वाराणसी : यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में अभी वक्त है, लेकिन सियासत की जमीन गर्म होने लगी है. प्रदेश में सियासी पारा चढ़ने लगा है. सबसे बड़ी बात यह है कि 3 जुलाई को होने वाले जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए हर पार्टी अपनी पूरी ताकत झोंक रही है. सत्ता में बैठी बीजेपी हो या सत्ता से बाहर रहने वाली समाजवादी पार्टी, हर जिले में मजबूती के साथ आमने-सामने की लड़ाई लड़ रही है.
पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में बीजेपी का प्रदर्शन जिला पंचायत के चुनाव में बहुत अच्छा नहीं रहा. जिला पंचायत सदस्यों के 40 की संख्या में सिर्फ 8 सदस्य ही जीतकर आगे बढ़ पाए, जबकि समाजवादी पार्टी के 14 प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है. लेकिन जिला पंचायत अध्यक्ष पद की कुर्सी पर कब्जे की बात तो दोनों पार्टियां कर रहीं हैं. दोनों पार्टियां अपने पास जिला पंचायत सदस्यों की पूर्ण संख्या होने का दावा कर, अपना ही अध्यक्ष होने की बात कह रही हैं. लेकिन 3 जुलाई को ऊंट किस करवट बैठता है, कौन किसका साथ देता है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. फिर भी दोनों दलों की नजर निर्दल प्रत्याशियों के साथ ही, दूसरे छोटे दलों के जीते हुए प्रत्याशियों पर टिकी हुई है. छोटे दल भी इस समय को गवाना नहीं चाहते और राजनैतिक लॉलीपॉप दोनों तरफ फेंककर अपना उल्लू सीधा करने में जुट गए हैं. वहीं जो पार्टी 40 जिला पंचायत सदस्यों में 21 का आंकड़ा पार करेगी उसका बहुमत होगा. दूसरी तरफ अपना दल (एस) ने बीजेपी के साथ जाने से साफ इनकार कर दिया है. ऐसे में बीजेपी की राह और भी मुश्किल होने वाली है.
भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्ष हंसराज विश्वकर्मा का साफ तौर पर कहना है कि केंद्र और प्रदेश में बीजेपी की सरकार होने की वजह से जीते हुए बहुत से प्रत्याशी हमारे संपर्क में हैं और जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर हमारा ही कब्जा होने वाला है. हालांकि बीजेपी के जिला पंचायत सदस्य के 8 प्रत्याशी ही जीत सके हैं, लेकिन जिला अध्यक्ष 26 सदस्यों के अपने पास होने का दावा पेश कर रहे हैं. उनका साफ तौर पर कहना है- अपना दल समेत बहुजन समाजवादी पार्टी, निर्दल और समाजवादी पार्टी के कई सदस्य उनके संपर्क में हैं और 3 तारीख को होने वाले चुनाव में अधिकृत प्रत्याशी पूनम मौर्या ही अध्यक्ष पद पर काबिज होंगी.
वहीं समाजवादी पार्टी के जिला अध्यक्ष सुजीत यादव का कहना है कि उप चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बीजेपी को दिखा दिया कि हम 2022 की तैयारी पूरी तरह से कर चुके हैं, और इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष समाजवादी पार्टी का ही होने जा रहा है. 14 सदस्य हमारे जीत कर आए हैं और निर्दल समेत अन्य कुछ दलों के जीते हुए सदस्य हमारे संपर्क में हैं. लगभग 23 की संख्या में सदस्य हमारे पास मौजूद हैं, और हम हर हाल में जीतेंगे और जिला पंचायत अध्यक्ष हमारा ही होगा.
छोटे दल निभाएंगे बड़ी भूमिका
सबसे बड़ी बात यह है कि इस जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में छोटे दल बड़ी भूमिका निभाने जा रहे हैं. यदि आंकड़ों पर गौर करें तो भारतीय जनता पार्टी के पास 8 जिला पंचायत सदस्य, समाजवादी पार्टी के पास 14, बहुजन समाजवादी पार्टी के पास 5, कांग्रेस के पास 5, अपना दल एस 3, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी एक, आम आदमी पार्टी एक और निर्दलीय तीन सदस्य मौजूद हैं.
