वाराणसी: साधना का अर्थ आस्था से जुड़ा है, जो किसी न किसी रूप में हर मनुष्य में निहित है. ऐसे में कला भी साधना का एक प्रमुख तत्व है. जिसके माध्यम से ईश्वर प्राप्त मार्ग आसान व सुलभ हो जाता है. अगर किसी व्यक्ति का ईश्वर के प्रति आस्था चरम पर हो तो वह उसे अपने कर्म में भी ईश्वर के दर्शन होने लगते हैं. काशी में बड़े-बड़े संत व साधकों ने अपनी साधना व कर्म के दृढ़ इच्छाशक्ति से ईश्वर को प्राप्त किया. आज जहां विभिन्न मंदिरों में भगवान गणेश का विधि विधान से पूजा हो रहा थी, वहीं काशी के एक क्षेत्र में भगवान गणेश की आराधना तो हो रही थी लेकिन माध्यम दूसरा था. काशी के अस्सी क्षेत्र में रहने वाले भगवान गणेश के अनोखे भक्त और प्रसिद्ध चित्रकार विजय आंखें बंद कर अपने आराध्य श्री गणेश के चित्र कागज पर उतार रहे थे.
दरअसल, मूर्तिकार विजय मन से श्री गणेश के मंत्र का उच्चारण करते हुए और आराध्य का ध्यान कर बमुश्किल से एक या दो मिनट में भगवान की आकृति कैनवास पर उकेर देते हैं. इस कला से यह अपना नाम लिम्का बुक में दर्ज करा चुके हैं. इनकी पेंटिंग की प्रदर्शनी देश के कई हिस्सों में लग चुकी है. गणेश महोत्सव के पहले दिन बन्द आंखों 108 पेंटिंग बनाकर भगवान गणेश का पूजन प्रारंभ करते हैं.
विजय मूर्तिकार ने बताया यह हमारी साधना है, जब हम प्रभु की कलाअंजलि करते हुए प्रभु को हम जपते हैं तो जैसे लोग माला जपते हैं वैसे ही मैं प्रभु की 108 पेंटिंग बंद आंखों से बना कर उनका स्मरण करता हूं. इसे लेकर मुझे काफी अवार्ड मिले हैं. उन्होंने बताया कि मुझे काशी रत्न मिला है. साथ ही 56 घंटे तक लगातार पेंटिंग बनाने के लिए मेरा नाम लिम्का बुक में भी दर्ज हैं. मैं आगे भी प्रभु की सेवा ऐसे ही करना चाहता हूं.