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जयंती विशेषः बीएचयू के शिल्पकार पंडित मदन मोहन मालवीय ऐसे बने महामना

सर्व विद्या की राजधानी कहे जाने वाले काशी हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University) के संस्थापक भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय (Pandit Madan Mohan Malviya) की आज 160वीं जयंती (160th birth anniversary of Malaviya) है. आज पूरा देश भारत मां के इस महान सपूत को याद कर रहा है. एक स्वतंत्रता सेनानी, अधिवक्ता और शिक्षाविद के रूप में महामना जाने जाते हैं.

पंडित मदन मोहन मालवीय ऐसे बने महामना
पंडित मदन मोहन मालवीय ऐसे बने महामना
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Published : Dec 25, 2021, 7:25 AM IST

Updated : Dec 25, 2021, 10:11 AM IST

वाराणसी: सर्व विद्या की राजधानी कहे जाने वाले काशी हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University) के संस्थापक भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय की आज 160वीं जयंती (160th birth anniversary of Malaviya) है. आज पूरा देश भारत मां के इस महान सपूत को याद कर रहा है. एक स्वतंत्रता सेनानी, अधिवक्ता और शिक्षाविद के रूप में महामना जाने जाते हैं. मालवीय जी के जीवन का उद्देश्य ही मानव कल्याण और राष्ट्र निर्माण रहा. आज पूरा देश आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. कहीं न कहीं महामना ने इस अमृत महोत्सव के मनाने की नीव 1916 में ही रख दिया था.

मदन मोहन मालवीय जी का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में 25 दिसंबर, 1861 को प्रयागराज में हुआ था. अपने जीवन काल में उन्होंने बहुत से ऐतिहासिक कार्य किए और भारत मां की जीवन भर सेवा करते रहें. उन्होंने गीता और गाय पर विशेष ध्यान दिया.

महामना जयंती विशेष

भिक्षाटन से बनाया एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय

एक तरफ देश गुलामी के शिकंजे में जकड़ा था और ऊपर से चौतरफा भुखमरी का आलम व्याप्त होने के बावजूद मालवीय जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर यह साबित कर दिया कि यदि इरादे नेक हो तो लाख रोड़े के बाद भी उसे पूरा होने से कोई रोक नहीं सकता. वहीं, काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर उन्होंने भारत को एक ऐसा संस्थान दिया, जो युगों-युगों तक देश के प्रति उनके योगदान को याद दिलाता आ रहा है और आगे भी याद दिलाता रहेगा.

पंडित मदन मोहन मालवीय ऐसे बने महामना
पंडित मदन मोहन मालवीय ऐसे बने महामना

लेकिन पंडित मदन मोहन मालवीय ने भिक्षा मांग कर इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. प्रयागराज से संकल्प कर निकले महामना ने देश के कोने-कोने में घूमकर भिक्षाटन कर इस एशिया के सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालय का निर्माण करवाया था.

इसे भी पढ़ें - धर्म संसद पर डॉ. अन्नपूर्णा भारती बोलीं- हिंदू धर्म और हिंदुओं की रक्षा करना पहली प्राथमिकता

बीएचयू की संरचना

वर्तमान में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में 16 संस्थान,14 संकाय और 140 विभागों के साथ ही चार अंतर अनुवांशिक केंद्र हैं. महिलाओं के लिए महाविद्यालय के अलावा 13 विद्यालय, चार संबंधित डिग्री कॉलेज, विश्वविद्यालय में 40000 छात्र-छात्रा और 3000 शिक्षक हैं.

'मैं महामना का पुजारी हूं.'

देश में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी काशी हिंदू विश्वविद्यालय के स्थापना समारोह से लेकर रजत समारोह तक विश्वविद्यालय में आए. एक पत्र में महात्मा गांधी ने लिखा था कि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी आना मेरे लिए एक तीर्थ के समान है, क्योंकि मैं तो महामना का पुजारी हूं.

पंडित मदन मोहन मालवीय ऐसे बने महामना
पंडित मदन मोहन मालवीय ऐसे बने महामना

वकील के रूप में महामना

भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय ने साल 1893 में कानून की परीक्षा पास कर वकालत के क्षेत्र में कदम रखा था. उनकी सबसे बड़ी सफलता चौरी चौरा कांड के अभियुक्तों को फांसी की सजा से बचाने को माना जाता है. चौरी-चौरा कांड में 170 भारतीयों को फांसी की सजा सुनाई गई थी. लेकिन मालवीय जी के बुद्धि कौशल ने अपनी योग्यता और तर्क के बल पर 152 लोगों को फांसी की सजा से बचा लिया था.

