मां गंगा को धरती पर बुलाया. यही वह दिन है जब मां गंगा ने धरती पर आकर हर किसी को तृप्त कर दिया और भागीरथ की तपस्या को भी सार्थक किया. हजारों सालों से मां गंगा न सिर्फ लोगों के पापों को धो रही हैं, बल्कि बहुत से लोगों की जीविका का साधन भी बनी हुई हैं, लेकिन समय के साथ ही गंगा का स्वरूप भी बदलता जा रहा है. एक वक्त था जब गंगा विकराल रूप के साथ बहा करती थीं, लेकिन अब जलवायु में हो रहे परिवर्तन और बढ़ रही गर्मी ने मां गंगा को काफी समेट दिया है. धर्मनगरी वाराणसी में तो मां गंगा का वह स्वरूप देखने को मिलने लगा है, जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की थी.

जानकारी देते नदी वैज्ञानिक बीडी त्रिपाठी

कई फीट घाटों से हुईं दूर

अप्रैल की शुरुआत और मई के आते-आते तक मां गंगा में कई जगहों पर रेत के टीले दिखाई दे रहे हैं, जबकि घाट से होकर बहने वाली गंगा कई घाटों को छोड़कर आगे बढ़ चुकी हैं. वैज्ञानिकों की मानें तो गंगा ने लगभग हर घाट को 40 से 50 फीट तक छोड़ दिया है, जिसकी वजह से घाटों के नीचे की सतह भी खोखली होती जा रही है. हर साल गंगा में पानी कम हो रहा है और मां गंगा जो दूसरों के कष्ट और पाप हरती थीं वह खुद तकलीफ में हैं.

सूख रहीं मोक्षदायिनी मां गंगा

गर्मी के मौसम में गंगा में पानी कम होना कोई नई बात नहीं है. हर साल गंगा का जलस्तर तेजी से कम हो जाता है और इस बार भी हालात कुछ ऐसे ही हैं. मई के महीने में गंगा के जल स्तर में भारी कमी देखी जा रही है. गंगा के 84 घाटों की लंबी श्रंखला के किनारे नाव से घूमने पर आपको गंगा का कम पानी साफ तौर पर दिखाई दे जाएगा. घाटों के नीचे से बहने वाली गंगा अब सीढ़ियों को छोड़कर दूर होती चली जा रही हैं. घाटों को छोड़कर गंगा और दूर हो गई हैं, जिसकी वजह से घाटों से गंगा की दूरी साफ तौर पर दिखाई भी दे रही है. हालात बिगड़ते जा रहे हैं.

गंगा के सूखने की वजह

इस बारे में यूपीए सरकार में गंगा निर्मलीकरण के लिए बनाई गई गंगा बेसिन अथॉरिटी के सदस्य रह चुके काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और नदी वैज्ञानिक बीडी त्रिपाठी का कहना है कि चार कारणों से गंगा का जलस्तर तेजी से घट रहा है.

हरिद्वार में नदियों को बांध में बांध कर रखना. 98 प्रतिशत जल वहीं पर रोक देने की वजह से गंगा में पानी रह नहीं गया है. जो पानी बचकर आगे आ भी रहा है, उसका इस्तेमाल दूसरे राज्यों की पानी की किल्लत को दूर करने के लिए किया जा रहा है. इसके अलावा सिंचाई के लिए भी कई राज्यों में गंगा के पानी का खूब दोहन हो रहा है. इसके अलावा चौथा और महत्वपूर्ण कारण है ग्राउंड वाटर लेवल के कम होने के बाद गंगा के पानी के बल पर इस को ऊपर उठाने की कोशिश किया जाना. यानी इन वजहों से गंगा का जलस्तर लगातार कम हो रहा है, जो निश्चित तौर पर चिंता का विषय है. यही वजह है कि पहले कानपुर, इलाहाबाद और वाराणसी में लगातार गंगा घाटों से दूर हो रही हैं. गंगा में रेत के टीले निकल आ रहे हैं जो आने वाले वक्त में गंगा के अस्तित्व को लेकर ही गंभीर परिणाम दिखा सकते हैं.

दुर्दशा के लिए कौन जिम्मेदार

फिलहाल गंगा सप्तमी के इस पावन पर्व पर मां गंगा की अधिवेशन निश्चित तौर पर चौंकाने वाली है. वह भी उस शहर काशी में जहां से खुद सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री ने भी वाराणसी से चुनाव लड़ने के दौरान मां गंगा के बुलावे पर ही काशी आने की बात कही थी, लेकिन अब बांधों में कैद में कब मुक्त होंगी और गंगा में कम हो रहा जलस्तर कब सामान में होगा. यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन यह तो निश्चित है कि आज जब मां गंगा का अवतरण दिवस पूरा देश मना रहा है तब मां गंगा की यह दुर्दशा हर किसी को विचलित जरूर कर रही है.

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