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ज्ञानवापी के तहखानों का क्या है राज? ईटीवी भारत Exclusive

29 साल बाद अब ज्ञानवापी परिसर में मौजूद तहखानों का राज बाहर आ रहा है, लेकिन यह जानना जरूरी है कि आखिर इन तहखानों की हकीकत क्या है. इसी हकीकत को जानने के लिए ईटीवी भारत ने उस शख्स से मुलाकात की, जो परिसर में मौजूद दो तहखानों में से एक का मालिक है और उसने इन तहखानों से जुड़े कई अहम बातें बताई.

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Published : May 15, 2022, 9:52 AM IST

Updated : May 16, 2022, 8:37 AM IST

वाराणसी: 1992 में अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद उन सभी मस्जिदों पर पहरा बढ़ा दिया गया, जिनके बारे में यह कहा जाता था कि इन मस्जिदों का निर्माण मंदिरों को तोड़कर किया गया है. इनमें एक ओर जहां मथुरा में कृष्ण जन्मस्थान मंदिर शामिल था तो दूसरी ओर बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद थी. यहां मस्जिद को लोहे की ऊंची दीवारों से कवर कर दिया गया. ऐसे में 29 साल पहले यानी 1992 के बाद ज्ञानवापी परिसर के हर हिस्से में दफन राज अंदर ही रह गया था. बावजूद इसके सभी को उम्मीद थी कि इसके भीतर दफन राज किसी न किसी दिन जरूर बाहर आएगा. वहीं, कानूनी अड़चनों की वजह से ज्ञानवापी परिसर में प्रवेश तो दूर इसकी दीवारों को छूना भी मुश्किल था. लेकिन श्रृंगार गौरी मामले में दायर याचिका के बाद बनाए गए कमीशन की कार्यवाही के तहत मस्जिद परिसर की वीडियोग्राफी सर्वे करने के आदेश के उपरांत शनिवार को वह चीजें बाहर आई जिसका इंतजार 29 सालों से हर किसी को था, क्योंकि 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद 4 जनवरी, 1993 को तत्कालीन जिलाधिकारी सौरभ चंद्र के निर्देशन में मस्जिद के तीन कमरें, जिन्हें तहखाना कहा जाता है में ताला लगा दिया गया.

तहखानों की हकीकत: हालांकि, इसके पहले इन सभी तहखानों में आम जनमानस का आना-जाना लगा रहता था. इन तीनों तहखानों का राज अब 29 साल बाद फिर से बाहर आ रहा है, लेकिन यह जानना जरूरी है कि आखिर इन तहखानों की हकीकत क्या है? क्या वाकई में इनके अंदर सांपों का बसेरा है या फिर शिवलिंग या हिंदुओं की आस्था से जुड़े मंदिरों के अवशेष विद्यमान हैं? इन्हीं सवालों का जवाब तलाशते हुए हम उस व्यक्ति के पास पहुंच गए, जो वर्तमान में मस्जिद परिसर के अंदर मौजूद दो तहखानों में से एक के मालिक है. जी हां, आप ने सही सुना तहखाने के मालिक, क्योंकि जब विवाद शुरू हुआ तो अंदर मौजूद दो तहखाने में से एक हिंदू पक्ष के पंडित सोमनाथ व्यास के पास रहा. जबकि दूसरा हिस्सा यानी दूसरा तहखाना मस्जिद की देखरेख करने वाली कमेटी अंजुमन इंतजामियां मसाजिद के हिस्से में गया. वहीं जिसे तीसरा तहखाना बताया जा रहा है, वो दरअसल तहखाना है ही नहीं, बल्कि श्रृंगार गौरी यानी पश्चिमी गेट पर स्थित मस्जिद की गैलरी से होते हुए ऊपर जाने का एक रास्ता है.