महामना का सियासी कद

सरदार वल्लभ भाई पटेल की तरह ही मदन मोहन मालवीय भी भारतीय राष्ट्र कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में से एक थे. वो चार बार यानी 1909,1918,1932 और 1933 कांग्रेस पार्टी के सर्वोच्च पद पर आसीन रहे. बताते चलें कि 1886 में कोलकाता में हुए कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में मदन मोहन मालवीय ने ऐसा प्रेरक भाषण दिया कि वो सियासी मंच पर छा गए. उन्होंने लगभग 50 साल तक कांग्रेस की सेवा की. मालवीय जी ने 1937 में सक्रिय सियासत को अलविदा कहने के बाद अपना पूरा ध्यान सामाजिक मुद्दे पर केंद्रित किया.

एक पत्रकार के रूप में मालवीय जी

मदन मोहन मालवीय ने 1885 से लेकर 1907 के बीच तीन समाचार पत्रों का संपादन भी किया था, जिनमें हिंदुस्तान, इंडिया यूनियन और अभ्युदय शामिल था. साल 1909 उन्होंने 'द रीडर समाचार' की स्थापना कर इलाहबाद से इसका प्रकाशन शुरू किया था.

153वीं जयंती पर मिला था महामना को भारत रत्न

भारत माता के इस महान सपूत का निधन 12 नवंबर, 1946 को हो गया. मालवीय जी के किए गए कार्यों को उनके 153वीं जयंती के एक दिन पहले 24 दिसंबर, 2014 को भारत सरकार ने उन्हें देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया. तब यह कहा गया कि आज से भारत रत्न का सम्मान और बढ़ गया.

पंडित मदन मोहन मालवीय ऐसे बने महामना
पंडित मदन मोहन मालवीय ऐसे बने महामना

मालवीय जी के योगदान को स्मरण करते हुए प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा ने बताया कि भारत इसलिए गुलाम था कि मैकॉले संस्कृति भारत में चल रहा था. भारत के लोगों को गुलाम बनाने को विशेष योजनाएं बनाई जा रही थी. पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने मैकॉले के उस सिद्धांत को चुनौती दी और काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर अपने लक्ष्य को हासिल किया था.

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वाराणसी: सर्व विद्या की राजधानी कहे जाने वाले काशी हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University) के संस्थापक भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय की आज 160वीं जयंती (160th birth anniversary of Malaviya) है. आज पूरा देश भारत मां के इस महान सपूत को याद कर रहा है. एक स्वतंत्रता सेनानी, अधिवक्ता और शिक्षाविद के रूप में महामना जाने जाते हैं. मालवीय जी के जीवन का उद्देश्य ही मानव कल्याण और राष्ट्र निर्माण रहा. आज पूरा देश आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. कहीं न कहीं महामना ने इस अमृत महोत्सव के मनाने की नीव 1916 में ही रख दिया था.

मदन मोहन मालवीय जी का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में 25 दिसंबर, 1861 को प्रयागराज में हुआ था. अपने जीवन काल में उन्होंने बहुत से ऐतिहासिक कार्य किए और भारत मां की जीवन भर सेवा करते रहें. उन्होंने गीता और गाय पर विशेष ध्यान दिया.

महामना जयंती विशेष

भिक्षाटन से बनाया एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय

एक तरफ देश गुलामी के शिकंजे में जकड़ा था और ऊपर से चौतरफा भुखमरी का आलम व्याप्त होने के बावजूद मालवीय जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर यह साबित कर दिया कि यदि इरादे नेक हो तो लाख रोड़े के बाद भी उसे पूरा होने से कोई रोक नहीं सकता. वहीं, काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर उन्होंने भारत को एक ऐसा संस्थान दिया, जो युगों-युगों तक देश के प्रति उनके योगदान को याद दिलाता आ रहा है और आगे भी याद दिलाता रहेगा.

