उन्नाव: जिले का मोहान गांव इंकलाब जिंदाबाद का नारा देने वाले उर्दू कवि, पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी मौलाना हसरत मोहानी की जन्मस्थली है. उनके इंतकाल को 70 साल से ज्यादा का समय बीत चुका है. हसरत मोहानी की याद में लंबे समय से मोहान गांव के निवासी उनके घर में एक मदरसा संचालित कर रहे हैं. यहां बच्चों को 4 भाषाओं में तालीम दी जाती है लेकिन यह मदरसा सरकारी मदद से कोसों दूर है. यहां के जनप्रतिनिधियों ने भी आज तक कोई भी आर्थिक मदद नहीं की है. फिलहाल ग्रामवासी निजी खर्चे पर किसी तरह मदरसा चला रहे हैं.
बीते 13 मई को हसरत मोहानी की पुण्यतिथि मना कर लोगों ने उन्हें याद तो किया लेकिन मोहान में उनकी यादों को जिंदा रखने के लिए ऐसी कोई भी चीज नहीं बनी जिससे उन्हें उन्हें श्रद्धांजलि तक दी जा सके. हसरत मोहानी जिस घर में जन्मे थे, उसे मदरसे में तब्दील करके मोहान वासी खुद चंदा इकट्ठा करके छोटे बच्चों को तालीम दे रहे हैं. यहां पढ़ने वाले बच्चों को 4 भाषाओं में शिक्षा दी जा रही है.
मदरसा संचालित करने वाली प्रिंसिपल नुसरत सिद्धिकी के मुताबिक उन्हें किसी प्रकार की सरकारी मदद नहीं मिलती है. यहां के लोग आपस में चंदा जुटाते हैं और बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं. चंदा के जरिए ही टीचर स्टाफ को तनख्वाह दी जा रहा है. मुफ्त में किताबें भी वितरित की जाती हैं. आने वाले समय में मदरसे की अपनी एक ड्रेस होगी जिसमें यह बच्चे तालीम लेने आएंगे. उन्होंने सरकार से निवेदन किया है कि उन्हें सरकारी मदद मिल जाए तो मदरसे को और बेहतर बनाया जा सकता है.
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प्रिंसिपल ने बताया कि हसरत मोहानी के नाम पर मोहान में कुछ भी नहीं है. यहां की सड़कें भी ध्वस्त हैं. उन्होंने सरकार से निवेदन किया है हसरत मोहानी के नाम पर यहां पुस्तकालय या खेल का मैदान बनाया जाए जिससे हसरत मोहानी की यादें जिंदा रहें और बच्चे भी उनकी यादों को जहन में रख सकें.
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