वाराणसी: कोविड-19 की वजह से जनजीवन तो प्रभावित हुआ ही है, लेकिन कई परंपराएं भी टूटी हैं. महाराष्ट्र का गणेश उत्सव नहीं हुआ तो इस बार दुर्गा पूजा पर भी कोरोना का साया मंडरा रहा है. दुर्गा पूजा के बाद होने वाले महत्वपूर्ण और सनातन धर्म के सबसे बड़े त्योहार दशहरे पर भी कोविड-19 छाया दिखाई दे रही है. हर साल धर्म नगरी वाराणसी में डीजल लोकोमोटिव वर्कशॉप के मैदान पर होने वाले भव्य रावण दहन के आयोजन को इस बार कैंसिल कर दिया गया है.
हर साल यहां पर हजारों की भीड़ के बीच 75 फीट रावण, 65 फीट कुंभकरण और 60 फीट ऊंचे मेघनाथ के पुतले का दहन किया जाता था, लेकिन इस बार कोविड-19 की वजह से आयोजन कैंसिल कर दिया गया है. इस महामारी का सीधा असर एक तरफ जहां परंपराओं पर पड़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ आर्थिक रूप से बहुत से लोगों को चोट पहुंच रही है. लोगों में भी मायूसी है कि साल में एक बार होने वाला परंपरागत आयोजन इस बार नहीं होगा.
पुतले बनाने में खर्च होते थे दो लाख रुपये
वाराणसी के डीजल लोकोमोटिव वर्कशॉप में हर साल विजयादशमी के दिन रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के विशालकाय पुतले को जलाने की पुरानी परंपरा है. लंबे चौड़े पुतलों को बनाने के लिए लगभग 2 महीना पहले से ही मैदान में कारीगरों की एक टोली जुट जाती थी, लेकिन इस बार यहां सन्नाटा है. डीरेका हर साल औसतन रावण की ऊंचाई 75 फीट कुंभकरण 65 फीट और मेघनाथ के पुतले की ऊंचाई 60 फीट के आसपास रखता था. इन पुतलों को बनाने में लगभग 2 लाख से ज्यादा का खर्च होता था. जिसमें 2 कुंतल कागज, 25 लीटर पेंट, एक कुंतल मैदे की लेई और 90 से 100 के बीच लंबे बांस का इस्तेमाल होता था, लेकिन इस बार न पुतले बने न ही कुछ खर्च हुआ.
सोशल मीडिया के जरिए होगी कोशिश
आयोजन समिति का कहना है कि कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करते हुए भीड़ इकट्ठा नहीं करनी है. यह बड़ा आयोजन है, जिसमें बनारस के आसपास के जिले से भी बहुत लोग आते हैं. इस बार भीड़ इकट्ठा नहीं करनी है, इसलिए आयोजन कैंसिल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. हालांकि परंपरा न टूटे इसके लिए डीएलडब्ल्यू आयोजन समिति पोस्टर बैनर के जरिए भगवान राम के जीवन के संघर्षों और उनकी बताई बातों को लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे. दशहरे के दिन सांकेतिक रूप से छोटे पुतलों के दहन की अभी योजना बनाई जा रही है. जिनको फेसबुक और व्हाट्सएप के जरिए लोगों तक पहुंचाने की तैयारी की जा रही है. हालांकि अभी यह सिर्फ प्लान में है. इसे पूरा किया जाएगा या नहीं यह आयोजन समिति की बैठक के बाद निर्धारित होगा, लेकिन एक बात तो तय है कि आयोजन न होने से जहां परंपरा टूटेगी वहीं बहुत से लोगों के आगे भी कई संकट खड़े होने वाले हैं.
कार्यक्रम कैंसिल होने से टूट गई कइयों की कमर
सबसे बड़ी बात यह है कि डीएलडब्लू ग्राउंड में होने वाले भव्य आयोजन से पहले ही बहुत से लोग रोजगार और अच्छी आमदनी की उम्मीद लगा कर बैठते थे. आसपास के लोगों की मेले में हिस्सा लेने के लिए भीड़ उमड़ती थी. जिससे पास में स्थित सेंट्रल मार्केट में मौजूद दुकानों के दुकानदारों की भी चांदी रहती थी. दुकानदार इस बार मायूस हैं उनका कहना है कि हर बार सिर्फ 1 दिन में 25 से 30 हजार रुपये की सेल एक दुकान से होती थी. रेस्टोरेंट्स, खान-पान के साथ ही बहुत सी चीजें लोग इस मेले में आकर खरीदते थे. लेकिन इस बार आयोजन कैंसिल है. बीते 6 महीने से पहले से ही कमाने के लिए संघर्ष हो रहा है और अब जब दशहरे का पर्व डीएलडब्ल्यू में नहीं मनाया जाएगा तब संकट और गहराने वाला है.
लोगों में है मायूसी
वहीं, आयोजन रद्द होने की वजह से इस पूरे 1 साल इंतजार कर दशहरे के मेले में शामिल होने की तैयारी कर रहे लोग भी मायूस हैं. लोगों का कहना है कि कोविड-19 को देखते हुए सरकारी गाइडलाइन का पालन करते हुए लोगों को आयोजन करना चाहिए था. लोगों ने कहा कि आयोजन कैंसिल होने से कि मायूसी जरूर है.