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हथकरघा उद्योग के लिए आईआईटी बीएचयू ने डिजाइन किया एर्गोनॉमिक करघा, ये मिलेगा फायदा

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग ने बुनकरों के लिए एर्गाेनॉमिक करघा डिजाइन किया है.

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एर्गोनॉमिक करघा
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Published : Aug 6, 2022, 10:37 PM IST

वाराणसी: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग (औद्योगिक प्रबंधन) की एक टीम राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के अवसर पर हथकरघा बुनकरों के लिए एर्गाेनॉमिक रूप से डिजाइन करघा लेकर आई है. कहा जा रहा है कि यह करघा बुनकरों को अधिक आराम प्रदान करेगा, जिससे बुनकरों को लंबे वक्त तक बैठ कर काम करने से होने वाले मस्कुलोस्केलेटल विकारों का खतरा कम होगा.

मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डॉ. प्रभास भारद्वाज ने बताया कि हथकरघा बुनकरों को एक जगह बैठकर रोजाना कम से कम 8-12 घंटे काम करना पड़ता है. इस वजह से उन्हें मस्कुलोस्केलेटल दर्द के लक्षणों का सामना करना पड़ रहा है. वाराणसी में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार अधिकांश बुनकर पीठ के निचले हिस्से, जांघ, पैर, टखने और गर्दन में दर्द से पीड़ित हैं. यह करघों के मौजूदा डिजाइन में बुनकरों के काम करने की मुद्रा के कारण है. वर्तमान में उपयोग किए जाने वाले पारंपरिक करघे, शाफ्ट और जेकक्वार्ड को बांस की छड़ियों को दबाकर उठाया जाता है, जो एक फुट पेडल के रूप में काम करते हैं और वे रस्सियों की मदद से जुड़े होते हैं, जो बुनकर की सीट के पीछे चलती है. बुनते समय ये रस्सियां कभी-कभी बुनकर की पीठ को छूकर बुनकर के चलने-फिरने में समस्या पैदा कर देती हैं. यह सीट डिजाइन में भी एक प्रतिबंध बनाता है. करघे के नए डिजाइन में, फुट पेडल से जेकक्वार्ड तक बिजली का यांत्रिक संचरण रोलर्स और रस्सियों के उचित स्थान की मदद से किया जाता है.

यह भी पढ़ें- लखनऊ यूनिवर्सिटी में शिक्षक कर रहे बायोमेट्रिक अटेंडेंस का विरोध, यह है मामला

बनारस हथकरघा उद्योग के विकास पर कार्य कर रहे मैकेनिकल इंजीनियरिंग के शोध छात्र एम. कृष्ण प्रसन्ना नाइक ने बताया कि महिला बुनकरों के लिए करघे से बाहर निकलना मुश्किल होता है, क्योंकि करघे की सीट फ्रेम से जुड़ी होती है लेकिन नए डिजाइन किए गए करघे में, सीट को एर्गाेनॉमिक रूप से बनाया गया है. इसे एक तरफ तय नहीं किया गया है. इसमें खोलने और बंद करने का विकल्प होता है, जिससे महिला बुनकर आसानी से करघे के अंदर प्रवेश कर सकें. इस डिजाइन में बांस स्टिक फुट पैडल को ठोस लकड़ी के पैडल से बदल दिया जाता है. इस वजह से, पैरों पर तनाव समान रूप से वितरित किया जाएगा. यह पैरों के पैडल की गति को कम करता है, इसलिए बुनकर सुचारू रूप से संचालन कर सकते हैं. जबकि इन हथकरघों का उपयोग रामनगर स्थित सहकारी समिति में किया गया जो सफल रहा.

वहीं, रामनगर स्थित अंगिका सहकारी समिति के अध्यक्ष अमरेश कुशवाहा ने कहा कि एक से दो घंटे तक लकड़ी के तख्ते पर बैठने के बाद बुनकर शरीर में दर्द के कारण काम से हट जाते थे. ऐसे में करघे से बाहर निकलना भी मुश्किल होता है. लेकिन यह सीट बैकरेस्ट और लकड़ी के फुट पैडल के साथ एर्गाेनॉमिक रूप से डिजाइन किए गए. इस करघे का उपयोग करने के बाद हमें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली. बुनकर भी बहुत खुश थे और उन्होंने कहा कि वे इस नए डिजाइन किए गए करघे पर काम करेंगे.