इसे भी पढ़ें - ज्ञानवापी मस्जिद मामला : सर्वे के नतीजे के पहले जानिए ज्ञानवापी मस्जिद का सच

व्यास की वसीयत: चलिए हम आपको इस पूरे मामले की सच्चाई बताते हैं. दरअसल, 18 अप्रैल, 1669 को औरंगजेब ने पुराने श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करके वहां ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवाया था. उस वक्त मुगलों के आगे किसी की नहीं चली थी, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया और देश आजाद हुआ तो उसके बाद इस पुराने मंदिर परिसर को लेकर कागजी कार्यवाही शुरू हुई. ज्ञानवापी परिसर में हमेशा से ही व्यास परिवार का कब्जा हुआ करता था और कानूनी दस्तावेजों पर गौर करें तो पाएंगे कि ज्ञानवापी परिसर और ज्ञानवापी मस्जिद में मौजूद दो तहखाने में से एक के मालिक पंडित बैजनाथ व्यास ने अपनी वसीयत अपने नाती पंडित सोमनाथ व्यास समेत अन्य तीन नातियों के नाम कर दी. जिसमें ज्ञानवापी समेत मस्जिद परिसर में मौजूद एक तहखाने और ज्ञानवापी हाता व यहां मौजूद उनके घर पर नातियों का हक हो गया.

तहखाने की 'तह' में छुपे कई राज

लॉर्ड विश्वेश्वर विश्वनाथ वर्सेस अंजुमन इंतजामियां मसाजिद: 1991 में पंडित सोमनाथ व्यास ने 610/1991 के तहत कोर्ट में लॉर्ड विश्वेश्वर विश्वनाथ वर्सेस अंजुमन इंतजामियां मसाजिद के खिलाफ एक केस दायर किया. जिसमें तीन अन्य वादी बनाए गए. इसमें उन्होंने ज्ञानवापी परिसर और मस्जिद पर हिंदुओं का हक बताया और इस पर पूजा-पाठ का अधिकार मानते हुए इसे हिंदुओं को सुपुर्द करने की मांग की और यहीं से इस पूरे मामले में विवाद शुरू हुआ. हालांकि, 2019 में अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने कोर्ट से इस पूरे प्रकरण में ज्ञानवापी मस्जिद का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की मांग की थी, लेकिन अंजुमन इंतजामियां ने इस पर स्टे ले लिया और मामला हाईकोर्ट में चला गया.

ज्ञानवापी में एक तहखाने के मालिक पं. शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास
ज्ञानवापी में एक तहखाने के मालिक पं. शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास

ऐसे बढ़ा विवाद: खैर, इसका सर्वेक्षण हो या न हो, लेकिन इस विवाद के बाद श्रृंगार गौरी मामले ने तूल पकड़ लिया और नियमित दर्शन को लेकर 5 महिलाओं ने एक याचिका दायर की, जिसमें कमीशन बनाने की मांग की गई. साथ ही कोर्ट ने नए सिरे से ज्ञानवापी परिसर में सर्वे कराने के आदेश दिए. वहीं, सबसे बड़ी बात यह है कि 6-7 मई को कार्यवाही शुरू हुई, लेकिन वो पूरी नहीं हो सकी. इसके बाद शनिवार यानी 14 मई को फिर से कोर्ट के आदेश पर ज्ञानवापी परिसर में स्थित तीनों तहखानों की सर्वे को टीम पहुंची, जिसमें कई राज दफन होने का अंदेशा है. इस बीच नाटकीय तरीके से चीजों लगातार सामने आती रही और बयानों के दौर भी चले. कुछ ने तीन तहखाने होने की बात कही तो कुछ ने तहखानों की संख्या 4 बताई.

स्वर्गीय पं. सोमनाथ व्यास के दमाम पं. आशाराम पाठक
स्वर्गीय पं. सोमनाथ व्यास के दमाम पं. आशाराम पाठक

इधर, ईटीवी भारत ने इन सभी तहखानों की हकीकत जानने को सीधे उस व्यक्ति से संपर्क किया जो वर्तमान में यहां मौजूद दो तहखाने में से एक का मालिक है. ऐसे में हम सीधे पंडित सोमनाथ व्यास के घर पहुंचे. हालांकि, साल 2000 में सोमनाथ व्यास का निधन हो चुका है. लेकिन मरने से पहले उन्होंने अपनी वसीयत में अपने नाती पंडित शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास और पंडित जैनेंद्र कुमार पाठक को अपना वारिस बना दिया था और ज्ञानवापी परिसर में चलने वाले मुकदमे से लेकर सारी संपत्ति का मालिकाना हक इनको मिल गया. यहां तक कि उस तहखाने का भी, जिसको 29 साल बाद 14 मई को कोर्ट के आदेश पर खोला गया.

