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काशी में स्थापित मां आदिशक्ति की अद्भुत प्रतिमा, 1767 से अब तक नहीं हुई विसर्जित

महादेव की नगरी काशी में मां आदिशक्ति का पर्व नवरात्र बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है. 'मिनी बंगाल' के नाम से मशहूर काशी के मदनपुरा क्षेत्र में मां आदिशक्ति की एक ऐसी प्रतिमा स्थापित जो पिछले 254 वर्षों से एक ही स्थान पर विराजमान है.

मां आदिशक्ति.
मां आदिशक्ति.
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Published : Oct 13, 2021, 11:10 AM IST

वाराणसी: देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में मां आदिशक्ति का पर्व नवरात्र की धूम है. सप्तमी से विभिन्न पंडालों में मां की मूर्ति स्थापित कर भक्त पूजन अर्चन कर रहे हैं. काशी में ढाई सौ से ज्यादा पंडालों में मां आदिशक्ति के प्रतिमा का स्थापना होता है. यही वजह है. काशी को मिनी बंगाल भी कहा जाता है.

आज से लगभग 254 वर्ष पूर्व काशी के मदनपुरा क्षेत्र में मां आदिशक्ति की एक प्रतिमा स्थापित की गई थी. अनोखी बात ये है कि 1767 में स्थापित की गई प्रतिमा आज भी उसी स्थान पर विराजमान है. मिट्टी की मूर्ति इतने दिनों तक अपने उसी स्थिति में मौजूद होना वाकई असर करने वाली बात है. किंतु आस्था और श्रद्धा की आगे कुछ भी संभव है.

मां दुर्गा प्रतिमा स्थापित होने की दिलचस्प कहानी

मुखर्जी परिवार की बड़ी बेटी चंद्रा बनर्जी ने बताया 1767 पहली बार नवरात्र के समय मां आदिशक्ति की पूजा हुई थी. तब से मां का पूजन अर्चन का यह परंपरा हमारे परिवार करते आ रहे हैं और वह अनवरत चली आ रही है. उस समय विसर्जन के दिन मूर्ति को उठाया गया तो मूर्ति वहां से उठ नहीं पाई. सब लोग बहुत परेशान हुए बहुत प्रयत्न करने के बाद भी मूर्ति नहीं उठी तो लोग थक गए. दूसरे दिन भी बहुत लोगों को बुलाया गया फिर भी मूर्ति नहीं उठ पाई.

जानकारी देते संवाददाता और श्रद्धालु.

मां आदिशक्ति का आया सपना

सब लोगों ने सोचा कि सुबह ब्राह्मण से बात करके ऐसा क्यों हो रहा है कुछ किया जाएगा. रात में परिवार के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति को सपना आया. जिन्होंने यह पूजा प्रारंभ किया था. हम यहीं पर रहना चाहते हैं. मुझे उठाने की कोशिश मत करना. हम यहां से नहीं जाना चाहते हैं.

गुड़ और चने का भोग

चंद्रा बनर्जी बताया कि हमारे पूर्वज ने मां से कहा मां हमारी इतनी क्षमता कहां है. कि मैं आपकी पूरी पूजा का भार उठा सकूं. पूरे साल भर में इतना भार कैसे उठा पाऊंगा. मां ने सपने में कहा मुझे गुड़ चना तो दे सकते हो मैं गुड़ चना से ही संतुष्ट हो जाऊंगी. तब से मां की मूर्ति यहीं पर प्रतिस्थापित है और अनवरत हम लोग मां की सेवा कर रहे हैं. उनका आशीर्वाद हमारे परिवार को प्राप्त हो रहे हैं.

देश के कोने-कोने से आते हैं भक्त

मुखर्जी परिवार की बड़ी बेटी ने बताया कि जितना भी क्षमता होती हम लोग मां की सेवा करते हैं. आज मां की प्रसिद्ध दिनों दिन बढ़ती जा रही है. बनारस ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के कोने-कोने से लोग आते हैं. बहुत से लोग कोलकाता से भी मां के दर्शन करने के लिए आते हैं. दान दक्षिणा देते हैं. मुखर्जी परिवार के सदस्य ने बताया कि प्रत्येक वर्ष मां का आभूषण बदला जाता है. मां का सिंगार किया जाताा है. बाकी मां उसी स्थान पर विराजमान है. 365 दिन दर्शन करने के लिए भक्तों के लिए मां का यह दरबार खुला रहता है.

