वाराणसी: धर्म और संस्कृति की राजधानी काशी, जिसे हम बनारस के नाम से भी जानते हैं. जिले में कई स्थानों पर रामलीला का आयोजन होता है. वहीं एक रामलीला ऐसी भी है, जहां पर गंगा जमुनी तहजीब की एक अनोखी मिसाल देखने को मिलती है. खासियत यह है कि यहां तीन पीढ़ियों से एक मुस्लिम परिवार रावण के पुतले बना रहा है. इसके साथ ही रावण, कुंभकरण और मेघनाद का जो पुतला इनके द्वारा बनाया जाता है, वह शहर का सबसे बड़ा पुतला होता है.
तीन पीढ़ियों से चली आ रही है रवायत
अपने नाना महबूब बाबू खान की परंपरा को आगे बढ़ा रहे शमशाद परिवार के कई मुस्लिम कारीगरों के साथ रावण मेघनाद और कुंभकरण के पुतले को आकार देने में जुटे हैं. शमशाद का परिवार कुल 10 पुतले बनाता हैं, जिसमें से तीन पुतले सबसे बड़े होते हैं. वह डीजल रेल इंजन कारखाना यानी डीएलडब्ल्यू के मैदान में असत्य पर सत्य की विजय के साथ ये पुतले जलाए जाते हैं.
कारीगर शमशाद ने कहा कि
शमशाद ने बताया यह मेरी तीसरी पीढ़ी है. सबसे पहले हमारे नाना जी रावण के पुतलों को बनाया करते थे, उसके बाद मामा जी और अब मैं ये काम कर रहा हूं. शमशाद कहते हैं कि इस काम में मेरा पूरा परिवार लगा रहता है. उन्होंने बताया कि हमें तो इन पुतलों को बनाने में 2 से 3 महीने लग जाते हैं, लेकिन इस बार लगातार बारिश होने के कारण हमने डेढ़ महीने में इन पुतलों को तैयार किया है. हमें यह कार्य करना बहुत ही अच्छा लगता है. हम अपना फायदा और नुकसान नहीं देखते बल्कि समाज को जोड़ने के लिए जो कार्य हमें दिया जाता है, उसे हम बहुत ही खुशी से करते हैं. शमशाद ने बताया कि हर साल हम 10 से 15 पुतले बनाते हैं, जो बनारस शहर के विभिन्न प्रसिद्ध रामलीलाओं में जाता है, जिसमें सबसे बड़ा पुतला डीएलडब्ल्यू का होता है.