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बनारस में 1995 से मेयर पद पर रहा बीजेपी का कब्जा, विपक्षी पार्टियों के लिए आसान नहीं है जीत की राह

धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में इन दिन निकाय चुनाव की चर्चा हो रही है. हर गली और नुक्कड़ पर सियासत की ही बातें हो रही हैं. सभी पार्टी के प्रत्याशियों ने अपना नामांकन कर दिया है. आइए जानते हैं बनारस के निकाय चुनाव के बारे में..

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निकाय चुनाव
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Published : Apr 18, 2023, 5:24 PM IST

वाराणसी: यूपी नगर निकाय चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो रही है. जैसे-जैसे मौसम का पारा चढ़ रहा है वैसे- वैसे राजनैतिक पारा भी अब ऊपर चढ़ने लगा है. वाराणसी में भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी समेत अपना दल कमेरावादी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी ने अपने मेयर पद के प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है. जबकि दो अन्य निर्दल ताल ठोक रहे हैं. यानी कुल 8 लोगों ने मेयर पद के लिए नामांकन दाखिल किया है.

निकाय चुनावों में बीजेपी का हमेशा रहा कब्जा
बता दें कि जैसे-जैसे मतदान की तिथि नजदीक आ रही है. हर राजनीतिक दल अपने प्रत्याशी के जीत का दम भर रहा है, लेकिन दावों से उलट बनारस का राजनैतिक मिजाज और चुनावी हालात कुछ और ही बयां करते रहे हैं. इसकी बड़ी वजह यह है कि बनारस के निकाय चुनावों पर हमेशा से बीजेपी काबिज रही है. पार्षदों से लेकर मेयर का पद बीजेपी के पास ही रहा है.

1995 में पहली बार हुआ आम चुनाव
दरअसल, नगर निगम के लिए 1995 में पहली बार आम चुनाव हुआ था. इस आम चुनावों में महापौर पद पर पहली बार भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी सरोज सिंह जीतकर मेयर पद बीजेपी के ही पास रहा. 1960 में नगरपालिका के गठन के बाद वाराणसी में पहली बार 1960 में नगर प्रमुख का चुनाव हुआ था. 1 फरवरी 1966 से 4 जुलाई 1970 और 1 जुलाई 1973 से 11 फरवरी 1989 तक महापालिका प्रशासकीय नियंत्रण में रही.

आम जनता की नहीं होती थी सीधी सहभागिता
इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार उत्पल पाठक का कहना है कि नगर महापालिका के अस्तित्व में रहने के दौरान नगर प्रमुख का चुनाव सभासद करते थे. यही नहीं नगर प्रमुख पद के प्रत्याशी को सदन का सदस्य होना जरूरी नहीं था. यही वजह रही कि समाज के विभिन्न वर्गों के प्रसिद्ध व्यक्ति इस पद पर अपना भाग्य आजमाते रहे. इस चुनाव में आम जनता की सीधी सहभागिता नहीं होती थी. ऐसे में भ्रष्टाचार भी जमकर था, लेकिन 1995 में वाराणसी नगर निगम के गठन के बाद जब पहली बार आम चुनाव हुए तो मेयर की सीट को भाजपा ने अपने कब्जे में ले लिया.

जातिगत आधार पर बढ़ता रहा चुनावी समीकरण
इसके बाद से बनारस में चुनावी समीकरण जातिगत आधार पर आगे बढ़ता रहा. शहर दक्षिणी शहर उत्तरी और कैंट विधानसभा में ब्राह्मण, ठाकुर, भूमिहार और अन्य पिछड़ी जातियों को साधने के साथ ही इस जातिगत समीकरण के बल पर बीजेपी अपना दबदबा कायम रखने में सफल रही.

वरिष्ठ पत्रकार उत्पल पाठक ने बताया कि तो बीजेपी बनारस में धार्मिक शहर होने का भी फायदा हमेशा से उठाती रही है. शहरी क्षेत्र के जो मुख्य विधानसभा इलाके हैं, उनमें शहर दक्षिणी विधानसभा काफी बड़ा और मजबूत किला बीजेपी का माना जाता है. बीजेपी यहां से अच्छा वोट हासिल करके मेयर के चुनाव का रुख बदलने में कामयाब रहती है. जबकि शहर कैंट में मिश्रित वोटर्स के होने का फायदा बीजेपी को भरपूर मिल जाता है.

