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काशी के इस औरंगाबाद हाउस से तय होती थी यूपी ही नहीं, पूरे देश की राजनीति

वाराणसी में पंडित कमलापति त्रिपाठी के आवास को औरंगाबाद हाउस के रूप में जाना जाता है लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि इस घर में 1920 से लेकर अब तक लगातार राजनीति के अलावा देश की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

औरंगाबाद हाउस
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Published : Apr 24, 2019, 10:53 AM IST

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी बनारस में एक गली है औरंगाबाद. इस गली की ऐतिहासिकता इस बात की है कि इस गली का नाम औरंगजेब के नाम पर है. इतिहासकार बताते हैं कि जब काशी में औरंगजेब आया था, तब इसी इलाके में उसने अपनी सराय बनाई थी. इसके कारण इस इलाके का नाम औरंगाबाद पड़ा.

काशी के औरंगाबाद हाउस से तय होती थी देश की राजनीति

सबसे बड़ी बात यह है कि इस गली में एक ऐसा घर है, जिसे अकेले औरंगाबाद हाउस के नाम से जाना जाता है. यह घर और किसी का नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार में रेल मंत्री रह चुके कद्दावर कांग्रेसी नेता पंडित कमलापति त्रिपाठी का है. 1905 में पंडित जी के पिता नारायण पति त्रिपाठी देश की आजादी में अपनी भूमिका की शुरुआत की लेकिन बाद में इसे किस तरह से पंडित कमलापति त्रिपाठी ने देश की आजादी के संघर्ष के साथ देश की सेवा के लिए राजनीतिक पृष्ठभूमि के रूप में परिवर्तित किया, यह पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी कायम है.

पंडित कमलापति त्रिपाठी के बाद आज चौथी पीढ़ी लगातार राजनीति में सक्रिय है. लेकिन एक वक्त वह भी था, जब औरंगाबाद हाउस से पूर्वांचल के साथ यूपी और पूरे देश की राजनीति की धुरी तय होती थी, क्या है इस औरंगाबाद हाउस का इतिहास और क्यों राजनैतिक दृष्टि से इसे माना जाता है बेहद खास, जानिए इस खास खबर में-

दरअसल, वाराणसी में पंडित कमलापति त्रिपाठी के आवास को औरंगाबाद हाउस के रूप में जाना जाता है लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि इस घर में 1920 से लेकर अब तक लगातार राजनीति के अलावा देश की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इतना ही नहीं, औरंगाबाद हाउस से पंडित कमलापति त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, देश के रेल मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे. उनके बेटे लोकपति त्रिपाठी पौत्र राजेश पति त्रिपाठी और वर्तमान में प्रपौत्र ललितेश पति त्रिपाठी लगातार सक्रिय राजनीति में महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए जनप्रतिनिधि के रूप में चुने गए.

निष्ठा से किया सबने काम
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के राजनीति विभाग के प्रोफेसर सतीश राय बताते हैं कि देश की आजादी में महत्वपूर्ण रोल निभाने वाला औरंगाबाद हाउस बीते 70 सालों से ज्यादा वक्त से कांग्रेस की राजनीति करता आया है. देश बदला, देश के हालात बदले, कितनी नई पार्टियां आईं लेकिन इस परिवार से जुड़ा कोई भी व्यक्ति अपनी निष्ठा और पार्टी कार्य से विपरीत कभी नहीं गया. आज भी लगातार पंडित कमलापति त्रिपाठी की चौथी पीढ़ी ललितेश पति त्रिपाठी के रूप में कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता और देश की राजनीति में महत्वपूर्ण रोल निभा रही है.