तीन नहीं दो हैं तहखाने: ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए शैलेंद्र पाठक ने बताया कि तहखाना दो ही है. एक की चाबी उनके पास और प्रशासन के पास है. जबकि दूसरा तहखाना चाबी अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी के अधीन हैं. वहां भी एक ताले की दो चाबी है. जिसमें से एक प्रशासन के पास और एक मस्जिद कमेटी के पास है. सभी तालों को खोलने के लिए चाबियां उपलब्ध करवाई गई थी. कोई भी ताला तोड़ा नहीं गया है, लेकिन जो तीसरा तहखाना मीडिया रिपोर्ट में बताया जा रहा है. वो दरअसल तहखाना है ही नहीं, बल्कि श्रृंगार गौरी मंदिर के पिछले हिस्से में मस्जिद के पश्चिमी भाग के थोड़ा सा दूर एक गेट है, जो गैलरीनुमा हिस्से में खुलकर सीढ़ियों से ऊपर जाता है यानी कमेटी के ऑफिस के पास वह कोई तहखाना नहीं बल्कि ऊपर जाने का रास्ता है. जिसे तहखाना बताया जा रहा है.

पंडित शैलेंद्र पाठक ने बताया कि जैसा कि शोर है कि तहखाने में बहुत से राज मिले है तो यह जांच का विषय है, क्योंकि वह तो बचपन से ही उस तहखाने में आते जाते रहे हैं. लेकिन 1992 के बाद प्रशासन ने यहां ताला लगा दिया. उन्होंने बताया कि 1992 से पहले यहां व्यास जी पूजा किया करते थे. अंदर व्यासपीठ से संबंधित सभी सामान रखे जाते थे. उन्होंने आगे बताया तहखाने के अंदर ऐसे तो कुछ नहीं मिलेगा, लेकिन यदि खुदाई की जाएगी तो निश्चित तौर पर बड़ी संख्या में टूटे-फूटे शिवलिंग और देव विग्रह मिलेंगे. उनका कहना था कि दोनों हिस्से पर दो तहखाने हैं. एक दक्षिणी छोर यानी नंदी हिस्से से प्रवेश लेता है, जिस पर हम लोगों का अधिकार है. जबकि दूसरा तहखाना उत्तरी हिस्से से प्रवेश लेता है. जिस पर अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी का अधिकार है.

पं. शैलेंद्र ने बताया कि दक्षिणी हिस्से से प्रवेश लेने वाले तहखाने में कार्तिक महीने में हर वर्ष ज्ञानवापी परिसर में होने वाली रामायण के खत्म होने के बाद तंबू के सारे सामान से लेकर रामायण और अन्य सामग्री रखी जाती थी. व्यास जी यानी मेरे नानाजी बचपन में मुझे लेकर जाते थे. वहां जाने के बाद अंदर पूजा-पाठ भी होता था, क्योंकि बिजली का कनेक्शन नहीं था इसलिए लालटेन या ढीबरी से हम लोग काम चलाते थे और आज भी तहखाने के अंदर बिजली का कनेक्शन नहीं है. पंडित शैलेंद्र का कहना है कि इस तहखाने के अंदर कुछ टूटी फूटी मूर्तियां आज भी मिल जाएंगी. जिनकी पूजा हम लोग करते थे, लेकिन दूसरे तहखाने के अंदर कुछ भी नहीं है, क्योंकि वहां पर एक चाय की और कोयले की दुकान हुआ करती थी. जबकि बाहरी हिस्से में चूड़ी की एक दुकान और कुछ श्रृंगार के सामानों की दुकान होती थी. जिसे बाद में बंद करवा दिया गया और प्रशासन ने इस पर ताला जड़ दिया था.

वहीं, पंडित सोमनाथ व्यास की बेटी का 1973 में पंडित आशाराम व्यास से विवाह हुआ. इस संपत्ति में पंडित आसाराम का भी शुरू से आना-जाना रहा है. उनका कहना है कि मस्जिद और श्रृंगार गौरी मामला भले ही अभी शुरू हुआ हो, लेकिन यहां अपने आप में जांच का विषय है कि किसी मस्जिद के अंदर हिंदू का हिस्सा कैसे हो सकता है. यह अपने आप में बताने के लिए काफी है कि मस्जिद के अंदर हिंदू हिस्सेदार का होना ही तहखाने के राज को खोलने के लिए काफी है. उनका साफ तौर पर कहना था कि व्यास जी की 2000 में हुई मृत्यु के बाद 1991 में दाखिल ज्ञानवापी विश्वनाथ मंदिर मुकदमे की पैरवी भी पंडित शैलेंद्र कुमार पाठक की ओर से की जा रही है. इस मालिकाना हक वाले हिस्से में मंदिर के नक्काशीदार खंबे जिसमें कमल पुष्प और शंख, घंटी इत्यादि के निशान मौजूद हैं.