श्रद्धालु शोभा पांडेय ने बताया कि चैत्र और शारदीय नवरात्र में हम लोग मां का दर्शन करने के लिए आते हैं. मां के दर्शन मात्र से ही बहुत ही शांति मिलती है. मां के चेहरे में एक तेज है. हमेशा परिवार के साथ हम लोग दर्शन करने आते हैं.

इसे भी पढे़ं- काशी के कुंडों में विसर्जित हुईं मां आदिशक्ति की प्रतिमाएं, भक्तों ने दी भावपूर्ण विदाई

वाराणसी: देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में मां आदिशक्ति का पर्व नवरात्र की धूम है. सप्तमी से विभिन्न पंडालों में मां की मूर्ति स्थापित कर भक्त पूजन अर्चन कर रहे हैं. काशी में ढाई सौ से ज्यादा पंडालों में मां आदिशक्ति के प्रतिमा का स्थापना होता है. यही वजह है. काशी को मिनी बंगाल भी कहा जाता है.

आज से लगभग 254 वर्ष पूर्व काशी के मदनपुरा क्षेत्र में मां आदिशक्ति की एक प्रतिमा स्थापित की गई थी. अनोखी बात ये है कि 1767 में स्थापित की गई प्रतिमा आज भी उसी स्थान पर विराजमान है. मिट्टी की मूर्ति इतने दिनों तक अपने उसी स्थिति में मौजूद होना वाकई असर करने वाली बात है. किंतु आस्था और श्रद्धा की आगे कुछ भी संभव है.

मां दुर्गा प्रतिमा स्थापित होने की दिलचस्प कहानी

मुखर्जी परिवार की बड़ी बेटी चंद्रा बनर्जी ने बताया 1767 पहली बार नवरात्र के समय मां आदिशक्ति की पूजा हुई थी. तब से मां का पूजन अर्चन का यह परंपरा हमारे परिवार करते आ रहे हैं और वह अनवरत चली आ रही है. उस समय विसर्जन के दिन मूर्ति को उठाया गया तो मूर्ति वहां से उठ नहीं पाई. सब लोग बहुत परेशान हुए बहुत प्रयत्न करने के बाद भी मूर्ति नहीं उठी तो लोग थक गए. दूसरे दिन भी बहुत लोगों को बुलाया गया फिर भी मूर्ति नहीं उठ पाई.

जानकारी देते संवाददाता और श्रद्धालु.

मां आदिशक्ति का आया सपना

सब लोगों ने सोचा कि सुबह ब्राह्मण से बात करके ऐसा क्यों हो रहा है कुछ किया जाएगा. रात में परिवार के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति को सपना आया. जिन्होंने यह पूजा प्रारंभ किया था. हम यहीं पर रहना चाहते हैं. मुझे उठाने की कोशिश मत करना. हम यहां से नहीं जाना चाहते हैं.

गुड़ और चने का भोग

चंद्रा बनर्जी बताया कि हमारे पूर्वज ने मां से कहा मां हमारी इतनी क्षमता कहां है. कि मैं आपकी पूरी पूजा का भार उठा सकूं. पूरे साल भर में इतना भार कैसे उठा पाऊंगा. मां ने सपने में कहा मुझे गुड़ चना तो दे सकते हो मैं गुड़ चना से ही संतुष्ट हो जाऊंगी. तब से मां की मूर्ति यहीं पर प्रतिस्थापित है और अनवरत हम लोग मां की सेवा कर रहे हैं. उनका आशीर्वाद हमारे परिवार को प्राप्त हो रहे हैं.

देश के कोने-कोने से आते हैं भक्त

मुखर्जी परिवार की बड़ी बेटी ने बताया कि जितना भी क्षमता होती हम लोग मां की सेवा करते हैं. आज मां की प्रसिद्ध दिनों दिन बढ़ती जा रही है. बनारस ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के कोने-कोने से लोग आते हैं. बहुत से लोग कोलकाता से भी मां के दर्शन करने के लिए आते हैं. दान दक्षिणा देते हैं. मुखर्जी परिवार के सदस्य ने बताया कि प्रत्येक वर्ष मां का आभूषण बदला जाता है. मां का सिंगार किया जाताा है. बाकी मां उसी स्थान पर विराजमान है. 365 दिन दर्शन करने के लिए भक्तों के लिए मां का यह दरबार खुला रहता है.

श्रद्धालु शोभा पांडेय ने बताया कि चैत्र और शारदीय नवरात्र में हम लोग मां का दर्शन करने के लिए आते हैं. मां के दर्शन मात्र से ही बहुत ही शांति मिलती है. मां के चेहरे में एक तेज है. हमेशा परिवार के साथ हम लोग दर्शन करने आते हैं.

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