प्रोफेसर राय का कहना है कि 1905 में देश की आजादी की लड़ाई में गोपाल कृष्ण गोखले की अध्यक्षता में कांग्रेस बनारस सम्मेलन के दौरान औरंगाबाद हाउस के कर्ताधर्ता कमलापति त्रिपाठी के पिता स्वर्गीय नारायण पति त्रिपाठी भी जुड़े थे. आजादी की लड़ाई में 27 साल समर्पित करने के बाद कमलापति त्रिपाठी ने देश सेवा की खातिर राजनीति में कदम रखा और कांग्रेस के साथ मिलकर देश बदलने की कवायद शुरू की, 1936 में पहली बार चंदौली से चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की, बताया जाता है कि पंडित कमलापति त्रिपाठी बनारस से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें चंदौली से टिकट दिया और अपने प्रचार की शुरुआत पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कमलापति त्रिपाठी की खातिर चंदौली से की, जिसके बाद उनको बड़ी जीत हासिल हुई. 1937 में पंडित कमलापति त्रिपाठी ने राजनीति में कदम रखा और उसके बाद लगातार एक के बाद एक इतिहास रचते हुए देश के रेल मंत्री, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके पंडित जी ने ब्राह्मण वोट बैंक को हिट करने का काम किया.

नेताओं का लगा रहता था जमावड़ा
पंडित कमलापति त्रिपाठी के पौत्र पंडित विराट पति त्रिपाठी बताते हैं कि राजनीतिक परिवेश बदलते हैं. उन्होंने अपनी आंखों के आगे देखा है. एक वक्त वह भी था जब इस घर में बड़े छोटे नेताओं का जमघट हमेशा लगा रहता था, कोई न कोई घर के आंगन में पंडित कमलापति त्रिपाठी के नीचे आने का इंतजार करता था.

औरंगाबाद हाउस पीढ़ी दर पीढ़ी सक्रिय राजनीति में भूमिका

  • पंडित कमलापति त्रिपाठी उत्तर प्रदेश में गठित पहली विधानसभा में चंदौली से महज 32 साल की उम्र में विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे. 1971 से 1973 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. 1975 से 1977, 1980 से 1981 तक केंद्र सरकार में रेल मंत्री रहे. 1983 से 1987 तक राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनकर कांग्रेस को मजबूती प्रदान की. आजादी के पहले जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और 1964 से 1972 तक कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला.
  • दूसरी पीढ़ी के रूप में लोक पति त्रिपाठी ने पंडित कमलापति त्रिपाठी के बेटे होने के नाते इस परिवार की राजनैतिक विरासत को आगे बढ़ाने का काम किया और 1971 से 2001 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पांच बार सदस्य रहे. एचएन बहुगुणा एनडी तिवारी और श्रीपति मिश्र के सीएम कार्यकाल में लोग पति त्रिपाठी खेल मंत्री सिंचाई मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे कांग्रेस की केंद्रीय और यूपी वर्किंग कमेटी में सक्रिय रूप से शामिल हैं.
  • तीसरी पीढ़ी के रूप में इस परिवार के राजेश पति त्रिपाठी औरंगाबाद हाउस की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का प्रयास किया हालांकि वह सक्रिय राजनीति में बहुत सफल नहीं साबित हुए राजेश पति 1999 में विधान परिषद के सदस्य हैं. कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा और लोकसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन जीत नहीं हासिल हुई, जिसकी वजह से उन्होंने सिर्फ पार्टी से जुड़कर ही काम करने का फैसला लिया.
  • वर्तमान में औरंगाबाद हाउस की चौथी पीढ़ी ज्ञानी पंडित राजेश पति त्रिपाठी के बेटे ललितेश पति त्रिपाठी औरंगाबाद हाउस की राजनीतिक विरासत को मजबूती प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं. ललितेश ने 2012 में मिर्जापुर से विधानसभा का चुनाव जीता और 2014 में मोदी लहर के बाद भी 152000 वोट मिर्जापुर लोकसभा सीट से हासिल किया लेकिन वह जीत नहीं पाए. वर्तमान में 2019 लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने ललितेश पर भरोसा जता कर मिर्जापुर से उन्हें एक बार फिर से लोकसभा का टिकट दिया है.

