वाराणसी: काशीपुराधिपति, देवों के देव महादेव शुक्रवार को भक्तों के रंग में रंगे नजर आए. मौका था रंगभरी एकादशी का और काशी की व पौराणिक परंपरा निभाई गई जिसके लिए काशी को जाना जाता है. यह परंपरा रंगभरी एकादशी पर माता पार्वती के गौने के रूप में मनाई जाती है. महाशिवरात्रि के बाद माता पार्वती को विदा करके भगवान शंकर के साथ रवाना किया जाता है और भोलेनाथ महंत आवास से माता पार्वती को लेकर श्री काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचते हैं. जहां भक्त उनके साथ जमकर होली खेलते हैं और कुछ ऐसा नजारा आज काशी में देखने को मिला जिसे देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध था.
बृज की होली की बात निराली है लेकिन काशी की होली अद्भुत होती है और इसी अद्भुत होली का आनंद आज काशी में भक्तों ने लिया रंगभरी एकादशी के दिन महंत कुलपति तिवारी के आवास पर चांदी की चल रजत प्रतिमा के रूप में बाबा विश्वनाथ माता पार्वती और गोद में विराजमान भगवान गणेश ने भक्तों को दर्शन दिए. परंपरा के अनुरूप महाशिवरात्रि के बाद माता पार्वती की विदाई करवाने के लिए भगवान शंकर काशी आते हैं और महंत आवाज जो गौरा के मायके के रूप में जाना जाता है वहां पर भगवान शंकर की दो दिनों तक आव भगत करने के बाद माता गौरा को रंगभरी एकादशी के दिन चांदी की पालकी पर बैठाकर भगवान भोलेनाथ के साथ विदा किया जाता है.
जब भोलेनाथ माता पार्वती को लेकर निकलते हैं उस वक्त भक्त उन पर पहला गुलाल अर्पित करके इस खुशी को मनाते हैं और भोलेनाथ से आने वाली होली पर रंग खेलने की अनुमति भी मांगते हैं. इसी पुरानी परंपरा को कई 100 सालों से निभाया जा रहा है और आज यह परंपरा फिर से निभाई गई. काशी में रजत पालकी पर भक्तों के कंधे पर सवार होकर भोलेनाथ और माता पार्वती की पालकी जब शहर की परिक्रमा करते हुए बाबा विश्वनाथ के मंदिर में पहुंची तो अद्भुत नजारा देखने को मिला. बाबा विश्वनाथ के भव्य विश्वनाथ धाम परिसर में लाखों की संख्या में मौजूद श्रद्धालु हर-हर महादेव के जयघोष के साथ जमकर अबीर गुलाल उड़ा रहे थे. पूरे रास्ते जिन गलियों से भोलेनाथ की पालकी गुजर रही थी वहां भी लोग एक स्पर्श के लिए अपनी बारी का इंतजार करते हुए भोलेनाथ पर गुलाल अर्पित कर रहे थे. घर खिड़की बालकनी और छतों से पुष्प वर्षा और अबीर गुलाल की बारिश की जा रही थी.
यह अद्भुत नजारा शायद ही और किसी शहर में देखने को मिले अपनी अर्धांगिनी के साथ अपने घर पहुंच रहे भोलेनाथ का पूरी काशी ने आज भव्य तरीके से स्वागत किया. एक राजा की तरह राज्य शाही पगड़ी पहनकर पर स्थापित की गई और भव्य आरती के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बीच रंगभरी एकादशी का पर्व काशी में उल्लास के साथ मनाया.
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