ETV Bharat / state

शिक्षक दिवस विशेष: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का काशी हिंदू विश्वविद्यालय से था गहरा नाता

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णनन का गहरा संबंध रहा है. बीएचयू में राधाकृष्णनन ने 9 साल तक बतौर कुलपति पदभार संभाला था और वेतन में मात्र 1 रुपये लेते थे.

9 साल तक बीएचयू में रहे वीसी
9 साल तक बीएचयू में रहे वीसी
author img

By

Published : Sep 5, 2021, 10:58 AM IST

वाराणसी: आज 5 सितंबर को देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति रहे भारत रत्न डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के रूप में पूरे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का काशी हिंदू विश्वविद्यालय से पुराना नाता रहा है. 1939 से लेकर 1948 तक कुल 9 वर्षों तक उन्होंने विश्वविद्यालय में कुलपति का पदभार संभाला और वेतन के रूप में मात्र एक रुपये लेते थे.

भारत रत्न डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की स्मृतियों को साझा करते हुए बीएचयू के एसोसिएट प्रोफेसर बाला लखेंद्र ने बताया यह हम सब के लिए गौरव की बात है. हम उस संस्थान में कार्यरत हैं जहां भारत रत्न डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कुलपति के रूप में कार्य किया है. 7 सितंबर 1939 को काशी हिंदू विश्वविद्यालय की कुलपति का पदभार संभाला. 9 वर्षों तक कुलपति के रूप में अपनी सेवाएं दीं. विश्वविद्यालय को ऐसे संस्थान के रूप में विकसित किया जिसकी आज पूरी दुनिया में पहचान है.

स्पेशल रिपोर्ट

प्रोफेसर बाला लखेंद्र ने बताया कि यह उस समय की बात है जब महामना पण्डित मदन मोहन मालवीय जी अस्वस्थ चल रहे थे. उनको लगा कि विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में ऐसे व्यक्ति को नियुक्त किया जाए जो विश्वविद्यालय को नई दिशा दे सके. महामना ने देश और विश्वविद्यालय को लेकर जो सपना देखा था उसे पूरा किया जिसके बहुत चिंतन मनन के बाद डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को एक पत्र लिखा. दूसरी बार फिर पत्र लिखकर उन्हें विश्वविद्यालय बुलाया. महामना के आग्रह पर डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन बनारस पहुंचे.

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जब बीएचयू के कुलपति बने तो शुरुआती दिनों में वह कुछ दिन के लिए कोलकाता से बनारस का सफर करते थे और कामकाज निपटा के वापस चले जाया करते. ऐसे में मात्र उतनी ही धनराशि लेते थे जितना उनका टिकट लगता था. बाद में वह वेतन के रूप में मात्र एक रुपया लेते थे. बाकी सब विश्वविद्यालय के विकास में दान कर देते थे.

etv bharat
9 साल तक बीएचयू में रहे वीसी

आज भी काशी हिंदू विश्वविद्यालय डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का ऋणी है. महामना, डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के फोटो, उस समय के कुछ पत्र आज भी भारत कला भवन म्यूजियम और मालवीय भवन में संरक्षित रखा गया है. जो देश के दो महान विभूतियों के व्यक्तित्व को प्रदर्शित करता है. कला संकाय में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम से एक सभागार है. जब कुलपति के रूप में राधाकृष्णन जी यहां पर कार्य करते थे तो वहीं पर गीता का पाठ करते थे. यहां के प्रोफेसर, शिक्षक, विद्यार्थी, कर्मचारी और अपने मित्रों को हफ्ते में एक दिन गीता का पाठ सुनाते थे.

इसे भी पढ़ें:- बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देकर भविष्य संवार रहीं वाराणसी की मीरा राय

पूरे देश में 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था उस समय काशी हिंदू विश्वविद्यालय क्रांतिकारियों का गढ़ था. यहां पढ़ने वाले बहुत से छात्रों ने कई स्वतंत्रता आंदोलनों में हिस्सा लिया. ऐसे में ब्रिटिश हुकूमत को जब यह पता चला तो वह छात्रों को गिरफ्तार करने विश्वविद्यालय परिसर पहुंचे. बीएचयू के मुख्य द्वार तक सेना आ गई थी. उस समय कुलपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने ब्रिटिश सैनिक को विश्वविद्यालय में प्रवेश करने से रोक दिया. यही वजह थी कि उस आंदोलन में विश्वविद्यालय के छात्रों को ब्रिटिश पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई. डॉ. राधाकृष्णन की स्मृति में आज भी 5 सितंबर को विश्वविद्यालय में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम किए जाते हैं इस बार रक्तदान करके भारत माता के इस महान सपूत को याद किया जाएगा.

