वाराणसी: भगवान भोले और मां पार्वती की नगरी काशी में लोग मिलजुल कर रहते हैं और सभी धर्मों का आदर करते हैं. इनका मानना है कि सभी लोग भाई बन्धु हैं. पूरी दुनिया एक ही माता पिता की संतान हैं. फिर आपस में बैर क्यों करना. बस कुछ मुट्ठीभर लोग हैं जो मजहब और समाज में जहर फैलाते हैं. हम बेहद खुशनसीब हैं कि गंगा यमुना संस्कृति की डोर को मजबूत करने में एक छोटी सी जिम्मेदारी निभा रहे हैं और जिम्मेदारी के तहत हमे भगवान भोले की सेवा का अवसर मिला है.
काशी के लल्लापुरा इलाके में रहने वाले मोहम्मद गयासुद्दीन का भी यही मानना है. यूं तो मोहम्मद गयासुद्दीन इस्लाम धर्म से हैं. लेकिन, वह गंगा यमुना संस्कृति को मजबूत करते हुए बाबा विश्वनाथ की सेवा करते हैं. बड़ी बात यह है कि उनकी सेवा उनका पूरा परिवार एक दो नहीं बल्कि 5 पीढ़ियों से करता आ रहा है. ये परिवार हर बार बाबा विश्वनाथ के लिए अलग-अलग तरीके की पगड़ी तैयार करता है.
अकबरी पगड़ी में नजर आएंगे बाबा विश्वनाथ
मोहम्मद गयासुद्दीन ने बताया कि, उन्होंने बाबा विश्वनाथ के लिए इस बार अकबरी पगड़ी बनाई है. जिसे तैयार करने में लगभग एक सप्ताह का समय लगा है. इस पगड़ी को बनाने में जरी, रेशम व सिल्क के कपड़े, नगीने, दफ्ती, जरी, जरदोजी, मोती व पंख इत्यादि सामान लगे हैं. इस बार की अकबरी पगड़ी सुर्ख लाल रंग में बनाई गई है, जो बाबा विश्वनाथ पर खूब जचेगी.
निःशुल्क करते हैं बाबा की सेवा
मोहम्मद गयासुद्दीन बताते हैं कि, इस पगड़ी को बनाने में साफ सफाई का भी खासा ख्याल रखते हैं. इसके साथ ही वह इसे बनाने का कोई शुल्क नहीं लेते. यह उनके लिए बेहद गर्व की बात है कि उन्हें बाबा की सेवा करने का अवसर मिला है. गयासुद्दीन की यह कला काशी की गंगा यमुना तहजीब की डोर को और भी ज्यादा मजबूती के साथ पकड़े हुए है.
ढाई सौ साल पहले लखनऊ से बनारस आई पगड़ी कला
मोहम्मद गयासुद्दीन बताते हैं कि, उनके परदादा हाजी छेदी लखनऊ से इस कला को लेकर बनारस आए थे, जहां बाबा विश्वनाथ ने उन्हें अपनी शरण में जगह दी और वह काशी के होकर के रह गए. पहली बार लगभग ढाई सौ साल पहले उनके परदादा ने काशी की तरबियत को समझते हुए, गंगा यमुना तहजीब की नींव रख बाबा विश्वनाथ के लिए पगड़ी बनाई, जिसे बाबा विश्वनाथ और काशी के लोगों ने स्वीकार किया और उसके बाद से यह पगड़ी बनाने का सिलसिला शुरू हो गया.
पांच पीढ़ियों से परिवार बना रहा पगड़ी
गयासुद्दीन ने बताया कि उनके परदादा हाजी छेदी के बाद उनके पुत्र हाजी अब्दुल गफूर, फिर मोहम्मद जहूर, उसके बाद उनके पुत्र स्वयं मोहम्मद गयासुद्दीन इस परंपरा को संभाल रहे हैं और अब इसे आगे बढ़ाने में उनके चारों पुत्र और उनके पौत्र भी मदद कर रहे हैं. इस पगड़ी को बनाने में न सिर्फ उन्हें खुशी मिलती है, बल्कि बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद भी मिलता है. जो उनके लिए मेहनताना और उनके परिवार की खुशियों का कारण है.
कैसे बनती है पगड़ी
गयासुद्दीन ने बताया कि, पगड़ी को तैयार करने के लिए सबसे पहले कागज की दफ्ती से एक खाका तैयार किया जाता है और उसके ऊपर सूती कपड़े से मजबूती दी जाती है. इसके बाद रेशम और बनारसी सिल्क के कपड़े से पगड़ी की ऊपरी सतह को बनाया जाता है. उसके बाद उसमें जरी जरदोजी व अन्य नगीने व पंखों को लगा कर पगड़ी को तैयार किया जाता है.
रंगभरी एकादशी के दिन बाबा पगड़ी के साथ होंगें तैयार
बताते चलें कि, रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ गयासुद्दीन के द्वारा बनाई गई खास पगड़ी को पहनकर मां गौरा का गौना लेने आते हैं. जहां से काशी में होली की शुरुआत भी मानी जाती है. इस बार 3 मार्च को रंगभरी एकादशी का त्योहार मनाया जाएगा. इस दिन ढोल नगाड़े डमरु की थाप व शंखनाद के साथ बाबा विश्वनाथ रजत पालकी में सवार होकर के मां गौरा का गाना लेने के लिए जाएंगे. खास बात यह है कि इस बार बाबा विश्वनाथ की खास वेशभूषा होगी. बाबा विश्वनाथ जहां खादी के धोती कुर्ता व अकबरी पगड़ी में विराजमान होंगे, तो वही मां गौरा बनारसी सिल्क की साड़ी में नजर आएंगी.