ETV Bharat / state

वाराणसी में तीन पीढ़ियों से मुस्लिम परिवार बना रहा है रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा जमुनी तहजीब की एक अनोखी मिसाल देखने को मिलती है. यहां पर तीन पीढ़ियों से एक मुस्लिम परिवार दशहरे पर रावण के पुतले बनाता है.

author img

By

Published : Oct 7, 2019, 10:27 PM IST

तीन पीढ़ियों से मुस्लिम परिवार बना रहा है रावण.

वाराणसी: धर्म और संस्कृति की राजधानी काशी, जिसे हम बनारस के नाम से भी जानते हैं. जिले में कई स्थानों पर रामलीला का आयोजन होता है. वहीं एक रामलीला ऐसी भी है, जहां पर गंगा जमुनी तहजीब की एक अनोखी मिसाल देखने को मिलती है. खासियत यह है कि यहां तीन पीढ़ियों से एक मुस्लिम परिवार रावण के पुतले बना रहा है. इसके साथ ही रावण, कुंभकरण और मेघनाद का जो पुतला इनके द्वारा बनाया जाता है, वह शहर का सबसे बड़ा पुतला होता है.

तीन पीढ़ियों से मुस्लिम परिवार बना रहा है रावण के पुतले.

तीन पीढ़ियों से चली आ रही है रवायत
अपने नाना महबूब बाबू खान की परंपरा को आगे बढ़ा रहे शमशाद परिवार के कई मुस्लिम कारीगरों के साथ रावण मेघनाद और कुंभकरण के पुतले को आकार देने में जुटे हैं. शमशाद का परिवार कुल 10 पुतले बनाता हैं, जिसमें से तीन पुतले सबसे बड़े होते हैं. वह डीजल रेल इंजन कारखाना यानी डीएलडब्ल्यू के मैदान में असत्य पर सत्य की विजय के साथ ये पुतले जलाए जाते हैं.

कारीगर शमशाद ने कहा कि
शमशाद ने बताया यह मेरी तीसरी पीढ़ी है. सबसे पहले हमारे नाना जी रावण के पुतलों को बनाया करते थे, उसके बाद मामा जी और अब मैं ये काम कर रहा हूं. शमशाद कहते हैं कि इस काम में मेरा पूरा परिवार लगा रहता है. उन्होंने बताया कि हमें तो इन पुतलों को बनाने में 2 से 3 महीने लग जाते हैं, लेकिन इस बार लगातार बारिश होने के कारण हमने डेढ़ महीने में इन पुतलों को तैयार किया है. हमें यह कार्य करना बहुत ही अच्छा लगता है. हम अपना फायदा और नुकसान नहीं देखते बल्कि समाज को जोड़ने के लिए जो कार्य हमें दिया जाता है, उसे हम बहुत ही खुशी से करते हैं. शमशाद ने बताया कि हर साल हम 10 से 15 पुतले बनाते हैं, जो बनारस शहर के विभिन्न प्रसिद्ध रामलीलाओं में जाता है, जिसमें सबसे बड़ा पुतला डीएलडब्ल्यू का होता है.

वाराणसी: धर्म और संस्कृति की राजधानी काशी, जिसे हम बनारस के नाम से भी जानते हैं. जिले में कई स्थानों पर रामलीला का आयोजन होता है. वहीं एक रामलीला ऐसी भी है, जहां पर गंगा जमुनी तहजीब की एक अनोखी मिसाल देखने को मिलती है. खासियत यह है कि यहां तीन पीढ़ियों से एक मुस्लिम परिवार रावण के पुतले बना रहा है. इसके साथ ही रावण, कुंभकरण और मेघनाद का जो पुतला इनके द्वारा बनाया जाता है, वह शहर का सबसे बड़ा पुतला होता है.

तीन पीढ़ियों से मुस्लिम परिवार बना रहा है रावण के पुतले.

तीन पीढ़ियों से चली आ रही है रवायत
अपने नाना महबूब बाबू खान की परंपरा को आगे बढ़ा रहे शमशाद परिवार के कई मुस्लिम कारीगरों के साथ रावण मेघनाद और कुंभकरण के पुतले को आकार देने में जुटे हैं. शमशाद का परिवार कुल 10 पुतले बनाता हैं, जिसमें से तीन पुतले सबसे बड़े होते हैं. वह डीजल रेल इंजन कारखाना यानी डीएलडब्ल्यू के मैदान में असत्य पर सत्य की विजय के साथ ये पुतले जलाए जाते हैं.