कुल 40 की संख्या में 22 सदस्य भाजपा और सपा को मिलाकर हैं, जबकि 18 सदस्यों में अन्य दलों के सदस्य मौजूद हैं. इनमें बहुजन समाजवादी पार्टी, अपना दल भाजपा और आम आदमी के साथ निर्दलीय प्रत्याशियों पर दोनों दलों की नजर बनी हुई है. ऐसे में निर्दलीय 3 प्रत्याशियों के साथ अपना दल और बहुजन समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों की तरफ से यह फैसला महत्वपूर्ण होगा कि वह किसका साथ देते हैं. क्योंकि इनका हाथ जिसके साथ होगा उसका बेड़ा पार है. दूसरी तरफ अपना दल (एस) ने बीजेपी का साथ देने से भी इनकार कर दिया है, ऐसे में बीजेपी की राह और मुश्किल भरी होगी.
पहले भी बीजेपी कर चुकी है बड़ा खेल
हालांकि, पिछले बार हुए जिला पंचायत के चुनाव में बीजेपी बड़ा खेल करके, समाजवादी पार्टी के सिंबल पर जीती हुई जिला पंचायत अध्यक्ष पद के प्रत्याशी को अपने पाले में शामिल कर चुकी है. 2017 में जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर काबिज समाजवादी पार्टी की अपराजिता सोनकर ने भाजपा का दामन थाम लिया था, और लखनऊ में बकायदा सीनियर लीडर महेंद्र नाथ पांडेय की मौजूदगी में भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी. जिसके बाद समाजवादी पार्टी को बड़ा झटका लगा था. इस पूरे प्रकरण में भाजपा की सरकार बनने के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष पद से अपराजिता को हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव भी लाया गया था, लेकिन अविश्वास प्रस्ताव के साबित ना हो पाने की वजह से अपराजिता की कुर्सी बच गई थी. उस समय ही चर्चा तेज हो गई थी कि अपराजिता भाजपा का दामन थाम सकती हैं और ऐसा ही हुआ.
'अगर भाजपा है मजबूत तो निर्दल को क्यों बनाया प्रत्याशी' ?
भले ही बनारस में होने वाले जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी अपना दावा मजबूत होने की बात कर रही हो, लेकिन इस पर सवाल उठना भी लाजमी है. समाजवादी पार्टी सवाल उठा रही है कि अगर बीजेपी इतनी ही मजबूत है तो विद्यापीठ ब्लाक से जीतकर आई निर्दल सदस्य को पार्टी में शामिल करके जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर क्यों प्रत्याशी बनाया गया है. जबकि पहले से ही बीजेपी के पास जीते हुए कई प्रत्याशी मौजूद थे. उनमें से क्यों पार्टी ने किसी पर दांव नहीं लगाया. समाजवादी पार्टी का साफ तौर पर कहना है कि बीजेपी के साथ उनके खुद के जीते सदस्य ही नहीं हैं. जबकि समाजवादी पार्टी के संपर्क में तीन निर्दल प्रत्याशी, अपना दल, कृष्णा गुट के प्रत्याशी और सुहेलदेव भारतीय समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी हैं. इसलिए कुर्सी पर कब्जा तो समाजवादी पार्टी का ही होगा.
फिलहाल कमजोर दिख रही बीजेपी
फिलहाल यह तो देखने वाली बात होगी कि 3 जुलाई को किस पार्टी का प्रत्याशी जीतता है और कौन हारता है. लेकिन पीएम के संसदीय क्षेत्र बनारस में जोड़-तोड़ की राजनीति में बीजेपी कहीं ना कहीं से पिछड़ती जरूर नजर आ रही है. क्योंकि निर्दल प्रत्याशी को लाकर जिला पंचायत अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बनाना और अब तक संख्या बल पर्याप्त न होना कहीं ना कहीं से 2022 से पहले बनारस में बीजेपी के कमजोर होने की कहानी को भी बयां कर रहा है.
यह चुनावी शेड्यूल-
नामांकन और नामांकन पत्रों की जांच- 26 जून , नाम वापसी- 29 जून , मतदान- 3 जुलाई , मतगणना- 3 जुलाई , कुल मतदाता- 40 , बहुमत के लिए कुल- 21
यह है 40 सदस्यों में अलग-अलग दलों की संख्या-
भारतीय जनता पार्टी | 08 |
समाजवादी पार्टी | 14 |
बहुजन समाजवादी पार्टी | 05 |
कांग्रेस | 05 |
अपना दल (एस) | 03 |
सुभासपा | 01 |
आप | 01 |
निर्दलीय | 03 |