इतना ही नहीं भगवान विश्वेश्वर का असली शिवलिंग भी इस स्थान पर मौजूद है. जिसे उस वक्त आतताई औरंगजेब और उसकी सेना ने पत्थरों से ढक कर मिट्टी से पाट कर नीचे दफन कर दिया है. इस जमीन के अंदर सैकड़ों शिवलिंग और अन्य चीजें भी मौजूद हैं. इसलिए सिर्फ वीडियोग्राफी सर्वे से यह तथ्य सामने आने वाला नहीं है. ऐसे में जरूरत है कि तहखाने में क्या है और अगर तहखाने की सच्चाई जाननी है तो अंदर खुदाई करवानी होगी. खुदाई के बाद बहुत से ऐसे राज बाहर आएंगे जिसका सभी को इंतजार है. अभी तो सिर्फ अंदर आपको मलवा गंदगी कूड़ा ही मिलेगा.

वहीं, इस पूरे मामले में ईटीवी भारत ने उस व्यक्ति से भी बातचीत की जिसने श्रृंगार गोरी मामले में मंदिर में दर्शन बंद होने के बाद लंबे वक्त तक कानूनी लड़ाई लड़ कर मंदिर में नवरात्र चतुर्थी पर दर्शन की अनुमति सरकारी तौर पर ली. यह व्यक्ति गुलशन कपूर हैं. बता दें कि विश्वनाथ मंदिर ज्ञानवापी क्षेत्र से महज 5 मकान के बाद ही इनका मकान हुआ करता था, जो अब नहीं है. गुलशन का कहना है कि उनका बचपन ज्ञानवापी परिसर में ही बीता है. बचपन में वह ज्ञानवापी के अंदर जाते थे. तहखाने में पहुंचते थे. व्यास जी और उनके परिवार के साथ अंदर पूजा-पाठ में भी शामिल होते थे.

श्रृंगार गौरी मंदिर में नियमित रूप से दर्शन करने वालों में उनके परिवार के अधिकांश सदस्य शामिल थे. कभी रोक-टोक नहीं रही, लेकिन 1992 में जब मामला बिगड़ा तो उसके बाद 1993 में यहां दर्शन पूजन पर रोक लगा दी गई और देखते ही देखते 1998 में यहां पूरी तरह से दर्शन पूजन पर रोक लग गई. जिसका विरोध हिंदूवादी संगठनों ने किया था और लगातार उनके नेतृत्व में कई बार लोगों ने गिरफ्तारियां भी दी. गुलशन का कहना है कि लगातार लड़ाई लड़ते-लड़ते 2006 के बाद यहां उन्हें हर चैत्र नवरात्रि के चतुर्थी पर दर्शन करने की अनुमति न्यायिक तौर पर मिली और व्यास परिवार की उपस्थिति में वो यहां विधिवत पूजा-पाठ करते हैं. उन्होंने बताया कि जहां तक तहखाने की बात है तो यहां केवल दो ही तहखाने हैं. हालांकि, जिसे तीसरा तहखाना बताया जा रहा है कि वो ऊपर जाने का रास्ता है.

बाहर कुछ दुकानें हैं जो अंजुमन इंतजामियां के हिस्से वाले तहखाने का हिस्सा है. फर्स्ट फ्लोर पर तीन हॉल, चार बड़े कमरें भी मौजूद हैं. इसके अलावा अंदर वजू के लिए एक तालाब भी है तो वहीं तहखाने के दो हिस्से एक दक्षिण और एक उत्तर में मौजूद हैं. गुलशन ने बताया कि 1998 में यहां पूरी तरह से दर्शन बंद होने के बाद हम लोगों ने इसका विरोध शुरू हुआ तो 2006 में एक अधिकारी ने मस्जिद परिसर की साफ-सफाई और पेंट का काम शुरू करवाया. उस समय भी हिंदूवादी संगठनों ने काफी विरोध किया था, लेकिन उस वक्त साफ-सफाई के नाम पर अंदर मौजूद तहखाने के मलबे और कई मूर्तियों को निकाल कर बाहर फेंक दिया गया. इसलिए अंदर इस समय कुछ ऐसा मौजूद नहीं है, जो हिंदुओं की आस्था से जुड़ा हो. लेकिन यह पक्का है कि अंदर हिंदू सभ्यता से जुड़े कई राज आज भी दफन हैं.

