वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय(Kashi Hindu University) के संस्थापक भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय (Pandit Madan Mohan Malaviya) का जन्मदिन आज पूरा देश हर्ष और उल्लास के साथ मना रहा है. महामना काशी को अपनी कर्मभूमि बनाया और एशिया के सबसे बड़े विश्वविद्यालय की संरचना का संकल्प लिया और उसको पूरा किया. एक शिक्षक होने के नाते महामना काशी के साधु संतों का भी सम्मान करते थे. आज मालवीय जी की 161वीं जयंती मनाई जा रही है.
वैदिक विज्ञान केंद्र के समन्वयक डॉ. उपेंद्र त्रिपाठी ने मालवीय जी के एक स्मरण को याद करते हुए बताया 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद वर्तमान में आईआईटीबीएचयू उन दिनों बनारस इंजीनियरिंग कॉलेज (Banaras Engineering College) के नाम से जाना जाता था. यह लगभग 1930 की बात है. उस समय काशी की महान संत हरिहर बाबा (saint harihar baba) वाराणसी के अस्सी घाट पर निवास करते थे और वह ज्यादातर समय नाव बजड़ा पर बिताते थे. उन दिनों इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों ने बाबा से दुर्व्यवहार किया. इसके बाद बाबा काफी नाराज हो गए. इसकी सूचना मदन मोहन मालवीय को मिली और वह तत्काल बाबा के पास पहुंचे. बाबा काफी गुस्से में थे और वह गाली देते थे.
उन्होंने मालवीय जी को काफी गाली दी. मालवीय जी ने उन्हें शांत कराने के लिए बहुत प्रयास किया. शांत न होने पर अपनी पगड़ी उतार कर हरिहर बाबा के चरणों में रख दी. इसके बाद छात्रों को लेकर चले गए और छात्रों को भी उनके सामने डांट लगाई. कुछ देर बाद जब हरिहर बाबा का गुस्सा शांत हुआ, तो उन्होंने वहां बैठे लोगों से कहा 'हम काम का महात्मा हई, हमसे बढ़ महात्मा त ई मालवीयबा'.
मैं तो महामना का पुजारी हूं
पंडित मदन मोहन मालवीय का जन्म प्रयागराज में 25 दिसंबर 1861 को हुआ था. इनका निधन 12 नवंबर 1946 में हुआ. देश में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी काशी हिंदू विश्वविद्यालय के स्थापना समारोह से लेकर रजत समारोह तक विश्वविद्यालय में आए. एक पत्र में महात्मा गांधी ने लिखा था कि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी आना मेरे लिए एक तीर्थ के समान है, क्योंकि 'मैं तो महामना का पुजारी हूं'.
कई पत्रिकाओं के संपादक रहे मालवीय
1885 से 1907 के बीच 3 पत्रों जिनमें हिंदुस्तान, इंडिया यूनियन और अभ्युदय का संपादन किया. 1909 में 'द लीडर' समाचार पत्र की स्थापना कर इलाहाबाद से प्रकाशित किया. मालवीय ने 1937 में सक्रिय राजनीति से अलविदा कहकर अपना पूरा ध्यान सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित किया.
विधवाओं के पुनर्विवाह का किया समर्थन
मालवीय जी के विश्वविद्यालय का कार्य पूरा हो चुका था. उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह का समर्थन(Support for remarriage of widows) और बाल विवाह का विरोध करने के साथ ही महिलाओं की शिक्षा के लिए काम किया. भारत मां के महान सपूत 12 नवंबर 1946 को हम सब को छोड़कर चले गए. 24 दिसंबर 2014 को, महामना की 153वीं जयंती के एक दिन पूर्व भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से उन्हें सम्मानित किया.
विश्वविद्यालय की स्थापना से जुड़े देश के के महान हस्ती
महामना ने 1916 में एशिया के सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालय की स्थापना की. मालवीय जानते थे कि जब हमारा देश आजाद होगा तो हमारे देश को नेतृत्व करने वाला चाहिए होंगे. यही वजह रही कि उन्होंने आजादी के पहले ही विश्वविद्यालय की स्थापना कर देश को नेतृत्व देने वालों के बीज रोपे. विश्वविद्यालय में स्थापना से लेकर उसके निर्माण तक डॉ. एनी बेसेन्ट, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णनन, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और काशी नरेश का विशेष योगदान रहा.
मालवीय के वंशज आज भी विश्वविद्यालयों को सेवा दे रहे
1916 से लेकर अब तक मालवीय जी का परिवार विश्वविद्यालय को अपनी सेवा दे रहा है. मालवीय जी के पुत्र गोविंद मालवीय 1948 से 1951 तक विश्वविद्यालय के कुलपति थे. मालवीय जी के पौत्र जस्टिस गिरधर मालवीय वर्तमान समय में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं.
यह है विश्वविद्यालय की वर्तमान संरचना
वर्तमान में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में 16 संस्थान, 14 संकाय, 140 विभाग, 4 अंतर आनुवांशिक केंद्र, महिलाओं का संगठक महिला महाविद्यालय, 3 विद्यालय और 4 संबंधित डिग्री कॉलेज शामिल हैं. विश्वविद्यालय में चालीस हजार छात्र-छात्राएं और तीन हजार शिक्षक हैं.
चार बार रहे राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष
महामना ने भारत के राष्ट्रीय आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' को लोकप्रिय बनाने का श्रेय उनको ही जाता है. सत्यमेव जयते हजारों साल पहले लिखे गए उपनिषदों का एक मंत्र है. भारतीय राजनीति स्वतंत्रता सेनानी के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वह चार बार राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे. 1909, 1918 , 1932 और 1933. मदन मोहन मालवीय 1886 में कोलकाता में कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में प्रेरक भाषण देते ही राजनीति के मंच पर छा गए. उन्होंने लगभग 50 साल तक कांग्रेस सेवा दिया.
अच्छे वकील भी
मदन मोहन इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत कर रहे थे, तो उन्होंने गोरखपुर की चौरी-चौरा घटना में आरोपी बनाए गए क्रांतिकारियों का केस लड़ा. कहा जाता है कि उन्होंने 153 क्रांतिकारियों को मौत की सजा से बचाया था.