वाराणसी: मार्च के महीने में पहले जनता कर्फ्यू और फिर हुए लॉकडाउन ने कोरोना से बचाव में सार्थक भूमिका निभाई थी, इस दौर में लोगों ने खुद को सुरक्षित रखने के लिए भी बहुत से जतन किए. स्कूल-कॉलेज, बाजार और ऑफिस बंद कर दिए गए. इसके बाद घरों में रहते हुए लोगों ने अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए बाहर से आने वाली सब्जियों और फलों को सैनिटाइज करने के साथ ही बाहर निकलने तक पर रोक लगा दी गई. महिलाओं ने परिवार को सुरक्षित रखने के लिए घरों में काम करने वाले नौकर और नौकरानियों को हटा दिया. इन सबके बीच सवाल यह उठता है कि हजार-दो हजार रुपये महीने पाने वाली इन नौकरानियों कि जिंदगी इस दौरान किस तरह से बदल गई.
बिन नौकरानियों के ऐसे कट रही है महिलाओं की जिंदगी. मेड को हटाने का लिया फैसला
बनारस के महमूरगंज इलाके के एक अपार्टमेंट में रहने वाली सोनम अग्रवाल और उनके पति डॉ. प्रदीप अग्रवाल इन दिनों घर के कामकाज की जिम्मेदारी खुद निभा रहे हैं. घर के किचन में काम करने से लेकर बर्तन, मांजने, झाड़ू पोछा करने और घर की साफ सफाई की पूरी जिम्मेदारी सोनम और उनके पति ने आपस में मिल बांट कर उठा रखी है. दोनों वर्किंग हैं, लेकिन काम पर जाने से पहले और काम से लौटने के बाद घर की हर छोटी बड़ी जिम्मेदारी को भी पूरा करने से नहीं हिचकते नहीं है. यह इनकी मजबूरी कहिए या फिर खुद को सुरक्षित रखने के लिए लिया गया बड़ा फैसला.
रखा मेड का ख्याल
कोरोना काल में सोनम और उनके पति ने घर में काम करने वाली मेड को हटाने का फैसला लिया. पहले जनता कर्फ्यू में उन्होंने मेड को एक दिन की छुट्टी थी फिर उसके बाद लॉकडाउन के दौरान अपने और अपने परिवार को सुरक्षित रखने के लिए मेड को हटाने का निर्णय लिया. सोनम का कहना है यह फैसला कठिन था, क्योंकि घर पर काम करने वाली मेड परिवार का एक हिस्सा हो गई थी. छोटे बड़े काम करके हमारी जरूरतों का ख्याल रखना और हमें कोई तकलीफ न होने देना यह उसका रोज का काम हो गया था, लेकिन हमारे लिए जरूरी था. इस दौरान बाहर से आने वाले लोगों का घर में प्रवेश रोक कर खुद को सुरक्षित रखना. इसलिए हमने अपनी मेड को 2 महीने की एडवांस सैलरी और 1 महीने का राशन देकर उसे हटाने का फैसला लिया. सोचा था कि मई-जून तक चीजें नॉर्मल होंगी तो फिर से उसे काम पर वापस बुला लेंगे, लेकिन स्थितियां सुधर ही नहीं रहीं हैं और अब जब लॉकडाउन खत्म हो गया है और कोरोना अब भी बरकरार है. तो यह देखते हुए हमने मेड को अब भी वापस नहीं बुलाया है. हां जरूरत होने पर उसको पैसे से लेकर राशन तक की मदद मुहैया जरूर करा देते हैं.
मेड भी हैं हमारी जिम्मेदारी
वहीं सोनम के पति डॉ. प्रदीप का कहना है कि जैसे हमारी जिंदगी बिना मेड के नहीं चल सकती वैसे उनकी जिंदगी हमारे ऊपर निर्भर है. हां फैसला जरूर कठिन था उन्हें हटाने का, लेकिन अभी मेरा पूरा प्रयास है कि उनको जल्द से जल्द काम पर बुला लें, ताकि उनकी जिंदगी सुचारू रूप से आगे बढ़ाई जा सके.
दो घरों से चली गई नौकरी
इस दौर में घरों में काम करने वाली इन नौकरानियों के लिए भी काफी कठिन समय रहा. आम दिनों में चार से पांच घरों में काम करने वाली रीना का कहना है कि जब लॉकडाउन शुरू हुआ तो उन्हें फिलहाल सभी घरों से हटाया गया. दो घरों में तो कुछ दिन बाद बुला लिया गया, लेकिन दो घरों से उनकी नौकरी चली गई है. हर घर से उन्हें 2000 रुपये महीने मिलते थे. 2 से 3 घंटे का रोज का काम हुआ करता था, लेकिन दो घरों में तो उनकी नौकरी वापस मिल गई. लेकिन अब तक दो घरों में उनको काम पर नहीं बुलाया गया है. जिसकी वजह से हर महीने मिलने वाले 8 हजार रुपये की जगह उन्हें 4 हजार रुपये महीने से ही घर का खर्च चलाने की मजबूरी है.