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वाराणसी: 1992 में अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद उन सभी मस्जिदों पर पहरा बढ़ा दिया गया, जिनके बारे में यह कहा जाता था कि इन मस्जिदों का निर्माण मंदिरों को तोड़कर किया गया है. इनमें एक ओर जहां मथुरा में कृष्ण जन्मस्थान मंदिर शामिल था तो दूसरी ओर बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद थी. यहां मस्जिद को लोहे की ऊंची दीवारों से कवर कर दिया गया. ऐसे में 29 साल पहले यानी 1992 के बाद ज्ञानवापी परिसर के हर हिस्से में दफन राज अंदर ही रह गया था. बावजूद इसके सभी को उम्मीद थी कि इसके भीतर दफन राज किसी न किसी दिन जरूर बाहर आएगा. वहीं, कानूनी अड़चनों की वजह से ज्ञानवापी परिसर में प्रवेश तो दूर इसकी दीवारों को छूना भी मुश्किल था. लेकिन श्रृंगार गौरी मामले में दायर याचिका के बाद बनाए गए कमीशन की कार्यवाही के तहत मस्जिद परिसर की वीडियोग्राफी सर्वे करने के आदेश के उपरांत शनिवार को वह चीजें बाहर आई जिसका इंतजार 29 सालों से हर किसी को था, क्योंकि 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद 4 जनवरी, 1993 को तत्कालीन जिलाधिकारी सौरभ चंद्र के निर्देशन में मस्जिद के तीन कमरें, जिन्हें तहखाना कहा जाता है में ताला लगा दिया गया.

तहखानों की हकीकत: हालांकि, इसके पहले इन सभी तहखानों में आम जनमानस का आना-जाना लगा रहता था. इन तीनों तहखानों का राज अब 29 साल बाद फिर से बाहर आ रहा है, लेकिन यह जानना जरूरी है कि आखिर इन तहखानों की हकीकत क्या है? क्या वाकई में इनके अंदर सांपों का बसेरा है या फिर शिवलिंग या हिंदुओं की आस्था से जुड़े मंदिरों के अवशेष विद्यमान हैं? इन्हीं सवालों का जवाब तलाशते हुए हम उस व्यक्ति के पास पहुंच गए, जो वर्तमान में मस्जिद परिसर के अंदर मौजूद दो तहखानों में से एक के मालिक है. जी हां, आप ने सही सुना तहखाने के मालिक, क्योंकि जब विवाद शुरू हुआ तो अंदर मौजूद दो तहखाने में से एक हिंदू पक्ष के पंडित सोमनाथ व्यास के पास रहा. जबकि दूसरा हिस्सा यानी दूसरा तहखाना मस्जिद की देखरेख करने वाली कमेटी अंजुमन इंतजामियां मसाजिद के हिस्से में गया. वहीं जिसे तीसरा तहखाना बताया जा रहा है, वो दरअसल तहखाना है ही नहीं, बल्कि श्रृंगार गौरी यानी पश्चिमी गेट पर स्थित मस्जिद की गैलरी से होते हुए ऊपर जाने का एक रास्ता है.

इसे भी पढ़ें - ज्ञानवापी मस्जिद मामला : सर्वे के नतीजे के पहले जानिए ज्ञानवापी मस्जिद का सच

व्यास की वसीयत: चलिए हम आपको इस पूरे मामले की सच्चाई बताते हैं. दरअसल, 18 अप्रैल, 1669 को औरंगजेब ने पुराने श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करके वहां ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवाया था. उस वक्त मुगलों के आगे किसी की नहीं चली थी, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया और देश आजाद हुआ तो उसके बाद इस पुराने मंदिर परिसर को लेकर कागजी कार्यवाही शुरू हुई. ज्ञानवापी परिसर में हमेशा से ही व्यास परिवार का कब्जा हुआ करता था और कानूनी दस्तावेजों पर गौर करें तो पाएंगे कि ज्ञानवापी परिसर और ज्ञानवापी मस्जिद में मौजूद दो तहखाने में से एक के मालिक पंडित बैजनाथ व्यास ने अपनी वसीयत अपने नाती पंडित सोमनाथ व्यास समेत अन्य तीन नातियों के नाम कर दी. जिसमें ज्ञानवापी समेत मस्जिद परिसर में मौजूद एक तहखाने और ज्ञानवापी हाता व यहां मौजूद उनके घर पर नातियों का हक हो गया.