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी बनारस में एक गली है औरंगाबाद. इस गली की ऐतिहासिकता इस बात की है कि इस गली का नाम औरंगजेब के नाम पर है. इतिहासकार बताते हैं कि जब काशी में औरंगजेब आया था, तब इसी इलाके में उसने अपनी सराय बनाई थी. इसके कारण इस इलाके का नाम औरंगाबाद पड़ा.

काशी के औरंगाबाद हाउस से तय होती थी देश की राजनीति

सबसे बड़ी बात यह है कि इस गली में एक ऐसा घर है, जिसे अकेले औरंगाबाद हाउस के नाम से जाना जाता है. यह घर और किसी का नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार में रेल मंत्री रह चुके कद्दावर कांग्रेसी नेता पंडित कमलापति त्रिपाठी का है. 1905 में पंडित जी के पिता नारायण पति त्रिपाठी देश की आजादी में अपनी भूमिका की शुरुआत की लेकिन बाद में इसे किस तरह से पंडित कमलापति त्रिपाठी ने देश की आजादी के संघर्ष के साथ देश की सेवा के लिए राजनीतिक पृष्ठभूमि के रूप में परिवर्तित किया, यह पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी कायम है.

पंडित कमलापति त्रिपाठी के बाद आज चौथी पीढ़ी लगातार राजनीति में सक्रिय है. लेकिन एक वक्त वह भी था, जब औरंगाबाद हाउस से पूर्वांचल के साथ यूपी और पूरे देश की राजनीति की धुरी तय होती थी, क्या है इस औरंगाबाद हाउस का इतिहास और क्यों राजनैतिक दृष्टि से इसे माना जाता है बेहद खास, जानिए इस खास खबर में-

दरअसल, वाराणसी में पंडित कमलापति त्रिपाठी के आवास को औरंगाबाद हाउस के रूप में जाना जाता है लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि इस घर में 1920 से लेकर अब तक लगातार राजनीति के अलावा देश की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इतना ही नहीं, औरंगाबाद हाउस से पंडित कमलापति त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, देश के रेल मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे. उनके बेटे लोकपति त्रिपाठी पौत्र राजेश पति त्रिपाठी और वर्तमान में प्रपौत्र ललितेश पति त्रिपाठी लगातार सक्रिय राजनीति में महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए जनप्रतिनिधि के रूप में चुने गए.

निष्ठा से किया सबने काम
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के राजनीति विभाग के प्रोफेसर सतीश राय बताते हैं कि देश की आजादी में महत्वपूर्ण रोल निभाने वाला औरंगाबाद हाउस बीते 70 सालों से ज्यादा वक्त से कांग्रेस की राजनीति करता आया है. देश बदला, देश के हालात बदले, कितनी नई पार्टियां आईं लेकिन इस परिवार से जुड़ा कोई भी व्यक्ति अपनी निष्ठा और पार्टी कार्य से विपरीत कभी नहीं गया. आज भी लगातार पंडित कमलापति त्रिपाठी की चौथी पीढ़ी ललितेश पति त्रिपाठी के रूप में कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता और देश की राजनीति में महत्वपूर्ण रोल निभा रही है.

प्रोफेसर राय का कहना है कि 1905 में देश की आजादी की लड़ाई में गोपाल कृष्ण गोखले की अध्यक्षता में कांग्रेस बनारस सम्मेलन के दौरान औरंगाबाद हाउस के कर्ताधर्ता कमलापति त्रिपाठी के पिता स्वर्गीय नारायण पति त्रिपाठी भी जुड़े थे. आजादी की लड़ाई में 27 साल समर्पित करने के बाद कमलापति त्रिपाठी ने देश सेवा की खातिर राजनीति में कदम रखा और कांग्रेस के साथ मिलकर देश बदलने की कवायद शुरू की, 1936 में पहली बार चंदौली से चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की, बताया जाता है कि पंडित कमलापति त्रिपाठी बनारस से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें चंदौली से टिकट दिया और अपने प्रचार की शुरुआत पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कमलापति त्रिपाठी की खातिर चंदौली से की, जिसके बाद उनको बड़ी जीत हासिल हुई. 1937 में पंडित कमलापति त्रिपाठी ने राजनीति में कदम रखा और उसके बाद लगातार एक के बाद एक इतिहास रचते हुए देश के रेल मंत्री, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके पंडित जी ने ब्राह्मण वोट बैंक को हिट करने का काम किया.