कारीगर शमशाद ने कहा कि
शमशाद ने बताया यह मेरी तीसरी पीढ़ी है. सबसे पहले हमारे नाना जी रावण के पुतलों को बनाया करते थे, उसके बाद मामा जी और अब मैं ये काम कर रहा हूं. शमशाद कहते हैं कि इस काम में मेरा पूरा परिवार लगा रहता है. उन्होंने बताया कि हमें तो इन पुतलों को बनाने में 2 से 3 महीने लग जाते हैं, लेकिन इस बार लगातार बारिश होने के कारण हमने डेढ़ महीने में इन पुतलों को तैयार किया है. हमें यह कार्य करना बहुत ही अच्छा लगता है. हम अपना फायदा और नुकसान नहीं देखते बल्कि समाज को जोड़ने के लिए जो कार्य हमें दिया जाता है, उसे हम बहुत ही खुशी से करते हैं. शमशाद ने बताया कि हर साल हम 10 से 15 पुतले बनाते हैं, जो बनारस शहर के विभिन्न प्रसिद्ध रामलीलाओं में जाता है, जिसमें सबसे बड़ा पुतला डीएलडब्ल्यू का होता है.

Intro:विशेष खबर

धर्म और संस्कृति की राजधानी काशी, जिसे हम बनारस के नाम से भी जानते हैं बनारस में कई स्थानों पर रामलीला होती है जो बहुत महत्वपूर्ण है ऐसे में एक रामलीला ऐसी भी जहां पर गंगा जमुनी तहजीब की एक अनोखी मिसाल देखने को मिलती है। वह भी एक दो नहीं बल्कि तीन पीढ़ियों से बनारस का मुस्लिम परिवार पुलता बना रहा है। कुंभकरण, मेघनाथ और रावण का पुतला पिछले 60 सालों से डीडब्ल्यू के लिए भी बना रहे हैं रावण कुंभकरण और मेघनाथ का पुतला बनता जो शहर सबसे बड़ा पुतला होता है।


Body:वाराणसी में दशहरे के दिन जलने वाले रावण के पुतले का निर्माण तमाम मुस्लिम परिवारों के लोग करते हैं वाराणसी के डीरेका मैदान में रामलीला को अलग रंग देने की तैयारी की गई है मैदान में जलने वाले रावण कुंभकरण और मेघनाथ के पुतलों के निर्माण की जिम्मेदारी हर वर्ष की तरह इस बार भी मुस्लिम परिवार के हाथों में है।

तीन पीढ़ियों की परंपरा

दशहरे के दिन डीजल रेल इंजन कारखाने के मैदान में लगने वाले मेले से पहले नाना महबूब बाबू खान की परंपरा को आगे बढ़ा रहा है शमशाद अपने परिवार के दर्जनों मुस्लिम कारीगरों के साथ रावण मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले को आकार देने में जुटा है शमशाद का परिवार इसके साथ ही अब बता दे यह कुल 10 पुतले बनाते हैं जिसमें से तीन पुतले जो सबसे बड़े होते हैं वह डीएलडब्लू के मैदान में असत्य पर सत्य की विजय के साथ जलाए जाते हैं।


Conclusion:शमशाद ने बताया यह मेरी तीसरी पीढ़ी है। सबसे पहले हमारे नाना जी रावण के पुत्रों को बनाया करते थे उसके बाद मामाजी लोग और अब मैं बना रहा हूं। इस काम में मेरा पूरा परिवार लगा रहता है हमको तो इन पुतलों को बनाने में 2 से 3 महीने लग जाते हैं लेकिन इस बार लगातार बारिश होने के कारण हमने डेढ़ महीने में इन पुतलों को तैयार किया है। हमको इस कार्य को करने में बहुत ही अच्छा लगता है हम अपना फायदा और नुकसान नहीं देखते बल्कि समाज को जोड़ने के लिए जो कार्य हमें दिया जाता है मुझसे बहुत ही खुशी से करते हैं। हर साल हम 10 से 15 पुतले बनाते हैं जो बनारस शहर के विभिन्न प्रसिद्ध रामलीला में जाता है। जिसमें सबसे बड़ा पुतला डीएलडब्ल्यू का होता है।

बाईट :-- शमशाद, कारीगर,

अशुतोष उपाध्याय
9005099684
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.