वाराणसी: दुनिया का प्राचीनतम जीवंत यह शहर जितना पुराना है, उतनी ही पुरानी यहां की परंपरा और रीति-रिवाज भी है. धर्म और अध्यात्म की नगरी के साथ काशी को परंपराओं का भी शहर कहा जा सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इन दिनों वाराणसी के प्रसिद्ध तुलसी घाट पर लगभग 478 वर्ष पुरानी कृष्ण लीला का मंचन किया जा रहा है.
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21 दिनों तक चलती है श्री कृष्ण लीला
बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में इन दिनों गोकुल का नजारा दिखाई दे रहा है. हर-हर महादेव के साथ ही लोगों में जय श्री कृष्ण के नारों की गूंज भी सुनाई दे रही है. प्रसिद्ध तुलसी घाट पर गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा शुरू की गई कृष्ण लीला की शुरुआत हो गई है. गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम चरित मानस की रचना तुलसी घाट पर ही की थी. धर्म प्रचार के लिए श्री कृष्ण लीला प्रारंभ की गई थी, जो अनवरत अपनी उसी परंपरा का निर्वहन करते हुए चली आ रही है.
कृष्ण लीला गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा शुरू की गई है. द्वादशी से शुरू होकर यह लीला जन्मोत्सव से लेकर कंस वध तक और राज्य अभिषेक तक चलती है. लक्खा मेला में एक नागनथैया इसी कृष्ण लीला का एक दृश्य है.
-प्रो. विशंभर नाथ मिश्र, महंत, गोस्वामी तुलसीदास अखाड़ा