नेताओं का लगा रहता था जमावड़ा
पंडित कमलापति त्रिपाठी के पौत्र पंडित विराट पति त्रिपाठी बताते हैं कि राजनीतिक परिवेश बदलते हैं. उन्होंने अपनी आंखों के आगे देखा है. एक वक्त वह भी था जब इस घर में बड़े छोटे नेताओं का जमघट हमेशा लगा रहता था, कोई न कोई घर के आंगन में पंडित कमलापति त्रिपाठी के नीचे आने का इंतजार करता था.

औरंगाबाद हाउस पीढ़ी दर पीढ़ी सक्रिय राजनीति में भूमिका

  • पंडित कमलापति त्रिपाठी उत्तर प्रदेश में गठित पहली विधानसभा में चंदौली से महज 32 साल की उम्र में विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे. 1971 से 1973 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. 1975 से 1977, 1980 से 1981 तक केंद्र सरकार में रेल मंत्री रहे. 1983 से 1987 तक राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनकर कांग्रेस को मजबूती प्रदान की. आजादी के पहले जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और 1964 से 1972 तक कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला.
  • दूसरी पीढ़ी के रूप में लोक पति त्रिपाठी ने पंडित कमलापति त्रिपाठी के बेटे होने के नाते इस परिवार की राजनैतिक विरासत को आगे बढ़ाने का काम किया और 1971 से 2001 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पांच बार सदस्य रहे. एचएन बहुगुणा एनडी तिवारी और श्रीपति मिश्र के सीएम कार्यकाल में लोग पति त्रिपाठी खेल मंत्री सिंचाई मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे कांग्रेस की केंद्रीय और यूपी वर्किंग कमेटी में सक्रिय रूप से शामिल हैं.
  • तीसरी पीढ़ी के रूप में इस परिवार के राजेश पति त्रिपाठी औरंगाबाद हाउस की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का प्रयास किया हालांकि वह सक्रिय राजनीति में बहुत सफल नहीं साबित हुए राजेश पति 1999 में विधान परिषद के सदस्य हैं. कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा और लोकसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन जीत नहीं हासिल हुई, जिसकी वजह से उन्होंने सिर्फ पार्टी से जुड़कर ही काम करने का फैसला लिया.
  • वर्तमान में औरंगाबाद हाउस की चौथी पीढ़ी ज्ञानी पंडित राजेश पति त्रिपाठी के बेटे ललितेश पति त्रिपाठी औरंगाबाद हाउस की राजनीतिक विरासत को मजबूती प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं. ललितेश ने 2012 में मिर्जापुर से विधानसभा का चुनाव जीता और 2014 में मोदी लहर के बाद भी 152000 वोट मिर्जापुर लोकसभा सीट से हासिल किया लेकिन वह जीत नहीं पाए. वर्तमान में 2019 लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने ललितेश पर भरोसा जता कर मिर्जापुर से उन्हें एक बार फिर से लोकसभा का टिकट दिया है.
Intro:स्पेशल स्टोरी:

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी जिसे गलियों के लिए जाना जाता है. गलियां यहां की पहचान है शायद यही वजह है कि यहां पर कुछ ऐसी गलियां भी हैं जिनका नाम सुनने के साथ ही आप इसकी ऐतिहासिकता भी समझ जाएंगे. ऐसी ही एक गली है बनारस में औरंगाबाद, औरंगाबाद नाम सुनकर आपको कुछ अटपटा लग रहा होगा या फिर किसी दूसरे जिले की भी याद आ रही होगी लेकिन इस गली की ऐतिहासिकता इस बात की है क्योंकि इस गली का नाम औरंगजेब के नाम पर है. इतिहासकार बताते हैं कि जब काशी में औरंगजेब आया था तब इसी इलाके में उसने अपनी सराय बनाई थी. जिसके कारण इस इलाके का नाम औरंगाबाद पड़ा. सबसे बड़ी बात यह है कि इस गली में एक ऐसा घर है जिसे अकेले औरंगाबाद हाउस के नाम से जाना जाता है. यह घर और किसी का नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार में रेल मंत्री रह चुके कद्दावर कांग्रेसी नेता पंडित कमलापति त्रिपाठी का है. 1905 में पंडित जी के पिता नारायण पति त्रिपाठी देश की आजादी में अपनी भूमिका की शुरुआत की लेकिन बाद में इसे किस तरह से पंडित कमलापति त्रिपाठी ने देश की आजादी के संघर्ष के साथ देश की सेवा के लिए राजनीतिक पृष्ठभूमि के रूप में परिवर्तित किया यह पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी कायम है. पंडित कमलापति त्रिपाठी के बाद आज चौथी पीढ़ी लगातार राजनीति में सक्रिय है, लेकिन एक वक्त वह भी था जब औरंगाबाद हाउस से पूर्वांचल के साथ यूपी और पूरे देश की राजनीति की धूरी तय होती थी, क्या है इस औरंगाबाद हाउस का इतिहास और क्यों राजनैतिक दृष्टि से इसे माना जाता है बेहद खास जानिए इस खास खबर में.

