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पंचगंगा घाट के हजारा दीपक से विश्व स्तर तक पहुंची बनारस की देव दीपावली - बनारस की देव दीपावाली की पहचान विश्व स्तर पर

बनारस की देव दीपावली की पहचान अब वैश्विक स्तर पर भी होने लगी है. काशी के घाटों पर देव दीपावली को जगमगाते दिए हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. आइये जानते हैं कि आखिर इस देव दीपावली की शुरुआत कहां से हुई और कैसे घाटों पर दीये जलने लगे.

बनारस में देव दीपावली.
बनारस में देव दीपावली.
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Published : Nov 29, 2020, 12:44 PM IST

Updated : Nov 29, 2020, 12:57 PM IST

वाराणसी: काशी का देव उत्सव 'देव दीपावाली' का इंतजार हर कोई पूरे साल करता है. देवताओं की इस दीपावली का नजारा देखने लोग दूर-दूर से आते हैं. अब वैश्विक स्तर पर एक अलग पहचान बना चुका यह पर्व आम और खास सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी भी इस महाउत्सव का दीदार करने 30 नवंबर को वाराणसी पहुंच रहे हैं. इन सबके बीच यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर इस देव दीपावली की शुरुआत कहां से हुई और कैसे घाटों पर यह दीये जलने लगे.

पंचगंगा घाट के हजारा दीपक से विश्व स्तर तक पहुंची बनारस की देव दीपावली.

महारानी अहिल्याबाई ने शुरू की थी देव दीपावली

वाराणसी के पंचगंगा घाट से इस देव दीपावली का सदियों पुराना नाता है. जानकार बताते हैं कि वाराणसी में देव दीपावली के शुरुआत वैसे तो पुराणों में भगवान शिव की कथा से जुड़ी है. लेकिन घाटों पर जलाए जाने वाले दीपक की कहानी पंचगंगा घाट से जुड़ी है. बताया जाता है कि 1785 ईसवी में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने पंचगंगा घाट पर ही पत्थर से बनाए गए हजारा स्तंभ दीपक की लंबी शृंखला को जलाकर काशी में देव दीपावली उत्सव की शुरुआत की थी.

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पंचगंगा घाट का हजारा दीपक.

काशी नरेश गंगा आरती के शुरुआत में दिया अलग रूप

देवताओं द्वारा शुरू की गई देव दीपावली को मानव जन तक पहुंचाने का प्रयास महारानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा पंचगंगा घाट से शुरू हुआ था. जो धीरे-धीरे समय के साथ काशी के 84 घाटों तक पहुंच गया. महाराजा काशी नरेश विभूति नारायण सिंह और उनके सहयोगियों ने मिलकर 1985 से देव दीपावली परंपरा को आगे बढ़ाया. 1991 में शुरू हुई गंगा सेवा निधि की गंगा आरती के बाद देव दीपावली ने वैश्विक स्वरूप ले लिया. घाटों का यह महापर्व विश्व स्तर तक पहुंच गया.

पंचगंगा घाट पर मिलती है पांच नदियां

बनारस के पंचगंगा घाट का इतिहास भी अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है. क्योंकि कार्तिक के महीने में यहां पर आकाश दीप जलाए जाने की शुरुआत भी की गई थी. आज भी यहां सैकड़ों की संख्या में आकाशदीप लंबे-लंबे बांस पर लगी टोकरियो में जगमगाते हैं. इतना ही नहीं पंचगंगा घाट पर एक साथ पांच नदियों का समागम होता है. जिसमें गंगा, यमुना, सरस्वती, द्रुतपापा शामिल है. इसके अलावा पंचगंगा घाट वह पवित्र स्थान भी है जहां पर महान संत कबीर दास को सीढ़ियों पर स्वामी रामानंद जी से गुरुमंत्र मिला था. घाट की सीढ़ियों पर लेट कर अपने गुरू के आने का इंतजार कर रहे कबीर के ऊपर स्वामी रामानंद के पैर इसी घाट पर पड़े थे.

हजारा स्तंभ जगमगाने के साथ शुरू होती है देव दीपावली

पुराणों में वर्णित है कि कार्तिक के पूरे महीने यदि पंचगंगा घाट पर स्नान किया जाए तो मोक्ष और पुण्य फल की प्राप्ति होती है. यदि पूरे महीने स्नान न कर पाए तो सिर्फ कार्तिक पूर्णिमा पर लगाई गई एक डुबकी ही पूरे कार्तिक का पुण्य देती है. यही वजह है कि आज भी इस पंचगंगा घाट का महत्व विशेष माना जाता है. इस घाट पर मौजूद सदियों पुराने हजारा दीपक स्तंभ को आज भी प्रज्ज्वलित कर काशी में देव दीपावली पर्व की शुरुआत की जाती है.