आम चुनावों के बाद महापौर
सरोज सिंह 1995 से 2000 तक बीजेपी
अमरनाथ यादव 2000 से 2005 तक बीजेपी
कौशलेंद्र सिंह 2006 से 2011 तक बीजेपी
रामगोपाल मोहले 2011 से 2017 तक बीजेपी
मृदुला जायसवाल 2017 से नवंबर 2022 तक बीजेपी

आम चुनावों से पहले जब नगर पालिका सिस्टम था
कुंज बिहारी गुप्ता 1960 से 1962 तक
बृजपाल दास 1962 से 1966 तक
श्याम मोहन अग्रवाल 1968 से 1970 तक
सरयू प्रसाद द्विवेदी 1970 से 1971 जुलाई तक
पूरन चंद पाठक 1971 से 1973 तक
मोहम्मद स्वालेह अंसारी 1989 से दो 1994 तक

पढ़ेंः कई सीटों पर भाजपा ने चर्चा से बाहर रहे चेहरों को उतारकर सबको चौंकाया

वाराणसी: यूपी नगर निकाय चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो रही है. जैसे-जैसे मौसम का पारा चढ़ रहा है वैसे- वैसे राजनैतिक पारा भी अब ऊपर चढ़ने लगा है. वाराणसी में भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी समेत अपना दल कमेरावादी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी ने अपने मेयर पद के प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है. जबकि दो अन्य निर्दल ताल ठोक रहे हैं. यानी कुल 8 लोगों ने मेयर पद के लिए नामांकन दाखिल किया है.

निकाय चुनावों में बीजेपी का हमेशा रहा कब्जा
बता दें कि जैसे-जैसे मतदान की तिथि नजदीक आ रही है. हर राजनीतिक दल अपने प्रत्याशी के जीत का दम भर रहा है, लेकिन दावों से उलट बनारस का राजनैतिक मिजाज और चुनावी हालात कुछ और ही बयां करते रहे हैं. इसकी बड़ी वजह यह है कि बनारस के निकाय चुनावों पर हमेशा से बीजेपी काबिज रही है. पार्षदों से लेकर मेयर का पद बीजेपी के पास ही रहा है.

1995 में पहली बार हुआ आम चुनाव
दरअसल, नगर निगम के लिए 1995 में पहली बार आम चुनाव हुआ था. इस आम चुनावों में महापौर पद पर पहली बार भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी सरोज सिंह जीतकर मेयर पद बीजेपी के ही पास रहा. 1960 में नगरपालिका के गठन के बाद वाराणसी में पहली बार 1960 में नगर प्रमुख का चुनाव हुआ था. 1 फरवरी 1966 से 4 जुलाई 1970 और 1 जुलाई 1973 से 11 फरवरी 1989 तक महापालिका प्रशासकीय नियंत्रण में रही.

आम जनता की नहीं होती थी सीधी सहभागिता
इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार उत्पल पाठक का कहना है कि नगर महापालिका के अस्तित्व में रहने के दौरान नगर प्रमुख का चुनाव सभासद करते थे. यही नहीं नगर प्रमुख पद के प्रत्याशी को सदन का सदस्य होना जरूरी नहीं था. यही वजह रही कि समाज के विभिन्न वर्गों के प्रसिद्ध व्यक्ति इस पद पर अपना भाग्य आजमाते रहे. इस चुनाव में आम जनता की सीधी सहभागिता नहीं होती थी. ऐसे में भ्रष्टाचार भी जमकर था, लेकिन 1995 में वाराणसी नगर निगम के गठन के बाद जब पहली बार आम चुनाव हुए तो मेयर की सीट को भाजपा ने अपने कब्जे में ले लिया.

जातिगत आधार पर बढ़ता रहा चुनावी समीकरण
इसके बाद से बनारस में चुनावी समीकरण जातिगत आधार पर आगे बढ़ता रहा. शहर दक्षिणी शहर उत्तरी और कैंट विधानसभा में ब्राह्मण, ठाकुर, भूमिहार और अन्य पिछड़ी जातियों को साधने के साथ ही इस जातिगत समीकरण के बल पर बीजेपी अपना दबदबा कायम रखने में सफल रही.

वरिष्ठ पत्रकार उत्पल पाठक ने बताया कि तो बीजेपी बनारस में धार्मिक शहर होने का भी फायदा हमेशा से उठाती रही है. शहरी क्षेत्र के जो मुख्य विधानसभा इलाके हैं, उनमें शहर दक्षिणी विधानसभा काफी बड़ा और मजबूत किला बीजेपी का माना जाता है. बीजेपी यहां से अच्छा वोट हासिल करके मेयर के चुनाव का रुख बदलने में कामयाब रहती है. जबकि शहर कैंट में मिश्रित वोटर्स के होने का फायदा बीजेपी को भरपूर मिल जाता है.

आम चुनावों के बाद महापौर
सरोज सिंह 1995 से 2000 तक बीजेपी
अमरनाथ यादव 2000 से 2005 तक बीजेपी
कौशलेंद्र सिंह 2006 से 2011 तक बीजेपी
रामगोपाल मोहले 2011 से 2017 तक बीजेपी
मृदुला जायसवाल 2017 से नवंबर 2022 तक बीजेपी

आम चुनावों से पहले जब नगर पालिका सिस्टम था
कुंज बिहारी गुप्ता 1960 से 1962 तक
बृजपाल दास 1962 से 1966 तक
श्याम मोहन अग्रवाल 1968 से 1970 तक
सरयू प्रसाद द्विवेदी 1970 से 1971 जुलाई तक
पूरन चंद पाठक 1971 से 1973 तक
मोहम्मद स्वालेह अंसारी 1989 से दो 1994 तक

पढ़ेंः कई सीटों पर भाजपा ने चर्चा से बाहर रहे चेहरों को उतारकर सबको चौंकाया

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