ओपनिंग पीटीसी- गोपाल मिश्र




Body:वीओ-01 दरअसल वाराणसी में पंडित कमलापति त्रिपाठी के आवाज को औरंगाबाद हाउस के रूप में जाना जाता है लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि इस घर में 1920 से लेकर अब तक लगातार राजनीति के अलावा देश की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इतना ही नहीं औरंगाबाद हाउस से पंडित कमलापति त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, देश के रेल मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे. उनके बेटे लोकपति त्रिपाठी पौत्र राजेश पति त्रिपाठी और वर्तमान में प्रपौत्र ललितेश पति त्रिपाठी लगातार सक्रिय राजनीति में महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए जनप्रतिनिधि के रूप में चुने गए, लेकिन आज तक इस घर के बाहर ना ही इस घर का नाम या फिर किसी पद पर आसीन व्यक्ति का नाम या उसका पद लिखा गया. इस घर की यही सादगी राजनीति में इसकी भूमिका को और भी मजबूत कर देती है. महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के राजनीति विभाग के प्रोफेसर सतीश राय बताते हैं कि देश की आजादी में महत्वपूर्ण रोल निभाने वाला औरंगाबाद हाउस बीते 70 सालों से ज्यादा वक्त से कांग्रेस की राजनीति करता आया है. देश बदला देश के हालात बदले कितनी नई पार्टियां आईं लेकिन इस परिवार से जुड़ा कोई भी व्यक्ति अपनी निष्ठा और पार्टी कार्य से विपरीत कभी नहीं गया. आज भी लगातार पंडित कमलापति त्रिपाठी की चौथी पीढ़ी ललितेश पति त्रिपाठी के रूप में कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता और देश की राजनीति में महत्वपूर्ण रोल निभा रही है. प्रोफेसर राय का कहना है कि 1905 में देश की आजादी की लड़ाई में गोपाल कृष्ण गोखले की अध्यक्षता में कांग्रेस बनारस सम्मेलन के दौरान औरंगाबाद हाउस के कर्ताधर्ता कमलापति त्रिपाठी के पिता स्वर्गीय नारायण पति त्रिपाठी भी जुड़े थे. आजादी की लड़ाई में 27 साल समर्पित करने के बाद कमलापति त्रिपाठी ने देश सेवा की खातिर राजनीति में कदम रखा और कांग्रेस के साथ मिलकर देश बदलने की कवायद शुरू की, 1936 में पहली बार चंदौली से चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की, बताया जाता है कि पंडित कमलापति त्रिपाठी बनारस से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें चंदौली से टिकतबड़िया और अपने प्रचार की शुरुआत पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कमलापति त्रिपाठी की खातिर चंदौली से की जिसके बाद उनको बड़ी जीत हासिल हुई. 1937 में पंडित कमलापति त्रिपाठी ने राजनीति में कदम रखा और उसके बाद लगातार एक के बाद एक इतिहास रचते हुए देश के रेल मंत्री, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके पंडित जी ने ब्राह्मण वोट बैंक को हिट करने का काम किया. प्रोफेसर राय कहते हैं कि वह ब्राह्मण तो थे लेकिन कभी भी जातिगत आधार पर राजनीति नहीं करते थे. यही वजह है कि उनके दर पर से कभी कोई खाली नहीं जाता था, चाहे वह ब्राह्मण हो या फिर कोई अन्य जाति का, यही वजह है कि पंडित कमलापति त्रिपाठी के बाद उनके बेटे लोकपति त्रिपाठी ने भी सक्रिय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपना कर्म क्षेत्र मिर्जापुर चुना. जिसके बाद उनके बेटे राजेश पति त्रिपाठी और अब उनके पोते ललितेश पति त्रिपाठी भी मिर्जापुर से ही राजनीति कर रहे हैं. प्रोफेसर सतीश राय बताते हैं कि कमलापति त्रिपाठी का यह घर बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. कांग्रेस की स्थापना से जुड़े लोग हो या वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी आज भी वह बनारस के औरंगाबाद हाउस को पूरी तरजीह देते हैं. इसका सबूत इस बात से ही लगाया जा सकता है की वर्तमान में कांग्रेस का जो घोषणा पत्र जारी हुआ है उसकी स्टैंडिंग कमेटी में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं के साथ औरंगाबाद हाउस की वर्तमान पीढ़ी संभाल रहे ललितेश पति त्रिपाठी को भी रखा गया था और उन्होंने इस कमेटी के साथ मिलकर कांग्रेस के घोषणा पत्र को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. प्रोफेसर राय का कहना है कि पंडित कमलापति त्रिपाठी से पंडित जवाहरलाल नेहरू और उनके बाद इंदिरा गांधी का विशेष लगाव था यह दोनों कद्दावर नेता पंडित कमलापति त्रिपाठी से मिलकर ही कोई बड़े फैसले लेने का काम करते थे हर बड़े फैसले में पंडित जी का योगदान महत्वपूर्ण माना जाता था. यही वजह है कि जब पंडित कमलापति त्रिपाठी का निधन हुआ तो उन की शव यात्रा में मणिकर्णिका घाट तक राजीव गांधी गए थे और उनकी तेरहवीं में उस वक्त राहुल गांधी शामिल होने के लिए पहुंचे थे. जानकार बताते हैं कि औरंगाबाद हाउस आज का नहीं बल्कि 450 साल पहले बनाया गया था यह उस वक्त मुगल दाराशिकोह की हवेली हुआ करती थी औरंगजेब के भाई दाराशिकोह इसी परिवार से संस्कृत का ज्ञान भी अर्जित किया था लेकिन बड़ी बात यह है कि इतने सालों बाद भी आज यह घर मजबूती के साथ खड़ा है और सकरी राजनीति में आज भी कांग्रेस नेतृत्व में इस घर की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है.