वाराणसी: काशी का देव उत्सव 'देव दीपावाली' का इंतजार हर कोई पूरे साल करता है. देवताओं की इस दीपावली का नजारा देखने लोग दूर-दूर से आते हैं. अब वैश्विक स्तर पर एक अलग पहचान बना चुका यह पर्व आम और खास सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी भी इस महाउत्सव का दीदार करने 30 नवंबर को वाराणसी पहुंच रहे हैं. इन सबके बीच यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर इस देव दीपावली की शुरुआत कहां से हुई और कैसे घाटों पर यह दीये जलने लगे.

पंचगंगा घाट के हजारा दीपक से विश्व स्तर तक पहुंची बनारस की देव दीपावली.

महारानी अहिल्याबाई ने शुरू की थी देव दीपावली

वाराणसी के पंचगंगा घाट से इस देव दीपावली का सदियों पुराना नाता है. जानकार बताते हैं कि वाराणसी में देव दीपावली के शुरुआत वैसे तो पुराणों में भगवान शिव की कथा से जुड़ी है. लेकिन घाटों पर जलाए जाने वाले दीपक की कहानी पंचगंगा घाट से जुड़ी है. बताया जाता है कि 1785 ईसवी में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने पंचगंगा घाट पर ही पत्थर से बनाए गए हजारा स्तंभ दीपक की लंबी शृंखला को जलाकर काशी में देव दीपावली उत्सव की शुरुआत की थी.

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पंचगंगा घाट का हजारा दीपक.

काशी नरेश गंगा आरती के शुरुआत में दिया अलग रूप

देवताओं द्वारा शुरू की गई देव दीपावली को मानव जन तक पहुंचाने का प्रयास महारानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा पंचगंगा घाट से शुरू हुआ था. जो धीरे-धीरे समय के साथ काशी के 84 घाटों तक पहुंच गया. महाराजा काशी नरेश विभूति नारायण सिंह और उनके सहयोगियों ने मिलकर 1985 से देव दीपावली परंपरा को आगे बढ़ाया. 1991 में शुरू हुई गंगा सेवा निधि की गंगा आरती के बाद देव दीपावली ने वैश्विक स्वरूप ले लिया. घाटों का यह महापर्व विश्व स्तर तक पहुंच गया.

पंचगंगा घाट पर मिलती है पांच नदियां

बनारस के पंचगंगा घाट का इतिहास भी अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है. क्योंकि कार्तिक के महीने में यहां पर आकाश दीप जलाए जाने की शुरुआत भी की गई थी. आज भी यहां सैकड़ों की संख्या में आकाशदीप लंबे-लंबे बांस पर लगी टोकरियो में जगमगाते हैं. इतना ही नहीं पंचगंगा घाट पर एक साथ पांच नदियों का समागम होता है. जिसमें गंगा, यमुना, सरस्वती, द्रुतपापा शामिल है. इसके अलावा पंचगंगा घाट वह पवित्र स्थान भी है जहां पर महान संत कबीर दास को सीढ़ियों पर स्वामी रामानंद जी से गुरुमंत्र मिला था. घाट की सीढ़ियों पर लेट कर अपने गुरू के आने का इंतजार कर रहे कबीर के ऊपर स्वामी रामानंद के पैर इसी घाट पर पड़े थे.

हजारा स्तंभ जगमगाने के साथ शुरू होती है देव दीपावली

पुराणों में वर्णित है कि कार्तिक के पूरे महीने यदि पंचगंगा घाट पर स्नान किया जाए तो मोक्ष और पुण्य फल की प्राप्ति होती है. यदि पूरे महीने स्नान न कर पाए तो सिर्फ कार्तिक पूर्णिमा पर लगाई गई एक डुबकी ही पूरे कार्तिक का पुण्य देती है. यही वजह है कि आज भी इस पंचगंगा घाट का महत्व विशेष माना जाता है. इस घाट पर मौजूद सदियों पुराने हजारा दीपक स्तंभ को आज भी प्रज्ज्वलित कर काशी में देव दीपावली पर्व की शुरुआत की जाती है.

Last Updated : Nov 29, 2020, 12:57 PM IST
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