वाराणसी: जनपद के काशी हिंदू विश्वविद्यालय आईआईटी बीएचयू में स्कूल ऑफ बायोकेमिकल इंजीनियरिंग विभाग में ग्रीन केमिस्ट्री अवधारणा पर प्रयोगशाला में इस्तेमाल हो चुकी बायो वेस्ट से फ्लोरोसेंट इंक तैयार की जा रही है. इंक कई मायनों में बेहद ही खास होगी. इसका प्रयोग खुफिया विभाग द्वारा किया जा सकेगा.
इन क्षेत्रों में हो सकता है प्रयोग
आप इस स्याही से किसी भी कागज पर लिख सकते हैं, लेकिन आपने क्या लिखा है, यह कोई देख नहीं पायेगा. इसको देखने के लिए आपको अल्ट्रावॉयलेट लाइट की जरूरत पड़ेगी. स्याही का प्रयोग खुफिया पेन बनाने, जासूसी करने, बैंक में नोट चेक करने, वस्तुओं की टैगिंग करने में उसके साथ ही प्रमाण पत्र के परीक्षण में किया जा सकता है. यदि इस स्याही का एक निशान नोट या प्रमाण पत्र पर लगा दिया जाए तो धोखाधड़ी जैसी घटनाओं को रोका जा सकता है.
इस पूरे मामले पर केमिकल वैज्ञानिक डॉ. विशाल मिश्रा ने बताया कि लैब में शोध कार्य के बाद बचे जैविक अवशेषों से इस स्याही का निर्माण किया गया. दरअसल विभाग में हर माह में काफी मात्रा में अपशिष्ट पदार्थ व्यर्थ हो जाते हैं. इनकी कीमत लगभग आठ से 10 हजार रुपये तक होती है. इन वेस्ट मैटेरियल से पर्यावरण को भी काफी नुकसान होता है. इसीलिए इसमें स्याही को बनाकर ग्रीन केमिस्ट्री की अवधारणा को प्रस्तुत किया जा रहा है. स्याही से लिखे जाने वाले अक्षर दिन के उजाले के बजाय अल्ट्रावायलेट लाइट के संपर्क में आने के बाद दिखते हैं. इसे बेहद कम लागत में 4 वाट की बैटरी संचालित अल्ट्रावायलेट लाइट से भी देखा जा सकता है. वहीं प्रतिष्ठित केमिकल एजुकेशनल जनरल एसीएस ने इसे प्रकाशित करने के लिए स्वीकृति भी दे दी है.