तहखाने की 'तह' में छुपे कई राज

लॉर्ड विश्वेश्वर विश्वनाथ वर्सेस अंजुमन इंतजामियां मसाजिद: 1991 में पंडित सोमनाथ व्यास ने 610/1991 के तहत कोर्ट में लॉर्ड विश्वेश्वर विश्वनाथ वर्सेस अंजुमन इंतजामियां मसाजिद के खिलाफ एक केस दायर किया. जिसमें तीन अन्य वादी बनाए गए. इसमें उन्होंने ज्ञानवापी परिसर और मस्जिद पर हिंदुओं का हक बताया और इस पर पूजा-पाठ का अधिकार मानते हुए इसे हिंदुओं को सुपुर्द करने की मांग की और यहीं से इस पूरे मामले में विवाद शुरू हुआ. हालांकि, 2019 में अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने कोर्ट से इस पूरे प्रकरण में ज्ञानवापी मस्जिद का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की मांग की थी, लेकिन अंजुमन इंतजामियां ने इस पर स्टे ले लिया और मामला हाईकोर्ट में चला गया.

ज्ञानवापी में एक तहखाने के मालिक पं. शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास
ज्ञानवापी में एक तहखाने के मालिक पं. शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास

ऐसे बढ़ा विवाद: खैर, इसका सर्वेक्षण हो या न हो, लेकिन इस विवाद के बाद श्रृंगार गौरी मामले ने तूल पकड़ लिया और नियमित दर्शन को लेकर 5 महिलाओं ने एक याचिका दायर की, जिसमें कमीशन बनाने की मांग की गई. साथ ही कोर्ट ने नए सिरे से ज्ञानवापी परिसर में सर्वे कराने के आदेश दिए. वहीं, सबसे बड़ी बात यह है कि 6-7 मई को कार्यवाही शुरू हुई, लेकिन वो पूरी नहीं हो सकी. इसके बाद शनिवार यानी 14 मई को फिर से कोर्ट के आदेश पर ज्ञानवापी परिसर में स्थित तीनों तहखानों की सर्वे को टीम पहुंची, जिसमें कई राज दफन होने का अंदेशा है. इस बीच नाटकीय तरीके से चीजों लगातार सामने आती रही और बयानों के दौर भी चले. कुछ ने तीन तहखाने होने की बात कही तो कुछ ने तहखानों की संख्या 4 बताई.

स्वर्गीय पं. सोमनाथ व्यास के दमाम पं. आशाराम पाठक
स्वर्गीय पं. सोमनाथ व्यास के दमाम पं. आशाराम पाठक

इधर, ईटीवी भारत ने इन सभी तहखानों की हकीकत जानने को सीधे उस व्यक्ति से संपर्क किया जो वर्तमान में यहां मौजूद दो तहखाने में से एक का मालिक है. ऐसे में हम सीधे पंडित सोमनाथ व्यास के घर पहुंचे. हालांकि, साल 2000 में सोमनाथ व्यास का निधन हो चुका है. लेकिन मरने से पहले उन्होंने अपनी वसीयत में अपने नाती पंडित शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास और पंडित जैनेंद्र कुमार पाठक को अपना वारिस बना दिया था और ज्ञानवापी परिसर में चलने वाले मुकदमे से लेकर सारी संपत्ति का मालिकाना हक इनको मिल गया. यहां तक कि उस तहखाने का भी, जिसको 29 साल बाद 14 मई को कोर्ट के आदेश पर खोला गया.

