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उन्नाव: जामा मस्जिद के इमाम की नसीहत, 'दिखावे के लिए न रखें रोजा'

जामा मस्जिद के इमाम वसीक अहमद का कहना है कि रोजा दिखावे के लिए नहीं रखना चाहिए. उन्होंने कहा कि पहले लोग रोजा खुदा के लिए रखते थे, लेकिन आजकल लोग दिखावा बहुत कर रहे हैं. जरा सा अच्छा काम करने पर लोग बहुत गाते हैं. फोटो खिंचाते हैं जो कि नहीं करना चाहिए.

वसीक अहमद, जामा मस्जिद के इमाम.
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Published : May 18, 2019, 2:12 PM IST

उन्नाव: माह-ए-रमजान के 10 रोजे पूरे होते ही रहमत का अशरा खत्म हो गया. इसके साथ ही कई मस्जिदों में तरावीह में कुरान का एक दौर भी मुकम्मल हो गया है. इबादत में मशगूल रोजेदार आने वाले दिनों में रोजे रखने और नेक काम करने की दुआएं भी कर रहे हैं.

जानकारी देते जामा मस्जिद के इमाम वसीद अहमद.

माह-ए-रमजान का दूसरा अशरा शुरू

  • माह-ए-रमजान को 10-10 दिनों के तीन अशरों में भी जाना जाता है.
  • पहले 10 दिन अल्लाह की रहमत पाने के लिए, दूसरा अशरा मगफिरत का और आखिरी अशरा गुनाहों से निजात का माना जाता है.
  • गुरुवार को 10 रोजे पूरे होते ही पहला अशरा खत्म हो गया.
  • दूसरे अशरे में रोजेदार अपने गुनाहों की मगफिरत की दुआ करेंगे. साथ ही अपने मरहूम के लिए भी दुआ करेंगे.
  • मजहबी जानकारों की माने तो अल्लाह इस मुबारक महीने में अपने बंदों को तौबा करने पर माफ कर देता है. रोजे की जजा यानी इनाम वह खुद अता करता है. रोजेदारों को चाहिए कि वह अपने नफ्स पर काबू रखें

पहले का जो समय हुआ करता था, लोग मजबूत हुआ करते थे. वह थोड़ी बहुत शारीरिक समस्या से विकृत नहीं हुआ करते थे. तब पहले के समय में जो आज मस्जिद में कूलर लगे हैं, फ्रिज हैं, पहले नहीं हुआ करते थे, जिससे रोजेदार को ठंडे पानी के लिए बर्फ के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता था, लेकिन आज कई तरीके की व्यवस्थाएं टेक्नोलॉजी ने दे दी है, जिससे रोजा रखने में बहुत ही आसानी हो गई है, रोजा दिखावटी के लिए नहीं रखना चाहिए. पहले लोग रोजा खुदा के लिए रखते थे, लेकिन आजकल लोग दिखावटी बहुत कर रहे हैं, जरा सा अच्छा काम करने पर लोग बहुत गाते हैं. फोटो खिंचवाते हैं जो कि नहीं करना चाहिए.

-वसीक अहमद, इमाम, जामा मस्जिद

उन्नाव: माह-ए-रमजान के 10 रोजे पूरे होते ही रहमत का अशरा खत्म हो गया. इसके साथ ही कई मस्जिदों में तरावीह में कुरान का एक दौर भी मुकम्मल हो गया है. इबादत में मशगूल रोजेदार आने वाले दिनों में रोजे रखने और नेक काम करने की दुआएं भी कर रहे हैं.

जानकारी देते जामा मस्जिद के इमाम वसीद अहमद.