वाराणसी: आज 5 सितंबर को देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति रहे भारत रत्न डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के रूप में पूरे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का काशी हिंदू विश्वविद्यालय से पुराना नाता रहा है. 1939 से लेकर 1948 तक कुल 9 वर्षों तक उन्होंने विश्वविद्यालय में कुलपति का पदभार संभाला और वेतन के रूप में मात्र एक रुपये लेते थे.

भारत रत्न डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की स्मृतियों को साझा करते हुए बीएचयू के एसोसिएट प्रोफेसर बाला लखेंद्र ने बताया यह हम सब के लिए गौरव की बात है. हम उस संस्थान में कार्यरत हैं जहां भारत रत्न डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कुलपति के रूप में कार्य किया है. 7 सितंबर 1939 को काशी हिंदू विश्वविद्यालय की कुलपति का पदभार संभाला. 9 वर्षों तक कुलपति के रूप में अपनी सेवाएं दीं. विश्वविद्यालय को ऐसे संस्थान के रूप में विकसित किया जिसकी आज पूरी दुनिया में पहचान है.

स्पेशल रिपोर्ट

प्रोफेसर बाला लखेंद्र ने बताया कि यह उस समय की बात है जब महामना पण्डित मदन मोहन मालवीय जी अस्वस्थ चल रहे थे. उनको लगा कि विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में ऐसे व्यक्ति को नियुक्त किया जाए जो विश्वविद्यालय को नई दिशा दे सके. महामना ने देश और विश्वविद्यालय को लेकर जो सपना देखा था उसे पूरा किया जिसके बहुत चिंतन मनन के बाद डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को एक पत्र लिखा. दूसरी बार फिर पत्र लिखकर उन्हें विश्वविद्यालय बुलाया. महामना के आग्रह पर डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन बनारस पहुंचे.

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जब बीएचयू के कुलपति बने तो शुरुआती दिनों में वह कुछ दिन के लिए कोलकाता से बनारस का सफर करते थे और कामकाज निपटा के वापस चले जाया करते. ऐसे में मात्र उतनी ही धनराशि लेते थे जितना उनका टिकट लगता था. बाद में वह वेतन के रूप में मात्र एक रुपया लेते थे. बाकी सब विश्वविद्यालय के विकास में दान कर देते थे.

etv bharat
9 साल तक बीएचयू में रहे वीसी

आज भी काशी हिंदू विश्वविद्यालय डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का ऋणी है. महामना, डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के फोटो, उस समय के कुछ पत्र आज भी भारत कला भवन म्यूजियम और मालवीय भवन में संरक्षित रखा गया है. जो देश के दो महान विभूतियों के व्यक्तित्व को प्रदर्शित करता है. कला संकाय में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम से एक सभागार है. जब कुलपति के रूप में राधाकृष्णन जी यहां पर कार्य करते थे तो वहीं पर गीता का पाठ करते थे. यहां के प्रोफेसर, शिक्षक, विद्यार्थी, कर्मचारी और अपने मित्रों को हफ्ते में एक दिन गीता का पाठ सुनाते थे.

इसे भी पढ़ें:- बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देकर भविष्य संवार रहीं वाराणसी की मीरा राय

पूरे देश में 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था उस समय काशी हिंदू विश्वविद्यालय क्रांतिकारियों का गढ़ था. यहां पढ़ने वाले बहुत से छात्रों ने कई स्वतंत्रता आंदोलनों में हिस्सा लिया. ऐसे में ब्रिटिश हुकूमत को जब यह पता चला तो वह छात्रों को गिरफ्तार करने विश्वविद्यालय परिसर पहुंचे. बीएचयू के मुख्य द्वार तक सेना आ गई थी. उस समय कुलपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने ब्रिटिश सैनिक को विश्वविद्यालय में प्रवेश करने से रोक दिया. यही वजह थी कि उस आंदोलन में विश्वविद्यालय के छात्रों को ब्रिटिश पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई. डॉ. राधाकृष्णन की स्मृति में आज भी 5 सितंबर को विश्वविद्यालय में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम किए जाते हैं इस बार रक्तदान करके भारत माता के इस महान सपूत को याद किया जाएगा.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.