तीन नहीं दो हैं तहखाने: ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए शैलेंद्र पाठक ने बताया कि तहखाना दो ही है. एक की चाबी उनके पास और प्रशासन के पास है. जबकि दूसरा तहखाना चाबी अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी के अधीन हैं. वहां भी एक ताले की दो चाबी है. जिसमें से एक प्रशासन के पास और एक मस्जिद कमेटी के पास है. सभी तालों को खोलने के लिए चाबियां उपलब्ध करवाई गई थी. कोई भी ताला तोड़ा नहीं गया है, लेकिन जो तीसरा तहखाना मीडिया रिपोर्ट में बताया जा रहा है. वो दरअसल तहखाना है ही नहीं, बल्कि श्रृंगार गौरी मंदिर के पिछले हिस्से में मस्जिद के पश्चिमी भाग के थोड़ा सा दूर एक गेट है, जो गैलरीनुमा हिस्से में खुलकर सीढ़ियों से ऊपर जाता है यानी कमेटी के ऑफिस के पास वह कोई तहखाना नहीं बल्कि ऊपर जाने का रास्ता है. जिसे तहखाना बताया जा रहा है.

पंडित शैलेंद्र पाठक ने बताया कि जैसा कि शोर है कि तहखाने में बहुत से राज मिले है तो यह जांच का विषय है, क्योंकि वह तो बचपन से ही उस तहखाने में आते जाते रहे हैं. लेकिन 1992 के बाद प्रशासन ने यहां ताला लगा दिया. उन्होंने बताया कि 1992 से पहले यहां व्यास जी पूजा किया करते थे. अंदर व्यासपीठ से संबंधित सभी सामान रखे जाते थे. उन्होंने आगे बताया तहखाने के अंदर ऐसे तो कुछ नहीं मिलेगा, लेकिन यदि खुदाई की जाएगी तो निश्चित तौर पर बड़ी संख्या में टूटे-फूटे शिवलिंग और देव विग्रह मिलेंगे. उनका कहना था कि दोनों हिस्से पर दो तहखाने हैं. एक दक्षिणी छोर यानी नंदी हिस्से से प्रवेश लेता है, जिस पर हम लोगों का अधिकार है. जबकि दूसरा तहखाना उत्तरी हिस्से से प्रवेश लेता है. जिस पर अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी का अधिकार है.

पं. शैलेंद्र ने बताया कि दक्षिणी हिस्से से प्रवेश लेने वाले तहखाने में कार्तिक महीने में हर वर्ष ज्ञानवापी परिसर में होने वाली रामायण के खत्म होने के बाद तंबू के सारे सामान से लेकर रामायण और अन्य सामग्री रखी जाती थी. व्यास जी यानी मेरे नानाजी बचपन में मुझे लेकर जाते थे. वहां जाने के बाद अंदर पूजा-पाठ भी होता था, क्योंकि बिजली का कनेक्शन नहीं था इसलिए लालटेन या ढीबरी से हम लोग काम चलाते थे और आज भी तहखाने के अंदर बिजली का कनेक्शन नहीं है. पंडित शैलेंद्र का कहना है कि इस तहखाने के अंदर कुछ टूटी फूटी मूर्तियां आज भी मिल जाएंगी. जिनकी पूजा हम लोग करते थे, लेकिन दूसरे तहखाने के अंदर कुछ भी नहीं है, क्योंकि वहां पर एक चाय की और कोयले की दुकान हुआ करती थी. जबकि बाहरी हिस्से में चूड़ी की एक दुकान और कुछ श्रृंगार के सामानों की दुकान होती थी. जिसे बाद में बंद करवा दिया गया और प्रशासन ने इस पर ताला जड़ दिया था.

वहीं, पंडित सोमनाथ व्यास की बेटी का 1973 में पंडित आशाराम व्यास से विवाह हुआ. इस संपत्ति में पंडित आसाराम का भी शुरू से आना-जाना रहा है. उनका कहना है कि मस्जिद और श्रृंगार गौरी मामला भले ही अभी शुरू हुआ हो, लेकिन यहां अपने आप में जांच का विषय है कि किसी मस्जिद के अंदर हिंदू का हिस्सा कैसे हो सकता है. यह अपने आप में बताने के लिए काफी है कि मस्जिद के अंदर हिंदू हिस्सेदार का होना ही तहखाने के राज को खोलने के लिए काफी है. उनका साफ तौर पर कहना था कि व्यास जी की 2000 में हुई मृत्यु के बाद 1991 में दाखिल ज्ञानवापी विश्वनाथ मंदिर मुकदमे की पैरवी भी पंडित शैलेंद्र कुमार पाठक की ओर से की जा रही है. इस मालिकाना हक वाले हिस्से में मंदिर के नक्काशीदार खंबे जिसमें कमल पुष्प और शंख, घंटी इत्यादि के निशान मौजूद हैं.