पंडित मदन मोहन मालवीय ऐसे बने महामना
पंडित मदन मोहन मालवीय ऐसे बने महामना

लेकिन पंडित मदन मोहन मालवीय ने भिक्षा मांग कर इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. प्रयागराज से संकल्प कर निकले महामना ने देश के कोने-कोने में घूमकर भिक्षाटन कर इस एशिया के सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालय का निर्माण करवाया था.

इसे भी पढ़ें - धर्म संसद पर डॉ. अन्नपूर्णा भारती बोलीं- हिंदू धर्म और हिंदुओं की रक्षा करना पहली प्राथमिकता

बीएचयू की संरचना

वर्तमान में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में 16 संस्थान,14 संकाय और 140 विभागों के साथ ही चार अंतर अनुवांशिक केंद्र हैं. महिलाओं के लिए महाविद्यालय के अलावा 13 विद्यालय, चार संबंधित डिग्री कॉलेज, विश्वविद्यालय में 40000 छात्र-छात्रा और 3000 शिक्षक हैं.

'मैं महामना का पुजारी हूं.'

देश में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी काशी हिंदू विश्वविद्यालय के स्थापना समारोह से लेकर रजत समारोह तक विश्वविद्यालय में आए. एक पत्र में महात्मा गांधी ने लिखा था कि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी आना मेरे लिए एक तीर्थ के समान है, क्योंकि मैं तो महामना का पुजारी हूं.

पंडित मदन मोहन मालवीय ऐसे बने महामना
पंडित मदन मोहन मालवीय ऐसे बने महामना

वकील के रूप में महामना

भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय ने साल 1893 में कानून की परीक्षा पास कर वकालत के क्षेत्र में कदम रखा था. उनकी सबसे बड़ी सफलता चौरी चौरा कांड के अभियुक्तों को फांसी की सजा से बचाने को माना जाता है. चौरी-चौरा कांड में 170 भारतीयों को फांसी की सजा सुनाई गई थी. लेकिन मालवीय जी के बुद्धि कौशल ने अपनी योग्यता और तर्क के बल पर 152 लोगों को फांसी की सजा से बचा लिया था.

महामना का सियासी कद

सरदार वल्लभ भाई पटेल की तरह ही मदन मोहन मालवीय भी भारतीय राष्ट्र कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में से एक थे. वो चार बार यानी 1909,1918,1932 और 1933 कांग्रेस पार्टी के सर्वोच्च पद पर आसीन रहे. बताते चलें कि 1886 में कोलकाता में हुए कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में मदन मोहन मालवीय ने ऐसा प्रेरक भाषण दिया कि वो सियासी मंच पर छा गए. उन्होंने लगभग 50 साल तक कांग्रेस की सेवा की. मालवीय जी ने 1937 में सक्रिय सियासत को अलविदा कहने के बाद अपना पूरा ध्यान सामाजिक मुद्दे पर केंद्रित किया.

एक पत्रकार के रूप में मालवीय जी

मदन मोहन मालवीय ने 1885 से लेकर 1907 के बीच तीन समाचार पत्रों का संपादन भी किया था, जिनमें हिंदुस्तान, इंडिया यूनियन और अभ्युदय शामिल था. साल 1909 उन्होंने 'द रीडर समाचार' की स्थापना कर इलाहबाद से इसका प्रकाशन शुरू किया था.

153वीं जयंती पर मिला था महामना को भारत रत्न

भारत माता के इस महान सपूत का निधन 12 नवंबर, 1946 को हो गया. मालवीय जी के किए गए कार्यों को उनके 153वीं जयंती के एक दिन पहले 24 दिसंबर, 2014 को भारत सरकार ने उन्हें देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया. तब यह कहा गया कि आज से भारत रत्न का सम्मान और बढ़ गया.

पंडित मदन मोहन मालवीय ऐसे बने महामना
पंडित मदन मोहन मालवीय ऐसे बने महामना

मालवीय जी के योगदान को स्मरण करते हुए प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा ने बताया कि भारत इसलिए गुलाम था कि मैकॉले संस्कृति भारत में चल रहा था. भारत के लोगों को गुलाम बनाने को विशेष योजनाएं बनाई जा रही थी. पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने मैकॉले के उस सिद्धांत को चुनौती दी और काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर अपने लक्ष्य को हासिल किया था.

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Last Updated : Dec 25, 2021, 10:11 AM IST
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