माह-ए-रमजान का दूसरा अशरा शुरू

  • माह-ए-रमजान को 10-10 दिनों के तीन अशरों में भी जाना जाता है.
  • पहले 10 दिन अल्लाह की रहमत पाने के लिए, दूसरा अशरा मगफिरत का और आखिरी अशरा गुनाहों से निजात का माना जाता है.
  • गुरुवार को 10 रोजे पूरे होते ही पहला अशरा खत्म हो गया.
  • दूसरे अशरे में रोजेदार अपने गुनाहों की मगफिरत की दुआ करेंगे. साथ ही अपने मरहूम के लिए भी दुआ करेंगे.
  • मजहबी जानकारों की माने तो अल्लाह इस मुबारक महीने में अपने बंदों को तौबा करने पर माफ कर देता है. रोजे की जजा यानी इनाम वह खुद अता करता है. रोजेदारों को चाहिए कि वह अपने नफ्स पर काबू रखें

पहले का जो समय हुआ करता था, लोग मजबूत हुआ करते थे. वह थोड़ी बहुत शारीरिक समस्या से विकृत नहीं हुआ करते थे. तब पहले के समय में जो आज मस्जिद में कूलर लगे हैं, फ्रिज हैं, पहले नहीं हुआ करते थे, जिससे रोजेदार को ठंडे पानी के लिए बर्फ के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता था, लेकिन आज कई तरीके की व्यवस्थाएं टेक्नोलॉजी ने दे दी है, जिससे रोजा रखने में बहुत ही आसानी हो गई है, रोजा दिखावटी के लिए नहीं रखना चाहिए. पहले लोग रोजा खुदा के लिए रखते थे, लेकिन आजकल लोग दिखावटी बहुत कर रहे हैं, जरा सा अच्छा काम करने पर लोग बहुत गाते हैं. फोटो खिंचवाते हैं जो कि नहीं करना चाहिए.

-वसीक अहमद, इमाम, जामा मस्जिद

Intro:माहे रमजान के 10 रोजे पूरे होते हैं रहमत का अशरा खत्म हो गया इसके साथ ही कई मस्जिदों में तरावीह में कुरान का एक दौर भी मुकम्मल हो गया है इबादत में मशगूल रोजेदार आने वाले दिनों में रोजे रखने और नेक काम करने की दुआएं भी कर रहे हैं।
माहे रमजान को 10 - 10 दिनों के तीन अशरों में भी जाना जाता है पहले 10 दिन अल्लाह की रहमत पाने के लिए दूसरा अशरा मग फिरत का आखरी अशरा गुनाहों से निजात का माना जाता है गुरुवार को 10 रोजे पुरे होते ही पहला अशरा खत्म हो गया दूसरे अशरे में रोजेदार अपने गुनाहों की मगफिरत की दुआ करेंगे साथ ही अपने मरहूम इनके लिए भी दुआ करेंगे मजहबी जानकारों की माने तो अल्लाह इस मुबारक महीने में अपने बंदों को तोबा करने पर माफ कर देता है रोजे की जजा यानी इनाम वह खुद आता करता है रोजेदारों को चाहिए कि वह अपने नफ़्स पर काबू रखें।


Body:वहीं ईटीवी से बात करते हुए जामा मस्जिद के इमाम वसीक अहमद ने बताया की पहले का जो समय हुआ करता था लोग मजबूत हुआ करते थे वह थोड़ी बहुत शारीरिक समस्या से विकृत नहीं हुआ करते थे तब पहले के समय में जो आज मस्जिद में कूलर लगे हैं फ्रीज है पहले नहीं हुआ करते थे जिससे रोजेदार को ठंडा पानी के लिए बर्फ के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता था लेकिन आज कई तरीके की व्यवस्थाएं टेक्नोलॉजी ने दे दी है जिससे रोजा रखने में बहुत ही आसानी हो गई है वहीं उन्होंने बताया कि रोजा दिखावटी के लिए नहीं रखना चाहिए पहले लोग रोजा खुदा के लिए रखते थे लेकिन आजकल लोग दिखावटी बहुत कर रहे हैं उन्होंने कहा की जरा सा अच्छा काम करने पर लोग बहुत गाते हैं फोटो खींचाते हैं जो नहीं करना चाहिए।

बाइट:---इमाम वसीक अहमद जामा मस्जिद


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