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वाराणसी: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग (औद्योगिक प्रबंधन) की एक टीम राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के अवसर पर हथकरघा बुनकरों के लिए एर्गाेनॉमिक रूप से डिजाइन करघा लेकर आई है. कहा जा रहा है कि यह करघा बुनकरों को अधिक आराम प्रदान करेगा, जिससे बुनकरों को लंबे वक्त तक बैठ कर काम करने से होने वाले मस्कुलोस्केलेटल विकारों का खतरा कम होगा.

मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डॉ. प्रभास भारद्वाज ने बताया कि हथकरघा बुनकरों को एक जगह बैठकर रोजाना कम से कम 8-12 घंटे काम करना पड़ता है. इस वजह से उन्हें मस्कुलोस्केलेटल दर्द के लक्षणों का सामना करना पड़ रहा है. वाराणसी में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार अधिकांश बुनकर पीठ के निचले हिस्से, जांघ, पैर, टखने और गर्दन में दर्द से पीड़ित हैं. यह करघों के मौजूदा डिजाइन में बुनकरों के काम करने की मुद्रा के कारण है. वर्तमान में उपयोग किए जाने वाले पारंपरिक करघे, शाफ्ट और जेकक्वार्ड को बांस की छड़ियों को दबाकर उठाया जाता है, जो एक फुट पेडल के रूप में काम करते हैं और वे रस्सियों की मदद से जुड़े होते हैं, जो बुनकर की सीट के पीछे चलती है. बुनते समय ये रस्सियां कभी-कभी बुनकर की पीठ को छूकर बुनकर के चलने-फिरने में समस्या पैदा कर देती हैं. यह सीट डिजाइन में भी एक प्रतिबंध बनाता है. करघे के नए डिजाइन में, फुट पेडल से जेकक्वार्ड तक बिजली का यांत्रिक संचरण रोलर्स और रस्सियों के उचित स्थान की मदद से किया जाता है.

यह भी पढ़ें- लखनऊ यूनिवर्सिटी में शिक्षक कर रहे बायोमेट्रिक अटेंडेंस का विरोध, यह है मामला

बनारस हथकरघा उद्योग के विकास पर कार्य कर रहे मैकेनिकल इंजीनियरिंग के शोध छात्र एम. कृष्ण प्रसन्ना नाइक ने बताया कि महिला बुनकरों के लिए करघे से बाहर निकलना मुश्किल होता है, क्योंकि करघे की सीट फ्रेम से जुड़ी होती है लेकिन नए डिजाइन किए गए करघे में, सीट को एर्गाेनॉमिक रूप से बनाया गया है. इसे एक तरफ तय नहीं किया गया है. इसमें खोलने और बंद करने का विकल्प होता है, जिससे महिला बुनकर आसानी से करघे के अंदर प्रवेश कर सकें. इस डिजाइन में बांस स्टिक फुट पैडल को ठोस लकड़ी के पैडल से बदल दिया जाता है. इस वजह से, पैरों पर तनाव समान रूप से वितरित किया जाएगा. यह पैरों के पैडल की गति को कम करता है, इसलिए बुनकर सुचारू रूप से संचालन कर सकते हैं. जबकि इन हथकरघों का उपयोग रामनगर स्थित सहकारी समिति में किया गया जो सफल रहा.

वहीं, रामनगर स्थित अंगिका सहकारी समिति के अध्यक्ष अमरेश कुशवाहा ने कहा कि एक से दो घंटे तक लकड़ी के तख्ते पर बैठने के बाद बुनकर शरीर में दर्द के कारण काम से हट जाते थे. ऐसे में करघे से बाहर निकलना भी मुश्किल होता है. लेकिन यह सीट बैकरेस्ट और लकड़ी के फुट पैडल के साथ एर्गाेनॉमिक रूप से डिजाइन किए गए. इस करघे का उपयोग करने के बाद हमें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली. बुनकर भी बहुत खुश थे और उन्होंने कहा कि वे इस नए डिजाइन किए गए करघे पर काम करेंगे.

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