इतना ही नहीं भगवान विश्वेश्वर का असली शिवलिंग भी इस स्थान पर मौजूद है. जिसे उस वक्त आतताई औरंगजेब और उसकी सेना ने पत्थरों से ढक कर मिट्टी से पाट कर नीचे दफन कर दिया है. इस जमीन के अंदर सैकड़ों शिवलिंग और अन्य चीजें भी मौजूद हैं. इसलिए सिर्फ वीडियोग्राफी सर्वे से यह तथ्य सामने आने वाला नहीं है. ऐसे में जरूरत है कि तहखाने में क्या है और अगर तहखाने की सच्चाई जाननी है तो अंदर खुदाई करवानी होगी. खुदाई के बाद बहुत से ऐसे राज बाहर आएंगे जिसका सभी को इंतजार है. अभी तो सिर्फ अंदर आपको मलवा गंदगी कूड़ा ही मिलेगा.

वहीं, इस पूरे मामले में ईटीवी भारत ने उस व्यक्ति से भी बातचीत की जिसने श्रृंगार गोरी मामले में मंदिर में दर्शन बंद होने के बाद लंबे वक्त तक कानूनी लड़ाई लड़ कर मंदिर में नवरात्र चतुर्थी पर दर्शन की अनुमति सरकारी तौर पर ली. यह व्यक्ति गुलशन कपूर हैं. बता दें कि विश्वनाथ मंदिर ज्ञानवापी क्षेत्र से महज 5 मकान के बाद ही इनका मकान हुआ करता था, जो अब नहीं है. गुलशन का कहना है कि उनका बचपन ज्ञानवापी परिसर में ही बीता है. बचपन में वह ज्ञानवापी के अंदर जाते थे. तहखाने में पहुंचते थे. व्यास जी और उनके परिवार के साथ अंदर पूजा-पाठ में भी शामिल होते थे.

श्रृंगार गौरी मंदिर में नियमित रूप से दर्शन करने वालों में उनके परिवार के अधिकांश सदस्य शामिल थे. कभी रोक-टोक नहीं रही, लेकिन 1992 में जब मामला बिगड़ा तो उसके बाद 1993 में यहां दर्शन पूजन पर रोक लगा दी गई और देखते ही देखते 1998 में यहां पूरी तरह से दर्शन पूजन पर रोक लग गई. जिसका विरोध हिंदूवादी संगठनों ने किया था और लगातार उनके नेतृत्व में कई बार लोगों ने गिरफ्तारियां भी दी. गुलशन का कहना है कि लगातार लड़ाई लड़ते-लड़ते 2006 के बाद यहां उन्हें हर चैत्र नवरात्रि के चतुर्थी पर दर्शन करने की अनुमति न्यायिक तौर पर मिली और व्यास परिवार की उपस्थिति में वो यहां विधिवत पूजा-पाठ करते हैं. उन्होंने बताया कि जहां तक तहखाने की बात है तो यहां केवल दो ही तहखाने हैं. हालांकि, जिसे तीसरा तहखाना बताया जा रहा है कि वो ऊपर जाने का रास्ता है.

बाहर कुछ दुकानें हैं जो अंजुमन इंतजामियां के हिस्से वाले तहखाने का हिस्सा है. फर्स्ट फ्लोर पर तीन हॉल, चार बड़े कमरें भी मौजूद हैं. इसके अलावा अंदर वजू के लिए एक तालाब भी है तो वहीं तहखाने के दो हिस्से एक दक्षिण और एक उत्तर में मौजूद हैं. गुलशन ने बताया कि 1998 में यहां पूरी तरह से दर्शन बंद होने के बाद हम लोगों ने इसका विरोध शुरू हुआ तो 2006 में एक अधिकारी ने मस्जिद परिसर की साफ-सफाई और पेंट का काम शुरू करवाया. उस समय भी हिंदूवादी संगठनों ने काफी विरोध किया था, लेकिन उस वक्त साफ-सफाई के नाम पर अंदर मौजूद तहखाने के मलबे और कई मूर्तियों को निकाल कर बाहर फेंक दिया गया. इसलिए अंदर इस समय कुछ ऐसा मौजूद नहीं है, जो हिंदुओं की आस्था से जुड़ा हो. लेकिन यह पक्का है कि अंदर हिंदू सभ्यता से जुड़े कई राज आज भी दफन हैं.

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Last Updated : May 16, 2022, 8:37 AM IST
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