बाइट प्रोफेसर सतीश राय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ राजनीति शास्त्र विभाग


Conclusion:वीओ-02 पंडित कमलापति त्रिपाठी के पौत्र पंडित विराट पति त्रिपाठी बताते हैं की राजनीतिक परिवेश बदलते हैं. उन्होंने अपनी आंखों के आगे देखा है एक वक्त वह भी था जब इस घर में बड़े छोटे नेताओं का जमघट हमेशा लगा रहता था, कोई ना कोई घर के आंगन में पंडित कमलापति त्रिपाठी के नीचे आने का इंतजार करता था एडमिशन कराने से लेकर रेल टिकट कंफर्म कराने के लिए लोगों की लाइन लगी रहती थी. लोकसभा विधानसभा चुनाव में टिकट किसको दिया जाए किसको नहीं इसके लिए आलाकमान सीधे संपर्क में रहता था स्थितियां बदली उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कमजोर हुए और पंडित जी के जाने के बाद औरंगाबाद हाउस की धमक भी कुछ कम हो गई लेकिन कभी भी इस घर की पूछ कांग्रेस के आगे कम नहीं शायद यही वजह है कि पंडित कमलापति त्रिपाठी की चौथी पीढ़ी ललितेश के रूप में आज भी कांग्रेस के साथ जुड़कर काम कर रही है और 2019 लोकसभा चुनाव में ललितेश को मिर्जापुर से कांग्रेस ने टिकट भी दिया है इन सब वजहों से ही आज भी काशी के इस औरंगाबाद हाउस को कट्टर कांग्रेसी परिवार कहा जाता है सिर्फ बनारस ही नहीं बल्कि देश के कोने कोने में इस परिवार को कांग्रेस परिवार के रूप में जाना जाता है.

बाईट- विराट पति त्रिपाठी, पौत्र पंडित कमलापति त्रिपाठी


---- औरंगाबाद हाउस पीढ़ी दर पीढ़ी सक्रिय राजनीति में भूमिका

पंडित कमलापति त्रिपाठी उत्तर प्रदेश में गठित पहली विधानसभा में चंदौली से महज 32 साल की उम्र में विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे 1971 से 1973 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे 1975 से 1977, 1980 से 1981 तक केंद्र सरकार में रेल मंत्री रहे 1983 से 1987 तक राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनकर कांग्रेस को मजबूती प्रदान की आजादी के पहले जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और 1964 से 1972 तक कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला.


- दूसरी पीढ़ी के रूप में लोक पति त्रिपाठी ने पंडित कमलापति त्रिपाठी के बेटे होने के नाते इस परिवार की राजनैतिक विरासत को आगे बढ़ाने का काम किया और 1971 से 2001 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पांच बार सदस्य रहे एचएन बहुगुणा एनडी तिवारी और श्रीपति मिश्र के सीएम कार्यकाल में लोग पति त्रिपाठी खेल मंत्री सिंचाई मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे कांग्रेस की केंद्रीय और यूपी वर्किंग कमेटी में सक्रिय रूप से शामिल है इतना ही नहीं लोग पति जी की पत्नी स्वर्गीय चंद्र त्रिपाठी ने भी राजनीति में कदम रखा और 1994 में कांग्रेस के टिकट पर चंदौली से सांसद बने.


- तीसरी पीढ़ी के रूप में इस परिवार के राजेश पति त्रिपाठी औरंगाबाद हाउस की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का प्रयास किया हालांकि वह सक्रिय राजनीति में बहुत सफल नहीं साबित हुए राजेश पति 1999 में विधान परिषद के सदस्य हैं कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा और लोकसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन जीत नहीं हासिल हुई जिसकी वजह से उन्होंने सिर्फ पार्टी से जुड़कर ही काम करने का फैसला लिया.


- वर्तमान में औरंगाबाद हाउस की चौथी पीढ़ी ज्ञानी पंडित राजेश पति त्रिपाठी के बेटे ललितेश पति त्रिपाठी औरंगाबाद हाउस की राजनीतिक विरासत को मजबूती प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं ललितेश ने 2012 में मिर्जापुर से विधानसभा का चुनाव जीता और 2014 में मोदी लहर के बाद भी 152000 वोट मिर्जापुर लोकसभा सीट से हासिल किया लेकिन वह जीत नहीं पाए वर्तमान में 2019 लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने ललितेश पर भरोसा जता कर मिर्जापुर से उन्हें एक बार फिर से लोकसभा का टिकट दिया है.


क्लोजिंग पीटीसी- गोपाल मिश्र

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